शुक्रवार, 11 जुलाई 2014

अष्टावक्र

अष्टावक्र 


बहिर्मुखी को ज्ञान या बोध का मार्ग समझ में नहीं आ सकता  . विद्वान , प्रज्ञावान , प्रखर बुद्धि  एवं चेतना वाला ही इसे ग्रहण कर सकता है  . इसी कारण अष्टावक्र का उपदेश जनसामान्य में अधिक प्रचलित नहीं हो पाया  . अष्टावक्र की पूरी विधि सांख्य योग की है जिसमें करना कुछ  भी नहीं है  .
अक्रिया  ही विधि है , बोध या स्मरण मात्र पर्याप्त है  . यदि यह जान लिया कि मैं शरीर , मन आदि नहीं हूँ  ,बल्कि शुद्ध चैतन्य आत्मा हूँ तो सारी  भ्रांतियां मिट जाती हैं व् यही मोक्ष है  . 
मोक्ष कोई स्थान नहीं है बल्कि चित्त की एक अवस्था है जिसमें स्थित हुआ जीव परमानन्द का अनुभव करता है