शनिवार, 29 मई 2010

जब चोर ही चौकीदार बने बैठे हों तो....

जब चोर ही चौकीदार हो जायें तो चोरी पकड़ने के नए नए तरीके अपने आप इजाद होने लगते हैं॥
जब से हमारी प्रिय नेता सोनिया जी को गरीबो की चिंता सताने लगी है और उन्होंने देश में से गरीबी का समूल नाश करने का अहद किया है तभी से हमारे गहलोत जी ने गरीबों में अमीरों की घुसपैठ रोकने का एक नायाब तरीका ढूंढ निकाला है ता की गरीबों का राशन अमीर लोग न चट कर जाएं । गहलोत जी के कान में किसी बाबु ने एक राज़ की बात डाल दी कि ४० % अमीर लोग बी .पी.एल में घुसपैठ कर गए हैं जो सोनिया जी की दरिया दिली का फायदा उठा कर सस्ते दामों ३५ किलो अनाज लूट ले जाते हैं। गहलोत जी ने फरमान जारी कर दिया कि हर बी.पी. एल. के माथे पर लिख दिया जाए कि यह गरीब है। बाबु लोगों ने एक नई तरकीब इजाद की कि बी.पी.एल का फायदा उठाने वाले परिवारों के दरवाजे पर 'बी.पी .एल का साईन बोर्ड ' चस्पा कर दिया जाये ताकि सब को पता चल जाये की ये बेचारे गरीबों में से गरीब हैं और जो लोग गरीब नहीं उन की सूचना 'बाबू ' लोगों को दी जाये ताकि उनका नाम काट कर सच मुच गरीब को राशन दिया जाये और फिर नाजायज फायदा लेने वालों को थोड़ी शर्म भी आयेगी।
इंदिरा जी ने गरीब की रेखा तो उस समय ही निर्धारित कर डाली थी ,जब उन्होंने गरीबी हटाने का अहद किया था . ६ रोटी, एक कटोरी दाल- सब्जी दो वक्त खाने वाला गरीबी रेखा से ऊपर गिना जायेगा। अब परांठे और तरकारिया खाने वाले भी पीले कार्ड उठाये फिरते हैं ,यह तो सरा सर धोखा हुआ न गहलोत सरकार के साथ !
हमारे आटा मंत्री ..अरे वो ही मराठा मानुष शरद पवार जी यों ही बौखलाए हुए हैं कहीं चीनी के साथ साथ गेहूं की भई किल्लत न हो जाये ...बोले हर साल ५८,००० करोड़ का अनाज तो वैसे ही गल सड जाता है । कोई इन महाशय से पूछे कि इतना अनाज अकेले चूहे तो खा नहीं सकते और न ही चोर- उच्चकों के बस कि बात है कि इतना अनाज उड़ा ले जाए । यह तो एम्.सी.बी. या फिर एम्.सी .एल.का काम लगता है अब आप पूछेंगे कि भई यह क्या बला है ,तो सुनिए यह है अई.पी.एल कि तर्ज़ पर' मोस्ट करप्ट बाबू 'और 'मोस्ट करप्ट लीडर ' अब हमारे गरीब देश की सेहत के कर्णधार 'बाबू' केतन देसाई २ करोड़ की रिश्वत का जुगाड़ करते पकडे गए । सी बी आई ने उनके महल नुमा घर को खंगाला तो डेढ़ टन सोना मिला जो महज़ १८०० करोड़ का है। ऐसे ही हमारी हाथी मेरे साथी वाली बहिन जी ने मात्र हलफनामे में ज़िक्र कर दिया की अब वे ८८ करोड़ी दलित नेता हैं और तीन साल पहले ५२ करोड़ी थी । हमारी दलित नेता के पास हर साल एक करोड़ कहाँ से आ जाता है। इनका तो पता भी पांच साल के बाद चलता है जब चुनाव के फार्म के साथ अपनी लूट का कुछ कुछ खुलासा इन्हें करना ही पड़ता है। अब गहलोत जी के इन बाबू लोगों से कोई पूछे ! है कोई माई का लाल ! जो इन के महलों पर' चोर चोर मौसेरे भाई' का साईन बोर्ड चस्पा कर दे। बड़े बड़े उद्योगपति बैंकों का एक लाख करोड़ रूपया हडपे बैठे हैं ! है कोई इन्हें पूछने वाला ?
चाणक्य ने ठीक ही कहा है जिस राजा के मंत्री महलों में रहते हैं -उसकी जनता झोंपड़ों में रहती है।
जिस रफ़्तार से इस हमारे देश में 'केतन-माया-लालू और क्वात्रोचिओं ' की गिनती बढ़ रही है उसी रफ्तार से गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वालों की संख्या में इजाफा हो रहा है। देश की ७०% जनता २०/- प्रति दिन में गुजर बसर करने को मजबूर है। २०/- रूपए में तो अब दो वक्त की रोटी का जुगाड़ भी नामुमकिन सा लगता है। और इंसान के जीने के लिए कपडा,मकान,दवाई ,यातायात ,शादी-विवाह के लिए भी पैसे की दरकार है। और हाँ अंतिम संस्कार के लिए तो..............

गुरुवार, 27 मई 2010

मनमोहन की मजबूरी- माया की मौज ....

