शनिवार, 30 अक्तूबर 2010

भारतीय लोकतंत्र अब ८७ वां आदर्श- भ्रष्ट तंत्र

भारतीय लोकतंत्र अब ८७ वां आदर्श- भ्रष्ट तंत्र
एल. आर. गाँधी

कलमाड़ी जी की असीम कृपा से - खेल खेल में कम से कम एक क्षेत्र में तो हमने अपने पडोसी चीन को पीछे छोड़ ही दिया- कठोर स्पर्धा के बाद 'भ्रष्टाचार की ऊंची कूद' में हमने यह सफलता अर्जित की. अब हम भ्रष्ट देशों की सूची में ८७ वी पायदान पर पहुँच गए हैं और हमारा प्रतिद्वान्धी चीन हमारे से ८ अंक पिछड़ कर ७९वे अंक पर लुढ़क गया . इस सफलता का एकांकी श्रेय हमारे खिलाडियों के खिलाडी कलमाड़ी जी को जाता है. विश्व के चोर-उच्चक्के देशों में देश का नाम रौशन करने के इस महान उपलब्धि के लिए कलमाड़ी जी को 'भारत रत्न' के साथ साथ आगामी ओलम्पिक खेलों का ठेका भी अभी से दे देना चाहिए ताकि शीघ्र से शीघ्र हम अपने चिर-प्रतिद्वंदी पाकिस्तान से आगे निकल सकें . कितनी शर्म की बात है कि हमारे से महज़ २४ घंटे पेहले पैदा हुआ दो कौड़ी का मुलुक भ्रष्टाचार के क्षेत्र में हम से मीलों आगे १४३ वे पायदान पर जा पहुंचा है. यह बात दीगर है कि पाकिस्तान को इस मुकाम तक पहुँचाने में अमेरिका से मिली भीख का बहुत बड़ा योग दान है. यदि हमें इतनी अमेरिकी मदद मिली होती तो हम आज अफगानिस्तान को प्राप्त श्रेष्ठ स्थान पर होते.
देश में भ्रष्टाचार एक रिले -रेस कि माफिक कभी न ख़त्म होने वाली दौड़ का रूप ले गया है. दिल्ली का खेल अभी ख़त्म नहीं हुआ कि 'रेस' देश कि आर्थिक राजधानी मुंबई में चालू हो गई. मुंबई में तो भ्रष्टाचार को 'आदर्श' सोसाईटी का नाम दिया गया और सीमां पर अपने प्राणों की आहुति देने वाले शहीदों के नाम पर करोड़ों के फ़्लैट औने पौने दामों पर सफेदपोश नेता और उच्चाधिकारी हड़प गए. कल्मादिजी ने राहत की साँस ली -उनके पीछे पड़ा मिडिया अब 'आदर्श सोसाईटी' घोटाले पर पिल पड़ा है. मिडिया का भी इन घोटालों को उजागर कर और बीच में ही छोड़ नए घोटालों के पीछे पड़- इनके महत्त्व को न्गंन्य करने में विशेष योगदान रहा है. मिडिया भी व्यवसाए हो कर रह गया - सब कुछ महज़ टी.आर.पी की खातिर ?
