शुक्रवार, 18 जून 2010

'राज कुमार'...... अल्लाह के नाम पर दे जा .....

विश्व के दुसरे धनकुबेर बिल गेट्स अपनी पत्नी के साथ अपने लोक हितैषी कार्यक्रम का श्रीगणेश करने जब विश्व के सबसे गरीब देश भारत पहुंचे ,तो देश के ' राजकुमार 'भी अपना वोट बैंक मज़बूत करने के उद्देश्य से उनके साथ हो लिए। बिल गेट्स को अपने संसदीय क्षेत्र के दबे कुचले दो जून की रोटी को तरसते बीमार- बदहाल लोगों के दर्शन करवाए। फिर लालू के बदहाल बिहार का असली चेहरा दिखाया। बिल गेट्स से इन बदहाल भारतियों के लिए 'अल्लाह के नाम देजा' की गुहार लगाई। बिल गेट्स भी पसीज गए और अपने कुबेर के खजाने का मुंह खोल दिया।
वारेन बफे और बिल गेट्स ने तमाम अमेरिकियों से अपनी धन संपत्ति विश्व की गरीबी मिटाने के लिए दान करने की अपील की है। अपनी वेबसईट ' द गिविंग लेज़ ' पर अपने परोपकारी संकल्प पर मेडिला गेट्स ने घोषणा की है की मरने से पहले वे अपनी संपत्ति का ९९% लोक हितैषी कार्यों के लिए दान कर देंगे। बिल गेट्स और वारेन बफे विश्व के दुसरे और तीसरे धन कुबेर हैं। गेट्स की धन संपत्ति ५५ बिलियन डालर है और बफे की ४७ बिलियन डालर अमेरीका में ४०० धन्नाड्डों में १४६ बिलिअनर हैं। गेट्स बफे की दान वीरता अन्य धन कुबेरों के लिए एक मिसाल बन गई है । यदि विश्व के सभी धनि लोग इनका अनुसरण करें तो धरा से दरिद्रता दूर की जा सकती है।
भारत जैसे गरीब देश में जहाँ ७०% गरीब एक वक्त भूखे पेट सोते हैं वहीँ विश्व की कुल संपत्ति का ५७% मात्र एक प्रतिशत धनि लोगो के पास पड़ा है। बाकी की ४३% संपदा ९९% लोगो में बंटी है। देश के प्रथम प्रधान मंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु के संसदीय क्षेत्र अल्लाहबाद के एक गाँव में बच्चे भूख मिटाने के लिए मिटटी खाने को विवश हैं आज़ादी के ६३ वर्षों में से ४५ वर्ष इस देश पर एक पार्टी और एक ही परिवार का राज रहा है और इसी राज परिवार के राज कुमार फिर से ग़रीबों के मसीहा बने दान वीर बिल गेट्स को अपने संसदीय क्षेत्र का पिछड़ा पण दिखा रहे हैं।
सच्चाई तो यही है की इस पार्टी और राज परिवार के कारण ही आज भारत विश्व के सबसे अधिक निर्धनों का देश बन कर रह गया है। इनके साशन काल में 'भ्रष्टाचार' नित नए नए कीर्तिमान बना रहा है। इनके द्वारा पाले चोर उच्चक्कों की बदौलत भारत स्विस बैंकों में पड़े 'काले धन' की वरीयता सूची में नंबर वन पर बना हुआ है। इन की बदौलत ही 'काले धन की ओलम्पिक में भारत को स्वर्ण पदक प्राप्त है' और मोह माया के इस खेल में अमेरीका इन सफेदपोश भारतियों के आगे 'जीरो ' है।
भ्रष्टाचार की कमाई अकूत धन राशी स्विस बैंको में जमा पड़ी है । जिन देशों का सबसे अधिक काला धन इन बैंको में पड़ा है उनमें भारत 'नंबर एक' पर है। इस सूची में पांच प्रमुख देश हैं और सबसे अमीर देश अमेरिका का इन पांच में कोई स्थान नहीं।
२००६-०७ २००८-०९
भारत $ १४५६ बिलियन डालर $ १८९१ बिलियन डालर
रूस" ४७० " " ६१० "
चीन " ९६ " " २१३ "
यू के " ३९० " " २१० "
उक्रेन " १०० " " १४० "
बाकि विश्व " ३०० "