पिछले तीन सालों में माया की माया में ३५ करोड़ की माया और आ जुडी. २००७ में यही माया ५२.०७ करोड़ थी जो अब ८८.१० करोड़ हो गई है. हर वर्ष एक करोड़ की बढ़ोतरी , फिर लोग बाग़ यूंही ब्त्याये चले जाते है की मायाजी तरक्की पसंद नहीं . क्या कोई और नेता इतना इनकम टैक्स देता है जितना हमारे प्रीय बहिन जी ? माया की माया में ७५.४७ करोड़ की तो व्यावसायिक व् आवासीय सम्पति ही है, जिसमें दिल्ली में नेहरु रोड पर ३९८७.७८ वर्गमीटर और लखनऊ की नेहरु रोड पर ७९.९२ लाख की सम्पति ...दिल्ली की राज गद्दी तक मायाजी नेहरु रोड से होते हुए ही पहुँच पायेगी .बैंक में मायाजी के ११ करोड़ ३९ लाख ३ हजार रुपये और नगदी महज़ १२,९५,०००/- है. इसके इलावा सोना १०३४ ग्राम हीरे ३८० कैरट और बाकी ४ लाख ४ हजार की चाँदी ही चाँदी. बाकी बहिनजी के पास न तो कोई शेयर वेयर हैं और न ही कोई कार ... और कार करनी भी क्या है ....बहिनजी को तो बस हाथी की सवारी ही भाती है जी.
हाथी और हाथ का चोली दामन का साथ है. मनमोहनजी की मजबूरी ,माया की मौज ..ये विपक्ष वाले लाख शोर मचाएं -माया की माया पर मनमोहन की सी.बी आई को माया जी की बेहिसाब बढ़ती माया में कोई खोट नहीं दिखाई देता. और दिखाई भी कैसे दे भई, माया जी कैसे कमाती हैं इस से किसी को क्या .. है कोई माई का लाल या लालू जो बेईमानी के धंधे में इतनी इमानदारी से इनकम टैक्स भरे .. कमाते तो भई सभी हैं -चुपके चुपके स्विस बैंको में भेज देते हैं ..एक तो चोरी ऊपर से सीना जोरी. ..एक तो हराम का पैसा ऊपर से टैक्स की चोरी... फिर बहिनजी तो इसी दलित देश के दलित की बेटी हैं ! कोई क्वात्रोची थोड़े हैं जो इटली भाग जायेगा और सोनिया जी की सी.बी.आई के फिर कभी 'हाथ' ही नहीं आयेगा..

शुक्रवार, 21 मई 2010

कामनवेल्थ गेम्स में ' काल गर्ल्स का खेल'

कामन वेल्थ खेलों को वल्ड क्लास बनाने के कलमाड़ी जी के अभियान को गज़ब का प्रोत्साहन मिला जब जी .बी.रोड की ६००० खिलाडिनों ने भी 'महाखेले' में जी जान से भाग लेने की घोषणा कर डाली.
सवेरा नामक सव्यसेवी संस्था ने रेड लाईट एरिया के कोठों को नया लुक देने के लिए कोठों के सौन्द्रियकरन का बीड़ा उठाया है. अँधेरे और बदबूदार कोठों को महकाया और रौशन किया जाएगा .कोठों को स्प्लिट ऐ. सी., एल.सी.डी और अन्य सुविधाओं से लैस किया जायेगा ताँ जो देसी और विदेशी महमानों को किसी प्रकार की असुविधा न होने पाए. देसी कोठे वालियों को विदेशी भाषा सिखाने का ख़ास प्रबंध किया गया है. अब वे आइये जनाब -मिजाज़ कैसे हैं- या खुशामदीद -अलविदा जैसे बोरिंग अल्फाज़ नहीं बल्कि वेलकम , हाउ - डू - यू- डू,हेलो, थैंक यू जैसे माडर्न शब्दों से मेहमानों को संबोधित करेंगीं तमिलनाडु की सलमा तो अपने ७ साल के लड़के को भी इंग्लिश क्लास में साथ ले जाती है.
मुग़ल काल में तो दिल्ली में ऐसे पांच बाज़ार थे जहाँ जिस्मफरोशी का धंधा होता था . अंग्रेजों ने इसे एक स्थान तक सीमित कर दिया और इस स्थान का नाम उस समय के अँगरेज़ कलेक्टर गैरीस्तिन बस्टन के नाम पर रखा गया. भारत सरकार ने १९६५ में इस सड़क का नाम बदल कर 'स्वामी श्र्धानंद मार्ग 'रख दिया मगर लोगों के मुंह जी. बी. रोड ही चढ़ा है. जी. बी. रोड एशिया की सबसे बड़ी हार्ड वेअर की मार्कीट है. नीचे हार्ड वेअर का धंधा है तो ऊपर कोठों पर जिस्मफरोशी का. बीस इमारतों में पहली और दूसरी मंजिल पर ९६ कोठे हैं. पिछले तीन सालों में इन कोठों पर धंधे वाली 'काल गर्ल्स ' की संख्या ४५०० से बढ़ कर ६००० को पहुँच गई है. कोठों की हालत पशुओं के बाड़ों से भी बदतर है. अधिकतर त्योहारों और राजनैतिक रैलिओं के वक्त धंधा जोरों पर रहता है . कामन वेल्थ खेलों के दौरान भी इन्हें मोटी कमाई की आशा है.
अधिकाँश लड़किया दूर दराज़ के पिछड़े क्षेत्रों के गरीब परिवारों से छोटी उम्र में ही देह व्यापारिओं द्वारा बहला फुसला कर यहाँ लाई जाती हैं और कोठे वालों को बेच कर मोटी रकम वसूली हो जाती है. सलमा जो पहले १० से १५ ग्राहक निपटा देती थी अब मात्र २-३ ही जुटा पाती है क्योंकि अब वह उम्र की ढलती पायदान पर है. उसे अपने बेटे अल्ला रक्खा और बेटी किस्मत की फ़िक्र खाए जाती है. मोली और पुष्पा के पास एक ही कमरा है , शाम होते ही पुष्पा को कमरा छोड़ना होता है , क्योंकि मोली का धंधा कमरे तक सीमित है, तब पुष्पा बाहर एसा ग्राहक तलाशती है जो उसे साथ कहीं ले जाए. पुलिस का डर इस अवैध धंधे में सदा ही बना रहता है.
इन किस्मत की मारी 'काल गर्ल्स ' को सरकार की ओर से किसी प्रकार का संरक्षण प्राप्त न होने के कारण , अपने बहुत से शैतान ग्राहकों के इलावा,इलाके के गुंडे भाई लोगों को भी रंग दारी देनी पड़ती है. दिल्ली पर एक नहीं दो दो महिलाओं का राज्य है और महिला स्शक्तिकर्ण के नाम पर लोक सभा और राज्य सभा में खूब गला फाड़ फाड़ अगड़ी पिछड़ी महिलाओं पर रुदन होता है. फिर भी कोई शीला कोई सोनिया इन शर्मीला-सबिया की सुध लेने की जहमत नहीं उठती . जी .बी. रोड के कोठों के पीछे दो मस्जिदें हैं और सामने एक हनुमान जी का मंदिर - मगर सुनता न वो है न ये है. इन 'काल गर्ल्स' के लिए बीता कल वो है जो कभी नहीं आयेगा और आने वाला कल वो है जिसे वे कभी न देख पाएंगी. बस महज़ आधा दिन और आधी रात है जिसे जिए जा रहीं हैं. जब नीचे की मार्कीट के शटर शाम को गिर रहे होते है तब इनके कोठों का कारोबार शुरू होता है और सुबह तक चलता है तबले की थाप और घुंघरू की छनकार पर 'यहाँ तो हर चीज़ बिकती है ,बोलो जी तुम क्या क्या खरीदोगे साड़ी रात चलता है. - जब मार्कीट खुलती है तो ये थकी मांदी कोठे के किवाड़ बंद कर सो रही होतीं हैं
कलमाड़ी जी के महाखेले में तो अभी बहुत दिन बाकी हैं और काम भी बहुत बाकी है बहुत जोर लगाना पड़ेगा 'देश की साख' और शीला जी की नाक का सवाल है.

