मंगलवार, 30 मार्च 2010

दिल मांगे.. चाकलेट. ..मगर थोड़ा थोड़ा !

पापा.....चाकलेट ....? न बेटा दांत खराब हो जायेंगे... ! अभी तक हम यही सुनते आये हैं। लेकिन अब इस विचार को बदलना होगा और बच्चे के चाकलेट में से एक बाईट पापा भी चख कर अपने 'दिल ' को सकून दे सकते हैं.
एक दशक से १९,३०० लोगों पर चल रहे जर्मन शोध से यह तथ्य उभर कर सामने आए हैं कि कोक से भरपूर डार्क चाकलेट थोड़ी मात्रा में लेने से दिल और रक्त चाप दरुस्त रहता है। हर रोज़ यदि ७.५ ग्राम डार्क चाकलेट लिया जाये तो रक्त चाप तो दरुस्त रहता ही है, हृदय घात कि सम्भावना भी ३९% कम रह जाती है।
जर्मन हियुमन न्यूट्रीशन संस्थान के वैज्ञानिक ब्रियन बुज्स्से ने लोगों को साथ साथ एक चेतावनी भी दी है कि वे चाकलेट से ही पेट न भरने लग जाएँ क्योंकि १०० ग्राम चाकलेट में ५०० कैलोरिस भी होती हैं , जिस से मोटापा और वज़न बढ़ने का खतरा बना रहता है। इस के साथ ही अन्य एनर्जी फ़ूड में कमी कर बाडी व्हेट को संतुलित भी रखना होगा। चाकलेट में फ्लावानोल्स रसायन होता है जो कि एंटी-अक्सिडेंट का काम करता है ,और बहुत सी सब्जिओं-कोक और रेड वाइन में भी पाया जाता है। फ्लावानोल्स से ह्युमन सेल्स से नाईट्रिक आक्साइड गैस का स्त्राव बढ़ जाता है जिस से खून कि धमनियों में फैलाव से खून का प्रवाह नियंत्रित हो हृदय और रक्त चाप ठीक से काम करने लगता है। डार्क चाकलेट में ७०% कोक होता है जिस से मानसिक तनाव में कमी आती है ,खून का बहाव ठीक होने से रक्त चाप में मदद मिलती ही। काला चाकलेट मगर थोड थोडा।

रविवार, 28 मार्च 2010

ज़कात- जजिया और आरक्षण.....

