रविवार, 14 दिसंबर 2014

कम्प्यूटर और कुरान

कम्प्यूटर और कुरान 

एल अार गांधी

मोदी साहेब को मेहदी मियां का सलाम  .... मोदी भारत के मुसलमानों के  ऐक हाथ में लैपटॉप और दूसरे में कुरान देखने को लालायित थे  …उनका  यह भी दावा था कि आई एस आतंकियों को देश के मुसलमान माकूल ज़बाब देंगे  …।
बेंगलुरु पुलिस ने जुमे को  ऐसे ही आतंकी को धर  -दबोचा जो कंप्यूटर पर आई एस  के लिए जेहाद में मशगूल था  …प. बंगाल का  मेहदी  बिस्वास आई एस के लिए बेंगलुरु से ट्विटर अकाउंट 'शामी विटनेस ' नाम से अरबी में आने वाली जेहादी ख़बरों को अंग्रेजी में ट्रांसलेट करता था  … इसका खुलासा जब ब्रिटिश चैनल -४ ने खुलासा किया तो हमारी पुलिस की आँख खुली   … मेहदी ने जुर्म कबूल लिया है  ....
सिकलुर ममता दीदी के बंगाल बिज़ली बोर्ड से सेवा मुक्त एसिस्टेंट इंजीनियर पिता अपने बेटे को बेक़सूर मानते हैं   … उनका कहना है कि मेहदी जबरदस्ती करने पर ही 'नमाज़ ' पढता था।  '  वह जेहादी कैसे हो सकता है ? अर्थात जो शख्स 'कुरान - नमाज़ ' पढ़ने में रूचि नहीं रखता  … वह जेहादी हो ही नहीं सकता !
पूर्व राष्ट्रपति डा. ए पी जे अब्दुल कलाम ने कहा है  … मुसलमान पैदाइशी आतंकवादी नहीं होता उन्हें मदरसों में कुरान पढ़ाई जाती है , जिसके अनुसार वे हिन्दू ,बौद्ध ,सिख , ईसाई और अन्य गैर मुस्लिम्स को चुन चुन कर मारते हैं।  आतंकवाद पर नियंत्रण के लिए भारत में चल रहे हज़ारों मदरसों पर प्रतिबन्ध लगाना बेहद ज़रूरी है  …
सिकलुर सरकारें मदरसों को करोडो रूपए अनुदान देती रही है और इस्लामिक देशो से जो अकूत धन आ रहा है  … सो अलग  … दीदी के बंगाल में तो मदरसों और मौलविओं पर सरकार ख़ास मेहरवान है  …

शनिवार, 22 नवंबर 2014

स्वछंद प्रेम या भोग की आज़ादी

स्वछंद प्रेम या भोग की आज़ादी

   एल आर गांधी


 समाज का एक वर्ग जहाँ जो चाहे करने की आज़ादी चाहता है ,वहीँ दूसरा आदर्शवादी वर्ग स्वछंद प्रेम अभिव्यक्ति का विरोधी है  … गत दिनों युवा प्रेमियों ने सार्वजनिक स्थान पर ' चुम्बन -आलिंगन ' की नुमाइश कर अपना विरोध प्रकट किया , उन भारतीय संस्कृति के ध्वजावाहकों के विरुद्ध , जो इसे पाश्चात्य सभ्यता की फ़ूहड़ नुमाइश मानते हैं  …।
जहाँ तक भारतीय संस्कृति का प्रशन है  … प्रेम की अभिव्यक्ति और उस की परिणति पर प्राचीन काल में कोई रोक नहीं थी  … गन्धर्व  विवाह , कन्या द्वारा स्वेच्छा से वर का चयन या वरण को   समाजिक मान्यता प्राप्त थी  … मुग़ल काल में बहुत सी प्राचीन मान्यताएं खंडित हो गई  …
महर्षि  विश्वामित्र के  तप तेज़ से जब इंद्रदेव को संकट का आभास हुआ तो उन्होंने देवलोक की सबसे सुंदर व् आकर्षक अप्सरा 'मेनका ' को ऋषिवर का तपोभंग करने भेजा  । ऋषिवर मेनका के सौंदर्य जाल में फंस गए !
कालांतर में जब महर्षि को मालुम हुआ तो उनके आक्रोश की सीमा नहीं  थी  .... मेनका को श्राप दिया और अपनी नवजात कन्या 'शकुंतला ' को कण्व ऋषि को सौंप कर पूण: तपोवन चले गए  …
शकुंतला ने महाराजा दुष्यंत से 'गन्धर्व ' विवाह किया  … महर्षि कण्व का उनके इस प्रेम विवाह को वरदहस्त प्राप्त था  .... शकुंतला -दुष्यंत के पुत्र महाराजा भरत के नाम पर ही हमारे देश का नाम 'भारत ' पड़ा  .... भरत ने प्रथम बार यहाँ लोकतंत्र की नीँव रखी  .... अपने नौ पुत्रों में से अपना उत्तराधिकारी न चुन कर अपनी प्रजा में से सबसे उपयुक्त व् योग्य वीर व् विवेकवान पुरुष 'युद्धमन्यु ' को अपने विशाल राज्य की  कमान सौंपी !
फिर भी हमारे समाज  में स्त्री को प्रेमहीन विवाह सहन करने को बाध्य होना पड़ता है  … ६०% भारतीय पुरुष उन्हें नियमित रूप से पीटते हैं और ७५% अपनी मर्ज़ी से शारीरिक सम्बन्ध चाहते हैं  । बरसों से कुछ हज़ार रूपए की खातिर ८० आल के बूढ़े अरब शेखों सी ब्याह दी जाती रही हैं  .
यह युग स्वयं चुनने की आज़ादी का युग है  … रही बात शारीरिक सम्बन्ध बनाने की आज़ादी की ! गर्भ निरोधक गोली के आविष्कारक अस्ष्ट्रियाई -अमेरिकन केमिस्ट-लेखक  कार्ल ज़रासी का दावा है कि ' अब हम ऐसे युग की ओर जा रहे हैं , जहां शारीरिक रिश्ते केवल आमोद-प्रमोद का अंग होंगे  ....
नए नए आविष्कारों ने ज़न्नत -स्वर्ग -जहन्नुम की परिभाषा ही बदल  कर रख दी है  .
जिसमें लाखों बरस की हूरें हों
ऐसी जन्नत को क्या करे कोई 

शुक्रवार, 21 नवंबर 2014

कानून के हाथ लम्बे भी और बौने भी
एल आर गांधी
कानून के हाथ कितने लम्बे या कितने बौने … किसी के लिए लम्बे तो किसी के लिए बौने ....
यही लम्बे हाथ बाबा आसा के गिरेबान तक पहुँच भी गए और सलाखों के पीछे भी पहुंचा दिया .... अपने योगदान पर मिडिया ने भी खूब पीठ थपथपाई .... अब संत राम पाल को कानूनी औकात दिखाने को हरियाणा पुलिस और मिडिया संत राम पाल के कबीर पंथी सतलोक आश्रम की किलेबंदी किये खड़े हैं और दूसरी तरफ संत जी के कबीर पंथी भक्त आश्रम की रक्षा में अड़े हैं ....झगड़ा २००६ का है , जब आर्य समाजियों का कबीरपंथी संत राम पाल के साथ इसी आश्रम के बहार झगड़ा हो गया था … तब सरकार कांग्रेस की थी ,अब बीजेपी है … कानून यका यक जाग गया और सिकुलर मिडिया भी ....
बाबा पर न्यायालय के नान- बेलेबल वारंट की तामील की दरकार है … सरकार और पुलिस बेचारी मज़बूर है … इस लिए संत जी को घेरा है … मगर मिडिया खाम खाह में पिट रहा है … इसे कहते हैं 'समझदार -नासमझ '.
हमारे सिकुलर देश में सैंकड़ों बेलेबल -नान-बेलेबल कोर्ट वारंट तामील की दरकार में कोतवालिओं की चौखटों पर बरसों से एड़ियां रगड़ रहे हैं … न तो सरकारों को याद है और न मिडिया को …
सिकुलर सियासतदानों की सबसे बुल्लंद इबादतगाह के शाही इमाम हज़रात सैयद अहमद बुखारी, जिनके यहाँ १२५ बरस पुरानी पार्टी की 'राजमाता' भी चुनाव से पहले सज़दा करना नहीं भूलती .... पर दो दर्ज़न से भी अधिक बेलेबल नान-बेलेबल कोर्ट के वारंट ज़ेरे -तामीर हैं …
दिल्ली की एक कोर्ट के जज साहेब की यह टिप्पणी : 'देश के कानून और सिकुलर मिडिया और सियासत की दिशा और दशा को खुद ब खुद बयां कर देती है ': रिकार्ड देखने के बाद यह कहा जा सकता है कि कमिश्नर रैंक का अफसर भी इतनी हिम्मत नहीं जुटा सकता कि वह 'बुखारी' के खिलाफ वारंट की तामील करवा सके (जनवरी २००४ ) . वह (बुखारी ) देश के किसी भी कोर्ट में पेश नहीं किया जा सकता। …

मंगलवार, 28 अक्तूबर 2014

' निल बैलेंस ' विदेशी खाते

आज पटियालवियों का सर शर्म से झुक गया  .... यह जान कर कि रियासत की महारानी पर किसी 'उच्चक्के ' ने यह दोष मढ़ दिया कि उनका विदेश में 'काला ' खाता है और उसका भी 'बैलेंस ' निल है  .... एक रियासत की महारानी और बैंक बैलेंस निल  .... हे राम !  कैसा लोक - तान्त्रिक  कलयुग आ गया  … जब महारानी कंगाल है तो प्रजातंत्र की प्रजा का क्या होगा ?
अवश्य ही इसमें किसी राजपरिवार विरोधी विदेशी शक्ति की चाल है  । महारानी ने तो धुर विरोधी विदेशियों की भी मोती महल और चैल -पैलेस में खूब खातिर दारी को भी आँख मूँद कर सवीकार किया।  पटियालवियों को बढ़ चढ़ कर नज़राने दे कर ज़ीरो बैलेंस अकॉउंट को मालामाल करने की मूहिम चलानी होगी  … रियासती अस्मत का सवाल है भाई !
ऐसे 'उच्चक्कों ' पर मान हानि का दावा 'अब तो ' कर ही देना चाहिए  … कल को देश की 'राजमाता ' और राजकुमार के ' निल बैलेंस ' विदेशी खाते कोई उठा लाएगा !

