बुधवार, 30 सितंबर 2009

स्विस बैंकों का युनिवेर्सल विद होल्डिंग टैक्स यानि चाचा नेहरू टैक्स।

हमारे यहाँ पंजाबी में एक कहावत है 'चोरां दे कपडे ते लाठिया दे गज '-इसी कहावत को चरितार्थ करने जा रही है स्विस बैंको की संस्था। स्विस सरकार को एक प्रस्ताव भेजा है संस्था के मुखिया जेम्स नासन ने -स्विस बैंकों में पड़े विदेशी धन की कमाई पर युनिवेर्सल विद होल्डिंग टैक्स लगाया जाए और सम्बंधित देश को इसकी अदायगी कर दी जाए। स्विस बैंक शायद विशव व्यापी एक नियम भूल गए की चोरी का माल खरीदना भी उतना ही बड़ा अपराध है जितना की चोरी करना।

स्विस बैंकों में आज भारत जैसे गरीब देशों का २२३७ बिल्लियन स्विस फ्रांक्स अर्थात एक करोड़ करोड़ रुपैया... एक सौ करोड़ या एक लाख करोड़ नहीं पूरा एक करोड़ करोड़ रूपया पड़ा है जो स्विस बैंकों की कुल जमा पूंजी का ५६% है और इसमें इंडिया दैट इज भारत का है १.४ त्रिलिओन डालर अर्थात १४ खरब डालर। स्विट्जरलैंड के ये बैंक इस प्रकार गरीब देशों के अमीर चोरों के बैंक हैं ।

बचपन से सुनते आए हैं की भारत सोने की चिडिया थी विदेशी लुटेरों ने इसे खूब लूटा और हमारा धन विदेश ले गए -अब जो अपने लूट कर विदेश में जमा करवा रहे हैं ,उन्हें क्या कहें-'सव्देशी लूटेरे '!

भ्रष्टाचार का यह वट वृक्ष एक दो दिन में इतना विशाल नहीं हुआ। इसका बीजारोपण जाने अनजाने में हमारे प्रथम प्रधान मंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू जी के हाथों हुआ था । कृष्ण मेनन पहले भ्रष्ट केंद्रीय मंत्री थे जिसने बतौर रक्षा मंत्री सेना के लिए खरीदी जीपों में घोटाला किया -परिणाम हमारे सामने है -हमारी सेनाये चीन के हाथों बुरी तरह पराजित हुई -हजारों सैनिक शहीद हुए ,मीलों फैली सरहद पर चीन का कब्ज़ा हो गया -नेहरूजी सदमे में चल बसे । नेहरूजी के दूसरे चहेते नेताजी थे -पंजाब के मुख्यामंत्री परताप सिंह कैरों -कैरों जी पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों के साथ जब लोग नेहरूजी के शिकायत ले कर पहुंचे ,तो उनका जवाब बहुत रोचक था 'अरे भाई देश का पैसा देश में है ,कैरों साहेब कहीं बाहर तो नहीं ले गए।

नेहरूजी सपने बहुत देखते थे ,उनहोंने सपना देखा पंचशील का ,चीन ने तार -तार कर दिया । सपना देखा अक्खंड भारत का ,जिन्ना ने तोड़ दिया। एक सपना था पंचवर्षीय योजनाओं द्वारा देश को स्वर्ग बनने का जिसे भ्रष्ट बिचौलिओं ने अपने अंजाम तक पहुचने से पहले ही हाइजैक कर लिया। आखिर राजीव गाँधी को कटु सत्य सवीकारना पड़ा की केंद्रिये योजनाओ का एक रुपये में से केवल १० पैसे ही आम आदमी तक पहुँच पाते हैं। ९० पैसे भ्रष्ट बिचौलिये -नेता, अफसर, उद्योगपति डकार जाते हैं। इनके पैसे पर ही स्विस बैंको का कारोबार फल फूल रहा है। चोर चोर चचेरे भाई - एक दुसरे को बचने में व्यस्त हैं । अब चाचा कत्रोची को ही लो -बोफोर के दलाल को किस प्रकार भाग जाने दिया ,किस से छुपा है। भ्रष्टाचार के प्रति -'सब चलता है 'देश की बागडोर ही उन सफेदपोशों के हाथों में है जिनके काले धन को दूध से धोने की योजना स्विस बैंकों ने बनाई है युनिवेर्सल विद होल्डिंग टैक्स यानि चाचा नेहरू टैक्स।

शनिवार, 26 सितंबर 2009

बाल शहीद 'किरण'