बुधवार, 19 मई 2010

मानवाधिकार -आतंकी जेहादिओं की तूरूप का पत्ता .....

पश्चिमी देशों के अपने बनाये मानवाधिकार ही अब उनके गले की फाँस बनते जा रहे हैं मानचेस्टर में बम धमाके की साजिश में संलिप्त अलकायदा के दस पाक आतंकी पकडे गए. उन्हें पाक प्रत्यर्पण का फैसला किया गया. आठ आतंकी तो स्वेच्छा से पाक वापिस जाने को राज़ी हो गए लेकिन एक आबिद नसीर व् एक अन्य आतंकी ने याचिका दाखिल कर न्यायालय से गुहार लगाई की उन्हें पाक न भेजा जाये क्योंकि पाक में उन्हें प्रताड़ित किया जाएगा . पाक का मानवाधिकार रिकार्ड बहुत खराब रहा है इस लिए उन्हें राहत दे दी गई.
प्रसिद्ध पत्रकार डगलस मूरे ने पश्चिमी देशों की जनविरोधी इस मानवाधिकार नीति को धिक्कारते हुए लिखा है की अलकायदा के आतंकी पहले तो 'जेहाद जेहाद जेहाद ' की रट लगाते हैं और जब पकडे जाते हैं तो मानवाधिकार को तुरुप के पत्ते की भांति इस्तेमाल कर अपनी जान बख्शने की गुहार लगाते हैं .ब्रिटेन की रक्षा एजेंसियां अभी भी नसीर मियां और उसके साथी को देशवासिओं के लिए बहुत बड़ा खतरा मानते हैं. पत्रकार ने एक 'यक्ष प्रश्न' उठाया है - क्या एक आतंकी के मानवाधिकार ब्रिटिश नागरिकों की जान ओ माल से ज्यादा महत्व रखते हैं ?
आतंक के विरुद्ध ' महाभारत ' छेड़ने का दावा करती हमारी सेकुलर सरकार तो इस अंतर्राष्ट्रीय महायुद्ध में 'शिखंडी ' का रूप धारण किये नज़र आ रही है, जिसका एक मात्र निशाना अपना निजी शत्रु विपक्ष रुपी भीष्मपितामह ही है. कसाब को फांसी की सजा के बाद अब इन्हें यह चिंता सताने लगी है. की 'अफज़ल गुरु' के भूत से खुद को कैसे बचाया जाये. झट से आन्तरिक सुरक्षा के ठेकेदार चिदम्बरम जी ने ,फिर से शीला जी को स्मरण पत्र भेजा की अफज़ल की फाईल पर 'तुरंत' टिपणी भेजें . पहले तो शीला जी सकपका गई अरे कौन अफज़ल ? फिर पलटी मारी और राज्यपाल को फांसी की सिफारिश के साथ साथ कानून व्यवस्था को खतरे की चेतावनी भी दे डाली. जिस सरकार ने देश के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को अमल में लाने में ६ साल बीता दिए की कहीं मुस्लिम वोट बैंक का दिवाला न पिट जाये. क्या देश का सारे का सारा मुस्लिम समाज देश द्रोही है, जो देश के लोकतंत्र के मंदिर लोकसभा पर हमले के दोषी को सजा देने पर जेहाद छेड़ देगा .
अफज़ल को बचाने के दिग्गी मियां -वोही हमारे राजकुमार राहुल बाबा के राजनैतिक गुरु , दिग्विजय सिंह ने दस बहाने गढ़े -कहने लगे अफज़ल से पहले तो ढेर सारे फांसी के केस लंबित पड़े हैं , २८ में से अफज़ल मियां तो २२ वी कतार में हैं ,जब नंबर आयेगा लटका देंगे . अब कसाब को फांसी की सज़ा के बाद जनता का दवाब है की उसे जल्द से जल्द फांसी दो, और विपक्ष के हाथ भी एक मुद्दा लग गया तो दिग्गी मियां की सिट्टी पिट्टी गुम हो गई. और शीला को भी जवाब देते नहीं बन रहा की ६ साल अफज़ल का केस कहाँ और क्यों छुपा रखा? अब कसाब को लटकाने के लिए दिग्गी मियां की २८ मील लम्बी लाईन को कैसे तोडा जायेगा.
हमारे दिग्गी मियां के पास एक और बहाना भी है... भई देश में कोई ज़ल्लाद ही नहीं -सभी पद खाली पड़े हैं.. सरकार पहले तो रिक्त पदों के लिए आवेदन आमंत्रित करेगी और इस के लिए देश के सभी राष्ट्रीय समाचार पत्रों में विज्ञापन दिए जाएंगे .अरे हाँ ! अभी तो ज़ल्लाद के पद की योग्यताएं भी निर्धारित नहीं हुईं - अँगरेज़ मुए बिना योग्यता के ही ज़ल्लाद को १५० रूपए पगार देते रहे. अब सेकुलर सरकार से बिना योग्यता के कोई पगार पा सकता है क्या ? सरकारी मुलाज़म है कोई एम् पी. एम्. एल. ऐ या मुख्या मंत्री राबड़ी ...थोड़े है जो सरकारी खजाने को मलाई की तरहां चाट जाये.
शीध्र ही सोनिया जी चिदम्बरम जी की अध्यक्षता में आठ कबिनेट मंत्रिओं की एक कमेटी का गठन करेंगी जो ज़ल्लाद की योग्यताओं का अध्ययन कर अपनी सिफारिश देगी. तब जा कर ममता जी की गाडी आगे बढ़ेगी और तब तक बंगाल के चुनाव भी निपट जायेगे . इस काम को देश के कानून और अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकारों के तराजू पर पूरी तरहां माप तोल कर किया जायेगा.
शायद मंसूर अजहर की तरहां अफज़ल के लिए भी कोई 'पुष्पक विमान' कंधार की उड़ान भर जाये और अल्पसंख्यक वोट बैंक लुटते लुटते बच जाये.

