शुक्रवार, 1 अक्तूबर 2010

गोडसे हाज़िर हो.. खामोश आदालत जारी है...

शिमला का एतिहासिक पीटरहोफ होटल जहाँ
गाँधी जी के हत्यारे 'गोडसे' पर मुकदमा चला.......
खामोश अदालत जारी है ..गोडसे हाज़िर हो......
एल.आर.गाँधी.

मोहन दास करम चाँद गाँधी उर्फ़ महात्मा गाँधी बनाम राम चंदर उर्फ़ नाथू राम गोडसे वल्द विनायक वामनराव गोडसे .....हाज़िर हो.......
जी हाँ ..फिर से अदालत लगेगी ..और लगेगी भी वहीँ ..जहाँ पहले लगी थी. स्थान है शिमला का पीटर हाफ होटल . दरअसल पीटर हाफ में हिमाचल सरकार एक म्यूजियम बनाने जा रही है. आजादी के बाद १९४७ से १९५५ तक पीटर हाफ पंजाब सरकार का हाई कोर्ट रहा जहाँ गाँधी जी के कातिल गोडसे पर २७ मई १९४८ से मुक़दमा चला, नवम्बर १९४९ को उसे सजाए- मौत का फरमान सुनाया गया और १५ नवम्बर १९४९ को अम्बाला जेल में फंदे पर झुला दिया गया.
पर्यटक निगम के निदेशक सुभाष पंडा कि माने तो म्यूजियम में गोडसे के मुकदमे से सम्बंधित वस्तुओं व् सबूतों को प्रदर्शित किया जाएगा, ताकि लोगों को मुकदमे कि सचाई से रु--रु करवाया जा सके.
अबकी सुनवाई में आम ख़ास सभी शिरकत के पूरे हकदार होंगे. छूट गए कानूनी पहलुओं पर फिर से सेकुलर तौर तरीकों से गौर किया जाएगा .गोडसे फिर से बतलायेंगे, पर.... अबकी बार..., एक अदद वकील कि मार्फ़त.. कि उसने 'महात्मा' को क्यों मारा.! कैसे पाकिस्तानियों के हाथों उनके भाई बंधू मारे गए, कैसे उनकी बहु बेटीओं कि इज्ज़त लूटी गई. एक दो नहीं , लाख बेगुनाह मारे गए ५० लाख बेघर हो गए.कैसे जिन्ना की जिद के आगे बापू बेबस हो गए और अपनी कसम ' पाक मेरी लाश पे बनेगा...भुला दी.और कैसे खुद को दुनियां का सब से महां - सेकुलर सिद्ध करने के लिए फिर से 'अनशन ' के कोप भवन में जा बैठे ! नेहरु-पटेल के उस निर्णय के विरोध में जो उन्होंने कबिनेट में लिया था -पाक को ५५ करोड़रुपये देने का.
पाक ने कश्मीर का बहुत बड़ा भूभाग हथिया लिया कबाईलियों के वेश में फौजी हमला कर ! हमारी सेनाएं अपना क्षेत्र खाली करवा रहीं थी कि नेहरु ने इकतरफा युद्ध विराम कर कश्मीर मसला यू.एन.ओ के पाले में डाल दिया. १३ जनवरी को पटेल की पहल पर केबिनेट ने फैसला किया कि पाक की ५५ करोड़ की देनदारी रोक ली जाये तांकि उसे कश्मीर से हट जाने को मजबूर किया जा सके. मगर गाँधी जी के 'अनशन' धमकी के आगे केबिनेट बेबस हो गई और फैसला उसी दिन वापिस ले लिया. पाक से उज़ड़ कर आए हिन्दू शर्णार्थियो में गाँधी जी के इस पाक प्रेम पर भारी क्षोभ के साथ साथ असहनीय आक्रोश भी था जिसकी अभिव्यक्ति गोडसे के १४ जनवरी को छपे 'मक्र्सक्रांति' सम्पादकीय में साफ़ झलकती है. १३ जनवरी को ही ३० जनवरी का इतिहास 'गोडसे' के मर्माहत वक्षस्थल पर लिखा गया था. ५५ करोड़ कोई मामूली राशी न थी और( आज यह राशि १२५०० करोड़ होती). भारत का रक्षा बज़ट मात्र ९३ करोड़ था . इन्ही तथ्यों को गोडसे ने अपनी पैरवी में पेश किया.
कहते हैं ! जब गोडसे ने अपनी पैरवी खुद करते हुए ,तफसील से उन तथ्यों को बयां किया जिन्होंने उसे 'महात्मा' का मर्डर करने को मजबूर किया, तब पीटर हाफ के कोर्ट रूम में बैठे वे चुनिन्दा लोग सुबक रहे थे..सभी के हाथ में रुमाल थे और अपने आंसू पोंछ रहे थे.बकौल जज साहेब 'मैं अपनी कानूनी बंदिशों से मजबूर था ..यदि मौजूदा दर्शकों पर फैंसला छोड़ दिया जाता ..तो गोडसे 'बरी' हो जाता.
यह भी कोई बात हुई बिना 'अब्बास काज़मी' के जिरह, बहस, महज़ एक साल पांच महीने और १३ दिन में केस निपटा डाला और फैसला भी सुना दिया. और तो और हफ्ते भर में फांसी पर भी लटका दिया. दरअसल सेकुलर सरकार अभी नई नई और ना समझ थी......वाकील मुहय्या ही नहीं करवाया और अपनी पारी से पहले ही लटका दिया सूली पर.समझदार सेकुलर सरकार तो अब है...अफज़ल मिआं बैठे हैं लाइन में..सलीके से जब बारी आयेगी लटका देंगे !!!!!