गुरुवार, 30 जून 2011

फर्क है बस किरदारों का-- बाकी खेल पुराना है....


फर्क है बस किरदारों  का 
बाकी  खेल  पुराना  है  ....
  
एल.आर.गाँधी 

लूटना और लुटाना हमारा राष्ट्रिय   व्यसन रहा है. अंग्रजों ने २०० साल राज किया और दो शताब्दियों में लगभग एक लाख करोड़ की लूट की. देश की जनता और  आजादी के परवानों ने अनगिनत कुर्बानिय दे कर देश को अंग्रेजों से आज़ाद करवाया ताकि इस देश की धन संपदा इस देश की गरीब जनता को नसीब हो और वे अपना भविष्य संवार सकें. अँगरेज़ तो चला गया - उनका स्थान ले लिया हमारे सफेद पोश काले अंग्रेजों ने .... लूट बदस्तूर जारी है . .. महज़ ६४ साल में हमारे इन काले अंग्रजों ने देश का २८० लाख करोड़ विदेशी बैंकों में पहुंचा दिया. 
अंग्रेजी हकुमत के वक्त जो काम अंग्रेजों के लिए हमारे रजवाड़े- ज़मीदार और सत्ता के दलाल करते थे- वही काम आज के हुक्मरानों 'काले अंग्रेजों' के लिए - अफसरान, बिचौलिये और व्यवसाई वर्ग कर रहा है. जनता पर नए नए कर लगा कर सरकारी खजाना पहले तो भरा जाता है और फिर नई नई योजनाओं के नाम पर लूटा जाता है. 
१८५७ के पहले स्वतंत्रता संग्राम के  बाद ,लोगों ने अँगरेज़ को लगान देना बंद कर दिया और अंग्रेजों को अपनी सेना को पगार के लाले पड़ गए. पंजाब के अँगरेज़ गवर्नर ने बफादार रजवाड़ों और ज़मीदारों को माली सहायता की अपील की . महाराजा पटियाला अग्रेजों के ख़ासम- ख़ास थे- जोश में आकर ५ लाख रूपए भेंट कर दिए...अब सरकारी खजाना ख़ाली हो गया तो रियासत की जनता पर  नए नए टैक्स लगाए गए. शहर के रेड लाईट एरिया धरम पूरा बाज़ार के लिए बाहर से लाई जाने वाली वेश्याओं पर ' चुंगी'..... इन रजवाड़ों की अँगरेज़ भक्ति ने देश की आज़ादी ९० साल पीछे धकेल दी. वही काम आज देश पर हकुमत कर रहे ये वजीर और अफसर किये जा रहे हैं . महगाई और लूट खसूट के चलते देश की आधी से अधिक जनता भुखमरी की शिकार है.... और जिन बजुर्गों ने अंग्रेजी दौर देखा है वे आज कानून व्यवस्था और प्रबंधन व् महगाई के मामले में अंग्रेजी दौर को बेहतर मानते हैं. क़ानून पहले भी आमिर के लिए और व् गरीब के लिए और था. और हालात आज उससे भी बदतर हैं. 
उस दौर में सारा धन वैभव अँगरेज़ हुक्मरान और देसी रजवाड़ों और नवाबों तक सीमित था आज सफ़ेद पोश नेताओं , अफसरों और सत्ता के दलालों के हाथ में है. 
  
      तोहमतें आएँगी नादिर शाह पर 

      आप दिल्ली रोज़ ही लूटा करें .