वीर हकीकत राय दशमेश पिता के साहिबजादे और अनेक अनजान बालशहीदों की कुर्बानिओंकी बदौलत ही आज का हिंदू समाज कायम है - ऐसी ही एक अनजान वीर बालिका थी 'किरण' ! जिसने अपनी जान की बाज़ी लगा दी ,पर मज़हबी अत्याचार से हार नहीं मानी ।
सन १७२५ , दिल्ली के सिंहासन पर मुग़ल बादशाह मुहम्मद शाह का राज था । उसका एक मीर मुंशी था रामजीदास सेठ । मौलविओंके दबाव और लालच में आ कर मुंशीजी ने इस्लाम कबूल लिया और बन गए मियां अहमद अली। सेठ मियन की एक पुत्री थी -'किरण'! अपने पिता के इस धर्म परिवर्तन से उसे गैहरा आघात लगा -उसने प्रतिज्ञा की कि किसी भी कीमत पर वह अपने धरम पर अटल रहेगी ।
मौलविओं ने उसे बहुत से प्रलोभन दिए ,भय दिखाया ,पर वह नहीं मानी। किरण को बड़े काजी की अदालत में पेश किया गया। काजी ने फरमान जारी किया की जब उसके पिता ने इस्लाम कबूला था वह १३ साल की नाबालिग़ लड़की थी , इस लिए बाप के धर्म के साथ ही उसका भी धर्म बदल गया । किरण ने काजी का हुकम मानने से इनकार कर दिया। किरण को तब तक जेल भेज दिया गया जब तक किवह इस्लाम कबूल न कर ले ।
एक मासूम पर ऐसे इस्लामिक अत्याचार कि ख़बर सुन कर राजधानी में सनसनी फ़ैल गई। व्यापारिओं ने हड़ताल कर दी और लोग महल क्र सामने धरने पर बैठ गए। शहंशाह ने जनता कि बात सुनी और किरण को जेल से मुक्त कर उसे एक सेठ घनशाम दास कि पन्नाह में भेज दिया।
बड़े काजी ने इसे अपना अपमान समझा और दिल्ली के सभी मौलवियों को इक्कठा कर जुम्मे कि namaz पर बादशाह को घेर लिया। तर्क दिया कि यह एक मजहबी मामला है और इसका फ़ैसला बादशाह कि अदालत नहीं -सिर्फ़ जमा मस्जिद कि अदालत-अंजन मौलाना ही कर सकती है । किरण को फ़िर से बंदी बना कर मौलविओं कि अदालत में पेश किया गया, जहा उसे सभी प्रकार के प्रलोभन दिए गए किंतु किरण ने हिंदू धर्म छोड़ इस्लाम कबूलने से साफ़ इनकार कर दिया। मुल्लाओं ने उसे मौत कि सज़ा सुनाई जिसे किरण ने सहर्ष सवीकार लिया ।
तय तारिख को मौत कि सज़ा कि तामील के लिए जल्लाद हाथ में खंजर लिए जब किरण का सर कलम करने काल कोठरी में पहुँचा तो किरण ने ख़ुद ही दीवार से अपना सर पटक कर प्राण त्याग दिए और वीर गति को प्राप्त हो गई -किरण का साहस देख ज़ल्लाद सन्न रह गया।
किरण कि शहादत कि ख़बर दिल्ली में आग कि तरह फ़ैल गई-लोगों का एक हुज्जूम जेल के बहार इक्कठा हो गया कहते हैं !किरण कि शव यात्रा में जितना जन सैलाब था उतना दिल्ली के इतिहास में किसी ने नहीं देखा था। अत्याचारी मुग़ल साम्राज्य का यह अन्तिम काल था ।

