गुरुवार, 3 सितंबर 2015

संथारा -जन्नत और जेहाद

संथारा -जन्नत और जेहाद

   एल आर गांधी

संथारा  ! … जैन धर्म का इच्छा  मृत्यु संकल्प  …जीवन के अंतिम पड़ाव पर अपनी इच्छा और संकल्प के दृढ़ विश्वास की सात्विक निष्ठां को आधार  मानते  हुए   अन्न-जल का परित्याग कर जीवन के  अंतिम क्षणों का पूरी धार्मिक आस्था के  साथ , जैन धर्मावलम्बी एक धार्मिक अनुष्ठान के रूप में इंतज़ार करते  …… यह अनुष्ठान सदियों से चला आ रहा है  … अचानक मलेच्छों के बनाये कानून के जानकार एक 'न्यायधीश ' को इस प्रथा में 'आत्महत्या ' दिखाई दे गई और 'संथारा' पर रोक लगा दी  … मगर सर्वोच्च न्यायालय ने इस के अमल को रोक दिया  …। जैन धर्म में विशवास रखने वाले 'संथारा' को मोक्ष प्राप्ति का एक उत्तम मार्ग मानते हैं जिससे मानव वैकुण्ठ धाम को प्राप्त होता है   …। सभी धर्मों में स्वर्ग प्राप्ति के अलग अलग रास्ते सुझाए गए हैं  .......
कुछ लोगों को जन्नत में जाने का माकूल रास्ता समझाते हुए 'जेहाद' की तालीम दी जाती है  .... उनके दीन को न मानने वालों को जहन्नुम पंहुचा कर 'शहीद ' होने वालों को जन्नत में आब-ऐ -हयात के साथ साथ मृग नयनी ७२ हूरें और १० लौंडे  .... खूब मज़े उड़ाने के लिए खुश -नसीब होते हैं  ....... सारे विश्व में जन्नत के तलबगार जेहाद में मुन्तिला हैं  …… मगर किसी कानून के जानकार को 'जेहाद ' में जुर्म दिखाई नहीं देता  .... और न ही किसी में इतनी हिम्मत है की 'जेहाद' और जन्नत के ख़्वाब परोसने वाली किताब पर रोक लगा दे  …सैकुलर निज़ाम की नाक का सवाल है जी !