शुक्रवार, 23 सितंबर 2011

चाणक्य का भूखा ... मनमोहन का चोर


चाणक्य का भूखा 
मनमोहन का चोर 
 एल.आर.गाँधी 
.हमारे अर्थशास्त्री प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह और अखंड भारत के सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के प्रधान मंत्री विष्णुगुप्त आचार्य 'चाणक्य ' की विचारधारा में ज़मीं आसमान का नहीं बल्कि आकाश -पाताल का अंतर है. 
मनमोहन जी गरीब की लक्ष्मण रेखा खींचने में व्यस्त हैं और धनवान की लूट खसूट से अनजान बने बैठे हैं ! वहीँ चाणक्य एक ओर गरीब के अधिकार के प्रति जागरूक हैं और दूसरी ओर अमीर की लक्ष्मण रेखा पर राज दंड हाथ में लिए प्रहरी की भांति अटल खड़े दिखाई देते हैं- ताकि अमीर अपनी सीमा लांघ कर गरीब के अधिकारों का हरण न कर पाए.चाणक्य का मानना था कि हर नागरिक को खूब मेहनत कर धनोपार्जन करना चाहिए और अपनी आवश्यकता से अधिक धन सुपात्र को दान कर देना चाहिए.   चाणक्य का अपना जीवन ही राज्य के अन्य मंत्रियों के लिए के दृष्टान्त था. चीन के ऐतिहासिक यात्री फाह्यान ने जब कहा कि इतने विशाल देश का प्रधान मंत्री ऐसी कुटिया में रहता है . तब उत्तर था चाणक्य का ' जहाँ का प्रधान मंत्री साधारण कुटिया में रहता है वहां के निवासी भव्य भवनों में निवास किया करते हैं और जिस देश का प्रधान मंत्री राज प्रासादों में रहता है वहां की सामान्य जनता झोम्पडियों में रहती हैं.
नास्ते चौरेशु  विश्वास : चाणक्य ... अनुचित तरीकों से धन कमाने वाले सभी लोग , वे चाहे मंत्री हों, अधिकारी हों, कर्मचारी हों या व्यापारी , इन्हें चोर ही समझाना चाहिए . इसलिए चोरों का कभि विश्वास नहीं करना चाहिए. हमारे आधुनिक अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री लगता है अपने ही देश के महान अर्थशास्त्री 'चाणक्य ' की रीति नीति से अनजान हैं ...विदेशी शिक्षा में शायद उन्होंने भारतीय संस्कृति और दर्शन के बारे में कोई  जानकारी प्राप्त ही नहीं की. तभी तो खुद भले मानुष और ईमानदार होते  हुए भी चोर उच्चक्कों की मंडली से बुरी तरहं घिरे हुए हैं. और अब तो लोग उनकी इमानदारी पर भी शक करने लगे हैं और पूछते हैं:- 'चोरों का सरदार और सिंह फिर भी ईमानदार ? पहले कलमाड़ी का 'खेल' चुपचाप देखते रहे , फिर राजा को क्लीन चित दे दी,अब चिदम्बरम पर पूरा भरोसा जता रहे हैं.... लगता है चोर सिपाही का यह खेल यूँ ही चलता रहेगा जब तक एक एक करके सिंह साहेब की सारी की सारी केबिनेट 'तिहार' में नहीं पहुँच जाती और सिंह साहेब अपनी केबिनेट की बैठके 'तिहार ' में ही बुलाएंगे           
चाणक्य का मानना था कि राष्ट्र-उद्दारक योजनायें राजकीय व्ययों में से बचत करके चलाई जानी चाहियें ..जनता को उत्पीडित कर नए नए कर लगा कर लम्बी चौड़ी योजनाएं जन विरोधी हैं. आज हमारी सरकार महंगाई और भुखमरी से त्रस्त जनता पर नित नए कर लगा कर लम्बी चौड़ी योजनाएं बनाने और चलाने में व्यस्त है ताकि राजनेता और अधिकारी अपनी जेबें भर सकें. 
न क्षुधा सम: शत्रु : चाणक्य ..का मानना था कि भूख के समान शत्रु नहीं.. भूखा व्यक्ति कोई भी पाप कर सकता है. .. जिस देश में भूख से पीड़ित एक ब्रेड चोर की तो खूब पिटाई होती है और करोड़ों रुपया खाने वाले 'राजनेता' तिहार' में भी त्यौहार मनाते हैं , और हमारे सिंह साहेब २६ रूपए रोज़  कमाने वालों को गरीबी रेखा से ऊपर बता कर 'राशन चोर '  ठहराने पर तुले  हैं.