रविवार, 14 सितंबर 2014

कीचड़ वृति

कीचड़ वृति 

एल आर गांधी  


पुरानी कहानी है   एक महात्मा नदी किनारे बैठा ,कीचड़ में लिप्त मरणप्राय बिच्छू को कीचड़ से बाहर निकलता और बिच्छू उसे काट लेता।   महात्मा फिर से बिच्छू को कीचड़ से निकलता और बिच्छू फिर काटता  … एक राह गीर ने महात्मा से पूछा  … महात्मन्  बार बार इसे बचाने का प्रयास कर रहे हो और यह दुष्ट जीव आप को बार बार दंश मार कर पीड़ा पहुंचा रहा है  … आप इसे मरने के लिए छोड़ क्यों नहीं देते  । 
महात्मा राहगीर को प्रत्युत्तर देते हुए कहते हैं  … जब यह जीव अपनी दुष्ट वृति को त्यागने को त्यार नहीं तो मैं अपनी साधुवृति को क्यों त्यागूँ !
पृथ्वी पर स्वर्ग कहे जाने वाले कश्मीर को प्राकृतिक आपदा बाढ़ ने घेर लिया तो हज़ारों सेना के जवान लाखों कश्मीरिओं की जान बचाने के लिए दिन-रात अपनी जान हथले पर रख कर बचाव कार्यों में जुट गए  .... बदले में कुछ अलगाववादी बिच्छू-वृति के देश द्रोही  तत्त्व सेना के जवानो पर हमले कर रहे हैं , एक जवान का तो हाथ ही काट दिया  … अब जवानो को बाढ़ में घिरे असहाय  लोगों के साथ -साथ अपनी गन का भार भी उठाना पड़ रहा है   … सेना को आपदा में अपने नागरिको की रक्षा के साथ साथ आत्मरक्षा की शिक्षा भी दी जाती है  … वे कितने ही मक्कार हो जाएं , मगर हम अपने संस्कार नहीं त्याग अकते  … यदि ऐसा किसी पश्चिमी या अरबी देश में होता तो बिच्छू-वृति के ऐसे देश द्रोहिओं को 'कीचड़ में मरने के लिए ' छोड़ दिया जाता  … 

बुधवार, 3 सितंबर 2014

वाक् गुदम

वाक् गुदम

एल आर गांधी

 अमृता प्रियतम , १०००००००८ जगतगुरु श्री श्री परमश्री सरस्वतानन्द जी 'शिष्य ' वाक गुदम दिग्गी मियां अर्फ शहज़ादा गुरु श्री दिग्विजय सिंह जी ने भी 'हांडी फोड़ 'डाली और वह भी बीच चौराहे .... पप्पू यदि चुप न रहता और उनकी भांति हर एक विषय पर 'वाक गुदमी  ' करता तो यह दुर्गति हरगिज़ न होती …
अब राजकुमार क्या बोलें .... पराए पुत्तर ने बोलती बंद कर दी है … टॉफी बोले तो कॉफी में घोल कर पिला दी .... गुबारा बोले तो बीच बाजार हवा निकाल दी … ४४ वां जन्म दिन मनाने विदेश भागना पड़ा … कहीं राहुल बाबा को ४४ मोर 'अवतार दिवस मुबारक' कहने न धमक जाएं !
कहते हैं बुरे वक्त में साया भी साथ छोड़ जाता है … गुरु देव भी दगा दे जाएंगे … घोर कलयुग !!!!!!

सोमवार, 1 सितंबर 2014

अच्छे दिन !

अच्छे दिन ! 

एल आर गांधी 

हाथ की दातुन से निपट कर आखिरी फोलक को   थू  .... कहने ही  वाले थे कि चोखी लामा बीच में आ धमके  … न दुआ न सलाम  सरहद पार की फायरिंग  की मानिंद सवाल दागा  … बाबू आज का अखबार देखा  …  अनजान बालक सा चोखी का मुखारविंद तकता रह गया  … बाबू  !   १०० दिन चूक गए और मैडम ने  पूछ लिया है 'फेंकू' से  … कहाँ हैं 'अच्छे दिन' . हमने भी फोलक को दांतो  बीच दबा कर जवाबी फायरिंग करते हुए सवाल दाग दिया  .... मियां सब्र करो ! ६० साल उर्फ़ २१९०० दिन राज किया है मैडम के परिवार ने  … उनसे तो किसी ने नहीं पूछा  … ये अच्छे  .... 
बगल के  तीन बस्ते  कंधे पर लटका कर चोखी लामा बिफर पड़े  … बाबू   !  आप लोग क्या  जानो गरीब की अच्छे दिन की  भूख को  … मैडम ने तो गरीब की भूख को जाना  भी और इंतजाम भी कर दिया था  … तभी से खाद्य सुरक्षा के ये तीन बस्ते हम बगल में दबाए भटक रहे हैं  … बेडा गर्क हो  मुए चुनाव आयोग का ऐन वक्त पर अड़ंगा डाल दिया  … 
लामा चपलियाँ चटकाते सरकारी राशन की दुकान 'आनंद लाल के डिपो 'की ओर चल दिए  .... शायद आज खुला हो ?

शुक्रवार, 22 अगस्त 2014

सत्ता का वर्णसंकर

सत्ता का वर्णसंकर 

एल आर गांधी 

मैं उस वक्त वहां मौजूद था, जब कश्मीर में सभा  दौरान फारूख अब्दुल्ला ने राजीव गांधी को हिन्दू कहा था।   
फ़ौरन राजीव गांधी ने कहा था     '  मैं हिन्दू नहीं हूँ   ' -------एम के रैना , लेखक , मुंबई                             

आई एम एक्सिडेंटली हिन्दू --------- नेहरू 

मंदिरों में जाने वाले , महिलाओं को माँ , बहन और देवी कहने वाले ही उन्हें छेड़ते हैं ------राहुल गांधी 

भगवान श्री कृष्ण ने गीता में ऐसे विधर्मी लोगों को 'वर्णसंकृत' श्रेणी में रक्खा   है।  जब कुल की स्त्रियां कुत्सित हो  जाती हैं तब समाज में वर्णसंकर फ़ैल जाता है  …। जो लोग अपने गौरवशाली इतिहास को भूल गए  वे हिन्दू संस्कृति और संस्कारों को क्या  जाने  …… 
ग़यासुद्दीन के प्रपौत्र खुद को 'एक्सिडेंटल ' हिन्दू मानेंगे ही !  मुस्लिम अब्बा फ़िरोज़ खान की संतान भला हिन्दू कैसे हो सकती है  …अब मुस्लिम अब्बा और ईसाई मदर के 'शहज़ादे' राउल दाविंचि  उर्फ़ राहुल गांधी हिन्दू संस्कार और संस्कृति में माँ ,बहन और देवी जैसे पवित्र रिश्तों की मान्यता या महिमा क्या जाने  … मंदिर देवालयों में  चरित्रहीनता या आतंकवाद का पाठ नहीं पढ़ाया जाता  … यदि कोई राक्षक साधु वेश में सीता हरण करता है ,तो क्या सारे  का सारा साधु समाज रावण हो गया  … फिर किसी वर्णसंकृत विधर्मी को मंदिरों पर ऐसी ओछी टिप्पणी का अधिकार  किसने दिया ?

गुरुवार, 21 अगस्त 2014

जाकी पप्पू

 जाकी पप्पू 


पार्टी की महिला  प्रतिनिधियों को सम्बोधित करते  हुए अचानक ही 'भावुक'  हो गए 'राजकुमार ' यह  क्या कह गए  .... मंदिरों में जाने वाले ,महिलाओं को माँ -बहिन -देवी कहने वाले ही  उन्हें बसों में छेड़ते हैं।
 इतनी करारी हार के  बाद  तो अच्छे अच्छों का  मानसिक  संतुलन बिगड़ जाता है  .... मगर राहुलजी का जाकी मिजाज़  जस का तस कायम है   .... चुनाव संग्राम में भी टाफी खा -खा कर खूब गुबारे उड़ाते रहे   …   गरीबी 
क्या है  … सब बकवास - महज़ इक मानसिक अवस्था है  .... केरल के  कांग्रेसी नेता मियां मुस्तफा ने जनाब  को  जोकर क्या  कह दिया , पारिवारिक मसखरों ने मुस्तफा को बर्खास्त करवा  कर ही दम लिया  … अब 'जोंक' जोक नहीं करेगा तो  क्या कुमार बिस्वास करेगा  … 
राहुलजी को यह उपहास -ज्ञान अपने गुरु दिग्गी -मियां जी से   गुरु-दक्षिणा में मिला  .... और दिग्गी मियां को अपने गुरु श्री श्री जगद्गुरुजी से।    तभी तो दिग्गी मियां किसी दुष्ट -आतंकी के आगे-पीछे  ' श्री और जी'  लगाना नहीं भूलते। 
 चेले से अधिक गुरु  को कौन जानता होगा  … दिग्गी मियां अपनी बेटी की आयु की   महिला से ही इश्क लड़ा बैठे  … मंदिर में  देवी जी के साथ खूब आरती करते दिखे  …  अब चेला ऐसे बगुला- भक्तों से अपने  दल की देविओं को  आगाह कर रहे हैं  … मज़ाक  है क्या ?

