शुक्रवार, 9 अप्रैल 2010

खेल खर्चे के फूलते गुबारे.

कामन वेल्थ खेलों के आयोजक लगता है अब 'खर्चे पर लगाम कसने की कवायत ' शुरू करने वाले हैं। तभी तो अभी तक निशान्चिओं के लिए रायफलों के बंदोबस्त पर मीन मेख जारी है। खिलाडी उधार की राइफलों से अभ्यास कर रहे हैं। पहले १२ रायफलों की मांग की गई जिसे रद्द कर दिया गया ,फिर ६ की मांग हुई उसे भी नकार दिया और अब जा कर ४ पर सहमति बनी है। यह बात अलग है की चार पदकों की इस स्पर्धा के लिए २५ करोड़ की लागत से गुडगाँव में शूटीं रेंज बन कर तैयार है।
उधर खेल खेल में महा खेले का बजट कल्मादिजी के गुबारे की तरहं फूलता ही जा रहा है। २००६ में जब इस महा खेल की तैयारी का आगाज़ किया गया तो अनुमान था की २२००० करोड़ खर्च आयेगा ,जो अब ३० ००० करोड़ का आंकड़ा भी प़र कर गया है। खेल गाँव के निर्माण पर २००४ में अनुमान था ४६५ करोड़ का और खर्चा १४०० करोड़ को छू रहा है। ट्राफिक और जनसंपर्क के प्रबंधन पर खर्च ४० से बढ़ कर ८० करोड़ हो गया। ११ स्टेडियमों पर भी खर्च पांच गुना ,१२०० से ५००० करोड़ हो चूका। फ्लाई ओवरों पर १६५० करोड़ किसी गिनती में नहीं और बचाव प्रबंधन के ३७० करोड़ भी अतिरिक्त खर्चे में आते हैं। इवेंट प्लानिंग का खर्चा भी ९२० से बढ़ कर अब २३०७ करोड़ को छू रहा है।
आयोजकों का तर्क है की महंगाई के कारन यह खर्चा इतना बढ़ा है। और इसकी भरपाई खेल निर्माणों की बिक्री से कर ली जाएगी। मंदी के दौर में खर्चा बढ़ने का तर्क गले नहीं उतरता। रही बात बिक्री की , एशियन खेलों की इमारते २५ साल तक खरीद दारों की बाट जोहती रहीं और एशिआद गाँव भी २० साल तक अपने बिकने की उम्मीद में रख रखाव के नाम पर सरकारी खजाने को दीमक की तरहं चाटता रहा
स्वय सेवी संस्थाओं का आरोप है की खेल के नाम पर भ्रष्ट नेता-अफसर टीमें पहले ही अपना खेल खेल चुकीं ,इस लिए किसी बाहरी निष्पक्ष लेखा जांच एजेंसी से सारे गोरख धंधे की जांच करवाई जाये ताकि 'गुबारों' के खिलाड़ी निशाने पर आ सकें ।