राष्ट्र विरोधी कुष्टमानसिकता
एल आर गांधी
गांधी -नेहरू का बोया बबूल का बूटा 'वट वृक्ष ' बन चूका है ..... पिछले साठ बरस में इसकी 'कुष्ट मानसिक जड़ें ' सारे देश में इस कदर फ़ैल चुकी हैं कि बाहरी शत्रु इनके आगे बौने पड गए हैं ..... इसका साक्षात प्रमाण जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी प्रांगण में वाप पंथी ,कांग्रेस समर्थक छात्र संगठनो द्वारा राष्ट्र विरोधी प्रदर्शन है ,जिसमें भारत के खिलाफ और पाकिस्तान और आतंकवादियों के समर्थन में नारे लगाए गए और प्रदर्शन किया गया। सबसे शर्मनाक बात तो यह है की अधिकाँश टीवी चैंनल और विपक्ष के नेताओं ने इन राष्ट्र विरोधी छात्रों का समर्थन किया।
नेहरू -गांधी ने ऐसा राष्ट्र द्रोह का बीजारोपण किया कि यह रोग देश को सही मार्ग दिखलाने वाले शिक्षा संस्थानों में भी फ़ैल गया - नेहरू के नाम पर स्थापित विश्वविद्यालय इसका जीता जगता दृष्टांत है .... देश द्रोह की नींव बापू 'ढोंगी -बूढा '(नेहरू ही के अनुसार) ने रखी। १३ जनवरी १९४८ को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने पटेल की पहल पर एक बिल पास जिसमें पाकिस्तान को देय ५५ करोड़ की देनदारी पर रोक लगा दी गई ... क्योंकि पाकिस्तान ने एक तिहाई कश्मीर पर अवैध कब्ज़ा कर लिया था ताकि पाक पर दवाब बनाया जा सके .... बापू को मंत्रिमंडल का यह निर्णय नागवार गुज़रा और वे कोप भवन में जा बैठे ...उसी शाम को मंत्रिमंडल को बापू के दबाव में अपना फैसला वापिस लेना पड़ा। ..पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति दिवालिया जैसी थी। .. ५५ करोड़ मिलते ही ब्रिटेन से हथियार खरीद लिए ...भारत का रक्षा बजट उस वक्त महज़ ८३ करोड़ था।
हमारी सेनाएं पाक से कश्मीर खाली करवा रहीं थी ,मगर नेहरू ने १ जनवरी को युद्ध बंदी की घोषणा कर दी और कश्मीर मसला यु एन ओ में ले गया .... कश्मीर के मुल्लो को खुश करने के चक्कर में धारा ३७० के तहत कश्मीर को विशेष दर्ज़ा दे डाला ..... शेख अब्दुल्ला के झांसे में आ कर कश्मीर के लाल चौक से कश्मीरिओं को खुदमुख्तारी का हक़ देने की घोषणा तक कर डाली ..... अब जे इन यु के वाम पंथी छात्रों के 'आज़ादी ' के नारों में और नेहरू की घोषणाओं में क्या अंतर है ...
चीन को तिब्बत तश्तरी में सजा कर दिया .... देश का रक्षामंत्री एक वाम पंथी कृष्णमेनन को बना दिया ,जिसने फ़ौज़ के लिए जीपों की खरीद में ८० हज़ार का घोटाला किया ..... हम चीन से युद्ध में हज़ारो मील भूमि गवा बैठे ... सारी संसद कृष्णमेनन का इस्तीफा मांग रही थी ,मगर नेहरू अपने चहेते के साथ खड़े थे ! मेनन नेहरू के पुराने खैरख्वाह थे ,जो इंदिरा और फ़िरोज़ खान को घेर कर तीन मूर्ती भवन लाए ,जब उन्होंने ब्रिटेन की
एक मस्जिद में मेमुना बेगम बन कर निकाह कर लिया था , गांधी ने दोनों का वैदिक रीती से पूण: विवाह किया और 'गांधी ' नाम दिया .....
गांधी -नेहरू ने भारत को अपने बाप की जागीर समझ रखा था ... अपने निजी लाभ और नाम के लिए देश में
राष्ट्र विरोधी ताकतों को पालने -पोसने में कोई कसर नहीं छोड़ी !