१९९१ से २००९ के डेढ़ दशक में लगभग ७३ लाख करोड़ के बड़े घोटालों का अनुमान है. जिनमें स्विस बैंकों में देश का ७१ लाख करोड़ रूपया सबसे बड़ा घोटाला है. उसके बाद है २-जी स्पेक्ट्रम में ६० हजार करोड़ का घोटाला जिसे केंद्रीय मंत्री ए.राजा डी.एम्.के के दलित सांसद ने सरंजाम दिया. प्रधान मंत्री का इन्हें वरद हस्त प्राप्त है- हो भी क्यों न ...राजा की कृपा के बिना सरकार दो दिन की महमान है. सी. बी. आई को लगा रखा है केस को कछवा चाल पर लटकाए रखने को. यह बात अलग है कि सर्वोच्च न्यायालय ने सी.बी.आई को लताड़ लगाई है- साल भर से केस लटकाने पर और राजा को अभी तक मंत्री पद पर बनाए रखने पर ! अब देखो क्या होगा तेरा 'राजा' ? तीसरा घोटाला है - ५० हजार करोड़ - कर चोरी का, पूने के अरब पति हसन अली खान के नाम !!! अब इस से कम तो हम घोटाले को घोटाला ही नहीं मानते
भ्रष्टाचार का वटवृक्ष आज ८७ मीटर ऊंचा बरगद सा फ़ैल गया है यह जितना ऊंचा है उतनी ही इसकी जडें पाताल तक फैली हैं. इस बरगद का बीजारोपण भारत के पहले प्रधान मंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु जी के करकमलो से ही हुआ था. उनका राज परिवार तो बस इसे आँखें मूँद पानी दिए चला जा रहा है. नेरुजी ने ५ वर्षीया योजनाओं की नीव रखी -बिना सोचे समझे योजनाओं पर केंद्र से धन लुटाया गया - यह किसी ने नहीं देखा कि जिन लोगों के लाभार्थ ये योजनायें बनी गई हैं उन तक इसका लाभ पहुंचा भी है. नेहरु जी के राज पौत्र 'राजीव गाँधी' ने भी माना की इन योजनाओं का महज़ १०-१५ % ही आम आदमी तक पहुँच पाता है.बाकि पैसा तो रास्ते में भ्रष्ट तंत्र ही हड़प जाता है. ६० साल से यह योजना - बध लूट बदस्तूर जारी है.
देश के प्रथम बड़े घोटाले का श्रेय भी हमारे नेहरु जी को ही जाता है. १९४८ का जीप घोटाला जिसमें भारतीय सेनाओं के लिए ८० लाख रूपए की जीपें खरीदी जानी थी . ब्रिटेन में भारतीय हाई कमिश्नर वी. के. कृष्ण मेनन पर जीप सप्लाई में घोटाले का दोष लगा . मेनन साहेब नेहरु जी के खासमखास थे. सज़ा तो क्या मेनन को देश का रक्षा मंत्री पद से नवाज़ा गया. हमारी सेनाएं चीन के हाथो परस्त हुईं और हजारों मील भूमि पर दुश्मन का कब्ज़ा हो गया. जिन लोगों के हाथ में देश को इमानदार प्रजातंत्र के रूप में विकसित करने की जिमेदारी थी उन्होंने ही उनकी नाक के नीचे फलफूल रहे भ्रष्ट - तंत्र से आँखें मूँद लीं और आज हम विश्व के सबसे बड़े भ्रष्ट तंत्र की दौड़ में नई नई बुलंदिओं को छूते जा रहे हैं. वह दिन दूर नहीं जब हम अफगानिस्तान को पछाड़ कर भ्रष्ट राष्ट्र तालिका के शिखर पर होंगे.

