शनिवार, 29 अक्तूबर 2011

कुत्तों का खेल प्रेम

कुत्तों का खेल प्रेम 

एल.आर.गाँधी 

भारत  फ़ॉर्मूला वन के आयोजक विश्व की सबसे भव्य और मंहगी कार रेस की तैयारी का जायजा लेने की अभी सोच ही रहे थे की माया जी के ' कालू ' ने ट्रैक पर मटरगश्ती कर ' बढ़िया है ' का उद्घोष  कर डाला ... प्रबंधको के होश फाख्ता हो गए ..सेवकों को भगाया ..कालू को भगाने को . जैसे तैसे कालू से निजात मिली ही थी की  शीला जी के 'भूरू महाशय ' कहीं से आ टपके . भूरू  से किसी प्रकार पीछा छुड़ाया ही था की भारतीय मिडिया के 'वाच डाग' अपने लाव- लश्कर के साथ आ धमके .... सभी चैनलों पर बस एक ही खबर बज रही थी ..ठीक वैसे ही जैसे किसी चोर  के आगमन पर गली के कुत्ते एक ही स्वर में भौंकते हैं. एक ही पल में सभी चैनलों ने 'दिग्गी मियां' की अन्ना पर भौं - भौं को भुला दिया. शुमाकर से ज्यादां तो आवारा कुत्ते प्रचार पा गए .. इसे कहते हैं चौथे खम्भे की टी. आर पी. सारे मिडिया ने कालू- भूरू की कुछ इस कदर खबर ली.. जैसे वे इनके इस पवित्र खम्भे  पर  टांग उठा कर कुछ कर गए हों. 
जब से मेनका जी का वरद हस्थ इन 'वफादार' श्वानों को प्राप्त हुआ है ..इनकी संख्या और क्रीडा कौशल में असीम वृद्धि दर्ज हुई है. हाल ही में हुई कमान वेल्थ खेलों  में भी इन्होने अपने खेल प्रेम का खूब परिचय दिया. कलमाड़ी जी ने दिन रात एक कर खेल ग्राम का निर्माण करवाया ताकि विदेशी खिलाडियों को दिल्ली में विश्व स्तर की आवास सुविधा मुहैया करवाई जाए .... बड़े शौक से अपनी उपलब्धि कामन वेल्थ खेल संघ के प्रेजिडेंट माईकल फेनेल को दिखने ले आए ... जब खिलाडियों के लिए बनाए कमरे  को खोला तो खिलाडी के बेड पर शीला जी के 'भूरू महाशय' आराम फरमा रहे थे... फेनेल भूरू को देख बिफर गए .. पूरे के पूरे खेल ग्राम को गन्दा और आवास अयोग्य करार दे दिया.  आनन् फानन में शीला जी ने अपने आवारा- पालतुओं को संभाला ...तब तक नहीं छोड़ा  जब तक फेनेल महाशय विदा नहीं हो गए. 
विदेशी महमान हमारे इन देसी वफादारों से  न मालूम क्यों  इस कदर खफा हैं ... हमारे राजनैतिक वफादार बिना कारण ही नित नई भौं- भौं में मशगूल हैं ..रोकता है कोई ?   कालुओं -भूरूओं पर मेनका जी का वरद हाथ है तो दीग्गिओं  और लालूओं पर राज माता का . अब शीला जी भी क्या करें, जब से मेनका जी ने श्वान- वध पर  रोक लगाई है , दिल्ली में इनका परिवार 4 लाख का आंकड़ा पार कर गया है. मेनका जी ने तो इनकी संख्या पर नियंत्रण के लिए ' नस बंदी' का भी प्रावधान किया था. मगर शीला जी को यह सुझाव हज़म ही नहीं हुआ . जब लालुओं पर परिवार नियोजन की ज़बरदस्ती नहीं हो सकती तो कालुओं पर कैसे हो सकती है. हर साल केवल दील्ली में ही ३५०००  लोग इनका शिकार होते  हैं और २-३ दर्ज़न लोग तो बेमौत मारे भी जाते  हैं.हर साल १०००० नए पिल्लै जन्म लेते हैं और नसबंदी मात्र ६००० की हो पाती है . 
कुत्तो का खेल प्रेम केवल हमारी ही समस्या  नहीं .. २०१२ में फुटवाल विश्व कप के आयोजक भी अपने इन खेल प्रेमियों से जूझ   रहे हैं. युक्रेन के अधिकारी तो चुप चाप कुत्तों को ठिकाने लगा रहे हैं , भले ही पशु प्रेमी संगठन कितना ही हो हल्ला मचाएं . खेल आयोजक नगरों में गत वर्ष से अब तक ९००० कुत्तों को मौत की नींद सुला दिया गया है.  
हम आस्तीन में सांप पालने वाले भला श्वान- वध का पाप कैसे कर सकते है. भले ही ये कितने ही 'हिन्दुस्तानियों' को काट खाएं या डस लें ... बढती आबादी को कम करने और परिवार नियोजन की यह भी आज़ाद मियां की एक नायाब योजना ही तो है.