कहते हैं विदेशी हमलावरों ने इस देश को खूब लूटा - मुहम्मद गौरी, नादिरशाह, अहमदशाह अब्दाली और कंपनी बहादुर.. जो काम आज की 'खबरियां' - राडिया और बुरका दत राजा और टाटा के लिए कर रही हैं वही काम मुग़ल काल में 'शोलापुरी बेगम और मुघलाई बेगम ने अहमद शाह अब्दाली के लिए बखूबी सरंजाम दिया. मुघलाई बेग़म ने दिल्ली की लूट में शाह के लिए मुख्य खबरी का काम किया और इनाम पाया. शोलापुरी  बेगम ने शाह  के लिए उस हवेली की निशान देहि की जहा शाही खजाना दफ़न था. शाही दरबारियों द्वारा औरंगजेब काल से पिछले ७० साल में हिन्दुस्तानी  रियाया  से लूटा गया - सोना ,चाँदी,  हीरे,  मोती  सब  अब्दाली के सिपाहियों  ने लूट लिए. अब्दाली द्वारा लूटी  गयी ३० करोड़ की  अकूत धन दौलत २८००० हाथी,घोड़ों,ऊंटों बैलगाड़ियों और सिपाहींयों  पर लादी गई.
 आज की अपने ही राज नेताओं की लूट चुप चाप  हसन अली जैसे सत्ता के दलालों द्वारा हवाला के ज़रिये विदेशी बैंकों में जमा हो जाती है.फिर देश का पैसा बिना रोक टोक विदेश लेजाने  की सुविधा भी हमारे हुक्मरानों ने मुहैया करवा रखी है. बाई एयर VIP और VVIPमहानुभावों  के सामान की कोई जांच नहीं की जाती जिनमें केंद्र के शीर्ष सत्ताधारी , जज, मुख्यमंत्री आदि के इलावा देश की 'राजमाता ' के ज्वायीं राजा राबर्ट वढेरा भी शामिल हैं .... ताकि लूट का पैसा चुप चाप बाहर लेजाया  जा सके. 
बाबा रामदेव और अन्ना के हो हल्ले ने अब इन लुटेरों को सतर्क कर दिया है - अब स्विस बैंकों का पैसा ये ठिकाने लगाने की जुगत लड़ा रहे हैं.  ८ जून को युवराज- राजमाता अपने खसम खास लोगों के साथ एक निजी जेट से स्विट्ज़रलैंड चुप चाप हो भी आए हैं - देश के वाच डाग यानिके मिडिया वाले मस्त हैं- हों भी क्यों न ? १८०० करोड़ का विज्ञापन ग्रास जो मिल गया है.   

बुधवार, 29 जून 2011

आज की राजनैतिक चवन्नी


आज  की  राजनैतिक  चवन्नी
       एल.आर गाँधी 


आज ही दो नहीं तीन  खबरें  देखने को मिलीं - एक खबर है कि कल से सरकार २५ नए  पैसे का सिक्का वापिस ले रही है अर्थात अब कल से चवन्नी नहीं चलेगी. दूसरी खबर है कि हमारे मोहन प्यारे ने कहा है कि वह अब असहाय  नहीं है.  तीसरी खबर - अन्ना हजारे कल को  सोनिया गाँधी से मिलेंगे शायद यह पूछेंगे कि यह 'चवन्नी' और कितने दिन चलेगी.  
यका यक ऐसा क्या हो गया कि हमारे मोहन प्यारे जी को लगने लगा कि वे अब असहाय  नहीं हैं. जो मनमोहन सिंह कल तक गठबंधन सरकार की मजबूरिया गिना गिना कर अपने आप को असहाय  ज़ाहिर कर रहे थे - आज  कौन सा 'चवनप्राश ' खा लिया है. ' चोरों का सरदार सिंह फिर भी इमानदार '- जिनकी नाक के नीचे भारतीय अर्थ व्यवस्था का चीर हरण होता रहा - महाघोटालों के पिछले सभी कीर्तिमान बौने पड़ गए ..और 
धृतराष्ट्र  की भांति यह दो आँखों वाला नयनसुख सब चुप चाप देखता रहा. १९ जून को कांग्रेस के राज कुमार राहुल के जन्म दिन पर हमारे 'शकुनी मामा' परम आदरणीय दिग्विजय सिंह उर्फ़ दिग्गी मिया ने पूरे जोर शोर से राज कुमार के राजतिलक का राग अलापा , मगर मोहन प्यारे मौन रहे. 
अब हमारे अन्ना हजारे उर्फ़ आज के गाँधी - कल को सोनिया जी से मिलेंगे . जाहिर है वे सोनिया जी से यह तो नहीं पूछेंगे कि पिछले तीन साल में उनके विदेशी दौरों पर जो १८५० करोड़ रूपया सरकारी खजाने से खर्च किया गया ,उसकी जांच क्या लोक पाल के दायरे में आएगी ? या फिर यह पूछेंगे कि २१ जून को स्वामी ने जो राहुल बाबा पर देश का प्रधानमंत्री बनने पर कानूनी अडंगा लगाया है, में कितनी सच्चाई है. ? या फिर यह पूछेंगे कि भारतीय राजनीती की यह  'चवन्नी ' (मजबूरी) और कितने दिन चलेगी ?
      