रविवार, 10 अगस्त 2014

अष्टावक्र

 अष्टावक्र

"मुक्ति  का अभिमानी मुक्त है , और बद्ध  अभिमानी बद्ध है।  किंवदन्ती सत्य है  कि जैसी मति होती है वैसी ही गति होती है।  "

अष्टावक्र कहते   हैं कि ' जैसी मति होती है वैसी ही गति होती   है '  अध्यात्म का एक  सूत्र और है    कि '  अंत मति सो गति ' यानि मृत्यु के  समय जैसी मति होती  है वैसी ही गति होती है है।  श्री कृष्ण ने गीता में कहा है कि "अनासक्त  पुरुष कर्म करता हुआ परम पद को प्राप्त होता है।  जानकादि ज्ञानी जन भी आसक्ति रहित कर्म द्वारा ही परम सिद्धि को   प्राप्त हुए। 
गीता में यह भी कहा है -- 'योग : कर्मसु कौशलम् ' … जो योग में स्थित हो  कर अर्थात स्थितप्रज्ञ हो कर कर्म करता है वह भी मुक्ति का अधिकारी है। 
कर्म बंधन नहीं है ,   उसके प्रति जो आसक्ति है , राग है वही बंधन  है। 
 
उपनिषद् कहते हैं 'मन ही बंधन  और मुक्ति का कारण है।  मन में जैसी भावना होती है वैसी ही मनुष्य की गति होती है 

सोमवार, 4 अगस्त 2014

गीता ज्ञान और सैकुलर शैतान

 गीता ज्ञान और सैकुलर शैतान 

         एल आर  गांधी 

जस्टिस दवे ने समाज के चरित्र निर्माण के लिए गीता और महाभारत की अनिवार्यता के विषय में क्या कह दिया कि सैकुलर शैतानों और कौमनष्टो के ज़मीर पर आस्तीन का सांप  लोट गया। जस्टिस दवे ने गुरु-शिष्य प्रणाली से पलायन को सभी राष्ट्रीय समस्याओं का कारण बताया  …' यथा राजा तथा प्रजा ' यदि प्रजातंत्र में   सभी अच्छे हैं तो प्रजा शैतानों को क्यों चुनती है ?  यह विचार जस्टिस दवे ने कानून-विदों को सम्बोधित करते हुए व्यक्त किये।  
गीता को सत्य मार्ग पथ -प्रदर्शक की क़ानूनी मान्यता प्राप्त है  … न्यायालय में गीता की सौगंध उठाने वाले व्यक्ति से अपेक्षा की जाती है कि वह न्याय के मंदिर में असत्य नहीं बोलेगा ! अब जिस व्यक्ति ने गीता को पढ़ा ही नहीं तो उससे कैसे अपेक्षा की जा सकती है कि उसे सत्य असत्य की समझ है  ? 
गीता के ज्ञान के लिए 'पात्रता ' अनिवार्य है  … अर्जुन इस ज्ञान के पात्र थे तभी भगवान श्री कृष्ण ने गीता का ज्ञान उसे दिया  … जिस वक्त भगवान कुरुक्षेत्र में अर्जुन को गीता का उपदेश दे रहे रहे थे  … तो अधर्म के पक्ष में खड़े भीष्म पितामाह पश्चाताप की अग्नि में जल रहे थे  … काश ! पवन  मेरी  ओर हो जाए और माधव के मुखारविंद से निकले अमुल्य शब्द मेरे कानों को भी धन्य कर दें ?
बिना पात्रता के गीता का पठन -मनन और ग्राह्यता अधर्मियों के भाग्य में कदापि नहीं है। गीता और महाभारत में भारतियों को मानवीय मूल्यों के गहन ज्ञान से अवगत करवाया गया है।  गीता और महाभारत के ज्ञाता कभी भी अन्याय करने या सहने का पाप नहीं करते  … आज गीता के ज्ञान को बिसरा कर हम अन्याय को निरंतर सहने के घोर संताप को सहते जा रहे हैं  । शैतान को मानने वाले आतंकी  सदियों से भारतियों के खून से  होली खेल रहे हैं और गीता के ज्ञान को बिसरा चुके भारतीय 'अहिंसा' और मोक्ष के चक्रव्यूह में अभिमन्यु का संत्रास भोग रहे हैं।  
सैकुलर शैतान और कौमनष्ट , दुर्योधन की भांति कितना ही 'वज्र -अमानुष ' बन जाएं मगर गीता और महाभारत के ज्ञान की गदा से भारतीय भीम अंततय इनका अंत कर ही देगा  … जय भारत !

बुधवार, 30 जुलाई 2014

अष्टावक्र

अष्टावक्र 

आज सामान्य मनुष्य को भी घर  में जितनी भौतिक सुविधाएँ प्राप्त हैं उतनी पांच सौ वर्ष पूर्व किसी संपन्न व्यक्ति को भी प्राप्त नहीं थीं।  फिर भी मानव दुःखी है. जितनी सुविधाएं बढ़ी उतना ही मानव अधिक दुखी हुआ।  आज जितनी चिकित्सा सुविधाएं बढ़ी उतनी ही बीमारियां भी बढ़ गईं , जितने  न्यायालय बढे उतने ही जुर्म भी  … भौतिक ऐश्वर्य क साथ साथ मनुष्य का नैतिक पतन अधिक हुआ , जितना ज्ञान बढ़ा उतना ही अज्ञान भी बढ़ गया।  …स्वामी रामतीर्थ ने कहा है --' To seek pleasure in worldly objects in vein , the home of bliss is within you .' सांसारिक विषयों में आनंद ढूंढना व्यर्थ है  … इस आनंद का निवास तुम्हारे भीतर है। 
अष्टावक्र जनक कहते  हैं कि यह संसार सत या असत , अच्छा है या बुरा , रस्सी है या सर्प इससे कोई प्रयोजन नहीं है।  तू संसार नहीं है , न संसारी है।  तेरे लिए भय का कोई कारण नहीं है।  तू आत्मा है , जो आत्मा परमानन्द का भी आनंद है फिर तेरे में  दुःख भय आदि कैसे व्याप्त हो सकता है।  तू ज्ञानी ही नहीं है , स्वयं ज्ञान है बोध है।  इसलिए तू सुखपूर्वक विचर।  इस आत्म ज्ञान से तेरे सारे संशय , भ्रम दूर् हो जाएंगे।  

सोमवार, 28 जुलाई 2014

अष्टावक्र

 अष्टावक्र 


" मैं एक विशुद्ध बोध हूँ " ऐसी निश्चय रुपी  अग्नि से गहन अज्ञान को जला कर तू शोकरहित हुआ सुखी हो !
अष्टावक्र केवल निषेध की बात नहीं करते कि अहंकार छोड़ दो तो ज्ञान होगा।  केवल छोड़ना ही प्राप्त करने की आवश्यक  शर्त नहीं है।  निषेध वाले धर्म केवल छोड़ने की बातें करते हैं  .... घर-बार सब छोड़ छाड़ कर जंगल में चले जाओ।  इस छोड़ने की पलायनवादी प्रवृति ने दुनिया का घोर अहित किया है।  छोड़ सब दिया किन्तु मिला कुछ भी नहीं।  
अष्टावक्र विधायक हैं।  वे कहते हैं - अहंकार छोड़ देने से , कर्तापन छोड़ देने से वह परम मिल ही जाय यह आवश्यक नहीं है।  यह सोच लेने से कि अंधकार  नहीं है , अन्धकार विलुप्त नहीं होगा।  दीप जलाने से ही दूर होगा।  
अष्टावक्र इसलिए विश्वास  दिलाते हुए कहते हैं कि आत्म ज्ञान लिए तू यह निश्चयपूर्वक मान ले कि ' मैं विशुद्ध बोधस्वरूप आत्मा हूँ। '  तो तेरा  अज्ञानरूपी अन्धकार चाहे कितना ही घना क्यों न हो एक क्षण में विलीन हो जाएगा।  ज्ञान का अस्तित्व नहीं है।  यह ज्ञान का अभाव मात्र है।  जब तक ज्ञान नहीं है , अज्ञान रहेगा।  किन्तु ज्ञान का उदय होते ही वह लुप्त हो जाएगा।  
इस ज्ञान प्राप्ति के बाद  ही मानव शोकरहित हो कर सुखी हो सकता है  ....... 

रविवार, 27 जुलाई 2014

अष्टावक्र

अष्टावक्र 


मैं  कर्ता हूँ - ऐसे अहंकाररूपी विशाल काले सर्प से दंशित हुआ तू, 'मैं कर्ता नहीं हूँ' ऐसे विश्वासरूपी अमृत को पी कर सुखी हो।  
यह 'मैं' अथवा अहंकार अनंत भिखमंगा है।  इसे चाहे जितना  भी भरो यह खाली रहता है … सिकंदर जैसा विश्वविजेता भी कहता है 'मैं खाली  हाथ जा रहा हूँ।  इस दुनियां का सारा खेल अहंकार का ही है।  मनुष्य की आवश्यकताएं बहुत सिमित हैं जिन्हें आसानी से पूरा किया जा सकता  है किन्तु उसके अधिकाँश कार्य अहंकार -तृप्ति के लिए ही होते हैं।  इस अहंकार ने ही पृथ्वी को समस्त बह्मांड का केंद्र मान  , अपने को देवताओं की संतान माना ,हमारा देश महान ,हमारा धर्म महान , हमारी जाती महान, मैं महान आदि सब अहंकार की ही घोषणाएं हैं।  यह अहंकार एक रोग है जो  जीवन में सिखाया जा रहा है।  
अहंका के सिवाय जीवन में कोई बोझ नहीं , कोई तनाव नहीं है. अहंकार हमेशां चाहता ही है , देना नहीं चाहता।  देने वाला 'निरहंकारी ' हो जाता है।  जिस दिन अहंकार  गिर  गया , उस दिन यह करतापन भी गिर जाएगा व् उसी क्षण मनुष्य ईश्वर की समीपता का अनुभव करने लगेगा।  अहंकार सब कुछ कर सकता है किन्तु समर्पित नहीं हो सकता , भक्त नहीं बन सकता।  ऐसा व्यक्ति यदि कर्म योगी बन जाए तो अहंकार गिर सकता है।  
यदि अहंकार है तो नरक जाने के लिए किसी और पाप  की दरकार नहीं। अष्टावक्र केवल इस बीमारी का निदान ही नहीं करते बल्कि इलाज़ भी बताते हैं   । वह है 'मैं' से मुक्ति ! मैं करता नहीं हूँ , यह सृष्टि अपने विशिष्ट नियमों से चल यही है , परमात्मा ही एक मात्र कर्ता है।  ऐसा विश्वासपूर्वक मान लेना ही अहंकारमुक्त होने के लिए काफी है।  
वे कहते  हैं - देखो इस तरह दृष्टि मात्र्र बदलो , पूर्र्ण विश्वास  व् निष्ठापूर्वक , तो निश्चित ही परिवर्तन आ जाएगा।  बोधमात्र पर्याप्त है।  न जन्म पर तुम्हारा अधिकार है न मृत्यु पर।  बीच में व्यर्र्थ ही 'कर्ता ' बन बैठे हो।  जो भी विश्वासपूर्वक इस अम्रृत को पी जाए तो सुखी हो सकता है।   

