बुधवार, 10 मार्च 2010

मुमताज़ की मोहर- राबड़ी के हस्ताक्षर

महिला दिवस पर मैडम को 'महिला बिल शेक ' न पिला पाने का मलाल तो रहेगा ही मनमोहन जी को.' बिल शेक ' तो तैयार था बस चंद 'यदुवंशियो और अल्लाह के बन्दों 'ने लस्सी घोल दी.ममता-मुलायम -लालू के मुस्लिम-यादव प्रेम के चलते तीन यादव और ४ मुस्लिम सांसद सभापति से भीड़ गए और बापू के अहिंसावादी योजनाकार 'सब को सन्मति दे भगवान्' का जाप करते रह गए.
ज्यों ही राज्य सभा में महिला आरक्षण बिल पास हुआ ! सदिओं से डरी सहमी अबला नारि को मानों ६३ साल बाद नाईज़ीरिया को हरा कर हाकी में गोल्ड मैडल मिल गया हो. पक्ष में १८६ गोल हुए और विपक्ष में मात्र एक. बाकी खिलाडी मैदान छोड़ कर भाग खड़े हुए.
९ मार्च का दिन भारत के इतिहास में 'निशब्द' अक्षरों में लिखा जायेगा ,जब भारतीय नारि को लोक सभा और विधान सभाओं में 'पंचायतो और नगरपालिकाओं 'की भांति ३३% आरक्षण का अमोघ अस्त्र प्रदान कर देश की यथार्थ भाग्य विधाता बना दिया गया. नारि अब तकनरों के मन पर तो राज करती ही आ रही थी. मगर नर का मन कब बईमान हो जाये और कब मन के महल से निकाल बाहर का रास्ता दिखा दे,इसका भरोसा नहीं था.अब अन्दर और बाहर के सारे कानून नारि की सहमति से ही बन पाएंगे.
वैसे तो अनादी काल से विश्व पर नारिओं का ही साम्राज्य चला आ रहा है. द्रोपदी के चीर हरण पर महाभारत हो गया और हजारों महाबली धराशाही हो गए . सीता हरण ने सोने की लंका को राख कर दिया और दशानन के दस शीश धूल धूसरित हो गए. कहते हैं बादशाह शाहजहाँ का राजकाज उनकी मल्लिका मुमताज़ की मोहर का मोहताज़ था. हर शाही फरमान बेगम मुमताज़ के पास हरम में अंतिम मंजूरी के लिए भेजा जाता और बेगम अपने पान दान में से शाही मोहर निकाल कर , अपने नाज़ुक हाथों से शाही फरमान पर चस्पा कर देती -तब जा कर शाही फरमान -शाही कानून बन पाता.सहजादा सलीम का तो सारा राजपाठ ही बेगम नूरजहाँ का मोहताज़ था. मियां सलीम उर्फ़ जहाँगीर तो हमेशां नशे में धुत्त रहते -राज दरबार में भी नूर जहाँ का हाथ जब तक पीठ पर रहता ,बैठे रहते -जब हाथ उठा मियां सलीम भी रुखसत मैखाने के लिए . हमारे लोक तंत्र में भी यह प्रथा बदस्तूर जारी है. जब तक महामहिम प्रतिभा पाटिल जी की मोहर नहीं लगती -महिला बिल राज्य सभा से लोक सभा और फिर विधान सभाओं के गलियारों में ही भटकता रहेगा.
अब लालूजी न मालूम क्यों कानों के बाल मुंडवा कर इस बिल के पीछे पड़े हैं . मैडम ने लाख समझाया की भई 'राबड़ी ' ही नहीं आपके यहाँ तो सात बेटियां भी हैं. वे भी इस बिल की बदौलत सत्ता सुख भोग पाएंगीं . मगर लालू जी को अपना 'माई' वोट बैंक काखाता जीरो प्रतिशत होता नज़र आ रहा है. माई' मुस्लिम-यादव वोट बैंक के चलते लालूजी १५ साल बिहार का सत्ता सुख भोगते रहे. और ब्याज में 'राबड़ी' जी को भी पांच साल के लिए मुख्या मंत्री की मोहर थमा दी . अब राबड़ी जी कहाँ मानने वाली थी ,जिद कर बैठी 'भई हम तो पढ़े लिखे हैं ' मोहर नहीं दस्तखत करेंगे . लगी दस्तखत करने -भले ही एक दस्तखत को ५६ सैकिंड लग जाएँ. फिर भी भला हो बिहारी अफसरशाही का ५ साल गुज़रते गुज़रते राबड़ी जी को 'एक दस्तखत '३६ सैकिंड में करना सीखा दिया. भला हो सोनिया जी का ,अब हर तीसरी सीट पर महिला प्रत्याशी चुनाव लडेंगी . देश के जितने भी 'लालू' अपनी पार्टी के टिकट से वंचित रह जायें गे या किसी चारा घोटाला के चलते चुनाव के अयोग्य हो जायेंगे ,अब अपनी 'राबडिओं' को लडवा कर 'आम के आम गुठलियों के दाम , वसूल कर पाएंगे. अंगूठा छाप 'राबडिओं 'को छूट होगी अपने पर्स में 'अपने नाम की मोहर ' रखने की. फिर पंचायतो और नगरपालिकाओं में यह 'प्रयोग ' सफल भी तो रहा है. !