शनिवार, 18 जून 2011

नौकरों की भाषा ...हिंदी



नौकरों  की  भाषा  ...हिंदी 

       एल.आर गाँधी 

लन्दन के बड़े अखबार द डेली टेलीग्राम ने ४ जून के अपने अंक में रहस्योदघाटन किया है कि सोनिया गाँधी राष्ट्र भाषा हिंदी को केवल नौकरों द्वारा बोली जाने वाली भाषा मानती है. 
ठीक ही तो है जब डेढ़ दशक पुराणी पार्टी एक विदेशी महिला को अपना 'आका ' मान बैठी है और छोटे बड़े नेता तो क्या देश का प्रधान मंत्री भी खुद को सार्वजानिक तौर पर  मैडम का 'चाकर' मानता है तो मैडम के काले अंग्रेजों से और तवक्को भी क्या की जा सकती है कि वे हिन्दुस्तानियों को गुलाम और राष्ट्र भाषा को नौकरों/गुलामों की भाषा समझें. 
देश में जब राष्ट्रिय सम्मान के लिए भारतीय संघर्ष कर रहे हों और अन्ना-रामदेव के नेतृत्त्व में भ्रष्टाचार और काले धन को विदेशी बैंकों से वापिस लाने के लिए देश की जनता सड़कों पर भ्रष्ट तंत्र के खिलाफ आन्दोलन कर रही हो , ऐसे वक्त में कांग्रसियों की राजमाता और  राज कुमार अपनी साथियों सहित एक निजी जेट से स्विस्त्रलैंड की व्यापारिक यात्रा पर हैं ? जाहिर है वहां के बैंकों में पड़ा अपना काला धन ठिकाने भी तो लगाना है.सुब्रमनियम स्वामी ने तो पहले ही देश वासियों को आगाह कर दिया है कि स्विस बैंकों में सोनिया जी का एक लाख करोड़ का काला धन जमा है. दिग्गी मियां ने इस का खंडन भी तो नहीं किया. 
देश को इन काले अंग्रेजों के चंगुल से छुडवाने के लिए -एक और आज़ादी की लड़ाई लड़ी जनि बाकी है.  

