सोमवार, 22 अगस्त 2011

भ्रष्टाचार की दहीं हांडी


भ्रष्टाचार  की  दहीं  हांडी 
     एल. आर. गाँधी 

मुसलमानों ने रमजान की नमाज़ अन्ना को समर्पित कर भ्रष्टाचार के खिलाफ अज़ान दी तो श्री कृषण जन्माष्टमी के पावन पर्व पर भ्रष्टाचार   की  दहीं  हांडी को फोड़ कर कृषण भक्तों ने अन्ना के आन्दोलन से एकजुटता प्रकट कर दी. अन्ना के आन्दोलन पर हमारे काले अंग्रेजों की प्रारंभिक प्रतिक्रिया भी कुछ कुछ अपने मानसिक आकाओं गोरे अंग्रेजों के समान ही थी. जब गाँधी जी ने दांडी मार्च के माध्यम से अंग्रेजों के नमक कानून के विरुद्ध आन्दोलन किया तो वायसराय हिंद लार्ड इरविन ने भी लन्दन में अपने आकाओं को लिखा था  कि गाँधी के दांडी मार्च से उनकी नींद में कोई खलल नहीं पड़ने वाला.मगर गाँधी जी के दांडी मार्च को जब अभूत पूर्व जन समर्थन मिला तो गोरे अँगरेज़  'गोल मेज़ 'कांफ्रेंस को मजबूर हो गए.   कुछ ऐसी ही प्रतिक्रिया हमारे आज के काले अंग्रेजों की है. कांग्रेस के राजकुमार तो अन्ना आन्दोलन पर किसी प्रशन का उत्तर देना भी  मुनासिब नहीं समझाते, प्रधानमंत्री संसद की प्रभुसत्ता का राग अलाप रहे हैं. 
ज्यों ज्यों अन्ना के साथ जनसमर्थन बढ़ रहा है .. हमारे काले अंग्रेजों को अन्ना का भूत भरमाने लगा है. किसी 'गोल मेज़' का जुगाड़ शुरू हो गया है. साथ ही अपनी बची खुची साख बचाने के भी जतन हो रहे हैं. शर्त रखी गई है कि अन्ना अकेले बात करें -कोई   केजरीवाल -शांतिभूषण -किरण बेदी नहीं चाहिए. अब अन्ना भी ठहरे गाँधी के चेले ... बापू तो गोल मेज़ कांफ्रेंस में अपनी बकरी भी साथ ले कर गए थे ..साथियों को छोड़ने कि तो बात ही छोडो.       
दांडी मार्च से पहले गांधीजी ने २मार्च  १९३० को वायसराय को एक नोटिस दिया जिसमें नमक पर कर भारत की गरीब जनता  के ज़ख्मो पर नमक लगाने के समान बताया. बापू ने गोरे अँगरेज़ को बताया कि उनकी मासिक आय २१००० /- अर्थात ७००/- रोजाना है जबकि भारत के प्रति व्यक्ति औसत आय २ आना से भी कमतर है. अर्थात आम आदमी और वायसराय की आय में ५००० गुना अंतर है. आज़ादी के ६४ सालों में देश पर राज कर रहे काले अंग्रेजों ने देश को इस कदर लूटा है कि आम आदमी की हालत गोरे अंग्रेजों के वक्त से भी बदतर हो गई है. आज गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाली ८० % जनता की औसत आय प्रति दिन २०/- के करीब है. जबकि देश के राष्ट्रपति पर प्रति दिन ५.१४ लाख रूपए और प्रधानमंत्री पर ३.३८ लाख रूपए खर्च होते हैं और यह खर्च औसत भारतीय से १६९०० गुना अधिक है. केन्द्रीय मंत्री मंडल पर रोज़ २५ लाख खर्च होते हैं. 
राष्ट्रिय लूट  खसूट अर्थात भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए जनता द्वारा चुने गए सांसद पिछले ४२ साल से लोक पाल बिल पर माथा पच्ची कर रहे हैं - अब भी हमारे मोहन प्यारे फरमा रहे हैं कि कोई कानून बनाना सांसदों का विशेषाधिकार है- कोई अन्ना शन्ना इस विशेषाधिकार का चीर हरण नहीं कर सकता. अरे पिछले ६४ 
 वर्ष से आप देश की भूखी नंगी रियाया का जो चीर हरण कर रहे हो , उसका क्या. काठ की हांड़ी आखिर कब तक चूल्हे पर टिकेगी. जनता के सबर  के पैमाने को अन्ना की हुंकार ने छलका दिया है.
तुमसे   पहले   जो   यहाँ   तख़्त   नशीं   था ..
उसको भी अपने खुदा होने पर इतना ही यकीं था ....