बुधवार, 16 जून 2010

मेरा मुंसिफ ही मेरा कातिल है -क्या मेरे हक़ में फैसला देगा.

जो सरकार पिछले २५ वर्ष से भोपाल गैस पीड़ितों को न्याय दिलाने में नाहिल साबित हुई है वही सरकार अब इन्हें फिर से न्याय दिलाने के लिए नया क़ानून बनाने का सब्जबाग दिखा कर अपनी आपराधिक साजिशों को छुपाने की कोशिश में व्यस्त है। हमारे आज के मौनी बाबा और उस वक्त के मुख्या मंत्री अर्जुन सिंह ने जितनी तत्परता कांड के मुख्या दोषी को अपने निजी जहाज़ में भगाने में दिखाई क्या किसी गैस पीड़ित को बचाने में भी उनके इस जहाज़ की सेवाएँ उपलब्ध करवाई गईं ।
१९७२ में जब यूनियन कार्बाईड संयंत्र की स्थापना को हमारी सरकार ने हरी झंडी दी तो कनेडा सरकार ने इस संयंत्र से जनमानस और पर्यावरण को अपेक्षित खतरों से संयंत्र अधिकारिओं को आगाह करते हुए इसके निर्माण को तुरंत रोक देने की चेतावनी दी थी। फिर भी हमारी सरकार ने यह संयंत्र शहर के बीचो बीच स्थापित करने की मंज़ूरी दे डाली।
अब वही सरकार, जिसके कारण भोपाल के २५००० लोग अकाल मृत्यु की गोद में समा गए और लाखों आज भी ज़हरीली गैस का संताप भोग रहे हैं, मुख्य दोषिओं के साथ मिल कर पीड़ितों को न्याय दिलाने का 'गंभीर प्रयास' करने का दावा कर रही है। यह तो ऐसे ही है की दो- कातिल खुद ही जज और सरकारी वकील बन बैठे हो जो मुक़दमे की सुनवाई भी करे और पैरवी भी। एक मुख्या न्यायधीश जिसने आधुनिक युग के सबसे बड़ी मानव त्रासदी को एक ट्रक दुर्घटना बना डाला ,उसी मुंसिफ को पीड़ितों के पुनर्वास का मसीहा बना दिया गया।
मेरा कातिल ही मेरा मुंसिफ है ,
क्या मेरे हक़ में फैसला देगा।
लोक तंत्र का चौथा स्तम्भ मिडिया भी यका यक मैदान में कूद पड़ा है। जैसे २५ साल बाद कुम्भ करन गहरी नींद से जाग गया हो। बड़े टी.वी चेनल का एक बड़ा एंकर भोपाल की गली गली घूम घूम २५ साल पुराने ज़ख्म कुरेद रहा है....गैस की मार से अध् मरे मानसिक रूप से विक्षिप्त बच्चो को 'काला यंत्र' मुंह को लगा कर पूछ रहा है , जो अब
कुछ भी बोल पाने में असमर्थ हैं ' अब आप को कैसा लग रहा है' शायद अपनी टी.आर पी बढ़ाने
के लिए इनके पास दूसरी कोई 'स्टोरी ' नहीं है।जिस दिन कोई दूसरी बड़ी घटना हो जायेगी, ये सभी पत्रकार -'चार्ज' माईक उठा कर नए मृतकों के सम्बन्धियों से पूछने निकल पडेंगे ' अब आपको कैसा लग रहा है' हमारे यहाँ मृत्यु के बाद समस्त क्रिया क्रम का काम निपटाने वाले पंडितजी को 'चार्ज' ही कह कर बुलाया जाता है । क्या हमारे टी आर पी के दीवाने ये पत्रकार किसी 'चार्ज से कम हैं॥
भोपाल में आज से २५ वर्ष पूर केवल गैस पीड़ित मानव का ही ' जनाज़ा'नहीं उठा - लोक तंत्र का दम भरने वाली व्यवस्था की भी 'अर्थी' उठी थी -इस अर्थी-जनाज़े के साथ साथ मानव की अंतिम आशा 'न्याय 'को भी जला कर दफना दिया गया था और अपने आप को समाज के ' वाच डाग की सी घ्राण शक्ति से परिपूर्ण होने का दावा करने वाले लोक तंत्र के चौथे स्तम्भ 'मिडिया' वालों को भनक तक न लग पाई/।