अष्टावक्र
कहते हैं विवेकानंद जब रामकृष्ण के पास गए व् परमात्माका प्रमाण पूछा तो रामकृष्ण ने उन्हें अष्टावक्र गीता पढ़ने को दी कि तुम इसे पढ़ मुझे सुनाओ। मेरी दृष्टि कमजोर है। कहते हैं विवेकानंद पुस्तक को पढ़ते पढ़ते ही ध्यानस्थ हो गए व् उनके जीवन में क्रांति घट गई। ....
मनुष्य भी चार प्रकार के होते हैं - ज्ञानी , मुमुक्षु,अज्ञानी और मूढ़ . ज्ञानी वह है जिसे ज्ञान प्राप्त हो चूका है , मुमुक्षु वह है जो ज्ञान प्राप्ति के लिए लालायित है, उसे हर कीमत पर प्राप्त करना चाहता है। अज्ञानी वह जिसे शास्त्रों का ज्ञान तो है किन्तु उपलब्धि के प्रति रूचि नहीं रखता तथा मूढ़ वह है जिसे अध्यात्म-जगत का कुछ भी पता नहीं है , न जानना ही चाहता है। वह पशुओं की भांति अपनी शारीरिक क्रियाओं को पूर्ण मात्र कर लेता है। वह शरीर में ही जीता है। इनमें मूढ़ से अज्ञानी श्रेष्ठ है , अज्ञानी से मुमुक्षु श्रेष्ठ है। ज्ञानी सर्वोत्तम स्थिति में है।
आत्म ज्ञान के लिए निर्विकार चित्त व् साक्षी भाव चाहिए। महर्षि पतंजलि ने कहा है "योगश्चित्तवृतिनिरोध " (चित्त वृतियों का निरोध ही योग है ) इन चित्त की वृतियों को रोकने की भिन्न -भिन्न विधियां हैं किन्तु उच्च बोध होने पर इन विधियों की आवश्यकता नहीं पड़ती। भगवान बुद्ध ने भी कहा है कि " जो समझ सकते हैं उन्हें मैंने बोध दिया है व् नासमझों को मैंने विधियां दी हैं
राजा जनक में बोध था , विद्वान थे,समझ थी अत: अष्टावक्र ने उन्हें कोई विधियां नहीं बतायी। सीधे बोध को छुआ व् जनक जाग उठे।