गुरुवार, 26 अगस्त 2010

सांप को दूध.....

सांप को दूध ..........राष्ट्रीय व्यसन ...
एल. आर. गाँधी.
सांप को दूध पिलाना भी उसका विष बढ़ाना है ; न कि अमृत !
भारत के महान नीति शास्त्र आचार्य विष्णुगुप्त 'चाणक्य के ये शब्द हमारे
राजनेता पूर्णतया भुला चुके हैं . यही कारन है कि सांपों को दूध पिलाने की
समाजिक प्रथा को ' राजनैतिक राष्ट्रीय व्यसन ' बना डाला !

हमारे मनमोहन जी ने पाक की बाढ़ त्रासदी से त्रस्त हो कर पाक को करोड़ों
रूपए की सहायता की घोषणा पर पहले तो पाकिस्तान ने 'अनिच्छा' जाहिर की
किन्तु विश्व समुदाय की आलोचना से बचते हुए भारत की सहायता राशी ऐसे सवीकार
की जैसे बहुत बड़ा एहसान कर रहा हो - मानवता के नाते विश्व भर के देशों
द्वारा पाक के बाढ़ पीड़ितों की सहायता के लिए अपने 'सहायता कर्मी ' भेजे
जा रहे है. पाक सरकार ने इन के लिए तीन महीने का विशेष वीजा जारी करने के
आदेश दिए गए है और इसके साथ ही 'भारत और इजराईल ' के सहायता कर्मियों को यह
वीजा न जारी करने के हुकम दिए गए हैं.

भारत की तो छोडो - अमेरीका ने तो ९/११ के आतंकी हमले के बाद 'इस्लामिक
आतंक' से लोहा लेने के लिए पाक को अपना साथी मानते हुए करीबन १८ बिलियन
डालर की बारी भरकम सहायता राशी लुटा दी फिर भी आधे से अधिक पाकिस्तानी यही
मानते हैं की अमेरिका ने कोई सहायता नहीं की -गत माह पिऊ रिसर्च सेंटर
द्वारा करवाए गए सर्वेक्षण में तो यही तथ्य उभरा है. ओबामा प्रशासन की इस
सर्वेक्षण ने नींद ही उड़ा दी है. क्योंकि अमेरीकी प्रशाशन अफगान वार और
इस्लामिक आतंक के खिलाफ लड़ाई में पूरंत्य पाक पर ही निर्भर है. गत माह
अपनी पाक यात्रा पर आई स्टेट सेक्टरी हिल्लेरी क्लिंटन की खीज उनके इन
शब्दों में साफ़ नज़र आती है- ' हम ऐसे देश को सहायता क्यों भेज रहे है
जिसकी उसे ज़रूरत ही नहीं ' . पाक में सभी अमेरीका से नफरत करते हैं - यह
कहना है ७१ वर्षीया ठेकेदार शाह का. पिऊ के सर्वे में १० में से ६
पाकिस्तानी अमेरीका को अपना शत्रु मानते है जब की १० में से केवल मात्र १
ने उन्हें अपना साथी मानता .

अब हमारे मनमोहन प्यारे 'दुश्मन नंबर एक ' देश से क्या तवक्को रखते हैं .
बार बार पाक के आगे झुक कर हमने अपनी छवि एक ' बनाना स्टेट' की बना डाली
है. यह सिलसला पिछले ६३ साल से मुसलसल ज़ारी है. बंटवारा होते ही पाक फौज ने
कबाईलियों के वेश में कश्मीर पर हमला कर एक बड़ा भू भाग हथिया लिया. हमारी
फौजें उन्हें पीछे धकेल रहीं थीं कि हमारे चाचा नेहरु ने इकतरफा युद्ध
विराम कर यू.एन.ओ . का दरवाज़ा जा खटखटाया. १३ जनवरी १९४८ को पटेलजी की पहल
पर केंद्रीय केबिनट में फैसला किया गया की जब तक पाक कश्मीर ख़ाली नहीं
करता उसको दिए जाने वाली ५५ करोड़ की राशि रोक ली जाए. अब हमारे बापू जी
अड़ गए -पाक को ५५ करोड़ दो वर्ना मैं चला 'अनशन' पर . केंद्रीय केबिनेट को
अपना यह फैसला उसी शाम वापिस लेना पड़ा. पाक उस वक्त आर्थिक रूप से
'कंगाल ' था और ५५ करोड़ बहुत बड़ी रकम थी . भारत का रक्षा बज़ट उस वक्त ९३
करोड़ था. हमारे राष्ट्र पिता द्वारा अपने प्यारे पाक को दिलवाई गई यह
रकम आज ११४९५०००००० रूपए बनती है. इस से भारत पर 'बनाना स्टेट' का ठप्पा तो
लगा ही इस के साथ साथ सदैव के लिए पाक अधिकृत कश्मीर पर हमारा दावा भी
कमज़ोर हो गया. कश्मीर समस्या के नाम पर हुए खून खराबे और हजारों जवानो की
शहादत और कश्मीरिओन को खुश करने पर कर दाताओं का करोड़ों रूपया जो केंद्र
सरकार ने लुटाया वो अलग. फिर भी चाचा के कश्मीरी भतीजे पाक का झंडा उठाए
'भारत' से आजादी.... के पत्थर बरसा कर 'सेकुलर शैतानो' का धन्यवाद कर रहे
हैं.

जिन्ना ने देश का बंटवारा 'मुसलमानों के लिए अलग वतन' के आधार पर करवाया था
और इसी तथ्य को आधार मान कर 'मुस्लिम जनसँख्या 'के अनुपात से पाक को भारत
का भूखंड दिया गया . यथार्थ में सिर्फ आधे मुसलमान ही पाक गए और आधे
मुस्लिम भाई गाँधी-नेहरु के सेकुलर विचारों से प्रभावित हो कर यहीं के हो
कर रह गए. क्या नेहरु जी जब पाक अधिकृत कश्मीर वापिस लेने यू.एन.ओ. 'अर्जी'
देने गए क्या उन्हें कश्मीर के साथ साथ अपने मुस्लिम भाईओं के लिए पाक को
बक्शी गई आधी ज़मीन पर अपना दावा नहीं करना चाहिए था.... ज़ाहिर है हम चूक गए
.. और इन सेकुलर शैतानो के हाथों 'बनाना स्टेट' अब ''चितरी वाले केले' की
शक्ल अख्त्यार करता जा रहा है. कहते हैं बाढ़ में सभी सांप अपनी बिलों से
बाहर आ जाते हैं और उन्हें डसते हैं जो उनके लिए दूध के कटोरे लिए खड़े हैं
!!!!!