गुरुवार, 14 अक्तूबर 2010

निर-आहार गरीब को ..विलक्षण पहचान अंक -आधार

निराहार गरीब को ...

विलक्षण पहचान अंक -आधार
एल.आर.गाँधी.

आखिर ढूंढ ही लिया राज वधु ने गरीबी उन्मूलन का आधार - अब कोई भी जालसाज़ अपनी पहचान छुपा कर गरीब का राशन नहीं हड़प पायेगा !
पहला विलक्षण पहचान अंक महाराष्ट्र के गाँव तेम्भ्ली की सौभाग्यवती रंजना सोनावाने के ६ वर्षीय पुत्र हितेश को सोनिया जी ने अपने कर कमलों से प्रदान किया . मनमोहन जी इस महान पर्व के गवाह थे. इस विलक्षण पहचान अंक को नाम दिया गया है 'आधार' . सौभाग्यवती रंजना सोनवाने 'आधार' का उपहार और वह भी 'राज वधु' के हाथों पा कर भी खुश नहीं . जब पत्रकारों ने अपने चिरपरिचित अंदाज़ में सोनवाने से पूछा 'यह सन्मान पा कर आपको कैसा लग रहा है. तो वह झल्ला कर बोली 'कैसा सन्मान ' हमारे पास खाने को तो कुछ है नहीं. मिटटी के चूल्हे में आग जलाते हुए वह बुदबुदा रही थी 'पिछले एक महीने से सरकारी अफसरों ने जीना मुहाल कर रखा है. हमें काम पर भी नहीं जाने दिया -हर रोज नया प्रमाण मांगते . हौसला नहीं जुटा पाई वरना सोनिया से पूछती - दे सकती हो तो हमें सन्मान जनक जिंदगी दे दो- हर दूसरी रात मेरे बच्चे भूख के कारन सो नहीं पाते ! १४०० की आबादी वाले इस गाँव में लोग समझ नहीं पाए कि 'आधार' से उनकी जिंदगी कैसे संवर जाएगी जबकि 'आहार ' दो जून की रोटी के लिए तो सभी वयस्कों को कटाई के मौसम में सौरास्टर पलायन करना पड़ता है. जलसे में सोनिया जी ने लोगों को समझाया कि इस पहचान कार्ड से उन्हें एक नई पहचान मिलेगी जिससे उनकी ज़िन्दगी संवर जाएगी मगर 'कैसे' यह कोई नहीं बता पाया.
६ वर्षीय हितेश के हाथ में 'कार्ड' थमा कर सोनिया जी ने मानो पूरे देश को सन्देश दे डाला 'कि अब कोई बच्चा भूखा नहीं सोएगा' ! सन्देश भी दिया उस देश को जहाँ 'कुपोषित बच्चों की संख्या विश्व में सबसे अधिक है. यू.एन.के अनुसार भारत में ५ वर्ष से कम आयु के २.१ मिलियन बच्चे प्रति वर्ष अकाल मृत्यु के आगोश में समा जाते है. ऐसे कुपोषित बच्चों की संख्या चीन में ७% है, सब सहारा अफ्रीका में २८ % और भारत में ४३% . प्रति दिन १००० बच्चे तो उलटी-दस्त का शिकार हो जाते हैं. यह बात अलग है कि देश की सेकुलर छवि बरकरार रखने की खातिर या फिर वोट की खातिर हमारी सेकुलर सरकार हर साल 'हज यात्रियों ' को ही ८२६ करोड़ की सब्सिडी दे देती है.
रही बात हमारे 'आट्टा मंत्री' श्री श्री शरद पंवार जी के प्रदेश महाराष्ट्र की - विश्व स्वास्थ्य संगठन की मानें तो प्रदेश में कुपोषित बच्चों की संख्या ३.१५ लाख है. मुंबई में तो यह संख्या ६० गुना बढ़ गई- मई में ३९७ थी और जुलाई में २४२५१ हो गई , क्योंकि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कुपोषण के नए मापदंड निर्धारित कर दिए हैं .
एक ओर हम कामन वेल्थ खेलों के सफल आयोजन पर इतरा रहे हैं .कलमाड़ी जी तो खेलों पर एक लाख करोड़ खर्च कर अभी से 'ओलम्पिक' की तैयारी में लग गए हैं. विदेशी विनियोग का आंकड़ा एक लाख करोड़ होने पर बंगाली बाबू फूले नहीं समा रहे. ऐसे में भारत को विश्व के ८४ 'भूखे -नंगे' देशों में ६७ वी पायदान पर खड़ा देख कर कामन वेल्थ के सोने -चाँदी- कांस्य के मैडल और विदेशी विनियोग के ऊँचे ऊँचे दावे 'टाट में पैबंद' की मानिद दिखाई देते हैं.

शनिवार, 9 अक्तूबर 2010

आरामदेह जीवन-मृत्यु




आरामदेह जीवन-मृत्यु दिवस.

एल.आर.गाँधी.

