सोमवार, 5 जुलाई 2010

बदतर शहर दिल्ली.....

कहते हैं भीड़ के आँखें नहीं होती- सिफ आवाज़ होती है. कुछ ऐसी ही भीड़ से दो चार है हमारी दिल्ली !दिल्ली को अब विश्व के सबसे भीड़ भाड़ वाले बीस देशों में पांचवां स्थान प्राप्त है। पहला नंबर चीन की राजधानी बीजिंग को प्राप्त है ,दुसरे पायदान पर है मैक्सिको ,तीसरे पर जोहान्सबर्ग और चौथे पर रूस की राजधानी मास्को.... फिर भी हमारे राजनेता दिल्ली को विश्व स्तरीय नगर मानते हैं। हमारी शीला जी ने तो दिल्ली को कामन वेल्थ खेलों से पहले ही ओलम्पिक स्पर्धा के लिए तैयार करार दे दिया। अब शीला जी आगामी कामनवेल्थ खेलों से पहले दिल्ली की भीड़ को कौनसा चश्मा पह्नायेंगी . यह तो तभी मालूम होगा जब ५० देशों के खिलाड़ी दिल्ली की भीड़ से रूबरू होंगें ।
२००१ में दिल्ली की आबादी १३,७८२,९७६ थी जो २००७ में बढ़ कर १.७० करोड़ को पार कर गई इस प्रकार हर साल लगभग ६ लाख महमान दिल्ली को अपना आशियाना बनाने के सपने संजोए ,यहीं के हो कर रह जाते हैं ।
एसा भी नहीं कि दिल्ली को देश का दिल बनाने वालों ने इस विकराल दक्ष प्रशन का कोई उत्तर ही न सोचा हो। १९६२ में जब दिल्ली का पहला मास्टर प्लान बनाया गया तब इस समस्या पर भी खूब माथा पच्ची की गई। दिल्ली से सटे राज्यों के प्रमुख शहरों के विकास की योजनाएं घडी गईं , मगर अमल किसी भी योजना पर नहीं किया गया। वी. पी. सिंह के साशन काल में नेशनल कैपिटल रीज़न प्लान बनाया गया और दिल्ली के पड़ोसी राज्यों के पांच पर्मुख शहरों का चयन कर काउंटर मेग्नेट क्षेत्रो को चिन्हित किया गया। यू. पी.के नगर बरेली, एम्.पी के ग्वालिअर ,हरियाणा के हिसार ,राजस्थान के कोटा और पंजाब के पटियाला को पहले चरण में विकसित करने का निर्णय लिया गया। यह योजना १९८५ में बनाई गई और आज २५ साल बीत जाने और करोड़ों रूपए स्वाहा करने के बाद भी वही' ढाक के तीन पात' । योजना के दूसरे चरण में ३ नए शहरों को इस योजना में शामिल कर लिया गया.ये नए शहर हैं हरियाणा का अम्बाला , उत्तर खंड का देहरादून और यू.पी.का कानपुर। वक्त के साथ साथ इस योजना में स्वाहा होने कि धान राशि भी बढती चली गई। नेहरूजी कि ११ वीं पांच वर्षीय योजना में इस के लिए १५००० करोड़ रूपए खर्चे जाएंगे । एशियन डवेलपमेंट बैंक और वर्ल्ड बैंक से ८००० करोड़ कर्जा भी लिया जायेगा।
इस योजना पर विशेषज्ञों की भी राय ली गई। विशेषज्ञों की मानें तो इस योजना को फ़ौरन बंद कर देना चाहिए क्योंकि यह योजना दिल्ली कि ओर बढ़ रहे जन सैलाब को रोकने में पूर्णतया नाकाम रही है। क्योंकि कि इन शहरों से' दिल्ली दूर है '.फिर भी योजनाएं बदस्तूर ज़ारी हैं क्योंकि इन कि सफलता और असफलता से किसी का कोई सरोकार नहीं ... सरोकार तो है महज़ इन योजनाओं पर खर्च होने वाली विपुल धन राशि से ,जिस पर हमारे आधुनिक 'रजवाड़ों ' की गिद्ध दृष्टि लगी है। देश का दिल दिल्ली दिन ब दिन बद से भी बदतर शहर होता है तो हो जाए....