गुरुवार, 16 जून 2011

उतिष्ठकौन्तेय: गंगा पुत्र निगमानंद के कातिल : काले अँगरेज़

उतिष्ठकौन्तेय: गंगा पुत्र निगमानंद के कातिल : काले अँगरेज़

गंगा पुत्र निगमानंद के कातिल : काले अँगरेज़

गंगा पुत्र निगमानंद के कातिल:  काले अँगरेज़ 
          
                   एल.आर .गाँधी 


भागीरथ की गंगा - भीषम पितामह की माता -भगवान कृष्ण का जल रूप ,शिव की शिरो धारा- हिन्दुओं का हिंदुत्व -आज  खतरे में है.  खतरा है उन इन्डियन काले अंग्रेजों से जो भारतीय संस्कृति के समूल नाश के मंसूबे पाले बैठे हैं - एक गंगा पुत्र ने काले अंग्रजों से गंगा की रक्षा में अपने प्राणों की आहूति दे कर १३ जून २०११ समाधि ले ली. स्वामी निगमानंद ने १२ वर्ष तक माँ गंगा का अस्तित्व बचाने के लिए संघर्ष किया और आखिर में ११३ दिन के घोर संघर्ष और अनशन के बाद अपने प्राणों की आहुति दे दी .
स्वामीजी ने गंगा तट पर स्टोन क्रेशर हटाने के लिए लम्बा संघर्ष किया . १२ में से ११ क्रेशर तो हटा लिए गए किन्तु    हिमालय स्टोन क्रेशर सरकार, प्रसाशन  और चंद परम आदरणीय न्यायधीशो की मिलीभगत से चालु रहा . मात्री सदन का आरोप है की स्वामी जी को जिला अस्पताल में ही ज़हर का इंजेक्शन लगाया गया जिसके कारन उनकी मौत हो गई. 
स्वामी जी की मौत भी उसी हस्पताल में हुई जहाँ स्वामी रामदेव जी का हाल चाल जानने के लिए देश के नेता, साधू और मिडिया वालों का मजमा लगा था.  किसी ने इस महान क्रन्तिकारी साधू की सुध नहीं ली जो एक पवित्र कार्य के लिए आज तक के सबसे लम्बे 'अनशन' पर थे. 
स्वामी  निगमानंद सरस्वती जी के बलिदान ने देश के भ्रष्ट  नेताओं के साथ साथ मिडिया, संत समाज ,नौकरशाही,  परियावरण माफिया और ' काले अंग्रेजों को भी नंगा कर दिया है. 
गंगा के नाम पर हमारे इन काले अंग्रेजों ने राजनीती तो खूब की ताकि धरम परायण हिन्दू वोट बैंक को भुनाया जाए. मगर गंगा की सफाई के लिए अनेक योजनाओं पर करोड़ों रूपए खर्च कर भी गंगा और मैली होती चली गई. विश्व वन्य जीव कोष की रपट है की १० प्रमुख विलुप्त  होती नदियों में गंगा का नाम शीर्ष पर है. और यही हाल हिमालय का है. गंगा की धारा को बिना किसी प्रकार के अवरोध के चालू रखने के लिए १९१७ में पंडित मदन मोहन मालवीय जी ने नेत्रित्व में एक प्रतिनिधिमंडल अंग्रज सरकार से मिला - पर्यावरण और हिन्दुओं की आस्था को ध्यान में रखते हुए ब्रिटिश सर्कार ने अपने आदेश न : १०२ तिथि २०.४.१९१७ के अंतर्गत गंगा की धारा में व्यवधान को IPC२९५ के अंतर्गत अपराध घोषित कर दिया  . आज काले अंग्रेजों के राज में यह अपराध धड़ल्ले से किया जा रहा है.                                                          
 १९७० में गंगा बचाव योजना बनाई गई और गंगा को राष्ट्रीय नदी का दर्ज़ा दिया गया . १९८५ में जब राजीव गाँधी प्रधान मंत्री बने तो गंगा एक्शन प्लान बनाया गया , फिर १९८९ में प्रदूषण मुक्त गंगा निति बने गई - मगर मर्ज़ बढ़ता गया ज्यों ज्यों दवा की. गंगा का जल और भी मटमैला  होता चला गया . २००९ में हमारे मनमोहन सिंह जी ने एन.जी.आर.बेसिन अथारटी का गठन कर घोषणा कर डाली की २०२० तक गंगा को सम्पूर्ण रूप से प्रदूषण मुक्त कर दिया जाएगा . पर्यवरण विशेषग्य डॉ अगरवाल के अनुसार - गंगा शुद्धिकरण के नाम पर सरकारी खजाने को दोनों हाथों से लूटा गया. सरकार की  CAG और PAC  समितियों ने भी गंगा के नाम पर लूट के कई खुलासे किये ,मगर कोई कार्रवाही नहीं की गई. पिछले १५ साल में ९०१.७१ करोड़ खर्च किये गए मगर गंगा और भी मैली हो गई. इस साल के बजट  में बंगाली बाबु ने नदियों की सफाई के लिए २०० करोड़ मजूर किये हैं . 
हिन्दुओं की धार्मिक आस्था के प्रतीक को संजोने के लिए पिछले  १५ साल में ९०० करोड़ खर्च या लूटे गए. हज के लिए हर साल ८०० करोड़ ? इसे कहते हैं सेकुलर सरकार. भारत की नदिया भारतियों के लिए शुद्ध जल का मुख्य स्त्रोत हैं.  प्रदूषित जल से होने वाली बिमारिओं से हर वर्ष २२ लाख बच्चे अपना पांचवा जन्म दिन नहीं मना पाते और अकाल मृत्यु की गोद में समा जाते हैं.
मिडिया को तो इन राष्ट्रीय महत्त्व की समस्याओं से कोई सरोकार नहीं उन्हें तो बस अपनी TRP से मतलब है. या फिर सरकार की चाटुकारिता से . हो भी क्यों न एक एक चेनल को सरकार प्रति दिन की लगभग २२ लाख की ADS जो देती है और वो भी हमारे द्वारा दिए टैक्स में से . स्वामी निगमानंद की मृत्यु के बाद उनके परिजनों के बखेड़े को सारा मिडिया खूब उछालने में लगा है तांकि लोगों का ध्यान असली मुद्दों से भटकाया जा सके. 

