रविवार, 28 मार्च 2010

ज़कात- जजिया और आरक्षण.....

देश के एक तिहाई मुसलमान प्रति माह ५५० रुपये पर गुज़र बसर कर रहे हैं । १० में से ३ मुसलमान गरीबी रेखा से नीचे बैठे हैं और गाँव में तो स्थिति और भी खराब है जहाँ प्रति मुसलमान यह आय सिर्फ ३३८/- प्रति माह है। नेशनल काउन्सिल फार एप्लाइड इकनोमिक रिसर्च ने यह खुलासा किया है।
रंगनाथ मिश्र आयोग तो पहले ही मुसलामानों के लिए आरक्षण की सिफारिश कर चूका है। आयोग ने तो दलित मुसलामानों और इसाईओं के लिए अनुसूचित जाती का आरक्षण देने की भी बात कही है। आन्ध्र की कांग्रस सरकार द्वारा मुस्लिमों को रोजगार और शिक्षा संस्थानों में ४% आरक्षण को अब सर्वोच्च न्यायालय द्वारा भी जायज़ ठहरा दिया गया है। हमारे संविधान में धरम के आधार पर आरक्षण का प्रावधान न होने के कारण अभी तक मुसलामानों को आरक्षण नहीं दिया गया था। अब तो इलेक्शन से पूर्व बंगाल की वामपंथी सरकार ने भी मुसलमानों के लिए १०% आरक्षण की घोषणा कर डाली है। ज़ाहिर है वोट बैंक की राजनीती के चलते यह आरक्षण का लाली पाप तो बँटताही रहेगा।
पिछले दिनों एक ब्लॉग पर एक गरीब मुस्लिम भाई की व्यथा देखने का अवसर मिला । एक पत्रकार एक मियां जी से मिले जिनके चार बिविओं से ३१ बच्चे थे और तीसरी बेगम साहिबा फिर उम्मीद से थीं । इस पर भी मियांजी अभी एक और शादी की तैयारी में मशरूफ थे । पत्रकार ने मियां जी से पूछा ? मियां जी क्या सभी बच्चों के नाम याद हैं , तो मियां जी ने हामी भर दी और लगे नाम गिनवाने।१५ तक तो गिनवाए फिर फुल स्टाप लग गया। सकपका कर कहने लगे मियां ! ...सामने आएंगे तो नाम भी याद आ जायेगा ।
जहाँ इतना सालिड वोट बैंक हो ..वहां आरक्षण तो होना ही चाहिए ना भई। चाहे सर्वोच्च नयायालय की अधिकतम ५०% आरक्षण की सीमा भी क्यों ना पार करनी पड़े। अब मियां जी तो तीन तलाक के अपने मज़हबी अस्त्र से तीन बिविओं को बाहर का रास्ता दिखा कर तीन निकाह और भी कर सकते हैं । फिर बच्चे तो अल्लाह के नेमत हैं -अल्लाह जिसे एक मुंह खाने को देता है -उसे दो हाथ कमाने को भी तो देता ही है। यह बात अलग है ...यदि हम छे हमारे छतीस का यह खेल यूंही चलता रहा तो हमारी कांग्रेस सरकार को बेचारे गरीब मुस्लिम भाईओं के लिए चार नहीं चालीस प्रतिशत का आरक्षण देना पड़ेगा। फिर जहाँ जहाँ इन अल्लाह के बन्दों का बहुमत हो जायेगा वहां वहां नया कश्मीर और धारा ३७० अपने आप लागू हो जाएगी। वह दिन दूर नहीं जब हिन्दोस्तान के बहुत से इलाकों में निजाम-य- अदल और काफिरों पर जजिया नासिर होगा। फिर कुराने पाक में भी तो यही आदेश है -'हराम महिना बीत जाये तो मुशरिकों को जहाँ कहीं पाओ क़त्ल करो , उन्हें पकड़ो, घेरो और हर घात की जगह उनकी टाक में बैठो।फिर यदि वह तौबा कर लें और नमाज़ कायम करें और ज़कात दें तो उनका मार्ग छोड़ दो, निश्चित ही अल्लाह बड़ा क्षमा शील ,दया वान है (सूरा ९ अत तौबा ...२६०... पारा १० )। .... अल्लाह के इस करम और दया का ही प्रताप है की पाक में हिन्दू २२% से घट कर मात्र २% शेष बचे हैं और वो भी जजिया के रहमो करम पर।