शनिवार, 14 मार्च 2015

बुद्धं शरणम् गच्छामि - राहुल शरणम् गच्छामि

बुद्ध राजपाठ छोड़ छाड़ कर शांति की तलाश में अज्ञातवास को चले गए थे ताकि दुखी मानवता के दुखों के निवारण हेतु चिंतन किया जाए   …आज एक और राज कुमार अज्ञात वासी हो गया फर्क महज़ इतना है कि बुद्ध राजपाठ  छोड़ कर गए थे और हमारे राज कुमार इस लिए गए हैं कि राजपाठ 'छूट ' गया  . बुद्ध मानवता के संताप के निवारण  संकल्प के साथ गए थे और राजकुमार राजपरिवार की डूबती नैया के लिए किसी ' तिनके ' की तलाश  में।
बुद्ध छठी शताब्दी में हुए  … तब न तो मिडिया था और न ही वी वी आई पी सिक्योरिटी  …फिर ज़ेड प्लस सक्योर्टी प्राप्त देश का भावी भविष्य कैसे अलोप हो गया  …पुलिस का चिंतित होना स्वाभिक था।  सो एक दरोगा जी राजकुमार को ढूंढते -ढूंढते पहुँच गए उनके कार्यालय , पूछने लगे 'गुमशुदा ' शख्स का हुलिया   .... आँखों का रंग  … बाल -बदरंग  …। दरबारी बुरा मान गए  …राजकुमार की निजता में तांक -झाँक करने की ऐसी जुर्रत और वह भी एक अदद दारोगा की।
बुद्धं शरणम् गच्छामि - राहुल शरणम् गच्छामि