बुधवार, 15 जून 2011

धरती- चंद्रमा का लुका-छिपी महोत्सव

    
    धरती- चंद्रमा का लुका-छिपी महोत्सव 
       
                एल. आर. गाँधी 

आज   पूर्णिमा  की  रात इस शताब्दी की बहुत विचित्र रात है !
आज की रात शशि....अवनी संग लुका- छिपी का खेल खलेंगे.  
लो शशि छुप गए और धरा दबे पाँव अपने प्रेमी को ढूंढ रही है. रवि चुप चाप इस खेल को निहार रहे हैं . तीनो आज रात सदियों के बाद लम्बी छुट्टी पर उत्सव मना रहे हैं . चंद्रमा अपनी प्रेमिका की व्याकुलता को निहार उसकी ही छाया में छिपा आश्चर्य चकित हो श्वेत से भगवा हुआ जा रहा है..... सूर्य देव लुका छिपी के इस खेल को देख गर्म आहें भर रहे हैं. 
उत्सव का शुभारम्भ मध्य रात्रि के ११.५३ मिनट पर हुआ और सूर्य देव ने मंच सञ्चालन का जिम्मा सम्हाल लिया है. धरा ने आँख बंद कर ली और चंद्रमा धरा के ही आंचल में चुप बैठे. अनादी काल से अपने ही एक पाँव पर गोलाकार नृत्य में निमग्न धरा अपने प्रियतम दिनकर की परिक्रमा में तल्लीन है और दिनकर भी निरंतर निहारते हुए अपनी ऊर्जा की पुष्प वर्षा  कर उसे अखंड सौभाग्यवती भव की मंगलआशीष से आनंदित कर रहे हैं. 
ऐसे ही अनंत काल से शशि अपनी प्रियतमा धरा की परिकर्मा कर उसे लुभाने के असफल प्रयास में लगे हैं. और धरा उसे अपना हितैसी- शुभ चिन्तक मित्र मात्र मान कर संतुष्ट है. अरे भई शशि आयु और आकार में उससे कंही छोटा जो है !  कहाँ दिनकर की तन मन में आग लगा देने वाली गर्मी जो धरा के रोम रोम को रोमांचित कर दे और कहाँ  शशि की बर्फानी ठंडक .... दिन भर दिनकर की तपिश के सम्भोग से धरा का अंग अंग जब थक हार कर बेसुध हो जाता है तो चंद्रमा अपनी  शीतल चांदनी की चादर ओढा कर धरती को एक सचे मित्र वत - प्रेमी का आभास दिलाता है. 
खगोलविद आज रात विशालकाय दूरबीनों से इस महापर्व का नज़ारा देख , श्रृष्टि के इन प्राचीनतम प्रेमियों की रासलीला से पैदा होने वाली उथलपुथल की विवेचना में लगे हैं. और हमारी ज्योतिष शास्त्री अपने परलोक की चिंता से त्रस्त अपने जातकों को चन्द्र ग्रहण के बुरे -अच्छे प्रभावों  से सचेत करने में व्यस्त हैं.  

मंगलवार, 14 जून 2011

गांधीजी का चश्मा !!!

