गुरुवार, 23 अप्रैल 2015

ग्यासुदीन गाज़ी पौत्र … पंडित नेहरू----- आज़ादी के परवाने ....... नेताजी

ग्यासुदीन गाज़ी पौत्र  … पंडित नेहरू
आज़ादी के परवाने  ....... नेताजी

          एल आर गांधी

नेहरू ताउम्र , नेताजी का नाम आज़ादी की लड़ाई में अपना सब कुछ न्योछावर करने वाले आज़ादी के परवानों की सूची में से मिटाने  में लगे रहे  …। विधि का विधान देखो आज उन्ही का परिवार 'नेहरू' को भी भूल गया है  .... याद रक्खे भी क्या   … छल - कपट ---जासूसी और वह भी क्रांतिकारिओं की !
नेहरू का मानना था कि वह शिक्षा के आधार पर अँगरेज़ हैं , विचारों से अंतर्राष्ट्रीय , उत्पत्ति व् सभ्यता से मुसलमान और हिन्दू केवल एक पैदायशी दुर्घटना वश ! नेहरू को अपनी संस्कृति -विरासत और सनातन -समृद्ध भारतीयता पर किंचित मात्र भी मान नहीं था  .... शायद इसके पीछे उनके पूर्वजों का यथार्थ छिपा था कि कैसे उनके दादा जान अंग्रेज़ों से जान बचाने के लिए  ग्यासुद्दीन गाज़ी से गंगाधर नेहरू बन गए थे  .... ऐसे ही हमारे युवराज राहुल गांधी के दादा जान भी मियां  नवाब अली खान थे !  .... दुर्घटनावश हिन्दू होना तो इनकी राजनैतिक मज़बूरी है  …। नेहरू मियां यदि दुर्घटनावश हिन्दू ही थे तो अपने नाम के आगे' पंडित ' का लेबल लगाने की कौन सी मजबूरी थी !
नेताजी सुभाष चन्दर बॉस की शिक्षा बेशक यूरोपिय स्कूलों में हुई ,मगर राष्ट्र भक्ति और अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत व् धर्म के प्रति गहरी आस्था थी।  अंग्रेजी भाषा का उन्हें बहुत अच्छा ज्ञान था। प्रेज़िडेंसी कालेज के एक प्राध्यापक मि.ओटेन उनसे बहुत जलते थे  . ओटेन अक्सर भारतीय सांस्कृति और समाज को दकियानूसी बता कर मज़ाक उड़ाया  करते थे  … नेताजी ने उन्हें कई बार ऐसा बोलने से रोका   मगर  वह नहीं माने।  ऐसे ही एक दिन भारतीय संस्कृति को कोसते हुए प्रतिमाओं की पूजा पर बोलते हुए 'माँ दुर्गा ' के प्रति उन्होंने कुछ  अपमानजनक शब्दों का प्रयोग किया तो सुभाष बाबू का पारा सातवें आसमान पर पहुँच गया।
सुभाष बाबू ने उन्हें अपने शब्द वापस लेने को कहा , परन्तु जब मि.ओटेन और गुस्ताखी पर उतर आए , सुभाष बाबू  ने एक ऐसा झन्नाटेदार  तमाचा दे मारा , जिसकी गूँज कलकत्ता की गलियों से ब्रिटिश क्राउन तक लन्दन जा पहुंची।  सुभाष बाबू को कालेज छोड़ना पड़ा लेकिन इस के बाद मि ओटेन और उन  जैसों की बोलती बंद हो गई। आज़ादी न तो 'दुर्घटना वश ' मिलती है और न ही कायरों के  'अहिंसा 'प्रलाप से। आज़ादी का बूटा तो क्रांतिकारियों के खून से सींचा जाता है , तब स्वतंत्रता के फूल खिलते हैं
क्षमा शोभती उस भुजंग को ,
जिसके पास गरल हो  .
उसको क्या , जो विषहीन ,
दंतहीन, विनीत सरल हो।  