रविवार, 16 मई 2010

ॐ और अल्लाह ....आस्था और अनुभव के सिंहासन पर आरूढ़

ॐ और अल्लाह ....आस्था और अनुभव के सिंहासन पर आरूढ़ हैं. जहाँ मैं है वहां वे नहीं जहाँ मैं नहीं वहां वे हैं. अष्टावक्र : जब तक मैं हूँ, तब तक सत्य नहीं ,जहाँ मैं न रहा , वहीँ सत्य उतर आता है.
ग़ालिब ने भी ऐसा ही कहा है: न था कुछ तो खुदा था , कुछ न होता तो खुदा होता ..
अल्लाह के नाम में अंगूर जैसी मिठास है. अल्लाह अल्लाह जोर जोर से कहना ..भीतर एक रसधार बहने लगेगी. ओंठ बंद कर जीभ से अल्लाह अल्लाह कहिये तो एक रूहानी संगीत का एहसास होगा. फिर बिना जीभ के अल्लाह अल्लाह कि पुकार से और गहराई में हजारों वींनाओं के स्पंदन का एहसास होने लगेगा. अल्लाह के निरंतर स्मरण से जो प्रतिध्वनि गूंजी , वह गूँज रह जाएगी .बजते बजते वीना बंद हो जाये , लेकिन ध्वनि गूंजती रहती है. सूफी गायकों को सुनिए -एक मस्ती तारी रहती और उनकी आँख मेंदेखें तो शराब सा नशा.
ऐसे ही ओंकार शब्द की गूज सर्वशक्तिमान के अस्तित्व का आभास करवाती है. आँखें बंद कर प्रात : काल सूर्यदेव की ओर ध्यान कर ॐ शब्द का उच्चारण ब्रह्माण्ड के महाशुन्य में उस अनंत शक्तिमान की अनुभूति करवाता है. ओमकार के पाठ में नशा नहीं मस्ती नहीं -केवल आनंद और ख़ामोशी की अनुगुन्ज़न है.
अल्लाह और ॐ को किसी धर्मग्रन्थ या वेद्शस्त्र में कैसे सम्माहित किया जा सकता है. ब्रह्माण्ड के रचयिता को शब्दों में और आयातों में कैसे बांधा जा सकता है. जिन अदीबों और ज्ञानिओं ने इनको धर्म और सम्प्रदाय की पोथिओं में बांधने के जतन किये हैं वे वास्तव में अज्ञानी ही थे. सुकरात ने ठीक ही कहा है:' जब मैं कुछ कुछ जानने लगा तब मुझे पता चला की मैं कुछ नहीं जानता '. और लाओत्सु ने भी कुछ ऐसा ही फरमाया है ' -ज्ञानी अज्ञानी जैसा होता है.
आस्थावान के लिए ॐ और अल्लाह व् ईश ही अंतिम ज्ञान है. सत्य ज्ञान की परिभाषा तो मानव अनुभूति की खोज के अनुरूप नित्य नए नए आयाम स्थापित कर रही है. और अल्लाह और ॐ को तो वो ही जान सकते हैं जो केवल आस्थावान ,निर्वेद और अमोमिन हैं. सम्प्रदाय विशेष से जिनका दूर का रिश्ता भी नहीं. जिनके मन पर कुछ भी नहीं लिखा गया . जो साक्षी हैं कोरे कागद की मानिंद और अपने विवेकपूर्ण जिज्ञासा से नित्य नए नए अनुभवों का सृजन कर महान्शून्य की सत्ता में अपनी खुदी को मिटाए चले जा रहे हैं. क्यों न हम अपने अपने अनुभवों से अपना ही एक अल्लाह, अपना ही एक ॐ, अपना ही एक ईश सृजित कर लें जिसमें जीसस के अनुसार ' जो बच्चों की भांति भोले हैं, वे ही मेरे प्रभु के राज्य में प्रवेश करेंगे .
घर से मस्जिद है बहुत दूर , चलो यूं कर लें ,
किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए...........

