सोमवार, 5 अप्रैल 2010

अब 'भूख मिटाओ' योजना

सोनिया जी की सरकार की गरीबी रेखा मापने की भागीरथ योजना पिछले ९ सालों से निरंतर जारी है. गरीबी रेखा है कि हनुमान जी कि पूंछ जो नपने का नाम ही नहीं लेती ! जितना नापो उतनी ही और बढ़ जाती है.
अब सरकार के आला अफसरों ने नाप तोल कर बता दिया कि भई मात्र ३०० मिलियन गरीब गुरबे बचे हैं हमारे देश में . एक राष्ट्रीय समाचार पत्र को भनक लग गई कि गरीबी रेखा नप गई...निकल पड़ी पत्रकारों कि फौज अपने अपने गज-मीटर उठा कर.हर पत्रकार ने अपनी अलग मैपाइश से सरकारी लम्बाई कि हवा निकाल के रख दी. पत्रकार बिरादरी कि पैमाइश सरकारी माप तोल से मीलों आगे निकल गई. अल्लाहबाद के एक गाँव में एक बच्ची की मिटटी खाते अखबार में फोटो देख सोनिया जी सन्न रह गईं . फ़ौरन फरमान जारी कर दिया अपने खज़ाना मंत्री प्रणब बाबू को ' रोटी एक मौलिक अधिकार' का बिल बनाया जाये.
माया जी को न सही फुर्सत अपने सफ़ेद हाथिओं से. मगर सोनिया जी ने तो ठान रखी है अपनी सासू माँ जी के गरीबी हटाओ के ४० साल पुराने सपने को साकार करने की बैठा दिया अपने आठ रत्नों को एक गोल मेज़ पर और साफ़ साफ़ कह दिया ! अब की बार ऐसा बिल तैयार कर के उठाना जिस से 'गरीब को रोटी का मात्र अधिकार ही नहीं ,रोटी भी मिलनी चाहिए ! माया जी के सब से ' खुशहाल ' राज्य में भूखे बच्चे मिटटी खा कर पेट भर रहे हैं. और मात्र ५८% सरकारी अनाज गरीबी रेखा से नीचे जीवित लोगों तक पहुँचाया जा रहा है.फिर भी इसे २५ किलो से बढ़ा कर ३५ किलो करने की योजना पर विचार हो रहा है. मिटटी खा कर बच्चों की आँखें सूज गईं हैं और पेट, लीवर और किडनी बढ़ गए हैं और सरकारी स्वस्थ्य सेवाओं के अभाव में वे मृत्यु के आगोश में समाते जा रहे हैं.
अब बेचारी सरकार भी करे तो क्या करे ! चाचा नेहरु जी के बताये रस्ते पर चलते हुए ,एक से एक बढ़िया और विशाल योजनाएं बना तो रही है. ६ साल से छोटे मासूमों को पौष्टिक आहार खिला कर स्वस्थ भारत के निर्माण की महती योजना पर साल २०१०-११ के लिए ७८०७ करोड़ रुपये अलग से रख छोड़े हैं , तांकि १.४ मिलियन केंद्र खोल कर देश का भविष्य संवार दिया जाये . बचों को पढ़ते पढ़ते भूख लग जाती है.अब सरकार ने इसका भी ख़ास ख़याल रखते हुए मिड डे मील योजना के लिए ९४४० करोड़ की धन राशि दे दी है. बच्चों के लिए ही नहीं बड़ों के लिए भी योजनायें हैं. वृधो, विधवाओं और अप्पंगों की पेंशन के लिए इस वर्ष ५७१० करोड़ का प्रावधान है. देश के हर गरीब से गरीब के मुंह तक निवाला पहुँचाने की सबसे बड़ी योजना 'पी .डी .एस . 'सार्वजानिक वितरण प्रणाली के लिए ५५,५७८ करोड़ की विपुल राशि मंजूर है. अब इस निवाले को रस्ते में ही 'सरकारी गिद्ध और डिपो होल्डर चूहे गटक जाएँ तो बेचारी सरकार का क्या दोष है. इसके बाद सबसे बड़ी योजना है नरेगा जिसके लिए ४०,१०० करोड़ खर्च कर सरकार हर गरीब को कम से कम १०० दिन का काम काज मुहैया करवाने की गारंटी देने जा रही है.
सुबह के अखबार में सरकार की इन 'दुःख निवारण चाचा नेहरु योजनाओं ' को पढ़ कर मैं देश के पालन हार महां पुरुषों और महा मनीषियों की चिंताओं से चिंतित हो रहा था की श्रीमती जी ने आवाज़ लगाईं 'सुनते हो ..अब अखबार ही पढ़ते रहोगे की कोई और काम धंधा भी करोगे... अभी तक 'गुड्डू' नहीं आई ! मैं सफाई कर रही हूँ.. नाश्ता बना लो.. हमारे श्रीमती जी भी बस...यहाँ देश की सोच रहे हैं और इन्हें काम वाली की पड़ी है. थोड़ी देर बाद 'गुड्डू' आ गई -हाथ में घासलेट की ख़ाली बोतल लटकाए और देवी जी से बतिया रही.. बीबी जी आज घास लेट नाही मिला. घर पर सभी ९ के ९ मानस भूखे बैठे हैं. डीपु वाला बाबू बोले हैं...घासलेट की ब्लैक बढ़ गई ..पहले २५ में देता था अब ३० मांग रहा है और मेरे पास तो बस..... मैं पूछ बैठा ..अरे आप लोगों के पास राशन कार्ड नहीं? गुड्डू बोली ..वह कहाँ मिळत है बाबूजी ????????