गुरुवार, 24 जुलाई 2014

अष्टावक्र

अष्टावक्र 


अष्टावक्र कहते हैं कि यह आत्मा ही परमात्मा है व् यही दृष्टा है।  इससे भिन्न कोई दृष्टा नहीं है।  यह आत्मा मुक्त ही है , किसी बंधन में बंधी नहीं।  वे आगे जनक से कहते हैं कि  तेरा बंधन यही है कि तूं  आत्मा के अलावा दूसरे को दृष्टा देखता है।  जब दूसरा  मौजूद है तो बंधन हो ही गया।  यदि एक ही है तो कौन किसे बांधे ।  वह मुक्त ही है।  यदि ईश्वर आत्मा से  भिन्न है जो इससे बड़ा है , तभी बंधन की बात पैदा होती है कि आत्मा किसके आधीन है , गुलाम है ,उसकी सेवक है. जब दूसरा है ही नहीं तो बंधन किसका।  वह मुक्त ही है।  अत: आत्मा से भिन्न ईश्वर की सत्ता को मानना भी बंधन है।  ऐसी  आत्मा कभी मुक्त हो ही नहीं सकती।  इस लिए ईश्वर की सत्ता को आत्मा से भिन्न  मानने वाले धर्मों  में मुक्ति की धारणा नहीं पाई जाती।  वे नर्क -स्वर्ग या ईश्वर के साम्राज्य की ही बातें करते हैं।  केवल अद्वैतवादी ही मुक्ति की बात कह सके।  
स्वतंत्र होने  में बड़ा भय है , बड़ी असुरक्षा है. मनुष्य स्वभाव से ही गुलामी खोजता है ,इस लिए उसने ईश्वर  को अपना स्वामी एवं स्वयं को गुलाम मान लिया।  इसी विचारधारा ने द्वैतवादी धर्म को जन्म दिया. उपनिषद कहते हैं 'अयमात्मा ब्रह्म ''तत्वमसि' आदि।  यह अद्वैत की धारणा है।  अष्टावक अद्वैतवादी हैं. इसीलिए वे जनक से कहते हैं कि तू आत्मा है व् वही  आत्मा सबका दृष्टा   परमात्मा है।  इससे भिन्न किसी अन्य आकाश में बैठे हुए परमात्मा को दृष्टा मानना ही तेरा  बंधन है। अज्ञानी ही आत्मा से भिन्न ईश्वर को दृष्टा , कर्म फलप्रदाता एवं कर्ता मानते हैं।  ज्ञानी नहीं मानते 

बुधवार, 23 जुलाई 2014

अष्टावक्र


अष्टावक्र 


" हे विभो ! (व्यापक ) धर्म और अधर्म , सुख और दुःख  मन के हैं।  तेरे लिए नहीं हैं।  तू न कर्त्ता है , न  भोक्ता।  तू तो सर्वदा मुक्त ही हैं। "
यह आत्मा चैतन्य है, मुक्त है, असीम है , सर्वत्र है , व्यापक है।  यह किसी बंधन में बंधी ही नहीं है।  शरीर सिमित है , मन , बुद्धि सिमित हैं।  आत्मा किसी एक शरीर या मन से बंधी नहीं है।  यह सारी भिन्नता शरीरगत है, मानसिक है. आत्मगत कोई भिन्नता नहीं  है. 
इस लिए अष्टावक्र राजा जनक को  'विभो' व्यापक शब्द से अम्बोधित करते हुए कहते हैं कि तू शरीर नहीं है , व्यापक आत्मा है. इस लिए तू सर्र्वदा मुक्त ही है।  यह मुक्ति तेरा स्वभाव है. इसे पाना नहीं है , यह उपलब्ध ही है ,केवल जाग कर देखना मात्र्र है।  केवल ग्राहक (रिसेप्टिव ) होकर कोई ठीक से सुन मात्र्र ले तो घटना घट जाती है - उसी क्षण जन्म जन्मों की विस्मृति टूट जाएगी , स्मरण लौट आएगा।  खोजने वाला भटक जाता है।  खोजने पर  परमात्मा  नहीं मिलता।  खोजों को छोड़कर संसार के प्रति उदासीन, वैराग्यवान हो कर विश्राम में स्थिर हो जाना ही पा लेने का मार्ग है।  

सोमवार, 21 जुलाई 2014

अष्टावक्र

अष्टावक्र 



जो चैतन्य आत्मा में विश्राम कर ठहर गया वही मुक्त है।  सभी कर्म शरीर व् मन के हैं।  जो शरीर  और मन के प्रति आसक्ति रखता है उसी के कर्म बंधन का कारन बनते हैं।  आत्मा का कोई बंधन नहीं है।  वह करता है ही नहीं , द्रष्टा है।  द्रष्टा कभी कर्म बंधन में नहीं बंधता।  जो अपने  को आत्मा मानकर शरीर से  अपना सम्बन्ध छोड़ देता है वह मुक्त है।  यही अष्टावक्र का परम उपदेश है।  
अष्टावक्र कहते हैं " तूं शरीर नहीं है , आत्मा है जो चैतन्य है , साक्षी है।  आत्मा का कोई वर्ण नहीं होता।  यह ब्राह्मण , क्षत्रिय ,  वैश्य , शूद्र नहीं होती।  यह तो चैतन्य ऊर्जा मात्र है जो समस्त प्रकार  के जीवों में समान रूप से व्याप्त है।  
अष्टावक्र जनक को आत्मा के वास्तविक स्वरूप का ज्ञान कराते हैं ' तू इसे जान ले और सुखी हो' . इसमें देर होती ही नहीं।  यह नकद धर्म  है।  उधार नहीं है कि आज कर्म किया और अगले जन्म में फल मिलेगा।  कुछ धर्म कहते हैं यह कलियुग है, यह पंचम काल है, इसमें मुक्ति होगी ही नहीं।  कुछ कहते हैं आज से प्रयत्न  करना आरम्भ करो तो सात जन्म बाद मुक्ति मिलेगी।  कुछ कहते हैं अंतिम तीर्थंकर , पैगम्बर , अवतार हो चुके अब कोई होने वाला नहीं है।  परन्तु अष्टावक्र बड़ी निर्भीकता से घोषणा करते हैं कि यह सब बकवास है।  तू अपने को चैतन्य में स्थिर कर ले और  अभी मुक्त हो जा।  
ऐसी घोषणा कोई भी महापुरुष , अवतार या गुरु नहीं कर पाये ।  बड़ी अद्भुत घोषणा है आध्यात्म जगत की।  दीपक जलते ही जैसे एक क्षण में अँधेरा गायब हो जाता है , उसी प्रकार आत्म-ज्ञान के प्रकाश में अज्ञानरूपी अन्धकार का एक क्षण में विलीन हो जाता है , सारी  भ्रान्ति मिट जाती है  … केवल बोध पर्याप्त है  ....  

शनिवार, 19 जुलाई 2014

अष्टावक्र

अष्टावक्र 


राजा जनक   ने देश के सभी बड़े बड़े विद्वानों को बुलाकर  एक सभा का आयोजन किया  … तत्त्व ज्ञान पर शास्त्रार्थ रखा गया  .... यह भी घोषणा की गई कि जो जीतेगा उसे सींगों पर सोना मढ़ी हुई सौ गाएं दी जाएंगी।  शास्त्रार्थ में बड़े बड़े विद्वानों ने भाग  लिया अष्टावक्र के  पिता भी शामिल हुए।  अष्टावक्र को मालूम हुआ कि उनके पिता एक पंडित से हार गए और बंदीगृह में डाल  दिए गए।  बारह वर्षीय अष्टावक्र सभा में पहुंचे  …उनके टेढ़े मेढ़े शरीर को देख सभा में बैठे सभी पंडित -शास्त्री हंस पड़े।  सभासदों को हँसता देख अष्टावक्र भी हंस दिए।  राजा जनक ने अष्टावक्र को हँसता देख   पूछा  …  विद्वान क्यों हंसे , यह तो मैं समझा किन्तु तुम क्यों हँसे , यह मेरी समझ में नहीं आया।  इस पर अष्टावक्र ने कहा कि मैं इस लिए हंसा कि " इन चर्मकारों की सभा में आज सत्य का निर्णय हो रहा है।  
ये चर्मकार यहाँ क्या कर रहे हैं  .... चर्मकार शब्द सुनते ही सारी  सभा में सन्नाटा छा  गया। राजा जनक ने अष्टावक्र स पूछा कि - तेरा मतलब क्या है ? अष्टावक्र ने कहा " बहुत सीधी सी बात है कि चर्मकार केवल चमड़ी का ही पारखी होता है।  इनको मेरी चमड़ी ही दिखाई देती है जिसे देख कर ये हंस पड़े , ये चमड़ी के अच्छे पारखी हैं।  अत: ये ज्ञानी नहीं हो सकते , चर्मकार ही हो सकते।  शरीर के वक्र आदिक धर्म आत्मा के कदापि नहीं हो सकते।  अष्टावक्र के इन वचनो  को सुनकर  जनक बड़े प्रभावित हुए   .... उनके चरणों में गिर पड़े  .... उनको  सिंहासन पर बिठाया  । चरणों में बैठ कर शिष्य भाव से अपनी जिज्ञासाओं का इस बारह वर्ष के बालक अष्टावक्र से   समाधान कराया  .... ' जनक-अष्टावक्र -संवाद ' रूप में 'अष्टावक्र गीता' है   

