सोमवार, 9 मई 2011

दिग्गी मियां के ओसामा जी...

दिग्गी मियां के ओसामा जी... 
  
एल.आर.गाँधी 

जब से ओसामा बिन लादेन को फिरंगीयों  ने धोखे से मारा है -हमारे दिग्गी मियां को ओसामा का भूत रात को ही नहीं दिन में भी सता रहा है. ओसामा रुखसत हो गए - यकीं ही नहीं हो रहा . गाँधी कुरते और पायजामें में और भी गमगीन लग रहे हैं. चश्मा उठा कर आंसू पोंछते हुए बोले ' ओसामा जी को उनकी मज़हबी रिवायात के अनुसार सपुरदे ख़ाक न करना - सख्त न इंसाफी है. 
भला यह भी कोई बात हुई ! एक तो ख्वाबगाह में अपनी मस्तुरात - बेगम के साथ बगलगीर हुए 'इंसान ' के महमान खाने में बिना  दरवाज़ा खटखटाए भीतर दाखिल हो गए और आब देखा न ताब - बस भून डाला !बेगम जब बीच बचाव को आगे अई तो उसके भी कोमल पैरों को छलनी कर दिया. हद तो तब हो गई जब ओसामा जी के ताबूत को सपुरदे समंदर कर दिया. किसी काफ़िर को इस्लामी रिवायात का इल्म न भी हो - मगर ओबामा तो अपनी ही बिरादरी के थे - उन्हें तो इल्म होगा की खुदा के बन्दों को दफन किया जाता है , ताकि कयामत के दिन अल्लाह मियां अपने बन्दों को जन्नत के मज़े लूटने के ईनामों से नवाजें !
फिर ओसामा जैसे मोमिन को ,  जिसने ताउम्र कौम और इस्लाम के लिए जेहाद किया - अल्लाह के फजल से जन्नत नसीब होगी ही . ओसामा की रूह समंदर की गहराइयों में आबे हयात के नशीले जल की  तलाश में खारे पानी में डुबकियाँ  लगा रही है और दूर दूर तक कोई हूर नज़र नहीं आती .मुल्ला मियां ने तो भरोसा दिलाया था की जेहाद में शहीद  अल्लाह के बन्दों को ज़न्नत  में ७२ 'हूरें' मिलेंगी और बोनस में २८ लौंडे  भी ! लौंडे - अरे वही अपने अमूल- चिकने  !
अमूल किशोरों की याद आते ही ओसमा जी ने आधी रात को  दिग्गी मियां का दरवाज़ा जा खट खटाया ! ठीक वैसे ही जैसे अमेरीकी कमांडो ने लादेन के  दरवाजे पर दस्तक दी और बोले ' कियानी' ! लादेन समझे कि कियानी 'बिरियानी' ले कर हाज़िर हुए हैं. बस यहीं पर खा गए धोखा ! खाते भी क्यों न ! पूरे पांच साल से कियानी की ही  बिरियानी  पर तो जी रहे थे और मारे भी उसी पर गए.   
दिग्गी मियां को ओसामा जी के भूत ने दरयाफ्त की कि दिग्गी भैया एक आप ही तो हो जो सालों से हम आतंकियों के इंसानी हकों के लिए जी जान से  इन काफिरों से लड़ रहे हो ! भला यह भी कोई बात हुई - दो गज जमीन भी न मिली कूए यार में ! फिरंगियों ने कब्र में दफ़नाने की भी ज़हमत न उठाई - उठा कर फेंक दिया पाताल लोक में . हूरों की जगहं भयानक व्हेल्स डराती हैं और लौंडों  के स्थान पर भारी भरकम शार्क्स .अब आप जैसा महान मानवाधिक्कार्वादी , सेकुलर शख्स - अकलियतों का मसीहा और कहाँ जो हम जैसे 'आतंकियों' के हक़ की आवाज़ बुलंद करे. मीयां सोनिया जी से कह कर हमारे लिए एक अदद कब्र का जुगाड़ करवा दो . आप के रहमों करम से अफज़ल और कसाब जैसे टुच्चे से आतंकी भी ऐश कर रहे हैं . ... हम तो फिर भी नंबर वन हैं ...
अल्लाह आप लोगों की झोली नोटों और वोटों से न भर दे तो .. तो कहना.     
जिसमें लाखों बरस की हूरें हों ,
ऐसी ज़न्नत को क्या करे कोई .
अरे... वे हूरें तो -नादिरशाह, अब्दाली,चंगेज़ खान की हैं - अपनी तो ......