अब देश के इस राज कुमार से कोई पूछे उनके और इनके बाब दादा के राज़ में गरीब देश के कंगाल लोगो के खून पसीने की कमाई इस कदर लूट खसूट कर स्विस बैंको में पहुंचा दी गई - तो उन्होंने ने क्या किया ? इतनी अकूत धन राशी के गोलमाल के चलते कौन कहता है की भारत गरीब है। यथार्थ तो यह है की भारत को आज़ादी के बाद भी इस पर राज़ करने वालों ने दोनों हाथों से लूटा है। अब इन लूटेरों को बिल गेट्स जैसे दान वीरों से अपने द्वारा ही लूटे गए 'फटे हाल' लोगो के लिए ' अल्लाह के नाम पर देजा 'की अलख जगाते शर्म भी नहीं आती।

जिस राज्य का राजा और वजीर महलों में रहते हैं, उस राज्य की जनता झोम्प्डों में बसर करती है...चाणक्य

बुधवार, 16 जून 2010

मेरा मुंसिफ ही मेरा कातिल है -क्या मेरे हक़ में फैसला देगा.

जो सरकार पिछले २५ वर्ष से भोपाल गैस पीड़ितों को न्याय दिलाने में नाहिल साबित हुई है वही सरकार अब इन्हें फिर से न्याय दिलाने के लिए नया क़ानून बनाने का सब्जबाग दिखा कर अपनी आपराधिक साजिशों को छुपाने की कोशिश में व्यस्त है। हमारे आज के मौनी बाबा और उस वक्त के मुख्या मंत्री अर्जुन सिंह ने जितनी तत्परता कांड के मुख्या दोषी को अपने निजी जहाज़ में भगाने में दिखाई क्या किसी गैस पीड़ित को बचाने में भी उनके इस जहाज़ की सेवाएँ उपलब्ध करवाई गईं ।
१९७२ में जब यूनियन कार्बाईड संयंत्र की स्थापना को हमारी सरकार ने हरी झंडी दी तो कनेडा सरकार ने इस संयंत्र से जनमानस और पर्यावरण को अपेक्षित खतरों से संयंत्र अधिकारिओं को आगाह करते हुए इसके निर्माण को तुरंत रोक देने की चेतावनी दी थी। फिर भी हमारी सरकार ने यह संयंत्र शहर के बीचो बीच स्थापित करने की मंज़ूरी दे डाली।
अब वही सरकार, जिसके कारण भोपाल के २५००० लोग अकाल मृत्यु की गोद में समा गए और लाखों आज भी ज़हरीली गैस का संताप भोग रहे हैं, मुख्य दोषिओं के साथ मिल कर पीड़ितों को न्याय दिलाने का 'गंभीर प्रयास' करने का दावा कर रही है। यह तो ऐसे ही है की दो- कातिल खुद ही जज और सरकारी वकील बन बैठे हो जो मुक़दमे की सुनवाई भी करे और पैरवी भी। एक मुख्या न्यायधीश जिसने आधुनिक युग के सबसे बड़ी मानव त्रासदी को एक ट्रक दुर्घटना बना डाला ,उसी मुंसिफ को पीड़ितों के पुनर्वास का मसीहा बना दिया गया।
मेरा कातिल ही मेरा मुंसिफ है ,
क्या मेरे हक़ में फैसला देगा।
लोक तंत्र का चौथा स्तम्भ मिडिया भी यका यक मैदान में कूद पड़ा है। जैसे २५ साल बाद कुम्भ करन गहरी नींद से जाग गया हो। बड़े टी.वी चेनल का एक बड़ा एंकर भोपाल की गली गली घूम घूम २५ साल पुराने ज़ख्म कुरेद रहा है....गैस की मार से अध् मरे मानसिक रूप से विक्षिप्त बच्चो को 'काला यंत्र' मुंह को लगा कर पूछ रहा है , जो अब
कुछ भी बोल पाने में असमर्थ हैं ' अब आप को कैसा लग रहा है' शायद अपनी टी.आर पी बढ़ाने
के लिए इनके पास दूसरी कोई 'स्टोरी ' नहीं है।जिस दिन कोई दूसरी बड़ी घटना हो जायेगी, ये सभी पत्रकार -'चार्ज' माईक उठा कर नए मृतकों के सम्बन्धियों से पूछने निकल पडेंगे ' अब आपको कैसा लग रहा है' हमारे यहाँ मृत्यु के बाद समस्त क्रिया क्रम का काम निपटाने वाले पंडितजी को 'चार्ज' ही कह कर बुलाया जाता है । क्या हमारे टी आर पी के दीवाने ये पत्रकार किसी 'चार्ज से कम हैं॥
भोपाल में आज से २५ वर्ष पूर केवल गैस पीड़ित मानव का ही ' जनाज़ा'नहीं उठा - लोक तंत्र का दम भरने वाली व्यवस्था की भी 'अर्थी' उठी थी -इस अर्थी-जनाज़े के साथ साथ मानव की अंतिम आशा 'न्याय 'को भी जला कर दफना दिया गया था और अपने आप को समाज के ' वाच डाग की सी घ्राण शक्ति से परिपूर्ण होने का दावा करने वाले लोक तंत्र के चौथे स्तम्भ 'मिडिया' वालों को भनक तक न लग पाई/।