गांधीजी का चश्मा !!!
एल. आर. गाँधी 


गाँधी  जी   का  चश्मा खो गया - चलो किसी चोर ने ही सही ,गाँधी जी के चश्मे की वुक्कत तो पाई . सभी अखबारनवीस इसे राष्ट्रीय क्षति के रूप में प्रचारित कर रहे हैं. करें भी क्यों न ,यह कोई मामूली चश्मा नहीं था - बापू इस चश्में से भारत का भविष्य निहारते थे . अब यह वर्धा के सेवाग्राम आश्रम के मियुज़ियम की शोभा बढ़ा रहा था . ज़ाहिर है आश्रम के प्रबंधकों के ज़ेहन में भी गाँधी जी की विरासत को संजोए रखने की कोई ख़ास महत्वाकांक्षा नहीं बची रही होगी -वैसे ही जैसे गाँधी के नाम पर देश को दोनों हाथों से लूटने वाले कान्ग्रेसिओं के मन में सिवाए गाँधी के चित्र से सुशोभित ५००-१००० के नोटों के इलावा गांधीजी की विचारधारा से कोई सरोकार नहीं. 
गांधीजी के एक चश्मे की पहले भी  ब्रिटेन में बोली लगी थी और कोई भी गाँधी वादी 'कुबेर' इसको खरीदने नहीं पहुंचा - देश की सेकुलर कांग्रसी सरकार ने भी कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई. आखिर एक शराब के सौदागर विजय मालिया ने बापू के चश्में की कीमत लगाई - उसी चश्मे की जिसने भारत को 'मद्य निषिद्ध ' राष्ट्र बनाने का सपना देखा था. मद्य निषेद का सपना भी पूरा किया तो किसने 'गुजरात के नरिंदर मोदी' ने ,  जिसे बापू के नाम लेवा पानी पी पी कर कोसते हैं. यह चश्मा भी बापू ने बड़े चाव से एक नवाब साहेब को भेंट किया था ताकि वे भारत को उनकी नज़र से देखें. नवाब साहेब अपनी रियासत को पाक में मिलाना चाहते थे . जब पटेल साहेब के आगे बस नहीं चला तो पाकिस्तान भाग गए और गाँधी जी का चश्मा भी साथ ले गए . और यही चश्मा ब्रिटेन पहुँच गया . 
अब चोरी हुआ चश्मा कब नीलाम होगा और उसे कौन खरीदेगा - ज़ाहिर है कोई शैकुलर शैतान तो हरगिज़  नहीं ?
गाँधी जी की विचारधारा या उनकी मान्यताओं पर अमल करने वाले लोगों को आज उँगलियों पर गिना जा सकता है. अन्ना हजारे जैसे गाँधी वादियों  को आज देश को चोर उच्च्क्कों के चंगुल से छुड़ाने के लिए अनशन-आन्दोलन करना पड़ रहा है. गाँधी जी देश में राम राज्य की स्थापना करना चाहते थे.आज राम का नाम लेने वालों को 'साम्प्रदायिक' माना जाता है और  राम भक्तो को 'ट्रेन में जिन्दा जला दिया जाता 'है. गाँधी जी गो हत्या के चिर-विरोधी थे - आज गो धन की दुर्गति देख ,परलोक में बापू की आत्मा भी दुखी होगी. सत्य और अहिंसा का स्थान झूठ ,फरेब और हिंसा ने ले लिया है. 
बापू ने देश को अहिंसक आन्दोलन और अनशन का एक अमोघ अस्त्र दिया और गोरे अंग्रेजों ने उनके इस अस्त्र को समुचित आदर और मान दिया. मगर आज गाँधी जी के ये काले अँगरेज़ अनशन करने वालों को जनतंत्र के लिए खतरा मानते हैं और अहिंसक आन्दोलनकारियों पर डंडे और गोलियां बरसाते हैं. 
पटियाला में भी ,जब कांग्रेसी सत्ता में आए तो उन्होंने शहर के प्रसिद्ध राजेंद्र ताल में गाँधी जी की मूर्ती स्थापित की. पहले यहाँ अंग्रज़ परस्त रजवाड़ों ने 'जार्ज पंचम' का बुत लगाया हुआ था . उसे हटा दिया गया ! आज भी गाँधी जी राजेंद्र ताल के बीचो बीच खड़े हैं- यह बात अलग है की कोई गाँधी जी की लाठी उड़ा ले गया है- हाथ में बस लाठी की मूठ  सी बची है . और हाँ गाँधी जी का चश्मा टूट कर एक कान के सहारे लटका हवा के किसी तेज़ झोंके की बाट जोह रहा है . राजेंद्र ताल जो कभी पर्यटकों के आकर्षण का मुख्य केंद्र था , आज अपनी बर्बादी की कथा खुद ब खुद बयाँ कर देता है. ताल में पानी नहीं, चारों और  कांग्रस घास  उग आई है. हर वर्ष गाँधी के नाम पर लाखों रूपए खर्च तो होते हैं पर हालत बाद से बदतर हुई जाती है. राजेंद्र ताल को आज यदि एक 'जोहड़ ' कहा जाए तो शायद जोहड़ की भी तौहीन होगी. 
इश्वर अल्लाह तेरो नाम.. 'अबतो' सन्मति दे भगवान् ! 
       