९ अक्तूबर , आज विश्व रुग्नाश्र्य व् आरामदेह मृत्यु दिवस है. दुखी- रोग पीड़ित मानवता को सहज व् आरामदेह जीवन देने के प्रयासों को नई दिशा देने पर विचार करने के
लिए वर्ल्ड वाईड पालिएटिव केअर एलायंस द्वारा इस कार्य के लिए यह दिन चुना
गया है. विश्व में १०० मिलियन रोगियों को पेलीएटिव केयर की दरकार है मगर
हम यह सुविधा मात्र ८ % तक ही पहुँचाने में सक्षम हो पाए हैं . गंभीर रोगों
से पीड़ित ,निराश्रय व् निर्धन एकांकी लोगों के जीवन को सहज व् आरामदेह
बनाने के लिए पूरे समाज व् राजतंत्र के सहयोग की आवश्यकता है. इस कार्य के
लिए ८० देशों में उक्त संस्था द्वारा १००० के करीब जागरूकता समारोह आयोजित
किये जा रहे हैं.
जहाँ आरामदेह जीवन कि सुविधा नहीं, वहां सहज मृत्यु की आशा कैसे की जा
सकती है. सहज व् आरामदेह जीवन-मृत्यु का मूलाधार समाजिक सम्पन्नता है.जिस
देश की आधी से अधिक जनता को दो जून की रोटी के लाले पड़े हों वहां पर यह
सुविधा बेमानी सी लगती है. बेशक हमारे संविधान में सम्मानजनक मृत्यु
प्रत्येक नागरिक का मौलिक अधिकार है फिर भी मृत्यु की गुणवत्ता में हमारा
विश्व में ४० वां स्थान है.हम युगांडा जैसे देश से भी पीछे हैं जिसका जी डी
पी में ९० वां स्थान है जबकि भारत का ४था . जो देश अपने नागरिकों के लिए
स्वस्थ सेवाओं पर मात्र १% खर्च करता हो उससे कोई अपेक्षा भी कैसे की जा
सकती है. आज हमारे ६५ से ऊपर के वृष्ट नागरिको कि संख्या ५ वर्ष से कम
जनसँख्या से अधिक हो गई है और २०३० आते आते यह एक बिलियन का आंकड़ा पार कर
जाएगी. विश्व के १/८ बड़े बूढों के लिए स्वस्थ्य सुविधाओं के साथ साथ
आरामदेह जीवन -सहज मृत्यु का प्रबंध करना हमारा सामाजिक व् मानवीय दायित्व
बनता है.
जनसँख्या नियंत्रण, गरीबी उन्मूलन, स्वस्थ्य सुविधाएं , वृधाश्रम जैसी
जनकल्याण योजनाओं से पीठ मोड़े हमारे भ्रष्ट लोकतंत्र के राजनेता किसी
न्रंकुश रजवाड़ों से कम नहीं दिखाई पड़ते. बहुत जल्द ही ये अपने आप को
विश्व की दूसरी महान्शक्ति कहलाने की फिराक में बड़े बड़े खेल-तमाशे कर
हवा में खुद भी उड़ रहे हैं और गरीब जनता की खून पसीने की कमाई को भी उड़ा
रहे हैं.
खाद्य सुरक्षा कानून जैसी बड़ी बड़ी डींगे हांकने वाली सरकार देश के
किसानों द्वारा अपने खून पसीने से पैदा की गई 'बम्पर' पैदावार को तो संभाल
नहीं पाती .डाक्टर एम्.एस स्वामीनाथन -' यह शर्मनाक है. यदि यह सरकार जरूरत
मंद भूखी जनता के लिए अपने खाद्यान को तो बचा नहीं पाती तो यह किस मूंह से
खाद्य सुरक्षा क़ानून लागु करने की बात कर सकती है. जो गरीब को रोटी का
निवाला तक नहीं दे सकते वे रोगी को दवा क्या देंगे ?