गुरुवार, 17 जुलाई 2014

अष्टावक्र

अष्टावक्र
 


कहते हैं विवेकानंद जब रामकृष्ण के पास गए व् परमात्माका   प्रमाण पूछा तो रामकृष्ण ने उन्हें अष्टावक्र गीता पढ़ने को दी कि तुम इसे पढ़  मुझे सुनाओ।  मेरी दृष्टि कमजोर है।  कहते हैं विवेकानंद  पुस्तक को पढ़ते पढ़ते ही ध्यानस्थ हो गए व् उनके जीवन में क्रांति घट  गई। .... 
मनुष्य भी चार प्रकार के होते हैं  - ज्ञानी , मुमुक्षु,अज्ञानी और मूढ़  . ज्ञानी वह है जिसे ज्ञान प्राप्त हो चूका है , मुमुक्षु वह है जो ज्ञान प्राप्ति के लिए    लालायित है, उसे हर कीमत पर प्राप्त करना   चाहता है।  अज्ञानी वह जिसे शास्त्रों का ज्ञान तो है किन्तु उपलब्धि के प्रति  रूचि नहीं रखता तथा मूढ़ वह है जिसे  अध्यात्म-जगत का  कुछ भी पता  नहीं है , न जानना ही चाहता है।  वह पशुओं की भांति अपनी शारीरिक क्रियाओं को पूर्ण मात्र कर  लेता है।  वह शरीर में ही जीता है।  इनमें मूढ़ से अज्ञानी श्रेष्ठ है , अज्ञानी से मुमुक्षु श्रेष्ठ है।  ज्ञानी सर्वोत्तम स्थिति में  है।  
आत्म ज्ञान के लिए  निर्विकार चित्त व् साक्षी भाव चाहिए।  महर्षि पतंजलि ने कहा है "योगश्चित्तवृतिनिरोध " (चित्त वृतियों का निरोध ही योग है ) इन चित्त की वृतियों को रोकने की भिन्न -भिन्न विधियां हैं किन्तु उच्च बोध होने  पर  इन विधियों की आवश्यकता नहीं पड़ती।  भगवान बुद्ध ने भी कहा है कि " जो समझ सकते हैं उन्हें मैंने बोध दिया है व् नासमझों को मैंने विधियां दी हैं 
राजा जनक में बोध था , विद्वान थे,समझ थी अत: अष्टावक्र ने उन्हें कोई विधियां नहीं बतायी।  सीधे बोध को छुआ व् जनक जाग  उठे।  

मंगलवार, 15 जुलाई 2014

अष्टावक्र

अष्टावक्र 



अष्टावक्र को अल्पायु में  ही आत्म ज्ञान प्राप्त हो  गया था।   वे शरीर  के आठ  अंगों से टेढ़े -मेढ़े व् कुरूप थे  … जब वे गर्भ में थे  उस समय इनके पिता एक दिन वेद पाठ कर रहे  थे ,  तो इन्होने गर्भ से ही अपने पिता को टॉक दिया कि "रुको , यह सब बकवास है , शास्त्रों में ज्ञान कहाँ ? ज्ञान तो स्वयं के  भीतर  है।  शास्त्र शब्दों का संग्रह मात्र है। " यह सुनते ही पिता का अहंकार जाग उठा।  वे आत्म ज्ञानी तो थे नहीं , पंडित ही तो रहे होंगे।   पंडितों में ही अहंकार सर्वाधिक होता है।  इसी अहंकार के कारण वे आत्म-ज्ञान से वंचित रहते हैं।  आत्म-ज्ञान के लिए नम्रता पहली शर्त है , अहंकारी शिखर बन जाता  है जिससे ज्ञान-वृष्टि होने पर भी वह सूखा रह जाता है जबकि छोटे-मोटे गड्डे भर जाते हैं   । पिता के अहंकार पर चोट पड़ते ही वे तिलमिला गए  ।  अभी पैदा भी नहीं हुआ और मुझे उपदेश  ? तुरंत शाप  दिया कि जब तूं  पैदा होगा तो आठ अंगों से टेढ़ा मेढ़ा  होगा।  ऐसा ही हुआ भी।  इसी लिए इसका नाम पड़ा  'अष्टावक्र '. …इसी लिए अष्टावक्र का ज्ञान पुस्तकों ,पंडितों व् समाज से अर्जित नहीं था बल्कि पूरा का पूरा स्वयं लेकर ही पैदा हुए थे।   

रविवार, 13 जुलाई 2014

गीता सार …अष्टावक्र

गीता सार   …अष्टावक्र 



कृष्ण का गीता का उपदेश मुख्यत : सांसारिक प्राणियों  के लिए हैं  अत: उसका महत्त्व  सबके लिए है किन्तु अष्टावक्र का उपदेश मोक्ष प्राप्ति  की इच्छा  वाले मुमुक्षुओं के लिए है इस लिए सामान्य जन इससे अप्रभावित रहा।  यह साधू-सन्यासियों ,ध्यानिओं व् अन्य साधनारत व्यक्तिओं का सच्चा मार्ग-दर्शक है।  अष्टावक्र कृष्ण के जैसी अनेक विधियां नहीं बताते।   वे एक ही बोध की विधि बताते हैं जो अनूठी , भावातीत , समय , देश और काल की सीमा के परे  पूर्ण वैज्ञानिक है।  बिना लॉग - लपेट के , बिना किसी कथा व् उदाहरण के , बिना प्रमाणों व् तर्कों के दिया गया यह शुद्धतम गणित जैसा वक्तव्य है जैसा आज तक आध्यात्म - जगत  में नहीं दिया गया।  यह आध्यात्म की एक ऐसी धरोहर है जिसके बारे में कुछ कहना सूर्य को दीपक दिखाना है।  यह समझने के लिए नहीं पीने व् पचाने के लिए है।  जो समझने का प्रयास करेगा वह निश्चित ही चूक जायेगा।  सागर को चम्मच से नापने के समान होगा।  
भारतीय अध्यात्म स्वर्ग को भी वासना ही मानता है अत: यह भी जीवात्मा की सर्वोपरि स्थिति नहीं है।  यह स्वर्ग भी बंधन है।  इससे ऊपर की स्थिति मुक्ति की है जिसमें वह सम्पूर्ण भोगों एवं विषय - वासनाओं से मुक्त होकर अपनी स्वतंत्र  स्तिथि का अनुभव करता है।    इसके लिए पहली शर्त वैराग्य है। इस से ही प्राप्त होता है ज्ञान व् ज्ञान से मुक्ति।  यही अष्टावक्र का उपदेश  व् गीता सार है।   

शुक्रवार, 11 जुलाई 2014

अष्टावक्र

अष्टावक्र 


बहिर्मुखी को ज्ञान या बोध का मार्ग समझ में नहीं आ सकता  . विद्वान , प्रज्ञावान , प्रखर बुद्धि  एवं चेतना वाला ही इसे ग्रहण कर सकता है  . इसी कारण अष्टावक्र का उपदेश जनसामान्य में अधिक प्रचलित नहीं हो पाया  . अष्टावक्र की पूरी विधि सांख्य योग की है जिसमें करना कुछ  भी नहीं है  .
अक्रिया  ही विधि है , बोध या स्मरण मात्र पर्याप्त है  . यदि यह जान लिया कि मैं शरीर , मन आदि नहीं हूँ  ,बल्कि शुद्ध चैतन्य आत्मा हूँ तो सारी  भ्रांतियां मिट जाती हैं व् यही मोक्ष है  . 
मोक्ष कोई स्थान नहीं है बल्कि चित्त की एक अवस्था है जिसमें स्थित हुआ जीव परमानन्द का अनुभव करता है 



गुरुवार, 10 जुलाई 2014

अष्टावक्र

अष्टावक्र 



अष्टावक्र  कहते  हैं कि मोक्ष कोई वस्तु नहीं  जिसे प्राप्त किया जाए ,  न कोई स्थान है  जहाँ पहुंचा जाए , न कोई   भोग है जिसे भोगा   जा सके , न रस है , न इसकी कोई साधना है , न सिद्धि है , न ये स्वर्ग में है , न सिद्ध शीला पर।  
विषयों में विरसता ही मोक्ष है।  
विषयों में रस आता है तो संसार है ।  
जब मन विषयों से विरस   हो  जाता है तब  ' मुक्ति '  है।  संसार में रहना , खाना पीना  कर्म करना बन्ध नहीं हैं ; इनमें अनासक्त हो जाना ही मुक्ति है।  इतना ही मोक्ष विज्ञान का सार है।  
सन्यासी बनने से,  धूनी रमाने से , संसार को गालियां देने से , शरीर को सताने से , उपवास करने से , भोजन  के साथ नीम की चटनी खाने से विषयों के प्रति विरसता नहीं आ सकती।  इन सबका मोक्ष से कोई सम्बन्ध नहीं है।

(अष्टावक्र गीता १५/२) 