देश के एक तिहाई मुसलमान प्रति माह ५५० रुपये पर गुज़र बसर कर रहे हैं । १० में से ३ मुसलमान गरीबी रेखा से नीचे बैठे हैं और गाँव में तो स्थिति और भी खराब है जहाँ प्रति मुसलमान यह आय सिर्फ ३३८/- प्रति माह है। नेशनल काउन्सिल फार एप्लाइड इकनोमिक रिसर्च ने यह खुलासा किया है।
रंगनाथ मिश्र आयोग तो पहले ही मुसलामानों के लिए आरक्षण की सिफारिश कर चूका है। आयोग ने तो दलित मुसलामानों और इसाईओं के लिए अनुसूचित जाती का आरक्षण देने की भी बात कही है। आन्ध्र की कांग्रस सरकार द्वारा मुस्लिमों को रोजगार और शिक्षा संस्थानों में ४% आरक्षण को अब सर्वोच्च न्यायालय द्वारा भी जायज़ ठहरा दिया गया है। हमारे संविधान में धरम के आधार पर आरक्षण का प्रावधान न होने के कारण अभी तक मुसलामानों को आरक्षण नहीं दिया गया था। अब तो इलेक्शन से पूर्व बंगाल की वामपंथी सरकार ने भी मुसलमानों के लिए १०% आरक्षण की घोषणा कर डाली है। ज़ाहिर है वोट बैंक की राजनीती के चलते यह आरक्षण का लाली पाप तो बँटताही रहेगा।
पिछले दिनों एक ब्लॉग पर एक गरीब मुस्लिम भाई की व्यथा देखने का अवसर मिला । एक पत्रकार एक मियां जी से मिले जिनके चार बिविओं से ३१ बच्चे थे और तीसरी बेगम साहिबा फिर उम्मीद से थीं । इस पर भी मियांजी अभी एक और शादी की तैयारी में मशरूफ थे । पत्रकार ने मियां जी से पूछा ? मियां जी क्या सभी बच्चों के नाम याद हैं , तो मियां जी ने हामी भर दी और लगे नाम गिनवाने।१५ तक तो गिनवाए फिर फुल स्टाप लग गया। सकपका कर कहने लगे मियां ! ...सामने आएंगे तो नाम भी याद आ जायेगा ।
जहाँ इतना सालिड वोट बैंक हो ..वहां आरक्षण तो होना ही चाहिए ना भई। चाहे सर्वोच्च नयायालय की अधिकतम ५०% आरक्षण की सीमा भी क्यों ना पार करनी पड़े। अब मियां जी तो तीन तलाक के अपने मज़हबी अस्त्र से तीन बिविओं को बाहर का रास्ता दिखा कर तीन निकाह और भी कर सकते हैं । फिर बच्चे तो अल्लाह के नेमत हैं -अल्लाह जिसे एक मुंह खाने को देता है -उसे दो हाथ कमाने को भी तो देता ही है। यह बात अलग है ...यदि हम छे हमारे छतीस का यह खेल यूंही चलता रहा तो हमारी कांग्रेस सरकार को बेचारे गरीब मुस्लिम भाईओं के लिए चार नहीं चालीस प्रतिशत का आरक्षण देना पड़ेगा। फिर जहाँ जहाँ इन अल्लाह के बन्दों का बहुमत हो जायेगा वहां वहां नया कश्मीर और धारा ३७० अपने आप लागू हो जाएगी। वह दिन दूर नहीं जब हिन्दोस्तान के बहुत से इलाकों में निजाम-य- अदल और काफिरों पर जजिया नासिर होगा। फिर कुराने पाक में भी तो यही आदेश है -'हराम महिना बीत जाये तो मुशरिकों को जहाँ कहीं पाओ क़त्ल करो , उन्हें पकड़ो, घेरो और हर घात की जगह उनकी टाक में बैठो।फिर यदि वह तौबा कर लें और नमाज़ कायम करें और ज़कात दें तो उनका मार्ग छोड़ दो, निश्चित ही अल्लाह बड़ा क्षमा शील ,दया वान है (सूरा ९ अत तौबा ...२६०... पारा १० )। .... अल्लाह के इस करम और दया का ही प्रताप है की पाक में हिन्दू २२% से घट कर मात्र २% शेष बचे हैं और वो भी जजिया के रहमो करम पर।