रविवार, 5 जून 2011

चोर उच्चक्के बनाम भोले बाबा !!!!!

 चोर उच्चक्के बनाम भोले बाबा 

   एल. आर गाँधी 

हमारे  यहाँ पंजाबी में एक कहावत है ' चोर उच्चक्का चौधरी गुंडी रणं प्रधान '.   ४ जून को राम लीला मैदान में जो कुछ हुआ इस कहावत को ही चरितार्थ करता है. बाबा राम देव भी भोले हैं ! देश के सबसे बड़े चोर उच्चाक्कों पर विशवास कर बैठे. बाबा उनके मुंह पर ही पहले तो उन्हें चोर कह रहे हैं और उनसे ही कार्रवाही की तवक्को करते हुए ऐसे कानून बनाने की आशा पाले बैठे हैं की वे खुद ही फंदा बनाएं और खुद ही अपने गले में डाल कर लटक जाएं. 
बाबा बोले की हम भोले तो हैं -मगर बेवकूफ नहीं. मगर वे भूल गए कि शातिर लोग भोलों को बेवकूफ बनाने में माहिर होते हैं. हमारे केन्द्रीय  मंत्रिमंडल में यूँ तो एक से एक बढ़ कर शातिर नेता भरे पड़े हैं. मगर सिब्बल साहेब का जवाब नहीं. पहले भोले भाले अन्ना को बेवकूफ बनाया और अब बाबा को. अरे भोले पण की भी हद हो गई - एक और तो चोरों के 'सरदार' को इमानदार कहे जा रहे हैं. जिसकी सरपरस्ती में भ्रष्टाचार के नए नए कीर्तिमान स्थापित हो रहे है- और फिर भी वह इमानदार है. इसे अन्ना और बाबा जैसे भोलों की बेवकूफी ही माना जायगा ..... चले हैं देश के ठगों को नकेल कसने !.  " तोहमतें आएंगी नादिर शाह पर - आप दिल्ली रोज़ ही लूटा करो - आज तो दिल्ली रोज ही लुट रही है. '
राज माता पर कोई तोहमत लगाए , तो दिग्गी जैसे वाच डाग टूट पड़ते हैं . पिछले दिनों सुब्रमनियम स्वामी ने आरोप  लगाया कि स्विस बैंकों में सोनिया जी का एक  लाख करोड़ जमा है. सोनिया जी भी चुप हैं और दिग्गी मियां की भी बोलती बंद है. अब इसका क्या अर्थ या अनर्थ निकला जाए. बाबा परोक्ष रूप में भ्रष्टाचार की माता को ही नंगा करने पर उतारू हैं. ऐसे में यदि बाबा यह सोचते हैं कि उनके भ्रष्टाचार और विदेशी धन वापस लाओ की मांग पर 'सरदार जी ' की सरकार पश्चिमोतान आसन लगा लेगी और भ्रष्टाचार की माता और उसके  मानस पुत्रों को सूली पर चढा देगी तो इसे बेवकूफी की हद तक का भोला पण ही कहा जाएगा. . 

अन्ना और बाबा बेवकूफी की हद तक भोले सही -मगर छह दशक की लूट खसूट के जनकों को जनता में नंगा करने का काम तो उन्होंने कर ही डाला. यह चिंगारी, कल के राम लीला मैदान की रामदेव लीला में सरकारी रावन के प्रवेश के बाद महाभारत के ,अमोघ अस्त्र का रूप भी ले सकती है.


गुरुवार, 2 जून 2011

साम्प्रदायिक एवं लक्षित हिंसा विधेयक --सैकुलर शैतानो की शरियत -शरारत ?

साम्प्रदायिक एवं लक्षित हिंसा विधेयक
सैकुलर शैतानो की शरियत -शरारत  ?

