शनिवार, 22 नवंबर 2014

स्वछंद प्रेम या भोग की आज़ादी

स्वछंद प्रेम या भोग की आज़ादी

   एल आर गांधी


 समाज का एक वर्ग जहाँ जो चाहे करने की आज़ादी चाहता है ,वहीँ दूसरा आदर्शवादी वर्ग स्वछंद प्रेम अभिव्यक्ति का विरोधी है  … गत दिनों युवा प्रेमियों ने सार्वजनिक स्थान पर ' चुम्बन -आलिंगन ' की नुमाइश कर अपना विरोध प्रकट किया , उन भारतीय संस्कृति के ध्वजावाहकों के विरुद्ध , जो इसे पाश्चात्य सभ्यता की फ़ूहड़ नुमाइश मानते हैं  …।
जहाँ तक भारतीय संस्कृति का प्रशन है  … प्रेम की अभिव्यक्ति और उस की परिणति पर प्राचीन काल में कोई रोक नहीं थी  … गन्धर्व  विवाह , कन्या द्वारा स्वेच्छा से वर का चयन या वरण को   समाजिक मान्यता प्राप्त थी  … मुग़ल काल में बहुत सी प्राचीन मान्यताएं खंडित हो गई  …
महर्षि  विश्वामित्र के  तप तेज़ से जब इंद्रदेव को संकट का आभास हुआ तो उन्होंने देवलोक की सबसे सुंदर व् आकर्षक अप्सरा 'मेनका ' को ऋषिवर का तपोभंग करने भेजा  । ऋषिवर मेनका के सौंदर्य जाल में फंस गए !
कालांतर में जब महर्षि को मालुम हुआ तो उनके आक्रोश की सीमा नहीं  थी  .... मेनका को श्राप दिया और अपनी नवजात कन्या 'शकुंतला ' को कण्व ऋषि को सौंप कर पूण: तपोवन चले गए  …
शकुंतला ने महाराजा दुष्यंत से 'गन्धर्व ' विवाह किया  … महर्षि कण्व का उनके इस प्रेम विवाह को वरदहस्त प्राप्त था  .... शकुंतला -दुष्यंत के पुत्र महाराजा भरत के नाम पर ही हमारे देश का नाम 'भारत ' पड़ा  .... भरत ने प्रथम बार यहाँ लोकतंत्र की नीँव रखी  .... अपने नौ पुत्रों में से अपना उत्तराधिकारी न चुन कर अपनी प्रजा में से सबसे उपयुक्त व् योग्य वीर व् विवेकवान पुरुष 'युद्धमन्यु ' को अपने विशाल राज्य की  कमान सौंपी !
फिर भी हमारे समाज  में स्त्री को प्रेमहीन विवाह सहन करने को बाध्य होना पड़ता है  … ६०% भारतीय पुरुष उन्हें नियमित रूप से पीटते हैं और ७५% अपनी मर्ज़ी से शारीरिक सम्बन्ध चाहते हैं  । बरसों से कुछ हज़ार रूपए की खातिर ८० आल के बूढ़े अरब शेखों सी ब्याह दी जाती रही हैं  .
यह युग स्वयं चुनने की आज़ादी का युग है  … रही बात शारीरिक सम्बन्ध बनाने की आज़ादी की ! गर्भ निरोधक गोली के आविष्कारक अस्ष्ट्रियाई -अमेरिकन केमिस्ट-लेखक  कार्ल ज़रासी का दावा है कि ' अब हम ऐसे युग की ओर जा रहे हैं , जहां शारीरिक रिश्ते केवल आमोद-प्रमोद का अंग होंगे  ....
नए नए आविष्कारों ने ज़न्नत -स्वर्ग -जहन्नुम की परिभाषा ही बदल  कर रख दी है  .
जिसमें लाखों बरस की हूरें हों
ऐसी जन्नत को क्या करे कोई