शुक्रवार, 26 मार्च 2010

हेल्दी - हल्दी

हैल्दी-हल्दी
एक नए शोध में हल्दी को लीवर के लिए हैल्दी पाया गया है.हल्दी में पाए जाने वाले कुर्कुमिन रसायन से सिरोसिस यानि लीवर अर्थात यकृत की बीमारी में आराम मिलता है. इस रसायन के कारन ही हल्दी का रंग पीला है.
मेडिकल यूनिवर्सिटी ग्रेज आस्ट्रिया के प्रोफ़ेसर माइकल ट्रानर द्वारा चूहों पर किये गए शोध से हल्दी के इन चमत्कारी गुणों पर से पर्दा उठा है. प्रोफ़ेसर माइकल ने पहले चूहों को लीवर के लिए हानिकारक रसायन का इंजेक्शन दिया और भोजन में उन्हें हल्दी(कुर्कुमिन) दिया गया. चूहों का दूसरा ग्रुप सामान्य भोजन पर रक्खा गया. ४.५ माह तक इसका असर देखने पर यह तथ्य सामने आए कि हल्दी से लीवर की दो प्रकार की ऑटो इम्म्युन बीमारियों में कमी के लक्षण दिखाई दिए .
लीवर की प्राइमरी स्क्ल्रोसिंग कोलान्जाईटिस व् प्राइमरी बिलियरी सिरोसिस के यथेष्ट उपचार न होने के कारन लीवर प्रत्यापन ही एक मात्र विकल्प शेष रह जाता है. संक्रमित लीवर में प्रयुक्त होने वाले उर्सोदिअक्सिक्लोरिक एसिड के चिर कालीन कुप्रभावों बारे अभी तक कुछ सपष्ट नहीं हो पाया है.
हल्दी को आयुर्वेद में प्राचीन काल से ही एक चमत्कारिक द्रव्य के रूप में मान्यता प्राप्त है. औषधि ग्रंथों में इसे हल्दी के अतिरिक्त हरिद्रा, कुरकुमा लौंगा, वरवर्णिनी ,गौरी, क्रिमिघ्ना योशितप्रीया,हट्टविलासनी ,हरदल, कुमकुम,टर्मरिक नाम दिए गए हैं. हल्दी में उड़नशील तेल ५.८% प्रोटीन ६.३ % द्रव्य ५.१ % खनिज द्रव्य ३.५.% करबोहाईड्रेट ६८.४ के अतिरिक्त कुर्कुमिन नामक पीत रंजक द्रव्य, विटमिन ऐ पाए जाते है. हल्दी कफ़-वात शामक, पित्त रेचक व् पित्त शामक है. रक्त स्तम्भन ,मूत्र रोग, गर्भश्य,प्रमेह, त्वचा रोग , वात -पित्त -कफ़ में इसका प्रयोग बहुत लाभकारी है यकृत प्लीहा की वृद्धि अर्थात लीवर एनलार्जमेंट में इसका लेप किया जाता है. नाडी शूल के अतिरिक्त पाचन क्रिया के रोगों ... अरुचि ( भूक न लगना) विबंध , कमला, जलोधर व् क्रीमी में भी यह लाभकारी पई गई है.
हल्दी का हर भारतीय घर में एक मसाले के रूप तो प्रयोग होता ही है. चाहे वह तरकारी को रूप रंग देने के उद्देश्य से ही हो. बचपन में हमारी दादी माँ वर्ष के आगमन पर जब हरी हल्दी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होती थी,सारे परिवार के लिए हल्दी- पाक बनती और उन का विशवास था की इस से सारे परिवार का काया-कल्प हो जायेगा और इसका असर सारा साल रहेगा. हमारे यहाँ सौन्दर्य प्रसाधनों में भी हल्दी का प्रयोग बहुतायत में होता है. विवाहोत्सव में तो हल्दी की रसम का अपना एक विशेष महत्तव है.
.