शनिवार, 12 जून 2010

लुकमान हकीम और फिरंगी डाक्टर...

लुकमान हकीम ....जिनके कमाल के फिरंगी भी कायल थे ! अगस्त १६०८ में ब्रिटेन के किंग जेम्ज़ दी फर्स्ट का एक पत्र ले कर कैप्टन हाकिंस जहाँगीर के दरबार में पेश हुए. जहाँगीर अन्तःपुर में बेगम नूरजहाँ के साथ अपनी बेटी की तिमार दारी में व्यस्त थे ,बेटी को दस्त लगे थे. वैद्य, हकीम एक से बढ़ कर एक दवा- दारु दे कर हार गए ,दस्त थे की रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे. हव्किंस को पता चला तो उन्होंने बादशाह के पास संदेसा पहुँचाया की उनके पास इस मर्ज़ का' फिरंगी इलाज़ है' हाकिंस डाक्टर भी थे. अँगरेज़ को अन्तःपुर में लेजाया गया और शहजादी को उनकी महज़ 'दो' गोलियों से आराम आ गया. शहंशाह जहाँगीर बहुत खुश हुए और अँगरेज़ को मुंह माँगा इनाम देने की पेशकश की. हाकिंस ने किंग का पत्र दिया और ईष्ट इंडिया कंपनी के लिए तिजारत की मंज़ूरी की इल्तिजा की. जहाँगीर ने ख़ुशी ख़ुशी मंज़ूरी दे डाली. इसके साथ ही हाकिंस बादशाह के घनिष्ट मित्र बन गए और हम प्याला भी. अँगरेज़ की 'दो गोली' का ही कमाल था कि वे इस देश पर दो सौ साल राज़ कर गए .
अंग्रेजों के साथ ही इस देश में 'एलोपैथी' का भी आगमन हुआ . इस से पूर्व वैद्य- हकीम या फिर ओझे -तांत्रिक जादू टोने से हम हिंदुस्तानिओं की सेहत को दरुस्त-तंदरुस्त करते थे.वैद्य हकीम एलोपैथिक डाक्टरों की तरहां हर रोगी के टेस्ट करवा कर रोग की जांच नहीं करते थे. वे तो नाडी परीक्षण से ही बिमारी का पता लगा लेते थे . और उस वक्त के 'लुकमान हकीम' तो महज़ मरीज़ की सूरत देख कर ही 'दर्द-ऐ-दिल' जान लेते !