रविवार, 20 सितंबर 2009

शशि थरूर ने मजाक मजाक में एक सच क्या कह दिया, बचत का पाखंड करने वाले बड़े तो क्या छुटभैये भी तमतमाए फिरते हैं। अब इन्हें कौन समझाए शशि भाई इंग्लॅण्ड में पैदा हुए और अमेरिका में पढ़े ,वहां इकोनोमी क्लास को कैटल क्लास और पाखंडियों को होली काऊ कहते हैं । अपने खर्चे पर कोई किसी होटल से काम काज निपटाए तो किसी के बाप का क्या जाता है -जनता का मुर्ख बनाने वाले कट्ठोर बचतखोर शोर भी मचाएंगे और जनता के पैसे को चूना भी लगाते जायंगे। अब कांग्रेस के राज कुमार को ही लो , जनाब ट्रेन में लुधिआना आए जेड सुरक्षा थी ही ,कुल जमा दस हजार की बचत हुई किराये में और सुरक्षा बंदोबस्त पर लाखों का खर्चा जो बढ़ गया वो अलग । किसी सर फिरे ने ट्रेन का शीशा तोड़ कर इन नए बचत खोरों को आईना दिखा दिया, अब महज़ जांच पर लाखों का खर्चा और पुलसिया ढोंग अलग । जनता को इन नेताओं की बचत बहुत महँगी पड़नेवाली है।
सादगी का प्रतीक गांधीजी को ही लीजिये भले वक्तों में उद्योगपति बिरला के उन पर पचास रुपये रोज़ खर्च होते थे ,पचीस रुपये तोला सोना था उस वक्त , हुए न आज के 34 हज़ार रुपये। यही कारन है बिरला की गाड़ी एम्बेस्दोर सरकारी बजट का तेल निकाल रही है।
अरे बचात्खोरो ! देश की आधी आबादी आधा पेट भोजन कर पाती है और देश का लूटा हुआ कुबेर का खजाना स्विस बैंकों पड़ा है, इलेक्शन के दिनों में दबी जुबान में ही सही आप लोगो ने भी इसे देश में वापिस लाने की बात कही थी - ये सब पाखंड छोड़ देश के आवाम की खून पसीने की यह कमाई वापिस लाओ -गरीब की दुआ लगेगी!

सोमवार, 14 सितंबर 2009

आस्तीन के सांप-जिन्ना के शैतान

जिन्ना का भूत जसवंत सिंह के बाद अब केन्द्र्य मंत्री जय राम रमेश में परवेश कर गया है। जनाब नें सांप को क्या सहलाया ,जिन्ना को शिव का अवतार ही बता डाला और साथ ही गाँधी-नेहरू को ब्रह्म-विष्णु ।हमारे शास्त्रों में शिव को कल्याण का प्रतीक माना गया है। जिन्ना ने भारत का क्या कल्याण किया सभी जानते हैं । जिन्ना की जिद ने देश को तीन टुकडों में ही नहीं बांटा ,दो कौमों के नाम पर हिंदू मुस्लिम भाईचारे में भी कभी न पाटेजाने वाली दर्रार दाल दी। जिन्ना के पाकिस्तान की कीमत पाँच लाख लोगों की हत्या और पचास लाख लोग अपने घरों को छोड़ कर पलायन करने को मजबूर हुए । काश समय रहते पता चल जाता की जिन्ना चंद महीनों का मेहमान है तो देश का बंटवारा टाला जा सकता था । जिन्ना के इंतकाल के २५ साल बाद मालूम हुआ की वेह टी बी का रोगी था ।
जसवंत सिंह जी अपनी किताब बेचने शीघ्र ही पाकिस्तान जाने वाले हैं । जाहिर है जिन्ना की मजार पर भी जायेंगे । जनाब अपने सेकुलर जिन्ना के पकिशैतानी दोस्तों से एक बात जरूर पूछिएगा -जब जिन्ना का सेकुलर पाक बना था उस वक्त १८% अल्पसंख्यक थे ,आज पात्र २% रह गए हैं -यह कैसा सेकुलर राज्य है । यही नहीं जिन्ना के दो राष्ट्र फार्मूले का हश्र भी हमारे सामने है -पाकिस्तानी सैनिकों ने पूर्वी पाक में २० लाख मुसलमानों का नरसंहार किया और १९७१ में बांग्लादेश बना। इसके लिए जुलाई २००२ में ढाका में मुशर्रफ़ ने खेद प्रकट किया । रहा पाकिस्तान वेह भी एक असफल राज्य बन कर रह गया है । जिस राज्य की नींव ही नफरत और इंसानियत की कत्लोगारत पर टिकी हो उसका अंजाम भी एसा ही निश्चित है । रही हमारे सेकुलर नेताओं की ,आस्तीन में सांप पलना उनकी राजनैतिक मजबूरी है । वोट की राजनीती के चलते उन्हें चिंता लगी रहती है की कहीं जिन्ना के शैतान नाराज़ न हो जाएँ।

मंत्री महोदय जय राम रमेश जी शिव ने मानवता के कल्याण हेतु हलाहल पान किया और उनके जिन्ना ने सिर्फ़ और सिर्फ़ ज़हर उगला और लाखों हिन्दुस्तानी उसकी भेंट चढ़ गए

