न क्षुधा सम : शत्रू
भूख के समान कोई शत्रू नहीं !
एल. आर. गांधी
भारत के महान अर्थशास्त्री आचार्य विष्णुगुप्त 'चाणक्य ' ने ठीक ही कहा है ...न क्षुधा सम : शत्रु .. अर्थात भूख के समान कोई शत्रु नहीं है. भूखा व्यक्ति कोई भी पाप कर सकता है. पिछले दिनों एक विचित्र समाचार देखने को मिला . एक व्यक्ति अपने कुत्तों को अपने मकान में बंद कर के चला गया. कुछ दिनों के बाद जब वह लौटा और अपने मकान का दरवाज़ा खोला ..तो उसके अपने ही वफादार कुत्ते उस पर टूट पड़े .. भूख से व्याकुल कुत्ते अपने मालिक को ही चीर फाड़ कर खा गए. कुत्ते को वफ़ा और संतोष का प्रतीक माना जाता है ... मगर भूख के आगे सब बेमानी हो जाता है.
कुछ ऐसा ही आभास सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को हुआ होगा ... जब उन्होंने देश की भ्रष्ट और निरंकुश सरकार को चेतावनी दे डाली ' भूख और कुपोषण से कोई व्यक्ति न मारा जाए ! बुद्ध और गाँधी के देश भारत में सदियों से अहिंसा और संतोष का पाठ पढ़ाया जाता रहा है .. तभी तो देश की भूखी और बीमार जनता आज़ादी के छह दशक बाद भी अपने भ्रष्ट और निरंकुश राजनेताओं को सह रही है और अभी तक भूख से बेहाल श्वान व्रिती उनके विवेक की मर्यादा को नहीं तोड पाई. ..मगर कब तक ?