एल आर गान्धी

सेकुलर जाजिया( हज सब्सिडी) के बाद , देश के बहुसंख्यक समुदाय 'हिन्दुओं' पर, सेकुलर शरियत कानून लागू होने जा रहा है. इस  "सांप्रदायिक एवं लक्षित हिन्सा " कानून का मसौदा सोनिया की सेकुलर शैतान मंडली (नाक) द्वारा तैयार किया जा रह है। इस नाक मण्डली में तिस्ता सितल्वार् ,अरुणा राय  ,शब्नंम हष्मि और सैयद शहबुदीन् जैसे सदस्यो  को लिया गया है ताकि संप्र्दायिक हिन्सा के नाम पर 'हिन्दुओ '  पर 'सैकुलर शरियत' लागु की जा सके । मसौदे में किसी भी प्रकार की साम्प्रदायिक हिन्सा के लिये 'बहुसंख्यक- हिन्दुओ' को ही हर हाल में दोषी माना गया है।
दन्गो में अल्पसंख्यक महिला के बलात्कार पर कडी सज़ा का प्रावधान है - अर्थात हिन्दु महिला का बलात्कार कोइ अपराध् नही ? द्न्गा हमेशा बहुसंख्यक (हिन्दु) द्वारा फ़ैलाया  जाता है ? अल्पसंख्यक को कोइ सज़ा  नही ? अल्प्सन्ख्यको के खिलाफ़् 'घृणा अभियान ' अपराध् ! मगर बहुसन्खयक के खिलाफ़् ? एसे नियम कायदे तो केवल् 'पवित्र कुर्रान की शरियत में ही मिलते हैं। पाक में शरियत के कानून ' जज़िया , ईश् निन्दा,दीयत् आदि के ज़रिये  अल्प अन्ख्यक विशेषतय हिन्दुओ को प्रताडित किया जाता है ताकि वे इस्लाम कबूल ले  या भाग जाए अन्यथा  काफ़िर् को मारना  तो शरियत में सबाब् का काम है ही । आज पाक में हिन्दु २४% से घट कर  मात्र   डेढ%  रह गया है। यही काम अब देश के सैकुलर शैतान इस कानून के ज़रिये करने जा रहे हैं ताकि मुसलमानो के वोट हासिल किये जा सके।
ऐसे कानून निश्चय ही संविधान की मूल धारणा के खिलाफ़् हैं - इससे विभिन्न सांप्रदायो में जहा एक ओर आपसी मतभेद बढते हैं, दूसरी ओर समान नागरिक संहिता का भी उल्लन्घन होता है। हमारे संविधान के रचयिता डा: भीम राव   अम्बेदकर के इस्लाम और मुस्लिम समाज  के बारे में विचार ऐतिहासिक धरातल पर खरे उतरते हैं - " हिन्दुओ  को अपना भाइ- बन्धु मानने का इस्लाम में कोइ मौका नही। आक्रामक मनोवृति मुस्लिम की प्रकृति में ही विध्य्मान है। हिन्दुओ की दुर्बलता का लाभ उठा कर गुण्डागर्दी करना उनका स्वभाव है"।
सबसे ताज़ा उद्हारन गुजरात  दन्गो का है। अब तक सभी सैकुलर शैतान प्रचारित करते रहे कि गोधरा ट्रेन में ५६ कार सेवको का जल कर मरना महज़् एक हादसा था और बाद में प्रतिक्रिया सवरूप् मुसलिम समुदाय के खिलाफ़् हुइ हिन्सा - राज्य प्रायोजित थी। अब न्यायालय में यह साबित हो गया कि कारसेवको को मुस्लिम दन्गयियो ने घेर कर आग लगायी  और जिन्दा जला दिया। अब सभी  सैकुलर शैतान चुप हैं । इन संपर्दायिक दन्गो में हिन्सा का शिकार तो 'इन्सानियत' ही हुइ । दन्गो के शिकार बेगुणाह्  भारतीय थे उनको हिन्दु या मुस्लिम वोट  मान कर राजनीतिक रोटिया सेक्ने वाले  नेताओ को आवाम् इतिहास के गर्त में धकेल देगा।             
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