रविवार, 5 अगस्त 2012

अन्ना और राजनैतिक ढोंग


 अन्ना और राजनैतिक ढोंग 
एल.आर.गाँधी. 

अन्ना के जनांदोलन  के राजनितिक -समर में कूदने पर दिग्गी मियां बहुत खुश हैं ...मानों अन्ना ने उनकी नसीहत मान ली और कूद गए राजनीति के मैदान में ...कल तक राजनीति को मैली गंगा कहने वाले आज खुद 'गंगा' में डूबने को तैयार हो गए हैं. क्योंकि दिग्विजय सिंह से अधिक कौन जान सकता है कि राजनीति के हमाम में तो सब नंगे हैं ....अन्ना को सर से पाओं तक भ्रष्टाचार में लिप्त कहने पर  अपनी किरकिरी करवा कर अलोप हो गए  कांग्रेसी प्रवक्ता मनीष तिवारी फिर से अपने पूरे रंग में हैं ...अन्ना के आन्दोलन को राजनीति से प्रेरित बता कर अपनी खुन्नस निकाल रहे हैं. 
यह वही अन्ना हैं जिन्हें हमारे 'चोरों के सरदार और फिर भी ईमानदार' .....'राजनैतिक चवन्नी' ने आज के महान गाँधी कह सलाम ठोका था ..और कांग्रेसी छुटभैयों के अपशब्दों के लिए 'सारी' फील किया था. उसी गाँधी वादी नेता के आमरण अनशन को इस प्रकार 'धिक्कार' दिया जैसे कोई  जिद्दी-ढोंगी' बूढा  सठिया गया हो.
कान्ग्रेसिओं की नज़र में गांधीवाद के बारे में ऐसा नजरिया कोई नई बात नहीं है. सत्ता के नशे में चूर इन सेकुलर शैतानों ने गाँधी के नाम का दोहन तो खूब किया मगर उनके एक भी आदर्श से इनका दूर दूर तक कोई वास्ता नहीं. इनके आदर्श तो आज 'राजमाता' सोनिया गाँधी है या फिर गाँधीवादी वयोवृद्ध नेता एन.डी.तिवारी , सुखराम, या बीरभद्र जैसे  भद्रपुरुष हैं .... तिवारीजी को तो दो दशक बाद पता भी चल गया कि वे एक रोहित तिवारी के नाजायज़ बाप हैं ...मगर इन गाँधी को बापू कहने वाले इन सेकुलर शैतानो या माडर्न गांधियों  को तो यह भी याद नहीं कि महात्मा गाँधी को 'राष्ट्र पिता' किसने बनाया था. इसमें इनका कोई दोष भी नहीं , जब गांधीजी को बापू कहने वाले पंडित जवाहर लाल ही उन्हें 'ढोंगी बूढा' मानते थे , तो इन छुटभैयों को क्या कहें. कनाडियन पी.एम् लेस्टर पियर्सन ने अपनी पुस्तक में इसका ज़िक्र किया है. १९५५ में जब वे नेहरूजी के निमंत्रण पर भारत आए तो एक नाईट ड्रिंक पार्टी में जब उन्होंने नेहरूजी से गाँधी जी का ज़िक्र छेड़ा तो नेहरूजी के मुंह से अनायास ही निकल पड़ा 'ओह ,...वह  भयंकर ढोंगी बूढा'
लगभग ऐसे ही विचार हमारे आज के कांग्रेसियों के अन्ना जी के बारे में हैं. और हों भी क्यों न ...अन्ना उनके भ्रष्टाचार पर टिके सिंहासन की चूलें हिलाने पर जो तुले हैं. जिस प्रकार गाँधी जी ने सदियों से सो रहे दबे कुचले भारतियों को अपने जन आंदोलनों के ज़रिये जागृत कर दिया था वैसे ही पिछले छह दशक से भ्रष्टाचार से त्रस्त भारतियों को जगाने का काम कर रहे हैं अन्ना जी. फर्क सिर्फ इतना है कि गाँधी जी के वक्त लोग सो रहे थे मगर आज आधे से अधित लोग भ्रष्टाचार को जायज़ मानते हैं और  भ्रष्ट  नेताओं की भांति..... अन्ना को ढोंगी बूढा मान हँसते हैं . कान्ग्रेसिओं कि ख़ुशी का तो कोई ठिकाना ही नहीं क्योंकि वे जानते हैं कि अन्ना के राजनीति में दाखिले से 'कांग्रेस' विरोधी वोट जो बी.जे.पी. की झोली में जाने का अंदेशा था अब बंट जाएगा .. राजनीति में अनजान दुश्मन अक्सर दोस्त ही होता है.