रविवार, 29 अगस्त 2010

स्वास्तिक की अवमानना ..

स्वास्तिक प्रतीक कि अवमानना
सेकुलर शैतानों की कुष्ठ- मानसिकता...
एल.आर .गाँधी.

सेकुलर मिडिया की एक और शैतानियत - - -आउट लुक पत्रिका के १९ जुलाई २०१० के अंक के मुख्या पृष्ट पर हिन्दुओं के आस्था प्रतीक स्वास्तिक को विकृत रूप में छाप कर विनोद महता ने अपनी कुष्ठ-मानसिकता का ही परिचय दिया है. हिन्दू टेरर नामक अपने लेख पर स्वास्तिक के निशाँ को चार पिस्तौलों से बना कर हिन्दुओं के पवित्र आराधना चिन्ह की पवित्रता को जानबूझ कर दूषित करने का दुस्साहस किया है.
संस्कृत में स्वस्तिक का अर्थ है सु=अच्छा , अस्ति=हो , इक= जो अस्तित्व में है अर्थात उज्जवल भविष्य . या अच्छाई की विजय अर्थात समस्त मानवता के लिए आशीर्वाद. बौध साहित्यकार इसे बुध के चरण-कमल मानते हुए अपनी कृति से पूर्व स्वास्तिक का चिन्ह अंकित करना शुभ्यंकर मानते हैं. वैदिक दर्शन में इसे ४ वेदों रिग्वेदा, सामवेद, यजुर्वेद और अर्थव वेद का प्रतीक माना जाता है. भारतीय संस्कृति में स्वास्तिक को मानव के चार आश्रमों -ब्रह्मचर्य, गृहस्थ वानप्रस्थ और संन्यास का प्रतीक चिन्ह माना जाता है. हिन्दू इसे मानव के ४ जीवन लक्ष्यों -धरम, अर्थ, काम और मोक्ष का प्रतीक भी मानते हैं. उक्त साक्ष्यों से स्पष्ट है की स्वास्तिक हिन्दू धरम में पवित्र, शुभ्यंकर, भाग्यवर्धक और शान्ति का प्रतीक है.
स्वास्तिक को विकृत रूप में प्रदशित करना घोर पाप के साथ साथ अमंगल कारी भी माना जाता है. नाज़ियों ने स्वास्तिक को विकृत रूप में अपनाते हुए इसे ४५ डिग्री पर टेढ़ा कर लाल पृष्ट भूमि में अंकित किया. एसा करने से स्वास्तिक का प्रभाव विनाशकारी हो जाता है. इतिहास इस विशवास का साक्षी है - जो हश्र नाज़ीओं का हुआ वह सबके सामने है. आतंकियों का साथ देने वाले इन सेकुलर शैतानों का अंत भी अन्ततोगत्वा निश्चित ही है.

