शनिवार, 20 फ़रवरी 2010

मन्त्र सहज मृत्यु का...

एड्स से पीड़ित पल पल मर रहे एक युवा प्रेमी कि तड़प , रे गोसलिंग से देखि न गई । नाटहिन्गम शायर पुलिस के समक्ष इस वेटरन ब्राडकास्टर ने सवीकार किया कि उसने एड्स पीड़ित युवक को सहज मृत्यु पाने में उसकी मदद की। पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया।
इस समाचार को पढ़ कर मेरी समृति में अपने ही एक बहुत प्रिय निकट सम्बन्धी स्वर्गीय श्री भूषण सरहिन्दी जी के अंतिम दिनों की याद ताज़ा हो गई । वे एक वेटरन जर्नलिस्ट थे। पत्रकारिता को समर्पित एक कर्मयोगी । निरंतर काम में व्यस्त बैठे रहने के कारण कमर कमान हो गई थी । किन्तु कलम की धार किसी गांडीव से छूटे तीर से कमतर नहीं ।
लगातार पड़े रहने से बेड सोल हो गए थे।पीड़ा के कारण सो भी नहीं पाते थे। एक रात मैंने उनके पावों के तलवों की खूब मालिश की । वे सो गए। सुबह उठे ..तो बोले ..रात तो सपने में मियां मुशर्रफ की इंटरवियु ली .मैंने राहत की साँस ली। इतने कष्ट में भी उनके चहरे पर अपने काम के प्रति समर्पण की चमक साफ़ देखि जा सकती थी। पत्रकारिता का ऐसा समर्पित पुरोधा अब तो बिरला ही देखने को मिलता है।
अस्पताल के कमरे में उनकी छटपटाहट को देख कर कलेजा मुंह को आता । जिनके लिए सब कुछ किया वे ही मुंह चुराते फिर रहे थे। शहर के सब से वृष्ट डाक्टर जो उनके परम मित्र भी थे ..आते और ढेर साड़ी दवाएं मुंह में उड़ेल कर चले जाते। 'दर्द बढ़ता ही गया ज्यों ज्यों दावा की '। ऐसे ही एक दिन डाक्टर साहेब आए तो मुझ से रहा ना गया।पूछ बैठा ..डाक्टर साहेब ..आप इनके मित्र हैं। बोले..हाँ । क्या यह ठीक हो जायेंगे ? बोले इश्वर से दुआ करो। फिर एक माह से इन्हें इतनी पीड़ा में क्यों रखा है। मैं अपनी भावनाओं पर अपना नियंत्रण खो बैठा ..भीतर की करुणा कराहने लगी॥ डाक्टर इन्हें मुक्त कर दो !डाक्टर साहेब चुप चाप कमरे से खिसक गए। मुझे उस वक्त वे एक जल्लाद की माफिक लग रहे थे, जो एक बकरे की गर्दन पर धीरे धीरे चाक़ू चला कर उसकी तड़प से बेखबर अंतिम क्षणों का इंतज़ार कर रहा हो ।
शायद हमारे शास्त्रों में वानप्रस्थ आश्रम का विधान मनुष्य के इन्हीं अंतिम दिनों के कष्ट निवारण का एक प्रयास था। वनों में सिद्ध योगिओं के आश्रमों में सात्विक कंद मूल के आहार से पाचन क्रिया सहज तो होती ही थी , साथ ही प्राणायाम के निरंतर अभ्यास से हथ योग द्वारा सहज मृत्यु को प्राप्त करने का वरद मन्त्र भी मिल ही जाता था।