बुधवार, 9 जुलाई 2014

 अष्टावक्र गीता 

एल  आर  गांधी   


ज्ञानी मृत्यु के समय भी हँसता है , मूढ़ ज़िंदा रहते भी रोता है।  ज्ञानी के पास कुछ नहीं होते  भी आनंदित रहता है , अज्ञानी के पास सब कुछ होते हुए भी दुःखी रहता है।  ज्ञानी कर्म को भी खेल समझता है , अज्ञानी खेल को भी  कर्म समझता है। ज्ञानी संसार को भी नाटकवत्  समझता है किन्तु अज्ञानी नाटक और स्वपन को भी भी वास्तविकता समझता है  . ज्ञानी व् अज्ञानी के कर्मों में समानता होते हुए भी दृष्टि में अंतर है।   

(अष्टावक्र गीता ४/१)

गुरुवार, 3 जुलाई 2014

आचार्य का स्वर्ग -मुल्ला की ज़न्नत … ख्याल अच्छा है


आचार्य का स्वर्ग -मुल्ला की ज़न्नत  … ख्याल अच्छा है 

                            एल आर गांधी 


अयोग्य की पूजा का उल्टा फल मिलता है   … साई पूजा से नाराज़ शंकराचार्य सवरूपानंद सरस्वती जी ने अपने नए विवादित ब्यान में  घोषणा के साथ ही कांग्रेस महानसचिव दिग्विजय सिंह उर्फ़ दिग्गी मियां जी   को अपना परम शिष्य भी सवीकार किया  ....
सवरूपानंद जी महाराज ने साईं बाबा की हिन्दुओं द्वारा पूजा पर एतराज जताते हुए बताया कि साईं में ऐसी कोई योग्यता नहीं की उसकी पूजा की जाए  … साईं मुसलमान थे कोई अवतार नहीं की उनकी मूर्ती की पूजा की जाए  … वे चिलम  पीते थे , मांस खाते  थे और एकादशी के दिन ब्राह्मणों को जबरन मांस खिलाते  थे  …
सवरूपानंद जी पहले भी अपने विवादस्पद बयानों और कांग्रेस प्रसस्त कार्यकलापों के कारण सुर्ख़ियों में  रहे हैं  … मोदी पर प्रशन पूछने पर एक पत्रकार को थप्पड़  तक जड़ दिया , बनारस में जब हर हर मोदी का जयघोष हुआ तो स्वामी जी को नागवार गुज़रा और मोदी के आगे ' हर हर ' पर फतवा जारी कर दिया  … मोदी समर्थक नहीं माने  … माने भी क्यों , अब सवरूपानंद जी ने अपने नाम के आगे 'शंकराचार्य ' लगा रक्खा है , क्या वे भगवान शंकर जी के 'आचार्य ' हो   गए  ।
शंकराचार्य जी महाराज के महान शिष्य श्री श्री दिग्विजय सिंह उर्फ़ दिग्गी मियां के 'कृत्य' और मान्यताओं पर तो  आचार्य जी ने कोई एतराज नहीं किया और आज भी उसे अपना शिष्य मानते हैं  … दिग्गी मियां की मुस्लिमपरस्ती  … ओसामा बिन लादेन के लिए 'जी' अलंकरण का प्रयोग , इस उम्र में 'मस्तुरातपरस्ती ' और न जाने क्या- क्या  …
साई पूजा को रोकने के लिए स्वामी जी ने नागा साधुओं का आह्वान किया है  … क्या इस्लामिक देशों की भांति स्वामी जी भारत में भी धार्मिक गृह युद्ध को तो आमंत्रण नहीं दे रहे।  भारत एक लोकतांत्रिक देश है और हिन्दू समाज अनंतकाल से बहुदेव पूजक रहा है   .... आचार्य तो शाश्त्रार्थ से अपने अनुयायिओं को सही मार्ग दिखाते हैं न की शस्त्रों  से  … 
आचार्य का मानना है कि साईं को मानने वालों को मोक्ष (स्वर्ग) नहीं प्राप्त होगा  … मुल्ला कहते हैं कि जेहाद करो  …जन्नत नसीब होगी  .... हमको मालूम है ज़न्नत की हकीकत या रब , दिल के बहलाने को ग़ालिब ये ख्याल अच्छा है 

बुधवार, 4 जून 2014

वाह मियां वाह

वाह मियां वाह 

 एल आर गांधी

वाह मोहम्मद मियां वाह  .... महज़ ३५ की बाली उम्र में ६२ बीवियां  … वाह  .... एक हम हैं कि ६२ की उम्र में महज़ एक से ही किसी तरहां निभा रहे हैं  … आज आपकी जिन्दा दिल जिंदगी अखबार में पढ़ कर आँखें सावन -भादों हुई जा रहीं हैं  … सच्चे सैकुलर मुसलमान की मानिंद मोहम्मद मियां ने बीवियां चुनने में अपने दिल  की सभी खिड़कियां खोल दीं  … मुसलमान हो या हिन्दू  … निकाह हो या सात फेरे   …   मोहम्मद निज़ाम या मोहम्मद सुजान  या फिर राजकुमार राय  ऐसे ही  दर्ज़नो नाम  …
हम यहाँ एक बीवी से आधी बात छुपाते हैं तो रंगे हाथो धरे जाते हैं  … और मोहम्मद मिया ? कमाल तो देखो !  ६२ बीवियों को भनक तक नहीं लगने दी  … कुछ को तो तीन तलाक फरमा कर रुखसत भी कर चुके हैं  … बिहार से ले कर बंगाल तक  मियां के ससुराल हैं  .... खुद को रेलवे का अफसर जो बताया था  … सभी बीवियां  पटरियों पर आँखें बिछाए जुल्मी सईयां की बाट जोहती  … और टी टी के आखरी डिब्बे को टकटकी लगाए निहारती रहतीं  .
चाय की चुस्कियों संग हम अखबार में  अभी 'मोहम्मद ' मियां के मुखारविंद को निहार ही रहे थे कि  मैडम की जासूस नज़र खबर की हेड लाईन पर पड़ गई  … उम्र :३५ ,नाम दर्ज़न भर ,बीवियां : ६२ , पेशा : ठगी  … सठिया गए हो मियां  सुबह सुबह भगवान का नाम , पूजा पाठ तो क्या करना  … बैठे हैं  ६२ बीवियों पर टकटकी लगाए  … शुक्र नहीं करते कि एक मिल गई  .... चाय की चुस्की कड़वी नीट  विस्की से भी कड़वी लगने लगी  .... काश हम भी तलाक तलाक तलाक कहने की जुर्रत जुटा पाते !

शनिवार, 17 मई 2014

वासना -संयम और गांधी जी

वासना -संयम और गांधी जी 

        एल आर गांधी

बापू की अस्मत फिरंगिओं  के बाजार में   नीलाम होने जा रही   है।  बापू   यूँ तो कई बार नीलाम हुए  मगर इस बार की बात  कुछ 'निजी ' सी है  ....  राज परिवार के गान्धिओं की निज़ता का विशेष ख्याल रखने वाली गाँधीवादी सरकार उदासीन सी है।  नीलामी में बापू के तीन खत बिकेंगे  … एक खत में बापू ने अपने ज्येष्ठ पुत्र हरी लाल के बारे में बहुत ही सनसनीखेज़ - निजी तथ्य उजागर किये हैं  ।खत में  बापू ने बेटे पर अपनी ही पुत्री के साथ दुष्कर्म का आरोप लगाया  था  …
हरी लाल ने १९३६ में इस्लाम कबूल लिया था और हरी लाल गांधी से अब्दुल्लाह गांधी हो गए थे  … अब अब्दुल्लाह हुए हरी के लिए तो शरीयत की मान्यताएं ही उपयुक्त रही होंगी जिनमें  … बाग़ के फूल पर सबसे पहला हक़ 'माली ' का होता है। .
फिर गांधी जी की निजी मान्यताएं भी वासना -संयम और ब्रह्मचर्य पर 'आश्चर्यजनक ' ही थीं  । अपनी वासना पर संयम की परीक्षा के लिए बापू अपनी युवा सवयंसेविकाओं के साथ  'हमबिस्तर ' होते थे  … चलने फिरने के लिए भी उन्हें दो युवा सेविकाओं के कन्धों की दरकार थी  … अब ब्रह्मचर्य के इस प्रयोग में गांधी जी सफल रहे  तो क्या उनके अनुयायी भी सफल रहेंगे  … क्या गारंटी है ?
बेचारे आशाराम 'बापू' वासना -संयम के ऐसे  ही खेल में धरे गए  … बेरहम मिडिया ने एक नही सुनी और बलात्कारी बना  दिया   … शुक्र है बापू के वक्त ये घ्राण शक्ति युक्त श्वान   …  मुआ मिडिया नहीं था  .
बापू के अनुयायी तो आज भी जी -जान से वासना- संयम के इस प्रयोग में संलग्न हैं  । वयोवृद्ध तिवाड़ी जी का तो सारा जीवन ही इन प्रयोगों में गुज़र गया  … प्रयोग के प्रतिफल ९० की आयु में भुक्त रहे हैं  । सच्चे गांधी वादी 'दिग्गी ' मियां  वासना -संयम के ऐसे ही प्रयोग में लिप्त  धरे गए  … अब नाती -पोते दद्दू की बारात में 'अब्दुल्लाह ' बेगाना होने को तैयार बैठे हैं। राजमाता के एक वकील प्रवक्ता तो न्यायालय परिसर में स्थित अपने चैंबर में ही अपनी एक सहयोगी वकील के साथ वासना पर संयम का प्रयोग करते पकडे गए  … वाच  डॉग  कुछ अरसा गुर्राया फिर मौन हो गया  । वकील साहेब फिर से राजमाता के दरबार में बतिया रहे हैं।
बापू के समर्पित गाँधीवादी अनुयायी गांधीजी के दिखाए मार्ग पर चलते हुए 'वासना -संयम ' के प्रयोग में अक्सर धरे जाते हैं और यह मुआ मिडिया का वाच - डॉग  बोटी बोटी नोच खाने को आतुर है   … हे राम 