शुक्रवार, 19 मार्च 2010

कलमाड़ी जी की पतंगबाजी

ज्यों ज्यों राष्ट्र मंडल खेलों के महापर्व का दिन निकट आ रहा है -कलमाड़ी जी की तत्परता बेचैनी में बदलती जा रही है. कल रविवार है और २०० दिन महज़ शेष बचे हैं महां- खेले के. इस अवसर पर कलमाड़ी जी ने आयोजन को सफल और विश्व स्तर का बनाने के लिए 'जोर लगा के हई शा' प्रोग्राम इंडिया गेट पर रखा है ता कि दिल्ली वासिओं को एहसास दिलाया जा सके कि 'सब ठीक ठाक' है. इस अवसर पर २०० फुट कैनवस पर राष्ट्र मंडल खेलों का 'थीम' उकेरा जायेगा.अब हुसैन साहेब तो बीच मझधार छोड़ कर अपने स्लीपरों सहित क़तर भाग गए . इस लिए यह काम प्रसिद्ध कलाकार सतीश गुजराल जी को सौंपा गया है. अन्य कलाकार भी अपने फन के जौहर दिखायेंगे. पतंग बाज़ी का विशेष कार्यक्रम भी आयोजित किया जायेगा.पतंग उड़ा कर कलमाड़ी जी अपने ऊंचे इरादों से दिल्ली कि जनता को रु- ब- रु करवाएंगे.
राष्ट्र मंडल २०१० को विश्व स्तर का आयोजन बनाने के लिए सरकार ने कलमाड़ी जी को खुली छुट दे रखी है.खेलों के लिए जहाँ १.६ बिल्लियन डालर का प्रावधान है, वहीँ दिल्ली सरकार पिछले तीन साल में दिल्ली को दुल्हन बनाने पर १७,४०० करोड़ खर्च कर चुकी है.शिला जी के मिन्नी पर्स में से ११००० करोड़ भी ख़त्म होने को हैं और केंद्र से २०,००० करोड़ कि और मांग कि गई है.
कलमाड़ी जी के सपने को साकार करने में लाखो मजदूर दिन रात पसीना ही नहीं अपना खून भी बहाए जा रहे हैं. अब तक ४३ मजदूर खेल गाँव के निर्माण में वीर गति को प्राप्त हो चुके हैं. विश्व स्तर के निर्माण के लिए सरकार ने तो अंतर्राष्ट्रीय कम्पनिओं से निविदाएँ आमंत्रित की थीं . इन बड़ी कम्पनिओं ने आगे मजदूरों आदि के जुगाड़ के लिए देसी ठेकेदारों को काम सौंप दिया. इन देसी ठेकेदारों ने लोकल मजदूरों के स्थान पर प्रवासी मजदूरों को दिहाड़ी पर काम दिया ता कि लेबर लास के झंझटों से बचा जा सके.पक्का मजदूर रखने पर नियमोअनुसार मजदूर का पंजीकरण अपेक्षित है. पंजीकृत मजदूर को मूलभूत सुविधाओं के इलावा जीवन बिमा भी किया जाता है. इस पर चिकित्सा सुविधा और दुर्घटना प़र समुचित मुआवजा देना होता है. अब इन अस्थाई मजदूरों को बीमे कि सुविधा तो क्या मूल भूत सुविधाएँ भी नहीं मिल पाती
गत जनवरी में कडाके कि ठण्ड में मजदूरों कि दुर्दशा का संज्ञान लेते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने पांच सदस्यों के एक पैनल का गठन किया. ताकि निर्माण कार्य में लगे मजदूरों को दरपेश मुसीबतों की यथार्थ जानकारी प्राप्त की जा सके. १५ मर्च को पैनल ने अपनी रिपोर्ट में कोर्ट के समक्ष मजदूरों की दयनीय स्थिति बारे सनसनीखेज़ रहस्यों पर से पर्दा उठाया.मजदूरों को ठेकेदारों द्वारा मूल भूत सुविधाएँ भी मुहैया नहीं करवाई जाती. न्यूनतम वेतन भी नहीं दिया जाता और ऐसे मजदूरों की संख्या ४१५,ooo हज़ार है. पैनल की सदस्य अरुंधती घोष ने अपनी रिपोर्ट में कोर्ट को बताया है कि ये मजदूर देश के नागरिक हैं इस लिए इन्हें देश के क़ानून द्वारा निर्थारित सुविधओं पर इनका पूरा हक़ है,जिनसे इन्हें वंचित रखना एक अपराध है.मजदूरों के साथ जानवरों जैसा सलूक किया जा रहा है. मजदूर बदबूदार कोठड़ों में रहने को मजबूर हैं,जहाँ शौचालय तक कि सुविधा नहीं . १५० मजदूरों को मात्र ४ शौचालयों में जो गन्दगी से भरे रहते हैं ,उपलब्ध किये गए हैं जहाँ तक महिला मजदूरों का सम्बन्ध है, उनको यह सुविधा भी नहीं कि वे अलग परदे में शौच जा सकें. नियमानुसार मजदूरों को रक्षा कवच- हेमलेट , जूते और मास्क आदि कि तो बात ही छोडो. सरकार द्वारा निर्माण कम्पनिओं से मजदूरों कि सुख सुविधा के लिए सेस के रूप में कर लिया जाता है जो अब तक ३५० करोड़ रूपए तक पहुँच गया है. दिल्ली में ८ लाख मजदूरों में से केवल २००० मजदूर ही पंजीकृत हैं . मारे गए ४३ मजदूरों में से केवल मात्र एक मजदूर को दुर्घटना का मुआवजा मिल पाया है. इस फंड में से मजदूरों के मात्र १०० बच्चों को छात्रवृति और ३ बाल वाड़ीओं का इंतजाम शीलाजी की अफसरशाही कर पाई है.
पैनल ने उच्च न्यायालय को अपनी रिपोर्ट में इन मजदूरों के लिए लेबर एक्ट द्वारा निर्धारित सुविधाएं और सरकार द्वारा इकठे किये गए ३५० करोड़ कर में से पीड़ित परिवारों को सहायता पर्दान करने के अतिरिक्त दोषी अफसरशाही और निर्दई ठेकेदारों के विरुद्ध कारवाही करने का अनुरोध किया है.
जब निर्माण की रीढ़ मजदूर ही बेहाल है तो निर्माण कार्य निर्धारित समय सीमा में पूरा करना कैसे संभव है. अब कलमाड़ी जी कितने ही बिन डोर के पतंग उड़ा ले और २०० फुट कैनवस छोड़ २००० फुट की कैनवस को सत्ता के रंगों से रंग लें 'जोर लगा के हई शा' तो 'चोकी लामा को ही करना है.

