गुरुवार, 14 जनवरी 2010

धरा- दिनकर का लुका छिपी महोत्सव ......

उतरायण के प्रथम दिवस आज दिनकर धरा संग लुक्का छिप्पी का खेल खेलेंगे .....
अनादी काल से एक पैर पर गोलाकार नृत्य में निमग्न धरा अपने प्रियतम की परिक्रमा में तल्लीन है और दिनकर भी निरंतर निहारते हुए अपनी उर्जा की पुष्प वर्षा कर उसे अक्खंड सौभाग्यवती भव की मंगल आशीष से आनंदित कर रहे हैं . भ्रमांड के इन प्रथम प्रेमिओं के सृष्टि सम्भोग का आज महोत्सव है. उत्सव का शुभारम्भ प्रात : ९.३५ और समापन सांय ३.३८ पर निश्चित हुआ और चाँद ने मंच संचालन का जिम्मा संभाल लिया है. धरा ने आँखें बंद कर लीं और दिनकर ने छुपने का स्थान ढूंढने की कवायत शुरू कर दी...... लो दिनकर छुप गए और धरा दबे पाँव अपने प्रियतम को ढून्ढ रही है. ...चाँद चुप चाप इस खेल को निहार ..ठंडी आहें भर रहा है. मानो तीनों आज सदिओं के बाद इतनी लम्बी छुट्टी पर पिकनिक माना रहे हैं ..पिछले कई दिनों से सूर्या देव इस उत्सव की तैयारी में लगे थे बादलों की ओट में छुपने का अभ्यास कर रहे थे और धरा उनके इस छुपा छुपी के खेल से पानी पानी हो पिंघल कर जमी जा रही थी .
वैज्ञानिक विशाल काय दूरबीनों से इस महापर्व को निहार रहे हैं और इस महा सृष्टि सम्भोग से पैदा होने वाली उथल पुथल की विवेचना में लगे हैं और हम लोग अपने परलोक की चिंता में ग्रस्त प्रदूषित-पवित्र ठन्डे जल की डुबकियां लगाने में व्यस्त हैं .....हम तो भई इतनी ठंडी में 'पंच-स्नान ' से ही संतुष्ट हैं .