बुधवार, 14 मई 2014

शरीयत क़ानून और सैकुलर शैतान

शरीयत क़ानून  और सैकुलर शैतान 

         एल आर गांधी

मलेरकोटला के एक गाँव में एक मियां ने अपनी ही बेटी को माँ बना  दिया  .... गाँव वालों  पता चला कि मियां जी की बड़ी बेटी जो अपनी माँ  की मौत के बाद अपने अब्बा के साथ रहती थी , सात माह की गर्भवती है। लड़की से जब  पूछा गया तो  बताया कि अब्बा मियां ही  उसके होने वाले बच्चे के बाप हैं  .
 पड़ोसियों ने मामला गांव की पंचायत के आगे रक्खा  … पंचायत ने इस्लामिक कानून की शरिया के अनुसार फैसला सुनाया कि अब अब्बा मियां को इस लड़की का पति मान लिया  जाए और ये दोनों मियां-बीवी गांव छोड़ कर कहीं और जा कर रहे  .... समाचार  पत्रों में खबर आने के बाद   भी प्रशासन , पुलिस और समाज के सैकुलर शैतान चुप हैं  … शायद शरिया से पंगा लेने की जुर्रत नहीं है किसी में भी  ....
सऊदी अरब में एक मौलवी ने अपनी ही पांच बरस की बेटी के साथ रेप किया , यातनाएं दीं और उसके 'रेक्टम ' को खंडित कर दिया  । मौलवी को अपनी बेटी के कौमार्य  पर शक था  … ज़ख्मों की ताब न सहते हुए ५ वर्षीय मासूम लामा अल घामदी अल्लाह को प्यारी हो गई  … शरीयत कानून के तहत मौलवी को २ लाख रियाल का जुर्माना (ब्लड मनी ) किया गया जो बच्ची की माँ को दिया जाएगा  … यदि  लामा  लड़का होती तो यह (ब्लड मनी ) दुगनी अर्थात ४ लाख रियाल होती  …  इस्लामिक कानून में अब्बा अपने बच्चो और बीवी को 'मार' सकता है  …  सभी महिलाएं नाबालिग हैं  … अब्बा लड़कियों को बाल विवाह के लिए बेच भी सकता है।
बांग्लादेश में तो एक रेप पीड़ित १४ साला लड़की को ही सजा सुना दी गयी  । हिना को सौ कोड़े लगाने की सजा दी गई , मगर ८० कोड़ों के बाद ही वह बेहोश हो गई और ६ दिन बाद अल्लाह को प्यारी हो गई  … सचमुच अल्लाह महान ही और उसके शरियाई कानून के तहत सब को  न्याय मिलता है  !!!!!!!!!!!!!

शनिवार, 3 मई 2014

गुरु दोबारा … चेला कुंवारा

गुरु दोबारा  … चेला कुंवारा 

  एल  आर  गांधी

राज  कुमार ४२ सावन चूक गए मगर अभी तक 'कुंवारे ' हैं   … मगर गुरु देव को मुश्किल से  विधुर हुए अभी एक बरस गुज़रा कि दूसरी 'मस्तुरात ' ढूंढ भी ली  . और वह भी अपने से २५ बरस छोटी  … ४२ वर्षीय टी वी एंकर अमृता राय दिग्गी मियां के साथ  एक अर्से से उ ला ला हैं मगर चुपके चुपके  । जब एक पत्रकार ने दिग्गी मियां से उनके 'दिलदार' के बारे में पूछा तो मियां बिफर पड़े और इज़्ज़त  हतक के  दावे की चुनौती दे डाली  … मगर दूसरे ही दिन पलट गए और छाती ठोक कर अपने  और अमृता के सम्बद्ध कबूल लिए  …
दिग्गी मियां के  दोगले पन पर 'भौजाई ' ने ट्वीट कर आश्चर्य व्यक्त किया  … भाई लक्ष्मण सिंह से उसकी शादी का दिग्गी मियां ने महज़ इस लिए घोर विरोध किया कि वह भाई से १३ साल छोटी थी और राजपूत बिरादरी से नहीं थी  … दिग्गी मियां के एक पुत्र और ४ पुत्रियां हैं  … नई 'माँ ' मियां की बड़ी बेटी से भी छोटी है और दादू  की दूसरी वेडिंग में पौत्र और पौत्रिया भी शरीक होंगीं ?
एक यक्ष प्रशन दिग्गी के दल के दिग्गज़ों और 'वाक गुदम ' दिग्गी  मियां के हर वाक पर तालियां पीटने वाले  कांग्रेसियों को खूब सता रहा है  … वह प्रशन है कि दिग्गी मियां अब अमृता जी के साथ 'सात फेरे लेंगे कि चर्च वेडिंग करेंगे या फिर 'निकाह ' करेंगे  .... प्रशन जायज़ भी है और दरुस्त भी  . क्योंकि मियां पैदा तो राजपूत हिन्दू परिवार में हुए  और  राज भक्ति के चलते 'ईसाई ' हो गए और अपने दल व् राज परिवार की मानसिकता के चलते इस्लाम प्रस्त ' ओसामा जी' हो गए  .
गुरु देव ने लगता है अपने इकलौते चेले को ' वाक गुदम ' के सिवा कोई गुर नहीं सिखाया  … जिस प्रकार दिग्गी मियां जब भी मुंह खोलते हैं तो उलटे टंगे जीव की भांति  वाक गुदम ही करते हैं  और उसी की भांति न पक्षियों की श्रेणी में आते हैं और न ही पशुओं की  … गुरु की दूजी शादी में कुंवारा चेला नाचेगा। 

बुधवार, 16 अप्रैल 2014

कलयुगी किन्नर राज

कलयुगी किन्नर राज 

   एल. आर. गांधी

हे राम  …आपने हमें 'वरदान ' तो दिया , मगर पहचान देना भूल गए  और आपकी उस भूल का फायदा आज तक 'मानसिक-किन्नर नेता ' उठाते रहे  .... वे सिंहासन पर आरूढ़ हैं और हम गली गली खाली हाथ ताली बजाते भटक रहे हैं  …
आधी -अधूरी सदी बीत जाने के बाद मंगलवार को  सर्वोच्च न्यायालय ने 'किन्नरों' को पहचान देने का मंगलकारी निर्णय सुनाया और उन्हें तीसरे 'लिंग' के रूप में मान्यता के साथ मानवीय अधिकार भी दिए। 
किन्नरों को यह अधिकार प्राप्त करने के लिए तीन युगों तक इंतज़ार करना पड़ा  ....
त्रेता युग में जब भगवान राम जी को बनवास मिला तो समस्त अयोध्या वासी  सरयु तट तक उन्हें मनाने आए कि प्रभु लौट आओ   … आखिर प्रभु को आदेश देना पड़ा कि समस्त ' नर-नारी ' अयोध्या लौट जाएं  … प्रभु राम चौदह वर्ष वनवास काट कर जब लौटे,  तो सरयु तट पर कुछ फटेहाल- रंगबदरंग कपड़ों में कुछ लोग प्रभु के आगमन की ख़ुशी में झूमते नाचते देखा  .... प्रभु ने बड़े आश्चर्य से पूछा कि ये लोग कौन हैं  … तो बताया गया कि  ये 'किन्नर ' हैं  . । प्रभु जब आप ने अयोध्या के सभी नर- नारियों को वापिस अयोध्या लौटने का आदेश दिया तो इन्होने सोचा कि हम तो न नर हैं और न ही नारी , सो ये लोग पिछले चौदह वर्ष से सरयु तट पर आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं
भगवान राम किन्नरों की प्रभु भक्ति से आत्म विभोर हो गए  … झट से वरदान दिया कि जाओ 'कलयुग ' में किन्नर -राज होगा  …
बस भगवान राम जी  यहीं पर 'भयंकर' भूल हो गई   … वे इन्हें लिंग पहचान देना भूल गए  … राज तो केवल पुरुष और या नारी ही कर सकते हैं  .... किन्नर व्रृति के लोग सिंघासन पर आरूढ़ हैं   और असली किन्नर पहचान को तरस रहे हैं  ।
मंगलवार सर्वोच्च न्यायालय के इस ऐतिहासिक फैसले के साथ साथ एक 'बुक बम ' के लिए भी याद किया जाएगा  … दो पुस्तकों के लिए  … जिनमें सिंह साहेब और राजमाता में सुपर कौन ? की सच्चाई बयां की गई और वह भी भीतर के भेदियों  द्वारा  … और इसके साथ ही 'राजकुमारी' के उस उद्द्घोष के लिए ' सिंह इज़ सुपर पी एम  …।   

मंगलवार, 8 अप्रैल 2014

केजरी का मुखरक्षक … मफलर

केजरी का मुखरक्षक  … मफलर 

     एल  आर  गांधी


हे राम  .... अच्छा हुआ यह दिन देखने को आज बापू नहीं हैं  ....
गांधी टोपी धारी माडरन गांधी वादियों की ऐसी धुनाई  … हे राम
आज राजधानी के   'अमन' विहार के आम  टैम्पो चालक 'लाली ' ने केज़रीवाल जी का मुंह नीला कर दिया  … आँख पर चोट आयी  … टैम्पो  चालक ने आरोप लगाया कि केजरी ने वादे पूरे नहीं किये   … और हमें  मझधार  में छोड़ भाग खड़ा हुआ  … इतने कम समय में इतने 'चांटे' खाने का किसी राजनेता का यह अपना रोकार्ड रहेगा  ....
केजरीवाल जी राखी बिड़ला का रोड शो बीच में छोड़ छाड़ कर 'बापू के मज़ार ' पर जा बैठे  … घंटा भर बापू से मौन वार्ताप्रलाप किया  … बापू आज तेरे नाम पर 'राजपाठ ' पर काबिज़ ये सफेद पॉश तेरी किसी 'नसीहत को नहीं मानते   … यहाँ तक कि तेरी दी हुई टोपी भी उतार फेंकी   … मैंने तेरी टोपी पहनी  और पहनाई भी  … आप ने अपने हाथ में  झाड़ू ले कर 'मैला ' साफ़ किया और हमने उसी झाड़ू को अपना चुनाव चिन्ह बना कर सिर पर धारण कर लिया  …
तेरे बताए अहिंसा के  मार्ग पर चले  … बापू आपने एक बार कहा था  'यदि कोई एक चांटा मारे तो दूसरा गाल आगे कर दो  … बापू आपने यह तो बताया ही नहीं जब दुसरे के बाद  … ३रा ,४था  … और गाल पर आपकी ही बनाई पार्टी का 'चुनाव चिन्ह' छप  जाए  … गाल सूज कर दुखने लगे  … तो आम आदमी क्या करे  …
मज़ार से एक 'खामोश' आवाज़ आयी .  मूर्ख  … मफलर मेरे से पूछ कर उतारा था  ....  