जब एक अँगरेज़ डाक्टर को मालूम हुआ कि लुकमान हकीम केवल शक्ल देख कर ही बिमारी का पता लगा लेते हैं तो उन्हें यकीन न हुआ. अँगरेज़ डाक्टर ने एक व्यक्ति को एक पर्चे पर अंग्रेज़ी में कुछ लिख कर लुकमान हकीम के पास भेजा और साथ ही हिदायत की कि रास्ते में वह जहाँ भी विश्राम करे तो किसी 'इमली' के पेड़ के नीचे ही सोए . दो अढाई महीने के बाद जब वह व्यक्ति लुकमान हकीम के पास पहुंचा तो उसके सारे शरीर पर 'चरम रोग के च्क्कते' पड़े हुए थे. हकीम साहेब को उसने अँगरेज़ डाक्टर का परचा दिया और सारा सन्देश सुनाया . लुकमान हकीम ने परचा लिया और उसके पीछे फ़ारसी में 'इलाज़ लिख दिया' और कहा कि अब वह रास्ते में जहाँ भी आराम फरमाए तो 'नीम के पेड़ के नीचे ही सोए. वापिस पहुँच कर जब उस व्यक्ति ने अँगरेज़ डाक्टर को हकीम साहेब का सन्देश दिया और सारा विवरण बयाँ किया और बताया कि कैसे उसका चरम रोग नीम के पेड़ों के नीचे सोने से ठीक हो गया तो अँगरेज़ डाक्टर कि हैरानी की सीमा न थी. डाक्टर लुकमान हकीम की समझ के कायल हो गए.
पुराने वक्तों में जहाँ अधिकाँश भारतीय आयुर्वेदिक और यूनानी इलाज़ में विश्वाश रखते थे आज की स्थिति बिलकुल इसके विपरीत है. डाक्टर साहेब दवाई तो सैकड़ों की लिखते हैं पर टेस्ट हजारों में पहुँच जाते है. मामूली से मामूली रोग के इलाज़ के लिए भी मरीज़ को अनेकों लैब. टेस्टों से गुजरना पड़ता है. आज दवाखानों से अधिक तो लैबार्टरिया खुल गई हैं. डाक्टर भाई फीस कम लैब. कमीशन' से जियादा कमा रहे हैं. अब तो माड्रन वैद्य बंधू भी मरीज़ की नब्ज़ टटोलने में 'लघु ग्रंथि' महसूस करते हैं और झट से लैब टेस्टों की लम्बी फेहरिस्त मरीज़ के हाथ में थमा देते हैं. अब हमारे देश के स्वस्थ्य रक्षक जनाब गुलाम नबी आज़ाद साहेब कहते तो हैं की वे डाक्टरों की इस मनमानी पर नकेल कसेंगे और क्लिनिकल एस्टेब्लिश्मेंट बिल( रेगुलेशन व् रजि.)२००७ को कानूनी जामा पहना कर मरीजों के प्रति डाक्टरी पेशे को जवाबदेह बनाएं गे . अब आज़ाद साहेब ने वादा किया है तो मान लेते हैं मगर पिछले ६३ वर्षों का हमारा त्ज़रुबा तो यही कहता की 'गज़ब किया तेरे वादे पे एतबार किया....

बुधवार, 2 जून 2010

दुनिया लुटती है- लूटने वाला चाहिए.