बुधवार, 10 मार्च 2010

मुमताज़ की मोहर- राबड़ी के हस्ताक्षर

महिला दिवस पर मैडम को 'महिला बिल शेक ' न पिला पाने का मलाल तो रहेगा ही मनमोहन जी को.' बिल शेक ' तो तैयार था बस चंद 'यदुवंशियो और अल्लाह के बन्दों 'ने लस्सी घोल दी.ममता-मुलायम -लालू के मुस्लिम-यादव प्रेम के चलते तीन यादव और ४ मुस्लिम सांसद सभापति से भीड़ गए और बापू के अहिंसावादी योजनाकार 'सब को सन्मति दे भगवान्' का जाप करते रह गए.
ज्यों ही राज्य सभा में महिला आरक्षण बिल पास हुआ ! सदिओं से डरी सहमी अबला नारि को मानों ६३ साल बाद नाईज़ीरिया को हरा कर हाकी में गोल्ड मैडल मिल गया हो. पक्ष में १८६ गोल हुए और विपक्ष में मात्र एक. बाकी खिलाडी मैदान छोड़ कर भाग खड़े हुए.
९ मार्च का दिन भारत के इतिहास में 'निशब्द' अक्षरों में लिखा जायेगा ,जब भारतीय नारि को लोक सभा और विधान सभाओं में 'पंचायतो और नगरपालिकाओं 'की भांति ३३% आरक्षण का अमोघ अस्त्र प्रदान कर देश की यथार्थ भाग्य विधाता बना दिया गया. नारि अब तकनरों के मन पर तो राज करती ही आ रही थी. मगर नर का मन कब बईमान हो जाये और कब मन के महल से निकाल बाहर का रास्ता दिखा दे,इसका भरोसा नहीं था.अब अन्दर और बाहर के सारे कानून नारि की सहमति से ही बन पाएंगे.
वैसे तो अनादी काल से विश्व पर नारिओं का ही साम्राज्य चला आ रहा है. द्रोपदी के चीर हरण पर महाभारत हो गया और हजारों महाबली धराशाही हो गए . सीता हरण ने सोने की लंका को राख कर दिया और दशानन के दस शीश धूल धूसरित हो गए. कहते हैं बादशाह शाहजहाँ का राजकाज उनकी मल्लिका मुमताज़ की मोहर का मोहताज़ था. हर शाही फरमान बेगम मुमताज़ के पास हरम में अंतिम मंजूरी के लिए भेजा जाता और बेगम अपने पान दान में से शाही मोहर निकाल कर , अपने नाज़ुक हाथों से शाही फरमान पर चस्पा कर देती -तब जा कर शाही फरमान -शाही कानून बन पाता.सहजादा सलीम का तो सारा राजपाठ ही बेगम नूरजहाँ का मोहताज़ था. मियां सलीम उर्फ़ जहाँगीर तो हमेशां नशे में धुत्त रहते -राज दरबार में भी नूर जहाँ का हाथ जब तक पीठ पर रहता ,बैठे रहते -जब हाथ उठा मियां सलीम भी रुखसत मैखाने के लिए . हमारे लोक तंत्र में भी यह प्रथा बदस्तूर जारी है. जब तक महामहिम प्रतिभा पाटिल जी की मोहर नहीं लगती -महिला बिल राज्य सभा से लोक सभा और फिर विधान सभाओं के गलियारों में ही भटकता रहेगा.
अब लालूजी न मालूम क्यों कानों के बाल मुंडवा कर इस बिल के पीछे पड़े हैं . मैडम ने लाख समझाया की भई 'राबड़ी ' ही नहीं आपके यहाँ तो सात बेटियां भी हैं. वे भी इस बिल की बदौलत सत्ता सुख भोग पाएंगीं . मगर लालू जी को अपना 'माई' वोट बैंक काखाता जीरो प्रतिशत होता नज़र आ रहा है. माई' मुस्लिम-यादव वोट बैंक के चलते लालूजी १५ साल बिहार का सत्ता सुख भोगते रहे. और ब्याज में 'राबड़ी' जी को भी पांच साल के लिए मुख्या मंत्री की मोहर थमा दी . अब राबड़ी जी कहाँ मानने वाली थी ,जिद कर बैठी 'भई हम तो पढ़े लिखे हैं ' मोहर नहीं दस्तखत करेंगे . लगी दस्तखत करने -भले ही एक दस्तखत को ५६ सैकिंड लग जाएँ. फिर भी भला हो बिहारी अफसरशाही का ५ साल गुज़रते गुज़रते राबड़ी जी को 'एक दस्तखत '३६ सैकिंड में करना सीखा दिया. भला हो सोनिया जी का ,अब हर तीसरी सीट पर महिला प्रत्याशी चुनाव लडेंगी . देश के जितने भी 'लालू' अपनी पार्टी के टिकट से वंचित रह जायें गे या किसी चारा घोटाला के चलते चुनाव के अयोग्य हो जायेंगे ,अब अपनी 'राबडिओं' को लडवा कर 'आम के आम गुठलियों के दाम , वसूल कर पाएंगे. अंगूठा छाप 'राबडिओं 'को छूट होगी अपने पर्स में 'अपने नाम की मोहर ' रखने की. फिर पंचायतो और नगरपालिकाओं में यह 'प्रयोग ' सफल भी तो रहा है. !