गुरुवार, 27 मार्च 2014

वंशवाद के लिए 'अरिष्ट' लक्षण

वंशवाद के लिए 'अरिष्ट' लक्षण 

     एल आर गांधी


आखिर सर्वोच्च न्यायालय को कहना ही पड़ा कि पिछले ६५ वर्ष में विदेशी बैंकों में पड़ा देश  का काला धन वापिस लाने के लिए कुछ नहीं किया ,इसके साथ ही सरकार की विशेष जांच दल गठित करने की न्यायालय के २०११ का  आदेश निरस्त करने की अपील भी रद्द का दी।  कोर्ट ने सख्त टिप्प्णी में कहा कि विदेशी बैंको में पड़ा काला  धन यदि वापिस आता है तो इससे देश की अर्थ व्यवस्था में सुधार होगा  …
एक टी वी चेनल को इंटरविउ में वरिष्ट वकील जेठमलानी ने कहा था कि जिस दिन विदेशी बैंको में पड़े देश के शीर्ष नेताओं के धन का भांडा  फूटेगा उसी दिन राजमाता- युवराज परिवार सहित देश छोड़ कर भाग जाएंगे और कांग्रेस का भोग पड़  जाएगा।
अब राजमाता की देवरानी सावजनिक मंच से आरोप लगा रहीं हैं कि जेठ जी से शादी के वक्त 'वे' इटली से एक 'टका ' भी नहीं लाइ थी , अब भला विश्व की छठी सबसे  अमीर महिला कैसे बन गयी  … राजपरिवार की ढाल दिग्गी मियां भी चुप हैं।
स्विस बैंकों में पड़े राजपरिवार की काली कमाई को सुरक्षा कवच तो, चार वर्ष पहले बंगाली बाबू ही ओढाः गए थे , जब स्विस साकार से एक इकरार किया गया कि वहाँ के बैंकों में पड़े भारतियों के काले धन के पुराने खातो को छोड़ कर सिर्र्फ नए खातो बारे जानकारी दी जाए  … इस इकरार से कुछ दिन पूर्व 'राजपरिवार अपने प्यादों के साथ ' गुप्त विदेश यात्रा पर गया और सभी 'काले-खाते 'सुरक्षित स्थानांतरित कर दिए  … राजकुमार का जन्म दिन भी 'वहीँ' मनाया गया  .... बंगाली बाबू को बड़े पारितोषिक से 'सम्मानित' कर क़र्ज़ उतार दिया   गया  …
सर्वोच्च न्यायालय का यह आदेश चुनाव में 'रेंगती' वंशवादी पार्टी के लिए 'अरिष्ट ' लक्षण का  घोतक है 

सोमवार, 24 मार्च 2014

लूट का आधार

लूट का आधार 

एल आर गांधी

 सोनिया जी के गैम चेंजर 'आधार ' की सर्वोच्च न्यायालय  में हवा निकल  गई।  न्यायालय ने 'आधार कार्ड ' की विभिन्न सरकारी योजनाओं के लिए अनिवार्यता खारिज़ कर दी।
सोनिया जी ने 'आधार ' का ठेका अपने खासम-ख़ास नंदन निलेकणी को दिया और मनमोहन जी  ने भी अपनी राजमाता की निराधार योजना पर १८००० करोड़ लुटा दिए। देश की भोली भाली जनता ने भी अपने सभी काम काज  छोड़ छाड़  कर  घंटो लाइनों में लग कर 'आधार ' की जंग फतह की। कोर्ट के निर्देश के बाद भोले -भाले भारतीय ठगे -ठगे से महसूस कर हैं  .... जो काम वोटर कार्ड या राशन कार्ड  से  हो सकता था ,फिर आधार पर १८००० करोड़ क्यों लुटाए गए  … आधार कार्ड बनाने में बहुत सी घोटालेबाज़ियाँ भी सामने आई  ।
असली खेल पर से पर्दा तो तब उठा जब आधार कर्णाधार नंदन किलेकानी कांग्रेस के टिकट पर लोक सभा के लिए मैदान में कूद पड़े  .... निलेकणी जी ने जब अपनी सम्पति ७७०० करोड़ घोषित की तो भोले -भाले भारतियों की आँखें खुली की खुली रह गई  …
नीलकेणी जी ने भी बड़ी मासूमियत के साथ अपनी अकूत 'माया ' का राज़ खुल जा सिम - सिम करते  हुए बताया कि  उन्होंने अपना ' धंधा ' २०० रूपए से शुरू किया था  ....
महज़ २०० रूपए की तुच्छ राशि से ७७०० करोड़ की छलांग  … का   .... आ  धा  र  … कुछ कुछ हमें भी समझ में आ गया  … राजमाता की छत्र -छाया  .... फिर  बरसे   माया ही माया …

शुक्रवार, 7 फ़रवरी 2014

बापू के नक़्शे कदम पर ....

बापू के नक़्शे कदम पर  .... 

   एल आर गांधी


सत्ता के  गलियारों में एक बार फिर  से 'बापू ' का भूत मंडरा रहा है। । अबकी 'यह भूत  ' कांग्रेसियों की खबर लेने पर तुला है। इसने भी गांधी टोपी धारण कर रक्खी है  … मगर झाड़ू वाली और साथ  में लिख दिया है  … आम आदमी  … अब तो आम आदमी के अनुयायी 'अरविन्द ' में बापू की जवानी ढूंढने लगे हैं  … कहते हैं  …  बापू की जवानी की फोटू देख लो  … हूँ ब हूँ  केज़रीवाल लगते हैं  . फोटू एक सी हो न हो , मगर दोनों के बारे में कांग्रेसियों की धारणा अवश्य एक सी है  …
जिस प्रकार राजनीतिक मज़बूरियों के चलते कांग्रेसी  'केजरीवाल 'के पीछे खड़े हैं  … और उन्हें पाखंडी ,ढोंगी ,झूठा जैसे अनेक अलंकारों से सम्बोधित करते हैं  … वैसे ही गांधी जी को  'बापू 'मानने और उनकी शिक्षाओं पर चलने की कस्में खाने वाले भी,   उनको   सम्बोधित करते रहे हैं  … एक विदेशी मेहमान ने जब नेहरूजी से 'बापू' के बारे में प्रशन किया तो यका यक उनके मुंह पर दिल की बात आ गई  ।   '  ओह दैट हिपोक्रेट ओल्ड मैन ' अर्थात ओह वह ढोंगी बूढा  !
वैसे भी केज़रीवाल खुद को गांधीजी का आधुनिक अनुयायी कहते हैं  … बहुत सी समानताएं भी हैं  … अंतर सिर्फ मिडिया का है  . आज मिडिया वाच डॉग की सी घ्राण शक्ति लिए केज़रीवाल के पीछे पीछे चल रहा है  … गांधी जी को यह दिक्कत नहीं थी। 
सादगी का ढोंग तो 'बापू' भी करते थे मगर मिडिया ने कभी कोई किन्तु परन्तु नहीं किया , बेचारे केजरीवाल दो हफ्ते में दो बार घर से बे- घर हो गए   … बापू बिरला सेठ के महलों में रह का भी लंगोटी वाले बाबा कहलाए  । भले  वक्तों में बापू पर बिरला सेठ के ५० रूपए रोज़ खर्च हो जाते थे  . आम आदमी की औकात २ आने रोज़ की थी  . अंग्रेज़ों ने 'बापू' को भारत भ्रमण के लिए रेल के तीन कम्पार्टमेंट दे रक्खे थे , जिनमें प्रथम दर्ज़े की सभी सुख सुविधाएं उपलब्ध थीं ,सिर्फ डिब्बों के बाहर तीसरा दर्ज़ा की प्लेट चस्पा थी  . खुद केज़रीवाल भले ही अपनी वैगनार में घूम रहे हों , उनके मंत्री तो लग्ज़री कारों का लुत्फ़ उठा ही रहे हैं न। 
बापू भी बहुत कसमें खाते थे  … कसम खाई की पाकिस्तान उनकी लाश पर बनेगा  … मगर कसम पूरी करने के लिए  गोडसे को सूली पर  झूलना पड़ा। . कसम केज़रीवाल जी ने भी खाई , सफ़ेद पॉश काले अंग्रेज़ों की मदद न लेने की  … तोड़ दी  … झूल रहे हैं बेचारे 'बापू ' के आठ रत्न  …   बापू के बन्दे केज़रीवाल पर आरोप लगाते हैं कि वे तानाशाह और ज़िद्दी हैं।  बापू भी कम ज़िद्दी और तानाशाह न थे  .... सुभाष जी को  कांग्रेस अध्यक्ष चुने जाने पर भी गांधीजी की ज़िद्द के चलते पद छोड़ना पड़ा।  बहुमत पटेल के साथ था , गांधीजी की ज़िद नेहरू के साथ थी  । मुस्लिम प्रेम के चलते 'बापू' ने पकिस्तान को 55 करोड़ देने की ज़िद पूरी की  … केज़रीवाल जी का मुस्लिम प्रेम किसी से छुपा नहीं 
अंतर सिर्फ इतना है  । गांधी जी के ढोंग और ज़िद से गोरे अँगरेज़ पशेमान थे और केज़रीवाल से काले अँगरेज़।