दुनिया लुटती है, लूटने वाला चाहिए- जब से देश की सेहत के लुकमान हकीम जनाब गुलाम नबी आज़ाद जी को अपने विभाग के निरंतर फूल रहे भ्रष्ट गुबारों के फूटने की आवाजें सुनाई देने लगी हैं तब से गुलाम भाई सेहत महकमे को इन काली भेड़ों से आज़ाद करने के 'भागीरथ'संग्राम में कूद गए दीखते हैं।
अनायास ही आज़ाद भाई को ज्ञात हुआ की डाक्टर लोग जिन्हें मरीज़ भगवान् का रूप मानते हैं ,अपने ही भक्तों को लूटने में व्यस्त हैं। मरीज़ के आम और ख़ास इलाज़ के लिए डाक्टर बिरादरी ,दवाई लिखने से पहले ढेर सारे टेस्ट लिख देते हैं और वह भी अपनी मनपसंद लैब से ,ज़ाहिर है इन लैब्ज़ के साथ इनका मोटा कमिशन निर्धारित होता है।
चंद गरीब और गंभीर रोगी तो इलाज़ चालु होने से पूर्व ही इन बेहिसाब टेस्टों की ताब न सहते हुए अल्लाह को प्यारे हो जाते हैं। आज़ाद साहेब अब क्लिनिकल एस्टेब्लिश्मेंट बिल(रेगुलेशन व् रजिस्ट्रेशन ) २००७ अधिनियम को कानूनी जामा पहनने की सोच रहे हैं। इस कानून के पास होने से डाक्टरों की नाजायज़ लूट खसूट पर लगाम कसने में आसानी होगी। इससे डाक्टरों की जवाबदारी निश्चित होगी। कोई भी टेस्ट बिना कारन के नहीं लिखा जायेगा। आज़ाद साहेब ने खुलासा किया की डाक्टर लोग मरीज़ का गाल ब्लैडर निकालते निकालते ,किडनी पर भी हाथ साफ़ कर देते है। ऐसा भी देखने में आया है की बिना कारन ही मरीज़ के दिल में स्टंट्स लगा कर मोटी रकम झाड़ ली जाती है। निजी हस्पताल और क्लिनिक मन माफिक फीसे और चार्जिज़ मरीजों से एंठते हैं। एम्.आर.आई जो सरकारी हस्पताल में ५००/- में होती है वही निजी हस्पतालों में पांच से तेरह हजार रुपये में की जाती है। कोई भी हस्पताल इमरजेंसी में मरीज़ को इलाज़ से इनकार नहीं कर पायेगा। इसके इलावा स्वस्थ्य सुविधा को आर .टी.आई. क़ानून के अंतर्गत ला कर पारदशी बनाया जायेगा ताकि डाक्टरों द्वारा इलाज़ में किसी प्रकार की हेरा फेरी न की जा सके।
अब इस नए क़ानून से मरीजों को कितनी राहत मिल पायेगी वह तो आने वाला समय ही बतायेगा। अब मेडिकल शिक्षा के मंदिरों अर्थात मेडिकल कलेगों को भी सही ढंग से चलाने के लिए सरकार ने ढेर सारे नियम-क़ानून बना रखे हैं फिर भी इन मानव कल्याण के लिए बने मंदिरों को 'डाक्टर उत्पादन फैक्ट्रियां ' बनाने से कोई नहीं रोक पाया जहाँ लोग लाखों रूपए की कैपिटेशन फीस दे कर अपने कपूतों को 'भगवान्' बना लेते है और जिन्हें किसी की भी जान लेने का अधिकार है। अब जो लोग लाखों दे कर डाक्टर बनेंगे वे अपना निवेश किया पैसा मरीजों से ही उगाहेंगे .फिर इन नए बने कानूनों को अमली जामा पहनाने के लिए आज़ाद साहेब को अन गिनत 'केतन देसाईओं' की दरकार होगी ,जो मेडिकल कालेजों की तर्ज़ पर अब डाक्टरों को नीचोडेंगे और रिस्क के साथ साथ डाक्टरों की फीस भी उसी अनुपात से बढ़ जाएगी और मरीजों से वसूल की जाएगी।
लेखक का इन जालसाज़ डाक्टरों के बारे एक निजी अनुभव है। जुलाई २००३ में सर्वाइकल पेन के चलते मोहाली के 'फोर्टिस हस्पताल में एक डाक्टर परमजीत सिंग कपूर को दिखाया। डाक्टर साहेब ने आपरेशन की सलाह दीऔर विशवास दिलाया की ११०% ठीक हो जाओगे । कपूर साहेब ने सरवाईकल के स्थान पर लोअर बैक का ओप्रशन कर दिया। हालत बद से भी बदतर हो गई । हस्पताल अधिकारिओं को डाक्टर के विरुद्ध कार्रवाही के लिए लिखा भी गया लेकिन सब व्यर्थ? डाक्टर कपूर ने सिर्फ पैसे एंठने के लिए आपरेशन का छल मात्र किया जब की न तो इसकी ज़रुरत थी और न ही उसे इसका कोई अनुभव था। अब जहाँ केतन देसाई जैसे उचधिकारिओन के हाथ में ऐसे डाक्टरों की लगाम होगी तो क्या उम्मीद की जा सकती है।