शुक्रवार, 14 मई 2010

सेकुलर ज़ज़िया ....

सेकुलर भारत की इस्लामिक स्टेट में हिन्दू तीर्थ यात्रिओं पर अब 'ज़ज़िया थोड़ा और बढ़ा दिया गया है। अब की बार जो हिन्दू अमरनाथ यात्रा पर जाएंगे उन्हें अधिक टैक्स देना होगा। पंजीकरण के लिए १५/- प्रतीयेक यात्री को देने होंगे
यात्रिओं और यात्रा का सामान ढोने वाली बसों और ट्रकों का 'ज़ज़िया' भी अब बढ़ा कर ३००/- से २३००/- प्रति दिन कर दिया गया है। जो दानी सज्जन यात्रिओं के लिए खाने पीने के प्रबंध हेतु 'लंगर' लगाने की' हिमाकत' करेंगे अब उन्हें भी १५०००/- 'ज़ज़िया देना होगा। अब लंगर के लिए स्थान भी ८०% कम दिया जाएगा कियोंकि पिछले साल हमारे कश्मीरी भाइयों ने इस स्थान को लेकर ही बहुत से एतराज़ उठे थे।
वैसे तो पिछले ६३ साल से हम किसी न किसी रूप में यह ज़ज़िया देते आ रहे हैं। केंद्र की सेकुलर सरकार नेहरु काल से ही कश्मिरिओन पर कुछ कास मेहरबान रही है। केंद्र सभी राज्यों को उनकी माली दशा या दुर्दशा के अनुरूप प्रति वर्ष सहायता राशि आबंटित करता है। देश के अति पिछड़े बिहारी के लिए यह राशी जहाँ ८००/- है तो देश के उच्चतर पर कैपिटा आय वाले कश्मीरियो के लिए १००००/- और वह भी न वापसी योग्य। यह सहायता भी तो हमारे द्वारा दिए कर से ही तो दी जाती है। एक तरहां का यह एक ज़ज़िया ही तो है जो हम सेकुलर भारत में एक इस्लामिक स्टेट को बिना हील हुज़त के दिए चले जा रहे हैं। और नेहरु जी के ये कश्मीरी भाई फिर भी पाक का झंडा उठाये भारत के खिलाफ जेहाद पर अमादा हैं।
पिछले दिनों जब पाक के कबाईली इलाकों में सिखों से ज़ज़िया बटोरने की खबरें आईं तो पाक सरकार ने बड़ी मासूमियत से पल्ला झाड लिया की हमारा तो वहां बस नहीं चलता।अब इन पाकशैतानियो से कोई पूछे की क्या वजीरिस्तान के इन इलाकों में 'निजामे अदल 'का कानून उनकी सरकार ने नहीं नासिर किया था , जिसके तहत वहां कुरआन की 'शरियत' लागू हो गई और शरियत में ' काफिरों'पर रहम सिर्फ और सिर्फ 'ज़ज़िया' देने पर ही किया जा सकता है।
वैसे तो यह सेकुलर ज़ज़िया हर उस राज्य में लागू है जहाँ इस्लाम के बन्दों की वोटों की दरकार है। केरल में मदरसों के मौल्विओं को ४०००/- पेंशन और वह भी मंदिर फंड से। आन्ध्र में इसाईओं को विदेशों में अपने धर्म स्थानों की यात्रा के लिए २५०००/- सब्सिडी, मुस्लिम को ४% आरक्षण, उर्दू अकेडमी के लिए ३० करोड़
भी हमारे ही दिए कर से जुटाए जाते हैं।
सोनियाजी की मनमोहन सरकार हर क्षेत्र में तरक्की की नई नई उच्चाईयाँ छूने जा रही है। १९९८ में हज यात्रिओं के लिए सरकारी सहायता जो महज़ १२३ करोड़ थी ,२००८ आते आते ८२६ करोड़ हो गई। अब तरक्की पसंद सेकुलर सरकार ने यही देश की सेकुलर आबादी पर थोड़ा यात्रा टैक्स बढ़ा दिया तो क्या आफत आ गई....फिर हाज़िओं के लिए सरकार के पास पैसा आयेगा भी तो फिर कहां से ? ???????

