बुधवार, 9 जुलाई 2014

 अष्टावक्र गीता 

एल  आर  गांधी   


ज्ञानी मृत्यु के समय भी हँसता है , मूढ़ ज़िंदा रहते भी रोता है।  ज्ञानी के पास कुछ नहीं होते  भी आनंदित रहता है , अज्ञानी के पास सब कुछ होते हुए भी दुःखी रहता है।  ज्ञानी कर्म को भी खेल समझता है , अज्ञानी खेल को भी  कर्म समझता है। ज्ञानी संसार को भी नाटकवत्  समझता है किन्तु अज्ञानी नाटक और स्वपन को भी भी वास्तविकता समझता है  . ज्ञानी व् अज्ञानी के कर्मों में समानता होते हुए भी दृष्टि में अंतर है।   

(अष्टावक्र गीता ४/१)