सोमवार, 11 मई 2015

सोमनाथ .... आस्था की विरासत

सोमनाथ  .... आस्था की विरासत 

       एल आर गांधी 

आज़ादी के बाद जब जूनागढ़ के नवाब ने रियासत की जनता की  इच्छा के विरुद्ध पाकिस्तान के साथ  जाने का निर्णय लिया तो १२ नवम्बर १९४७ को पटेल जूनागढ़ आए  … नवाब भाग खड़ा हुआ  .... पटेल ने सोमनाथ मंदिर के नव निर्माण का निर्णय लिया जिसे १७०६ में औरंगज़ेब के हुक्म से तोड़ दिया गया था  …। मंदिर के अवशेषों के बीच एक मस्जिद खडी कर दी गई थी  ....
पटेल की इस योजना का गांधीजी ने समर्थन तो किया मगर साथ ही यह शर्त भी रख दी की सरकारी खज़ाने से 'एक पैसा 'भी न खर्च किया जाए  …। 'पंडित' जवाहर लाल नेहरू मंदिर निर्माण की इस योजना के धुर विरोधी थे।  मंदिर के स्थान पर बने 'मस्जिद ' के ढांचे को कुछ मील दूर शिफ्ट कर दिया गया और मूल स्थान पर भव्य मंदिर जनता के सहयोग से निर्मित किया गया  …। इसी बीच गांधीजी और पटेल जी का देहावसान हो गया और इस महती कार्य को श्री के एम मुंशी जी ने पूरा किया। 
११ मई १९५१ को राष्ट्रपति श्री राजेन्दर परसाद ने मंदिर में मूर्ती प्रतिष्ठान किया तो सैकुलर शैतान ग़यासुद्दीन पौत्र 'पंडित' नेहरू बहुत 'नाराज़' हुए तो राजेंदर बाबू ने बहुत ही माकूल जवाब दिया 'निर्माण की शक्ति  हमेशां ही विध्वंस की ताकत से महान होती है '
शेख ने मस्जिद बना ,       मिस्मार बुतखाना किया 
पहले तो कुछ सूरत भी थी , अब साफ़ वीराना किया