गुरुवार, 16 अप्रैल 2015

बापू - चाचा और नेताजी


 बापू - चाचा और नेताजी

     एल आर गांधी

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस  को इतिहास के गुमनाम पन्नों में दफन करने के 'काले-गोरे ' अंग्रेज़ों के षड्यंत्र पर से परत दर परत पर्दा उठने लगा है  …। यह षड्यंत्र माउंटबेटन ,उनकी मैडम और चाचा नेहरू के बीच रचा गया था  .... अँगरेज़ समझ गए थे कि हज़ारो शहीदों की शहादत के पश्चात अवाम के दिलोदिमाग में जो आक्रोश पैदा हो गया है और नेताजी सुभाष के आह्वान कि 'तुम  मुझे खून दो , मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा'  के बाद उनका भारत में अधिक देर टिकना संभव नहीं।  अंग्रेज़ नहीं चाहते थे कि आज़ादी का सेहरा क्रांतिकारिओं के सर बंधे। वे चाहते थे की सारी  दुनिया में यह प्रचारित हो के बापू की अहिंसा ,अवज्ञा और मानवीय संवेदना से मज़बूर हो कर उन्होंने भारत छोड़ा। क्रांतिकारिओं से सबसे बड़ा बदला यही होगा कि उनकी क्रांति का नामोनिशां विश्व और भारत के इतिहास के पन्नो से मिटा दिया जाए  ....
भारत की सत्ता हस्तांतरण की यह शर्त थी कि क्रांतिकारिओं को उग्रवादी प्रचारित किया जाए और सुभाष बाबू सरकार के हाथ १९९९ तक जब भी आएं तो उन्हें 'ब्रिटेन का युद्ध अपराधी ' करार देते हुए ,ब्रिटेन को सौंप दिया जाएगा।
इंग्लैण्ड के प्रधान मंत्री क्लिमैन्ट एटली ने सदन को सूचित किया कि - हमारा भारत के नेताओं  से  समझौता हो चूका है , जब भी सुभाष चन्दर बॉस ग्रिफ्तार होंगे , उन्हें ब्रिटेन को सौंप दिया जाएगा।  गुप्त फाइल १० ( आई : ए एन ए ) २७९ में स्पष्ट अंकित है  कि भारत सहित ५४ राष्ट्रमंडलीय देशो में से सुभाष बाबू कहीं भी पकडे जाएं , तो उन्हें फांसी पर चढ़ा दिया जाएगा या ब्रिटेन को सौंप दिया जाएगा।  लार्ड मौन्टबेटन के एक सचिव द्वारा लिखित पुस्तक लास्ट डेज़ आफ ब्रिटिश राज इन इण्डिया  में भी इस षड्यंत्र की जानकारी दी गई है।
नेता जी से एक बार पूछा गया कि इतने लोग गांधी जी से क्यों आकर्षित हैं  तो उन्होंने बहुत ही बेबाक उत्तर दिया  …। गांधी जी इतनी  भीड़ को इस लिए आकर्षित कर पाते  है कि वह स्वयं को एक फ़क़ीर के रूप में प्रस्तुत करते हैं।  अगर वह पश्चिमी में पैदा होते तो उन्हें शायद कोई नहीं पूछता।  अगर  रूस ,जर्मनी या इटली में पैदा हो कर अहिंसा से आज़ादी लेने की बात करते , उन्हें  किसी' पागलखाने ' में डाल दिया जाता  ……
चाचा नेहरू दो कारणों से नेताजी से  खार खाते  थे  .... एक तो नेताजी भारत के जनमानस पर एक - छत्र राज करते थे। वे कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर खड़े हुए   …… बापू के ख़ास नुमांइदे पट्टाभीसीतारमैया से २०३ मतों से विजयी हुए   .... बापू को कहना पड़ा  … यह मेरी हार है ' । नेताजी ने एक बार नेहरू को उनके कार्यकलापों के लिए इतनी डांट पिलाई की उन्हें दिन में तारे नज़र आने लगे   अपने एक पत्र में नेहरू को नेताजी ने खूब आईना दिखाया।  कुछ  अंश  … "मेरी इस बात को अच्छी तरह पल्ले बाँध लो।  तुम्हारा व्यवहार ठीक ऐसा है जैसा एक शुरू से ही अनुशासनहीन ,कुसंस्कारी बालक का।  तुम क्रोधित भी बहुत जल्द हो जाते हो।  बंदरों जैसी इस उछल कूद से बचो। " इसी कारन नेहरू जी २० साल तक नेताजी की जासूसी करवाते  रहे  .... ताकि गोरे  अंग्रेज़ों के साथ काले अंग्रेजों की हुई गुप्त संधि को परवान चढ़ाया जा सके  .... यह तो एक गुप्त फाइल का सच सामने आया है  .... बाकी गुप्त फाइलों पर से जब पर्दा उठेगा तो झूठ के सौदागरों के सब लंगर लंगोट
कुछ ऐसे पंजाबी अखौत जैसे हो जाएंगे !
सानु सज्जन उह मिले ,जिहड़े साथों बी समरत्थ
साढ़े टेढ़ लंगोटी , उन्हां  दे अग्गे पिच्छे   हत्थ