एल आर गांधी
गांधी -नेहरू का बोया बबूल का बूटा 'वट वृक्ष ' बन चूका है ..... पिछले साठ बरस में इसकी 'कुष्ट मानसिक जड़ें ' सारे देश में इस कदर फ़ैल चुकी हैं कि बाहरी शत्रु इनके आगे बौने पड गए हैं ..... इसका साक्षात प्रमाण जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी प्रांगण में वाप पंथी ,कांग्रेस समर्थक छात्र संगठनो द्वारा राष्ट्र विरोधी प्रदर्शन है ,जिसमें भारत के खिलाफ और पाकिस्तान और आतंकवादियों के समर्थन में नारे लगाए गए और प्रदर्शन किया गया। सबसे शर्मनाक बात तो यह है की अधिकाँश टीवी चैंनल और विपक्ष के नेताओं ने इन राष्ट्र विरोधी छात्रों का समर्थन किया।
नेहरू -गांधी ने ऐसा राष्ट्र द्रोह का बीजारोपण किया कि यह रोग देश को सही मार्ग दिखलाने वाले शिक्षा संस्थानों में भी फ़ैल गया - नेहरू के नाम पर स्थापित विश्वविद्यालय इसका जीता जगता दृष्टांत है .... देश द्रोह की नींव बापू 'ढोंगी -बूढा '(नेहरू ही के अनुसार) ने रखी। १३ जनवरी १९४८ को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने पटेल की पहल पर एक बिल पास जिसमें पाकिस्तान को देय ५५ करोड़ की देनदारी पर रोक लगा दी गई ... क्योंकि पाकिस्तान ने एक तिहाई कश्मीर पर अवैध कब्ज़ा कर लिया था ताकि पाक पर दवाब बनाया जा सके .... बापू को मंत्रिमंडल का यह निर्णय नागवार गुज़रा और वे कोप भवन में जा बैठे ...उसी शाम को मंत्रिमंडल को बापू के दबाव में अपना फैसला वापिस लेना पड़ा। ..पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति दिवालिया जैसी थी। .. ५५ करोड़ मिलते ही ब्रिटेन से हथियार खरीद लिए ...भारत का रक्षा बजट उस वक्त महज़ ८३ करोड़ था।
हमारी सेनाएं पाक से कश्मीर खाली करवा रहीं थी ,मगर नेहरू ने १ जनवरी को युद्ध बंदी की घोषणा कर दी और कश्मीर मसला यु एन ओ में ले गया .... कश्मीर के मुल्लो को खुश करने के चक्कर में धारा ३७० के तहत कश्मीर को विशेष दर्ज़ा दे डाला ..... शेख अब्दुल्ला के झांसे में आ कर कश्मीर के लाल चौक से कश्मीरिओं को खुदमुख्तारी का हक़ देने की घोषणा तक कर डाली ..... अब जे इन यु के वाम पंथी छात्रों के 'आज़ादी ' के नारों में और नेहरू की घोषणाओं में क्या अंतर है ...
चीन को तिब्बत तश्तरी में सजा कर दिया .... देश का रक्षामंत्री एक वाम पंथी कृष्णमेनन को बना दिया ,जिसने फ़ौज़ के लिए जीपों की खरीद में ८० हज़ार का घोटाला किया ..... हम चीन से युद्ध में हज़ारो मील भूमि गवा बैठे ... सारी संसद कृष्णमेनन का इस्तीफा मांग रही थी ,मगर नेहरू अपने चहेते के साथ खड़े थे ! मेनन नेहरू के पुराने खैरख्वाह थे ,जो इंदिरा और फ़िरोज़ खान को घेर कर तीन मूर्ती भवन लाए ,जब उन्होंने ब्रिटेन की
एक मस्जिद में मेमुना बेगम बन कर निकाह कर लिया था , गांधी ने दोनों का वैदिक रीती से पूण: विवाह किया और 'गांधी ' नाम दिया .....
गांधी -नेहरू ने भारत को अपने बाप की जागीर समझ रखा था ... अपने निजी लाभ और नाम के लिए देश में
राष्ट्र विरोधी ताकतों को पालने -पोसने में कोई कसर नहीं छोड़ी !