शुक्रवार, 20 अगस्त 2010

जिन्ना कि राजयक्ष्मा -पाक की राष्ट्रीय आपदा

जिन्ना की राजयक्ष्मा--पाक की राष्ट्रीय आपदा..
एल.आर.गाँधी.
कायद-ए-आज़म की दी हुई राजयक्ष्मा २००१ आते आते इतनी फ़ैल गई कि पाकिस्तान को टी.बी. रोग को राष्ट्रीय आपदा घोषित करना पड़ा. टयूब्रोक्लोसिस आक्रांत २२ देशों में आज पाक का छटा स्थान है, जबकि पांच में से चार टी.बी. केस यहाँ अजाने/ बिन-उप्चारे ही रह जाते हैं. इसका प्रमुख कारन लोगो में टी.बी. रोग की अज्ञानता और इस रोग के प्रति लोगो में व्याप्त डर और घृणा है. यही कारन है कि २००७ में २९७,१०८ युवा पाकिस्तानी इस संक्रामक बीमारी के शिकार हुए. हर वर्ष लगभग २.५ लाख मौतों का मुख्या कारण टी.बी. को माना जाता है. पाकिस्तान नॅशनल टीउब्र्क्लोसिस प्रोग्राम के अंतर्गत अमेरिका द्वारा ५ मिलियन डालर की सहायता के बावजूद टी.बी आक्रान्त देशो पर होने वाले कुल खर्चे का ४४% पाक पर खर्च होता है. क्योंकि अभी तक यहाँ की सरकार इस जान लेवा बीमारी का समुचित इलाज़ मुहैया करवाने में असफल रही है. टी.बी. के मरीज़ का अधुरा इलाज न-इलाज़ करवाने से जियादा खतरनाक है.
१९४६ में जब कायद-ए-आज़म के डाक्टर -मित्र जे.के.एल.पटेल ने बम्बई के अपने क्लिनिक में बुला कर उन्हें उनकी न थमने वाली खांसी का राज बताया और कहा कि उन्हें 'राजयक्ष्मा' अर्थात टी.बी. है. तो जिन्ना की पहली प्रतिक्रिया यह थी उनके इस रोग बारे किसी को पता नहीं चलना चाहिए -उस वक्त टी.बी. एक असाध्य रोग था. जिन्ना नहीं चाहते थे की उनके इस रोग का किसी को भी पता चले और उनका पाक सपना धरा का धरा रह जाये, क्योंकि मुस्लिम लीग में किसी अन्य मुस्लिम नेता में इतनी योग्यता नहीं थी की वह मुसलमानों के लिए अलग राष्ट्र पाकिस्तान के सपने को साकार कर सके. इतने सक्रामक और लाइलाज बिमारी को छुपा कर जहाँ एक ओर जिन्ना ने इस खतरनाक रोग को फ़ैलाने का काम किया वहीँ डाक्टर पटेल ने इस राज़ को छुपा कर एक ओर तो अपने पेशे के साथ धोका किया और दूसरी ओर देश के साथ द्रोह- भारितीय इतिहास में डाक्टर पटेल को दूसरा जयचंद के नाम से जाना जाएगा . यदि पटेल ने यह राज छुपाया न होता तो भारत वर्ष के तीन टुकड़े न हुए होते.
जिन्ना एक सामाजिक - राजनेता थे और प्रति दिन सैंकड़ों लोगों से मिलते और सब कुछ जानते हुए भी अपनी यह ला -इलाज छूत की बीमारी लोगो में फैलाते रहे. यह बात अलग है की वे अपनी कौम से जियादा मिलते थे और ज़ाहिर है उनका 'राज यक्ष्मा' आज भी उन्हें 'जिन्न' की भांति सता रहा है. मिलते तो वे हमारे कांग्रेसी भाइयों से भी खूब थे और कमों- बेश इनको भी अपना रोग दे गए .यही कारन है कि हमारे देश में प्रति वर्ष ३,२५००० लोग इस 'इस जिन्न' की भेंट चढ़ जाते हैं. आज भी समाज में 'राजयक्ष्मा' रोगी को घृणा की दृष्टि से देखा जाता है , जब की अब तो इस का अचूक इलाज़ संभव हो गया है. इस समाजिक त्रिस्कार के कारन ही लोग अपने इस रोग को 'जिन्ना' की भांति छिपाते है..... और फैलाते भी.......