रविवार, 9 मई 2010

दो बूँद पानी

महज़ चुल्लू भर पानी भी नहीं बचा पीने के लिए ! इस कदर गन्दा कर दिया है हमने अपने जीवित रहने के लिए अनिवार्य और महत्तवपूर्ण स्त्रोत को . पृथ्वी पर दो तिहाई क्षेत्र में पानी ही पानी है.फिर भी मानव शुद्ध पीने योग्य पानी के आभाव से त्रस्त है.
पानी में मीन प्यासी
मोहे सुन सुन आवे हासी.
कबीरजी के इन विचारों के अनुरूप ही आज मानव पानी में प्यासी मीन के समान हो गया है, अपनी पानी के प्रति उपेक्षित मनोवृति के कारन .
साठ वर्ष पूर्व संविधान की धारा ४७ में देश के सभी नागरिकों को पीने का स्वच्छ पानी मुहैया करवाने का दायित्व डाला गया था सरकार पर. नेहरूजी की दिवास्वप्न्लोकी १० पांच वर्षीय योजनाओं द्वारा इस महती कार्य के लिए १,१०५ बिलियन रूपए खर्च कर दिए गए लेकिन 'मर्ज़ बढ़ता गया ज्यों ज्यों दवा की.'....आज भी प्रति वर्ष ३७.७ मिलियन देशवासी स्वच्छ पानी न मिल पाने के कारण गंदे पानी से होने वाली बिमारिओं से जूझ रहे है. सबसे बड़ी शिकार हुई है हमारी भावी पीढ़ी 'बच्चे' गन्दा पानी पीने के कारण प्रति वर्ष १.५ मिलियन बच्चे अकाल मृत्यु का शिकार हो जाते हैं.
सबसे चिंताजनक स्थिति है ग्रामीण इलाकों की जहाँ ७०० मिलियन ग्रामीण लोगों के लिए अभी तक स्वच्छ पीने का पानी मुहैया करवाने का किसी भी सरकार या निजी संस्था ने सार्थक और गंभीर परियास नहीं किया. गांवों में आज भी बहुत से ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ गृहिणियां प्रति दिन मीलों चल कर पानी के घढ़े अपने सर पर ढ़ोती हैं . स्वच्छ वायु और पानी स्वस्थ राष्ट्र की जीवन रेखा होती है. क्योंकि ८० % बीमारियाँ हमें गंदे जल की देन हैं. ज़ाहिर है जब नागरिक अस्वस्थ रहेंगे तो राष्ट्र की प्रगति,मृत्यु दर,और अर्थ व्यवस्था पर भी प्रतिकूल असर पड़ेगा. उल्टा स्वस्थ सेवाओं पर भारी भरकम खर्च से सामान्य जन की आर्थिक स्थिति और भी दयनीय होगी. जिस देश में ७७% जनता महज़ २०/- प्रतिदिन पर गुजर बसर करने को मजबूर हो वहां महँगी दवाईयों का जुगाड़ कहाँ से हो पायेगा. नित्य नए नए मेडिकल कालेज -अस्पताल और उनको मान्यता के नाम पर २-२ करोड़ की रिश्वत ....यह तो बानगी भर है. ..सचाई तो ब्लड कैंसर से भी विकराल रूप धारण कर चुकी है.
आधुनिक जीवन पधत्ति ने नगरों में पानी के दुरपयोग को कई गुना बढ़ा दिया है. जो काम हमारे पूर्वज एक लोटे में निपटा लेते थे ,इसी के लिए हम एक फ्लश में १२ लिटर जल बहा देते हैं. सरकारी स्तर पर तो जल संरक्षण का कोई भी प्रयास नहीं किया जा रहा. उल्टा वोट बैंक मज़बूत करने के चक्कर में लोगो को मुफ्त पानी लुटाया जा रहा है. जिस प्रकार अंधाधुंध जल दोहन के कारण भूजल रसातल में जा रहा है और निरंतर पर्यावरण व् जलप्रदूष्ण के कारन सभी जलस्त्रोत गंदले हो रहे हैं. आने वाले दिनों में हम भयंकर जल संकट से दो चार होने जा रहे हैं. आज की यह ईद कहीं भविष्य के रोज़े हो कर न रह जाएँ

वजीरे आला गिलानी और 'ग्लानी '