शनिवार, 28 अगस्त 2010

जिन्ना का पाक.. मोमिन और काफ़िर में जेहाद

जिन्ना का पाक
मोमिन और काफ़िर में जेहाद ....
एल.आर.गाँधी

लाहोर स्थित १००० वर्ष से लाखों मुसलमानों की आस्था का केंद्र रही हज़रत दाता गंज बख्शी सूफी संत की दरगाह को एक जुलाई को तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान के आतंकियों ने अपना निशाना बनाया - ५० मुसलमान हलाक हो गए. तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान इस सूफी संत की दरगाह को गुजरात स्थित प्रसिद्ध सोम नाथ के मंदिर के समान मानते हैं ,जिसे सुलतान मुहम्मद गजनबी ने तोडा था. हज़रत दाता गंज की इस मजार पर सूफी गायक और संगीतकार अपने हरदिल अज़ीज़ कलामों और मौसिकी से अपने प्रिय संत की उपासना करते हैं. मजार पर निर्धन मुसलमानों को खाने -कपडे के अतिरिक्त आश्रय भी दिया जाता है. देओबंद सुन्नी और वहाबी -तालिबान ' मुसलमानों का 'पीरीफकीरी' का सन्देश प्रचारित करने वाली इस सूफी दरगाह पर सजदा करना इस्लाम की शिक्षाओं के खिलाफ मानते है और इस मज़ार पर आने वाले बरेलवी मुसलमानों को ' काफ़िर' तस्सवुर करते हुए- उनकी गर्दने बिना कोई सवाल किए कलम करना हिजाब मानते हैं. बरेलवी मुसलामानों पर ऐसे हमले कोई नई बात नहीं है.१२ अप्रैल २००६ को जब बरेलवी मुसलमान कराची स्थित निश्तार पार्क में हज़रात मुहम्मद का जन्म दिन मना रहे थे तो एक बम ब्लास्ट में ७० मुसलमान मारे गए. पिछले साल भी तालिबान ने १७वी सदी की प्राचीन सूफी संत कवि ,रहमान बाबा की मजार पर हमला किया. रहमान बाबा संगीत और रस्क से अल्लाह की इबादत करते थे लेकिन देओबंद- तालिबान की नज़र में संगीत और नृत्य इस्लाम में हराम है. तालिबान द्वारा बहादुर बाबा की मजार पर रॉकेट से हमला किया गया और पेशावर स्थित ४०० साल पुराणी सूफी संत अबू सईद बाबा की मजार को भी नुक्सान पहुँचाया.
दसंबर २००९ में अहमदी समुदाय द्वारा जब मुहर्रम का जलूस निकला जा रहा था तब तालिबान ने हमला कर ३३ मुसलमानों को मौत के घात उतार दिया. देओबंद मुसलमान अहमादिओं को मुसलमान नहीं मानते. जिया-उल हक़ पर दवाब बना कर पाकिस्तान में अहमदी समुदाय को गैर मुस्लिम घोषित करवा दिया गया और उन पर मस्जिद में इबादत पर रोक लगा दी गई.
पकिस्तान में ९७% आबादी मुसलमानों की है जिसमें सुन्नी मुसलमान सबसे जियादा हैं.सुन्नी आगे बरेलवी और देओबंद सम्प्रदाय में बंटे हुए हैं . बरेलवी मुसलमानों का विशवास है की अल्लाह तक मौसिकी और रस्क व् कलाम द्वारा इबादत से पहुंचा जा सकता है. ये ६०% हैं जो कि संतों फकीरों की मजारों पर सजदा करने में विशवास रखते है. बाकी के सुनी मुसलमान देओबंद सम्र्दय से है . वहाबी सम्र्दय को मिला कर इनकी संख्या २० % है. पाकिस्तान की फौज और हुकमरान पर इनका गेहरा असर है. बाकी की आबादी में १५% शिया और ५% अन्य अल्पसंख्यक आते हैं जिन में क्रिश्चन,इस्मईली,हिन्दू,सिख, पारसी व् अहमदिया मुस्लिम हैं. २०% बहावी और देओबंद सुन्नी मुसलामानों की नज़र में इस प्रकार पाकिस्तान का 80 % अवाम काफ़िर है.
पाकिस्तान के संस्थापक मुहमाद अली जिन्ना ने हिन्दुस्तान में रह रहे मुसलमानों के लिए एक खालिस -पाक वतन की कल्पना की थी जिसमें अल्लाह के बन्दे अपने इस्लाम को मानने वाले दीनियों के साथ पाक-साफ़ रह सकें . जिन्नाह नेहरु के सेकुलर अहंकार से भी बहुत आहत थे. तभी तो ११ अगस्त १९४७ के अपने एतिहासिक भाषण में उन्होंने पाक को सभी मज्हबो, जातियो और सम्प्रदायों के लिए आज़ाद देश बताया था जहाँ सभी को पूरी पूरी आजादी होगी पूजा अर्चना की.लेकिन राजयक्ष्मा से पीड़ित इस महत्वाकांक्षी बनिया से मुसलमान बने इस राजनेता को अपनी मृत्यु से पहले ही 'पाक की बर्बादी ' का अहसास हो गया था. तभी तो अपने डाक्टर से अपने अंतिम दिनों में जिन्ना ने कहा था 'पाक मेरे जीवन की सबसे बड़ी भूल है'.
गाँधी और जिन्ना में केवल और केवल एक चीज़ ही सामान्य है - दोनों को उनके देश वासियों ने पूरंतया बिसरा दिया.गाँधी जी ने राम राज्य का सपना देखा था जो कम से कम भारत में तो दूर दूर तक नहीं दिखाई देता. जिन्ना ने एक इस्लामिक सेकुलर समाज की कल्पना की थी जो पाक में कहीं नज़र नहीं आती. हाँ पाक पाकिस्तानी और काफ़िर पाकिस्तानी में जिहाद मुसलसल जारी है !!!!

