मंगलवार, 14 जून 2011

गांधीजी का चश्मा !!!

गांधीजी का चश्मा !!!
एल. आर. गाँधी 


गाँधी  जी   का  चश्मा खो गया - चलो किसी चोर ने ही सही ,गाँधी जी के चश्मे की वुक्कत तो पाई . सभी अखबारनवीस इसे राष्ट्रीय क्षति के रूप में प्रचारित कर रहे हैं. करें भी क्यों न ,यह कोई मामूली चश्मा नहीं था - बापू इस चश्में से भारत का भविष्य निहारते थे . अब यह वर्धा के सेवाग्राम आश्रम के मियुज़ियम की शोभा बढ़ा रहा था . ज़ाहिर है आश्रम के प्रबंधकों के ज़ेहन में भी गाँधी जी की विरासत को संजोए रखने की कोई ख़ास महत्वाकांक्षा नहीं बची रही होगी -वैसे ही जैसे गाँधी के नाम पर देश को दोनों हाथों से लूटने वाले कान्ग्रेसिओं के मन में सिवाए गाँधी के चित्र से सुशोभित ५००-१००० के नोटों के इलावा गांधीजी की विचारधारा से कोई सरोकार नहीं. 
गांधीजी के एक चश्मे की पहले भी  ब्रिटेन में बोली लगी थी और कोई भी गाँधी वादी 'कुबेर' इसको खरीदने नहीं पहुंचा - देश की सेकुलर कांग्रसी सरकार ने भी कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई. आखिर एक शराब के सौदागर विजय मालिया ने बापू के चश्में की कीमत लगाई - उसी चश्मे की जिसने भारत को 'मद्य निषिद्ध ' राष्ट्र बनाने का सपना देखा था. मद्य निषेद का सपना भी पूरा किया तो किसने 'गुजरात के नरिंदर मोदी' ने ,  जिसे बापू के नाम लेवा पानी पी पी कर कोसते हैं. यह चश्मा भी बापू ने बड़े चाव से एक नवाब साहेब को भेंट किया था ताकि वे भारत को उनकी नज़र से देखें. नवाब साहेब अपनी रियासत को पाक में मिलाना चाहते थे . जब पटेल साहेब के आगे बस नहीं चला तो पाकिस्तान भाग गए और गाँधी जी का चश्मा भी साथ ले गए . और यही चश्मा ब्रिटेन पहुँच गया . 
अब चोरी हुआ चश्मा कब नीलाम होगा और उसे कौन खरीदेगा - ज़ाहिर है कोई शैकुलर शैतान तो हरगिज़  नहीं ?
गाँधी जी की विचारधारा या उनकी मान्यताओं पर अमल करने वाले लोगों को आज उँगलियों पर गिना जा सकता है. अन्ना हजारे जैसे गाँधी वादियों  को आज देश को चोर उच्च्क्कों के चंगुल से छुड़ाने के लिए अनशन-आन्दोलन करना पड़ रहा है. गाँधी जी देश में राम राज्य की स्थापना करना चाहते थे.आज राम का नाम लेने वालों को 'साम्प्रदायिक' माना जाता है और  राम भक्तो को 'ट्रेन में जिन्दा जला दिया जाता 'है. गाँधी जी गो हत्या के चिर-विरोधी थे - आज गो धन की दुर्गति देख ,परलोक में बापू की आत्मा भी दुखी होगी. सत्य और अहिंसा का स्थान झूठ ,फरेब और हिंसा ने ले लिया है. 
बापू ने देश को अहिंसक आन्दोलन और अनशन का एक अमोघ अस्त्र दिया और गोरे अंग्रेजों ने उनके इस अस्त्र को समुचित आदर और मान दिया. मगर आज गाँधी जी के ये काले अँगरेज़ अनशन करने वालों को जनतंत्र के लिए खतरा मानते हैं और अहिंसक आन्दोलनकारियों पर डंडे और गोलियां बरसाते हैं. 
पटियाला में भी ,जब कांग्रेसी सत्ता में आए तो उन्होंने शहर के प्रसिद्ध राजेंद्र ताल में गाँधी जी की मूर्ती स्थापित की. पहले यहाँ अंग्रज़ परस्त रजवाड़ों ने 'जार्ज पंचम' का बुत लगाया हुआ था . उसे हटा दिया गया ! आज भी गाँधी जी राजेंद्र ताल के बीचो बीच खड़े हैं- यह बात अलग है की कोई गाँधी जी की लाठी उड़ा ले गया है- हाथ में बस लाठी की मूठ  सी बची है . और हाँ गाँधी जी का चश्मा टूट कर एक कान के सहारे लटका हवा के किसी तेज़ झोंके की बाट जोह रहा है . राजेंद्र ताल जो कभी पर्यटकों के आकर्षण का मुख्य केंद्र था , आज अपनी बर्बादी की कथा खुद ब खुद बयाँ कर देता है. ताल में पानी नहीं, चारों और  कांग्रस घास  उग आई है. हर वर्ष गाँधी के नाम पर लाखों रूपए खर्च तो होते हैं पर हालत बाद से बदतर हुई जाती है. राजेंद्र ताल को आज यदि एक 'जोहड़ ' कहा जाए तो शायद जोहड़ की भी तौहीन होगी. 
इश्वर अल्लाह तेरो नाम.. 'अबतो' सन्मति दे भगवान् ! 
       

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