सोमवार, 7 सितंबर 2009

जसवंत का सेकुलर शैतान


जसवंत के जिन्ना की आज खूब चर्चा है -सेकुलरवादी पत्रकार ,टी वीचैनल ,अखबारों और औट्लूकटाईप रासलानावीस खूब भारत की भोली भाली जनता को समझाने में लगे है की कैसे अभिविताक्ति की स्वतंत्रता का कैसे हिंदूवादी पार्टी ने गला काट दिया है और मोदी ने तो हद ही कर दी - बिना पढ़े जिन्ना के जसवंत पर बैन लगा कर लेखक के मौलिक अधिकारों का हननंकर डाला । पत्रकार बिरादरी का जिन्ना प्रेम देखते ही बनता है - जनाब ये वाही जिन्ना है जिसने देश को दो कौमों -दो मुल्कों में बांटा । जब गांधीजी इश्वर अल्लाह तेरे नाम का संदेश दे रहे थे -जिन्ना की डायरेक्ट एक्शन की एक काल पर जिन्ना के शैतानों ने कलकत्ता शहर में पांच हजार से अधिक निर्दोष हिन्दुओं को एक दिन में काट डाला।


किताब से बैन हटाने पर कोर्ट के फैसले पर खूब तालिया पीटी गई । किताबें तो पहले भी बैन हुई और वेह भी बिना पढ़े -रश्दी साहेब की शैतान की आयतें बैन हुई बिना पढ़े -किसी भी सेकुलरवादी पत्रकार ,टी वी चेन्नल या रासलानावीस का ऐसा मजमा नहीं देखा . एक लेखिका दर दर भटक रही है ,पहले अपनी कॉम ने देश निकाला दिया फ़िर सेकुलर वामपन्थिओं ने दुत्कारा अब भारत की महान सेकुलर सरकार ने गत दिनों उसका रिहायशी परमिट इस शरत पर नवीकृत किया है की चुपचाप सेकुलर भारत से भाग जाए । किसी टी वी चेन्नल ,समाचार पत्र (एक को छोड़ कर)ने नोटिस तक नहीं लिया -कहीं शैतान के बन्दे -जिन्ना के पैरोकार नाराज न हो जाएं । क्या इंडिया दैट इज भारत एक इस्लामिक मूलक है ।

शुक्रवार, 4 सितंबर 2009

जीवन का उत्सव

८० सावन देख चुके नेहरा साहेब किंतु सवभाव में अज भी पतझड़ झलकता है -सुबह की सैर पर अक्सर मिल जाते । गुजरे शाही वक्त का पछतावा और सदाबहार कब्ज की शिकायत। बीते दिनों की अफसरशाही अकड़ अज भी उनकी हर बात में झलकती है । अपने अकडू सवभाव के कारन बचों से अलग थलग पड़ गए और जीवन काळ की साध्य बेला तनहा काट रहे हैं। नेहरा साहेब की यह हालत देख कर चीनी विचारक लिंग युतंग के जीवन का उदेश्य पर विचार और गीता के प्रकृति एक मानसिक उपकरण सारगर्भित लगते हैं।
निस्संदेह जीवन का उदेश्य खुशी हासिल करना है -हम इसी खुशी की लालसा में सदिओं से भटक रहे हैं -सभी तरह की खुशी एक तरह से जीव विज्ञानं की खुशी है और पुरी तरह से एक वैज्ञानिक परक्रिया है । सभी तरह की मानवीय खुशी एक तरह से भावनात्मक खुशी होती है -सची खुशी केवल आत्मा की खुशी है। आत्मा का अर्थ खुशी का एहसास दिलाने वाली ग्रंथिओं के दम सही ढंग से कम करने की वजह है -खुशी का अर्थ स्वस्थ पाचन क्रिया -लिंग युतंग की मने तो पाचन क्रिया को दुरुस्त रखना ही खुशी का मूल मंत्र है। और हाँ मानसिक शान्ति के लिए गीता की शरण ली जा सकती है -जो मनुष्य केवल आत्मा में आनंद अनुभव करता है , जो आत्मा से संतिष्ट और तृप्त है ,इस लिए अनासक्त हो कर सदा करने योग्य करम करता है। प्रकृति (सवभाव )वह मानसिक उपकरण है जिसके साथ मनुष्य जन्म लेता है। यह पूर्व जन्म के कर्मों का प्रतिफल है -यह अपना कार्य करके रहेगा
निरंतर अभ्यास से मुमुक्षावन -इछाविहीन होने की इच्छा -सम्पुरण रूप से मुक्त होने की आकांक्षा -अस्तित्व चक्र से बहार हो जाने की इच्छा -वैदेही होना , कठिन तो है किंतु असंभव नहीं । जीवन का परम आनंद इसी मैं है। अर्थात कोशिश करके अपने पाचन तंतर को दुरुस्त रखते हुए जीवन को ब्रहमांड के एक महोत्सव की तरहां जिया जाए।