बुधवार, 6 अक्तूबर 2010

अब गरीबी छुपाओ ..कलमाड़ी का कमाल



अब 'गरीबी छुपाओ'
कलमाड़ी का कमाल ...
एल. आर. गाँधी.
कलमाड़ी का कमाल ; जी हाँ इसे हम कलमाड़ी जी का कमाल ही कहेंगे ! जिस दक्ष प्रशन का उत्तर पिछले ४० साल से 'राज परिवार ' नहीं ढूंढ पाया ,कलमाड़ी ने पलक झपकते
ही 'प्राब्लम साल्व' कर डाली !
दक्ष प्रशन था - कामन वेल्थ खेलों में विदेशी महमानों से 'दिल्ली की
बदनसीबी -झुग्गी झोपड़ बस्तियों ' को कैसे छुपाया जाए ? सोनिया जी से ले
कर शीला जी तक सभी हैरान परेशान थे ! शीला जी ने पहले तो अपनी खाकी वर्दी
का खौफ अजमाया और खेल मार्ग पर रहने वाले 'गरीब -गुरबों ' को पुलसिया
अंदाज़ में समझाया कि भई दिल्ली कि इज़त का सवाल है ,कम से कम ३ से १४
अक्तूबर तक कहीं चले जाओ और अपनी यह मनहूस शक्ल किसी विदेश मेहमान को मत
दिखाना . बहुत से बेचारे अपनी सारी जमा पूँजी समेट कर 'ममता की रेक का टिकट
कटा भाग खड़े हुए ! मगर जितने भागे थे उससे भी कई गुना ज्यादा 'यमुना की
मार ' से तरबतर और आ गए. शीला जी हैरान परेशान -सभी हथकंडे आजमाए 'मर्ज़
बढ़ता गया ज्यों ज्यों दवा की' . अब आधी दिल्ली तो झोपड़ पट्टिओं में पसरी
है ... इतने जन सैलाब को कोई कैसे भगाए ?
थक हार कर शीला जी 'अनुभवी और समझदार' कलमाड़ी जी की शरण में पहुंची . दक्ष
प्रश्न का हल पूछा ! कलमाड़ी जी ने अपनी अनुभवी दाढ़ी के काले-सफ़ेद बालों
में हाथ कंघी की और मुस्करा कर बोले . यह भी कोई समस्या है ? हमने इतने
बड़े खेल में किसी को कुछ पता नहीं चलने दिया . सात सौ करोड़ का खेल सत्तर
हज़ार तक पहुंचा दिया और किसी को भनक तक नहीं लगी. कलमाड़ी जी ने अपना बीजिंग
अनुभव सुनाया ! हवाई अड्डे से हम ओलम्पिक गाँव जा रहे थे तो रास्ते में
सड़क के दोनों ओर 'होर्डिंग्ज़ ही होर्डिंग्ज़ ' देख हमारा माथा ठनका ! हमने
अपनी गाडी रुकवाई तो 'मेज़बान मैडम' ने पूछा क्या हुआ कलमाड़ी जी . हमने
गाडी से उतरते उतरते बाएँ हाथ की तर्जनी उठाई और बोले ''सु-सु" और पलक
झपकते ही पहुँच गए होर्डिंग की ओट में. चमचमाते होर्डिंग्स के पीछे देखा
तो 'बीजिंग की बदनसीब झोपड़ पट्टी' अन्धकार में डूबी थी. कलमाड़ी जी का
अनुभव इस आड़े वक्त में काम आया.
बस फिर क्या था ' बाई ऐअर ' मिजोरम से बांबू' मंगवाए गए और कारीगिर भी. और
दिल्ली की मनहूसियत को 'बाम्बू होर्डिंग्स' के पीछे छुपा दिया गया. शीला जी
भी कलमाड़ी जी का लोहा मान गईं. अरे भई हम पिछले ४० साल से गरीबी मिटाने के
'भागीरथ ' कार्य में लगे हैं. पहले इंदिरा जी ने गरीबी हटाने का अहद किया
. गरीबी तो नहीं हटी मगर महंगाई डायन न मालूम कहाँ से आ टपकी. फिर राजीव
जी ने सोचा हटाने से तो यह फिर फिर आ जाती है . इस लिए गरीबी मिटाने की कसम
खाई. इस बार गरीबी के साथ उसका सौतेला भाई 'भ्रष्टाचार ' आ खड़ा हुआ . फिर
अब राज परिवार की बहु रानी ने मनमोहन जी के साथ सीरियस डिस्कशन के बाद
डिसाईड किया कि 'गरीबी को भगा' दिया जाए ! गरीबी तो नहीं भगा पाए- पर अपनी
गरीबी दूर कर 'चाचा कत्रोची ' को जरूर भगा दिया. चलो आधी अधूरी ही सही
'गरीबी भगाने ' की मुहीम में सफलता तो हाथ लगी. अब परिवार के राज कुमार जब
यू पी. के दलितों की झोंपड़ियों में जा कर इक्कीसवीं सदी का 'गाँधी' बनने
के जुगाड़ में लगे हैं - गरीबी छुपाने और देश को विश्व की दूसरी सबसे बड़ी
शक्ति दिखाने के 'पारिवारिक आन्दोलन' में कलमाड़ी जी के योगदान को स्वर्ण
अक्षरों में लिखा जायेगा. अंग्रेजी में कहावत भी है ' आउट आफ साईट इस आउट

शुक्रवार, 1 अक्तूबर 2010

गोडसे हाज़िर हो.. खामोश आदालत जारी है...

शिमला का एतिहासिक पीटरहोफ होटल जहाँ
गाँधी जी के हत्यारे 'गोडसे' पर मुकदमा चला.......
खामोश अदालत जारी है ..गोडसे हाज़िर हो......
एल.आर.गाँधी.