शनिवार, 4 अप्रैल 2015

शशि-धरा का लुका-छिपी महोत्सव
एल. आर. गाँधी
शशि- धरा की लुक्का छिपी का महोत्सव है आज . महोत्सव का श्रीगणेश सांय 3.45 पर होगा और सांय ७. १५ तक चलेगा . विश्व के प्राचीनतम प्रेमी इस महोत्सव के मुख्य पात्र हैं. अबकी शशि छिपेंगे और धरा सदैव की भांति ढूँढेंगी .... रवि ने मंच सञ्चालन का जिम्मा सम्हाल लिया है. पिछले कई दिनों से 'विधु' छिपने की रिहर्सल में मशगूल हैं .. जब देखो धुंध में लुका-छिपी के खेल में व्यस्त हैं और धरा भी धुंध में धुंधलाई आँखों से निशा में दूर तक अपने सखा'इंदु' को देखती है ...मानो जांच रही हो ..अबकी कहाँ छिपेगा ? फिर भूल गई की उसका यह सदियों पुराना अनुज -सखा तो सदैव उसके आँचल में ही आ छिपता . लो ' निशापति' छिप गए और धरा दबे पाँव अपने नन्हे चिर-सखा को ढूँढने निकल पड़ी. अपनी प्रियसी और उसके सखा के बीच के इस लुकाछिपी के खेल को 'रवि' चुपचाप निहार रहे हैं.
सदियों से शशि , धरा-दिनकर के सृष्टि सम्भोग के प्रत्यक्ष -द्रष्टा रहे हैं. निशापति के जाते ही दिनकर अपनी प्रियतमा को अपने आगोश में ले कर 'चिर सौभाग्यवती' भव का आशीर्वाद देते हुए ,अपनी प्रचंड किरणों से काम-क्रीडा में मस्त हो जाते हैं. रात होते ही निशापति थकी- हारी धरा को अपनी शीतल किरणों की चादर ओढा कर , अपने सखा धर्म का निर्वाह कर, मात्र ठंडी आहें भरने के सिवा और कर भी क्या सकते हैं. अपने मित्रवत प्रेम के इज़हार का इस साल 'इंदु' के पास आज यह प्रथम अवसर है. आज तो बस बता ही देंगे धरा को की वह किस कदर उसे बे-इन्तेहा प्यार करते हैं. लो शशि पूर्णतय छिप गए और धरा ढूंढ रही है ...शशि ने धरा को 'हीरे की अंगूठी ' दिखाई ..…… महज़ ४. ४३ क्षण के लिए …धरा अचरज में पड़ गई और शशि झेंप गए और शर्म से मुंह लाल हो गया . धरा ने आनन फानन में 'फ्रेंडशिप बैंड' भेंट किया और शशि ने अपनी चिर-सखा की यह भेंट स्वीकार कर राहत की सांस ली. रवि अपनी प्रियतमा के पतिव्रता आचरण पर भाव विभोर हो गए . इसके साथ ही लुका छिपी का विश्व समारोह सम्पूर्ण हुआ .
विज्ञानिक अपनी खुर्दबीने लिए इस महोत्सव से पृथ्वीलोक पर होने वाले 'अच्छे-बुरे प्रभावों की समीक्षा में व्यस्त हैं और धर्म भीरु हिन्दू ग्रहण से होने वाले दुष्प्रभावो को सोच का त्रस्त हैं. हमारी धर्म परायण श्रीमती जी ने सभी खाद्य- वस्तुओं में 'खुशा' का तिनका टिका दिया है. इसे कहते हैं डूबते को तिनके का सहारा . मंदिर के पंडित जी ने श्रीमती जी को आगाह कर दिया था कि आज शाम को मंदिरों के किवाड़ बंद रहेंगे . इस लिए देवीजी आज के देव दर्शन ग्रहण से पूर्व ही कर आयीं. ज्योतिविद धर्मभीरु आस्तिकों को चन्द्र ग्रहण से होने वाले दुश परिणामों से जागरूक करते हुए 'दान-पुन्य' के अमोघ अस्त्रों से अवगत करवा कर 'चांदी' कूटने में व्यस्त हैं . हम तो भई सोमरस की चुस्कियों संग , सृष्टि के प्राचीनतम प्रेमियों के इस लुकाछिपी महोत्सव को निहारने में मस्त हैं. निशापति का यह शर्म से लाल हुआ मुखारविंद सिर्फ और सिर्फ आज के इस महोत्सव में ही देखने को मिलता है , जब 'निशापति ' अपनी ही इज़हार ए मुहब्ब्त से शर्मसार हुए शवेत से सुर्ख हो जाते हैं.
यथार्थ के पक्षधर खगोलविद या फिर ईष्ट अनीष्ट की शंकाओं में डूबे ज्योतिषशास्त्री इस महोत्सव के प्रेम प्रसंग को क्या समझें ?