२६/११ के आतंकी हमले के एक मात्र जिन्दा सबूत अजमल अमीर कसाब को भारतीय क़ानून के तराजू पर तोल कर सजा देने के लिए हमारी सेकुलर सरकार ने क्या कुछ नहीं किया. इस पाकिस्तानी ख़ास मेहमान की खातिर तवज्जो में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी .डेढ़ बरस तक अपने वकील दे देकर बेचारे मेहमान को निर्दोष साबित करने की भरसक कोशिश की . कसाब के साथ जन्नत की ख्वाहिश लिए अल्लाह मियां को प्यारे हुए बाकी के ९ आतंकियों के शव बड़े जतन से मुंबई के जे जे हस्पताल के शवकक्ष में संभाल कर रखे, चाहे हस्पताल के कर्मचारी इन शवों को सँभालते सँभालते इनकी भयंकर बदबू से सवा साल बेहाल होते रहे. मगर हमारी सेकुलर सरकार ने तो इस्लामिक रिपब्लिक आफ पकिस्तान के वजीर ऐ आला जनाब मुहम्मद युसूफ रज़ा' ग्लानी ' जी को सबूत देना था और यकीन दिलाना था कि भई आपके भेजे अल्लाह के बन्दों की मेहमान नवाजी में हमने जिन्दा या मुर्दा में कोई फर्क नहीं रखा. जिन्दा कसाब की मेहमान नवाजी पर ३५ करोड़ खर्च कर डाले और मुर्दा मेहमानों के ताबूत सम्हालने का हिसाब अभी मुंबई का लोक निर्माण विभाग लगा रहा है और जल्द ही लगा कर चिदम्बरम जी को भेज देगा .
अब ग्लानी जी हैं कि मानते ही नहीं कि ये नान स्टेट एक्टर मुंबई में हारर फिल्म दिखाने उन्होंने ही भेजे थे . उल्टा फ़िक्रा कसा कि ऐसे २६/११ तो हमारे यहाँ रोज़ रोज़ होते हैं. ग्लानी जी का यह फ़िक्रा हमारी शरीफ और सेकुलर सरकार को सरेआम 'बेवकूफ' कहने के बराबर है जैसा कि वह है भी .....अरे वे तो यह खेल पिछले ६३ साल से खेल रहे हैं और हम हैं कि फिर भई 'समझौता एक्सप्रेस ' पर सवार उनसे गल्बहीयाँ डालने को मरे जा रहे हैं.
ग्लानी जी के इस रवैये को देख कर हमें नाभा रियासत के वजीर ऐ आला नवाब गुलाम गिलानी जी के रियासती दौर कि याद ताज़ा हो गई. नाभा रियासत अंग्रेजों के वक्त' तैनूं पीन गे नसीबां वाले, नाभे दीये बंद बोतले ', शराब और शबाब के लिए मशहूर थी . नाभा कि राजकुमारी गोबिंद कौर बहुत ही रंगीन मिजाज़ सुन्दरी थी.आजादी के बाद देश की पहली स्वस्थ्य मंत्री स्व : राजकुमारी अमृत कौर के पिता गोबिंद कौर के भतीजे थे.
वजीरे आला गिलानी का दीवान खाना जहाँ वे मंत्रिमंडल की बैठकें और सरकारी फाइलों का निपटारा करते थे ,और राजकुमारी का 'शाह्नाशीन' महल साथ साथ थे. गिलानी बहुत शक्तिशाली वजीरे आला थे और महाराज भी उनसे घबराते थे , वैसे ही जैसे पाक के ज़रदारी जी ग्लानी से खौफ खाने लगे हैं. गिलानी जी की बहुत सी बीवियां थीं जो नगर से १२ मील दूर एक महल में रहतीं. अनेक बीवीओं के शौहर गिलानी जी राजकुमारी पर लट्टू हो गए. राजकुमारी गोबिंद कौर के प्यार में वे पागल पण की हदें पार किये जा रहे थे. मिलन के लिए एक सुरंग बनवाई गई जो राजकुमारी के महल में जाती. गिलानी ने राज कुमारी से मिलने का एक बहुत ही नायाब तरीका ढूंढ़ निकला. दीवानखाने के जिस हाल में बैठ कर वे हुक्का गुडगुडाते हुए ,दीवानी और फौजदारी मुकदमों की सुनवाई करते उसमें एक बड़ा पर्दा लगा था. सभी मंत्री और अफसरों को सख्त हुक्म थे की वे परदे के उस पार ही रहे . यह भी ताकीद थी की जिस केस में वे ख़ामोशी अख्तियार कर जाएँ ,उसे ख़ारिज समझा जाये. इधर अधिकारी जोर जोर से मुकदमें की तफसील बयाँ कर रहे होते और उधर गिलानिजी चुप चाप सुरंग से होते हुए राजकुमारी के आगोश में पहुँच कर शराब और शबाब की चुस्कियों में डूबे रहते. कभी कभी राजकुमारी भी दीवानखाने में उनके पास आ जाती और वहीँ नाभा की बंद बोतल खुल जाती. परदे के उस पार किसी को पता ही नहीं चलता की इधर क्या ही रहा है.
धीरे धीरे सब चौपट होने लगा.खूंखार कातिल दीवान जी की 'खामोशी' पर बरी हो जाते और बेगुनाह फांसी पर लटक जाते. खजाना ख़ाली होने लगा. वजीर दुखी हो चले और जनता में आक्रोश फैलने लगा. आखिर एक दिन सभी वज़ीरों ने मिल कर गिलानी और गोबिंद कौर को रंगे हाथो बघी में एक साथ सरहद के पार पकड लिया. राजकुमारी को महल में बंदी बना दिया और गिलानी को राज्य की सीमन से बाहर का रास्ता दिखा दिया.
अब हमारे मनमोहन और चिदम्बरम जी तो इन ग्लानी जी को महज़ सबूत ही मुहया करवा सकते हैं. जोर जोर से अपना मुकदमा सुनाने और डोजियर पहुँचाने के सिवा इनकी औकात ही क्या है, कि ग्लानी को उसकी औकात दिखा सकें चाहे कितने ही निर्दोष ग्लानी कि दहशतगर्दी का हर रोज़ शिकार होते रहे.

गुरुवार, 6 मई 2010

आन्ध्र का अँधा अल्पसंख्यक प्रेम...