मोहन दास करम चाँद गाँधी उर्फ़ महात्मा गाँधी बनाम राम चंदर उर्फ़ नाथू राम गोडसे वल्द विनायक वामनराव गोडसे .....हाज़िर हो.......
जी हाँ ..फिर से अदालत लगेगी ..और लगेगी भी वहीँ ..जहाँ पहले लगी थी. स्थान है शिमला का पीटर हाफ होटल . दरअसल पीटर हाफ में हिमाचल सरकार एक म्यूजियम बनाने जा रही है. आजादी के बाद १९४७ से १९५५ तक पीटर हाफ पंजाब सरकार का हाई कोर्ट रहा जहाँ गाँधी जी के कातिल गोडसे पर २७ मई १९४८ से मुक़दमा चला, नवम्बर १९४९ को उसे सजाए- मौत का फरमान सुनाया गया और १५ नवम्बर १९४९ को अम्बाला जेल में फंदे पर झुला दिया गया.
पर्यटक निगम के निदेशक सुभाष पंडा कि माने तो म्यूजियम में गोडसे के मुकदमे से सम्बंधित वस्तुओं व् सबूतों को प्रदर्शित किया जाएगा, ताकि लोगों को मुकदमे कि सचाई से रु--रु करवाया जा सके.
अबकी सुनवाई में आम ख़ास सभी शिरकत के पूरे हकदार होंगे. छूट गए कानूनी पहलुओं पर फिर से सेकुलर तौर तरीकों से गौर किया जाएगा .गोडसे फिर से बतलायेंगे, पर.... अबकी बार..., एक अदद वकील कि मार्फ़त.. कि उसने 'महात्मा' को क्यों मारा.! कैसे पाकिस्तानियों के हाथों उनके भाई बंधू मारे गए, कैसे उनकी बहु बेटीओं कि इज्ज़त लूटी गई. एक दो नहीं , लाख बेगुनाह मारे गए ५० लाख बेघर हो गए.कैसे जिन्ना की जिद के आगे बापू बेबस हो गए और अपनी कसम ' पाक मेरी लाश पे बनेगा...भुला दी.और कैसे खुद को दुनियां का सब से महां - सेकुलर सिद्ध करने के लिए फिर से 'अनशन ' के कोप भवन में जा बैठे ! नेहरु-पटेल के उस निर्णय के विरोध में जो उन्होंने कबिनेट में लिया था -पाक को ५५ करोड़रुपये देने का.
पाक ने कश्मीर का बहुत बड़ा भूभाग हथिया लिया कबाईलियों के वेश में फौजी हमला कर ! हमारी सेनाएं अपना क्षेत्र खाली करवा रहीं थी कि नेहरु ने इकतरफा युद्ध विराम कर कश्मीर मसला यू.एन.ओ के पाले में डाल दिया. १३ जनवरी को पटेल की पहल पर केबिनेट ने फैसला किया कि पाक की ५५ करोड़ की देनदारी रोक ली जाये तांकि उसे कश्मीर से हट जाने को मजबूर किया जा सके. मगर गाँधी जी के 'अनशन' धमकी के आगे केबिनेट बेबस हो गई और फैसला उसी दिन वापिस ले लिया. पाक से उज़ड़ कर आए हिन्दू शर्णार्थियो में गाँधी जी के इस पाक प्रेम पर भारी क्षोभ के साथ साथ असहनीय आक्रोश भी था जिसकी अभिव्यक्ति गोडसे के १४ जनवरी को छपे 'मक्र्सक्रांति' सम्पादकीय में साफ़ झलकती है. १३ जनवरी को ही ३० जनवरी का इतिहास 'गोडसे' के मर्माहत वक्षस्थल पर लिखा गया था. ५५ करोड़ कोई मामूली राशी न थी और( आज यह राशि १२५०० करोड़ होती). भारत का रक्षा बज़ट मात्र ९३ करोड़ था . इन्ही तथ्यों को गोडसे ने अपनी पैरवी में पेश किया.
कहते हैं ! जब गोडसे ने अपनी पैरवी खुद करते हुए ,तफसील से उन तथ्यों को बयां किया जिन्होंने उसे 'महात्मा' का मर्डर करने को मजबूर किया, तब पीटर हाफ के कोर्ट रूम में बैठे वे चुनिन्दा लोग सुबक रहे थे..सभी के हाथ में रुमाल थे और अपने आंसू पोंछ रहे थे.बकौल जज साहेब 'मैं अपनी कानूनी बंदिशों से मजबूर था ..यदि मौजूदा दर्शकों पर फैंसला छोड़ दिया जाता ..तो गोडसे 'बरी' हो जाता.
यह भी कोई बात हुई बिना 'अब्बास काज़मी' के जिरह, बहस, महज़ एक साल पांच महीने और १३ दिन में केस निपटा डाला और फैसला भी सुना दिया. और तो और हफ्ते भर में फांसी पर भी लटका दिया. दरअसल सेकुलर सरकार अभी नई नई और ना समझ थी......वाकील मुहय्या ही नहीं करवाया और अपनी पारी से पहले ही लटका दिया सूली पर.समझदार सेकुलर सरकार तो अब है...अफज़ल मिआं बैठे हैं लाइन में..सलीके से जब बारी आयेगी लटका देंगे !!!!!