शुक्रवार, 23 अप्रैल 2010

मुफ्त का पानी- मीटर का पानी

केंद्रीय महाराष्ट्र का जिला ओस्मनाबाद देश का शायद पहला क्षेत्र है जहाँ 'बूँद बूँद पानी ' के महत्तव को समझा और पहचाना गया है. २००८ में यहाँ के किसानों को इजराईल भेजा गया था जहा से ये सिंचाई की ड्रिप व् स्प्रिंकल तकनीक की जानकारी हांसिल कर के आए . सिंचाई विभाग की मदद से इस तकनीक को अब इस क्षेत्र में चालु किया गया है. तरना मीडियम प्रोजेक्ट द्वारा पानी की व्यवस्था मीटर द्वारा की गई है. ड्रिपिंग और स्प्रिन्क्लिंग पद्धति से अंगूर और गन्ने की खेती में कम से कम पानी का प्रयोग संभव हो पाया है. रंचना कंस्ट्रक्शन कंपनी द्वारा २३ करोड़ की लगत से १६ किलोमीटर पानी की पाईप लाईन डाली गई है. इजराईल से आयात किये मीटरों के ज़रिये किसानों को पानी की सप्लाई की जाती है. इस प्रकार देश में पहली बार बहुमूल्य पानी का 'लेखा जोखा ' रखने की कवायत अमल में लाई जाएगी.
दूसरी ओर है देश का 'धान का कटोरा' - पंजाब जहाँ आज भी मुफ्त बिजली पानी की सुविधा के चलते पानी की बेइंतिहा बर्बादी का चलन बदस्तूर जारी है. जो फसल २०० लिटर पानी से हो सकती है वहां हम १००० लिटर पानी जाया कर देते हैं. राज्य की अधिकाँश खेती भूजल पर निर्भर है और ११ लाख नलकूप रात दिन धरती के सीने से जल दोहन में व्यस्त है.यह चलन पिछले ५० साल से जारी है, जब से प्रदेश में हरित क्रांति का आगाज़ हुआ .परिणाम हमारे सामने हैं -पंजाब की आधी ज़मीं जल विहीन हुई जा रही है. हर वर्ष भूजल २ मीटर नीचे जा रहा है और वह दिन दूर नहीं जब यह रसातल में समा जायेगा. हमारे यहाँ पंजाबी में एक कहावत है ' जाट गुड की भेली तो दे दे पर गन्ने की पोरी नहीं देता.' यही तो हम पिछले आधे दशक से किये जा रहे हैं. गेहूं और चावल के रूप में न मालुम कितनी नहरों का पानी हम मुफ्त मुफ्त में निर्यात कर बैठे. क्योंकि बिजली और पानी की तो हमारी नज़रों में कोई कीमत ही नहीं. मुफ्त बिजली की प्रतिक्रिया में शहरी वोटरों ने भी मुफ्त मांग कर डाली . शहरी वोटों की खातिर कांग्रस की कप्तान सरकार ने शहरिओं को भी पानी मुफ्त कर दिया.मुफ्तखोरी की इस आदत के कारन हमने पानी के निरंतर गिरते हुए भूजल स्तर के भयंकर परिणामों के बारे में अभी तक नहीं सोचा. यह चलन अगर यूं ही बदस्तूर जारी रहा तो वह दिन दूर नहीं जब हम ' चुल्लू भर पानी' को तरसेंगे !