मंगलवार, 15 जुलाई 2014

अष्टावक्र

अष्टावक्र 



अष्टावक्र को अल्पायु में  ही आत्म ज्ञान प्राप्त हो  गया था।   वे शरीर  के आठ  अंगों से टेढ़े -मेढ़े व् कुरूप थे  … जब वे गर्भ में थे  उस समय इनके पिता एक दिन वेद पाठ कर रहे  थे ,  तो इन्होने गर्भ से ही अपने पिता को टॉक दिया कि "रुको , यह सब बकवास है , शास्त्रों में ज्ञान कहाँ ? ज्ञान तो स्वयं के  भीतर  है।  शास्त्र शब्दों का संग्रह मात्र है। " यह सुनते ही पिता का अहंकार जाग उठा।  वे आत्म ज्ञानी तो थे नहीं , पंडित ही तो रहे होंगे।   पंडितों में ही अहंकार सर्वाधिक होता है।  इसी अहंकार के कारण वे आत्म-ज्ञान से वंचित रहते हैं।  आत्म-ज्ञान के लिए नम्रता पहली शर्त है , अहंकारी शिखर बन जाता  है जिससे ज्ञान-वृष्टि होने पर भी वह सूखा रह जाता है जबकि छोटे-मोटे गड्डे भर जाते हैं   । पिता के अहंकार पर चोट पड़ते ही वे तिलमिला गए  ।  अभी पैदा भी नहीं हुआ और मुझे उपदेश  ? तुरंत शाप  दिया कि जब तूं  पैदा होगा तो आठ अंगों से टेढ़ा मेढ़ा  होगा।  ऐसा ही हुआ भी।  इसी लिए इसका नाम पड़ा  'अष्टावक्र '. …इसी लिए अष्टावक्र का ज्ञान पुस्तकों ,पंडितों व् समाज से अर्जित नहीं था बल्कि पूरा का पूरा स्वयं लेकर ही पैदा हुए थे।