शायद अल्पसंख्यक तुष्टिकर्ण को ही सेकुलरवाद मानती है आन्ध्र प्रदेश की कांग्रेस सरकार । जब से सोनिया जी के वरद हस्त से कोनिजेती रोसैआह प्रदेश के मुख्या मंत्री के सिंहासन पर आरूढ़ हुए हैं तब से प्रदेश की मुस्लिम और इसाई प्रजा की पौबारह है। प्रदेश को ९५% कर हिन्दू बहुसंख्यक आबादी द्वारा दिया जाता है पर इस कर का एक बड़ा भाग १०% मुस्लिम और इसाई अल्पसंख्यक समुदाए पर ही खर्च कर दिया जाता है।
आन्ध्र जनसँख्या में देश का पांचवा बड़ा राज्य है जहाँ ८९.०१ % हिन्दू, ९.१७ % मुस्लिम और १.५५% इसाई आबादी है राज्य में मुख्यत तेलगु भाषा का प्रचालन है और ८.६३% लोग उर्दू बोलते हैं। चावल यहाँ का मुख्या उत्पादन है इसी लिए इसे राईस बोउल अफ इंडिया भई कहा जाता है।
राज्य के हिन्दू धर्म संस्थानों पर सरकार का कब्ज़ा है ,जब की मुस्लिम और इसाई धरम स्थान इन सम्र्दायों के अपने हाथ में है। हिन्दू धर्मस्थानो से होने वाली आय भी अल्पसंख्यक धर्म स्थानों को आबंटित कर प्रदेश की सेकुलर सरकार शायद अपने सेकुलर धरम के पालन में लगी है। इसाईओं को जेरुसलम ,इजराइल और पलेस्तीन के अपने धरम स्थानों की यात्रा के लिए आन्ध्र सरकार द्वारा २५०००/- सब्सिडी दी जाती है। १५०००/- मुस्लिम और इसाई अल्पसंख्यको को निकाह/मैरिज अनुदान दिया जाता है। अब तो मुस्लिम भाइयों को ४% आरक्षण शिक्षण संस्थानों में भी दे दिया गया है जब की संविधान में धर्म आधारित आरक्षण अमान्य है। २००८ में आन्ध्र सरकार द्वारा उर्दू अकादमी को ३० करोड़ की ग्रांट अता की गई और राष्ट्र भाषा हिंदी और संस्कृत के लिए कुछ भी नहीं। और तो और मिड डे मील के लिए भी केवल मदरसों को चुना गया । चुर्चों द्वारा संचालित स्कूलों में अध्यापकों की नियुक्ति भी सरकारी खर्चे से की जाती है। शायद मुख्या मंत्रीजी अपनी आका सोनिया जी का आभार प्रकट कर रहे हैं। आन्ध्र के अल्पसंख्यको के प्रति इस अंधे प्रेम को देख कर तो यही लगता है कि सेकुलरवाद का अर्थ ही बहुसंख्यक हिन्दू समाज कि कीमत पर अल्पसंख्यकों का तुष्टि कारन है ???????

बुधवार, 5 मई 2010

वहां जेहाद की फैक्ट्री... यहाँ कारखाना.

आतंक का कारखाना पाक हर वर्ष १०००० जेहादी तैयार करता है ताकि दुनिया में इस्लाम का परचम बुलंद किया जाये। वाशिंगटन टाइम्स के एडिटर एट लार्ज अरनौद बोर्क्ग्रेव ने रहस्योदघाटन किया है कि पाक के ११००० मदरसों से पांच लाख ऐसे तालिबान युवक मज़हबी तालीम लेकर निकलते हैं जिनकी आयु १६ साल के करीब होती है। इन युवकों को मात्र उलेमा या इमाम के सिवा कोई और नौकरी की योग्यता न होने के कारन ये बड़ी आसानी से कट्टपंथी जेहादी संगठनों कि पनाह में पहुँच जाते हैं। इन्हें इन आतंकी शिविरों में अमेरिका, भारत और इजराइल के खिलाफ भड़काया जाता है। इन संगठनों को पाक आर्मी का पूरा संरक्षण प्राप्त है। कियोंकि पाक आर्मी का मोटो ही इस्लाम कि राह में विश्वास ,मज़हब और जेहाद है। मिलटरी के प्रशिक्षण केन्द्रों में फौजी अफसरों को मिलट्री मैनुअल ऑन जेहाद में कुरान की युद्ध नीति पढाई जाती है।
इस जेहाद की फैक्ट्री से अमरीका आतंक के खिलाफ युद्ध की उमीद लगाए बैठा है। अमरीका के होश उड़ गए जब इसी फैक्ट्री का एक' कारतूस 'फैज़ल शेह्ज़ल नियु योर्क के ऍफ़ कनेडी हवाई अड्डे से दुबई भागने से पूर्व पकड़ा गया। यह आतंकी पाक-अमेरिका का नागरिक था और पकिस्तान में आतंकी ट्रेनिंग और बम बनाने का प्रशिक्षण वजीरिस्तान से ले कर आया था।
हमारी सेकुलर सरकार भी आतंक के खिलाफ मैदान में है। पाक में आतंक की महज़ ११००० फैक्ट्रियां ( मदरसे) हैं और हमारे यहाँ ३,५०,००० जहाँ पर १६ साल तक के युवकों को इस्लाम की मज़हबी तालीम दी जाती है। ये युवक केवल मात्र इमाम और उलेमा की नौकरी के योग्य हैं, अर्थात किसी काम धंधे या सरकारी नौकरी के योग्य बिक्लुल नहीं। इन मदरसों के सुधार और आधुनिक शिक्षा के सरकार के सभी प्रयास इस्लाम के रहनुमा नक्कार देते हैं।
पाक को उपदेश देने से पहले हमारी सेकुलर सरकार , अपने गिरेबान में झाँक कर तो देख ले । मुस्लिम तुष्टिकरण के चलते हज यात्रिओं को हर साल ८२६ करोड़ की सब्सिडी देने वाले ये सेकुलर भारत के सफ़ेद पोश कब होश में आयेंगे' खुदा जाने'....