रविवार, 17 अप्रैल 2011

mamta -budhdev- ki ladaai


 ममता -बुद्धदेव की लड़ाई 
डोल्लीमौमिता खातून की खातिर. 
       एल.आर.गाँधी 
नवीं क्लास की मौतिमा खातून ने बंगाल के गृह  मंत्री जी को ख़त लिख कर आगाह किया कि उसके अब्बा उसका निकाह करने जा रहे हैं क्योंकि वे उसके स्कूल तक के सफ़र का खर्चा नहीं उठा सकते . गृह मंत्री ने मुख्य मंत्री को लिखा और बुद्धदेव जी  ने निजी तौर पर खातून से मिल कर वायदा किया कि उसके घर से स्कूल तक सड़क बना दी जाएगी. यह तो रही एक वामपंथी मुख्यमंत्री की एक 'छात्रा' के प्रति संवेदना . अब देखिये इन्ही मुख्यमंत्री जी की इन छात्रों को पढ़ाने वाली अधियाप्काओं के प्रति असंवेदनशीलता. डोल्ली प्रमाणिक शांतिपुर के हाई स्कूल में पढाती हैं - उन्हें हर रोज़ स्कूल तक पांच घंटे का सफ़र करना पड़ता है. स्कूल तक जाने  के लिए तीन ट्रेनें और दो बसें बदलनी पड़ती हैं, फिर भी वे कहती हैं कि अपने स्थानान्तरण के लिए वे वामपंथी यूनियन नहीं जुआयिन करेंगी. ऐसी अनगिनत डोल्लिज़ और खातून्ज़ की अपनी अपनी कहानी है. 
अपने साढ़े  तीन दशक के राज में वाम सरकार ने ५२००० स्कूल खड़े किये जब की एस.एस राय ने मात्र  अपने मुख्य मंत्री काल में ही ४०००० स्कूल निर्मित किये  थे.   यूनेस्को कि एक स्टडी में यह तथ्य सामने आया कि बंगाल के ८० % स्कूल छात्र एक सामान्य लीफलेट नहीं पढ़ पाते. एच  आर डी मंत्रालय ने अपने २०१० के एजुकेशन इंडेक्स में बंगाल को २८ राज्यों और ७ केंद्र शासित प्रदेशों में ३२  वां स्थान दिया है. 
 १९७७ में जब वाम दल के कामरेड बंगाल की सत्ता पर  काबिज हुए तो चाहू और ट्रेड युनिअनों  का आतंक फ़ैल गया.कोल्यानी में १५० उद्योगिक संयंत्र चल रहे थे और एक लाख बंगालियों को रोज़गार मिला हुआ था . यूनियन आतंक के चलते अधिकाँश बंद हो गए और मात्र ३० संतंत्र बचे हैं.       
ज्योति  बासु का बंगाल आज अगले पांच वर्ष के लिए फिर से सरकार चुनने जा रहा है. . ज्योति बाबू ने अपने अढाई दशक के एक छत्र राज में बंगाल को वामपंथी विचार धारा का रोल माडल बनाने में कोई कसार नहीं छोड़ी. सभी निजी संस्थानों को वाम्दंड से दण्डित किया गया और बंगाल की सीमाओं के बाहर फेंक दिया और सरकारी संस्थानों को स्थापित कर लाल झंडे फैहरा दिए गए . वाम पंथी कर्मचारी युनिअनों  का सभी संस्थानों पर एक छत्र राज्य था. दायित्व  या जवाबदेही राज्य से तिरोहित कर दी गई- चहुँ और कामगार अधिकार का बोल बाला हो गया. परिणाम सब के सामने थे- जब ज्योति बाबू की जान पर बन आई तो उन्होंने भी किसी सरकारी हस्पताल की जगहें एक प्राइवेट क्लिनिक को तरजीह दी और वहीँ पर प्राण त्यागे. कामरेड हर्क्रिशन सिंह सुरजीत ने भी अपनी जान बचाने के लिए किसी सरकारी हस्पताल के स्थान पर एक प्राइवेट क्लिनिक को चुना.
वाम पंथी इमानदारी का ढिंढोरा यूँ तो खूब पीटते हैं. मगर बंगाल के चुनाव में उतरे विधयाको के निजी पूँजी ब्यौरे की जांच पड़ताल  की जाए तो ढ़ोल की पोल सामने आ ही  जाती है.विधयाकों की जमा पूँजी में भारी  वृद्धि तो यही दर्शाती है की ज्यो ज्यो बंगाली कंगाल होते गए त्यों त्यों विधायक मालामाल होते गए. २००६ और २०११ के अंतराल में विधायकों की पूँजी में जहाँ ८६०३०% तक की वृद्धि देखने में आई वहीँ यह भी सनसनी खेज़ सच्चाई पर से पर्दा उठा कि एक करोड़ बंगाली भूख से बेहाल है और सभी सरकारी इदारो का बुरा हाल है .