गुरुवार, 4 मार्च 2010

बुर्के में आतंक....

काबुल के आतंकी हमले में नौं भारतीय शहीद हो गए। इनमें सात भारतीय सेना के अधिकारी थे जो अफगानिस्तान में भारतीय मिशन पर वहां अफगान सैनिको को सिखलाई देने गए थे।इस हमले में मेज; दीपक यादव व् लैस्रम सिंह घटना स्थल पर ही वीर गति को प्राप्त हुए, चार अन्य सेना अधिकारी जो बुरी तरहं जल गए थे को दिल्ली आर आर हस्पताल में इलाज़ के लिए लाया गया जहाँ मेज; राय कि मृत्यु हो गई और बाकी तीन की हालत गंभीर बनी हुई है।
जांच एजेंसिओं के सूत्रों के अनुसार इस हमले में आतंकी बुर्के में आये थे। तीन आतंकी बुर्के में थे और चौथा ड्राइवर के रूप में इन 'ख्वातीन ' को नूर गेस्ट हॉउस में छोड़ने आया था, जो इन्हें छोड़ कर खिसक गया।
उक्त हादसे से स्पष्ट होता है कि हमारी सरकार ने पूर्व के अनुभवों से कोई सबक नहीं सीखा। पहले राजीव गाँधी द्वारा श्री लंका में शांति स्थापना के नाम पर सैंकड़ों भारतीय सैनिकों कि बलि दे दी, अब मनमोहन सरकार अफगानिस्तान में नवनिर्माण के नाम पर अपने सैनिकों को मौत के मुंह में झोंक रही है।
इस्लामिक आतंकिओं को मजहबी संरक्षण प्राप्त है। बुरका इस्लाम का पवित्र पर्दा है। इस परदे के पीछे झाँकने कि कोशिश मात्र ही मुसलामानों में बवाल पैदा करने के लिए काफी है। अब किसी सर फिरे ने तसलीमा के नाम से एक लेख लिख दिया कि मुहम्मद साहेब बुर्के के हामी नहीं थे। तसलीमा के लाख खंडन करने पर भी बवाल थमने का नाम नहीं ले रहा।
कश्मीर में तैनात भारतीय सैनिको को भी सालों से इसी बुरका आतंक से दो चार होना पड़ रहा है। आतंकी किसी भी युवक को थोड़े पैसे और ग्रेनेड थमा कर बुरका ओढा देते हैं। ऐसे अनेको 'बुर्कातंकी 'हमलों में सैंकड़ों सैनिक शहीद या हताहत हो चुके हैं किन्तु हमारी सेकुलर सरकार अल्पसंख्यकों की भावना की ठेंस को ओढ़े मूक दर्शक बनी बैठी ,देश के वीर सपूतों की चिताओं पर अपनी राजनैतिक रोटिया सेक रही है।