गुरुवार, 26 अगस्त 2010

सांप को दूध.....

सांप को दूध ..........राष्ट्रीय व्यसन ...
एल. आर. गाँधी.
सांप को दूध पिलाना भी उसका विष बढ़ाना है ; न कि अमृत !
भारत के महान नीति शास्त्र आचार्य विष्णुगुप्त 'चाणक्य के ये शब्द हमारे
राजनेता पूर्णतया भुला चुके हैं . यही कारन है कि सांपों को दूध पिलाने की
समाजिक प्रथा को ' राजनैतिक राष्ट्रीय व्यसन ' बना डाला !

हमारे मनमोहन जी ने पाक की बाढ़ त्रासदी से त्रस्त हो कर पाक को करोड़ों
रूपए की सहायता की घोषणा पर पहले तो पाकिस्तान ने 'अनिच्छा' जाहिर की
किन्तु विश्व समुदाय की आलोचना से बचते हुए भारत की सहायता राशी ऐसे सवीकार
की जैसे बहुत बड़ा एहसान कर रहा हो - मानवता के नाते विश्व भर के देशों
द्वारा पाक के बाढ़ पीड़ितों की सहायता के लिए अपने 'सहायता कर्मी ' भेजे
जा रहे है. पाक सरकार ने इन के लिए तीन महीने का विशेष वीजा जारी करने के
आदेश दिए गए है और इसके साथ ही 'भारत और इजराईल ' के सहायता कर्मियों को यह
वीजा न जारी करने के हुकम दिए गए हैं.

भारत की तो छोडो - अमेरीका ने तो ९/११ के आतंकी हमले के बाद 'इस्लामिक
आतंक' से लोहा लेने के लिए पाक को अपना साथी मानते हुए करीबन १८ बिलियन
डालर की बारी भरकम सहायता राशी लुटा दी फिर भी आधे से अधिक पाकिस्तानी यही
मानते हैं की अमेरिका ने कोई सहायता नहीं की -गत माह पिऊ रिसर्च सेंटर
द्वारा करवाए गए सर्वेक्षण में तो यही तथ्य उभरा है. ओबामा प्रशासन की इस
सर्वेक्षण ने नींद ही उड़ा दी है. क्योंकि अमेरीकी प्रशाशन अफगान वार और
इस्लामिक आतंक के खिलाफ लड़ाई में पूरंत्य पाक पर ही निर्भर है. गत माह
अपनी पाक यात्रा पर आई स्टेट सेक्टरी हिल्लेरी क्लिंटन की खीज उनके इन
शब्दों में साफ़ नज़र आती है- ' हम ऐसे देश को सहायता क्यों भेज रहे है
जिसकी उसे ज़रूरत ही नहीं ' . पाक में सभी अमेरीका से नफरत करते हैं - यह
कहना है ७१ वर्षीया ठेकेदार शाह का. पिऊ के सर्वे में १० में से ६
पाकिस्तानी अमेरीका को अपना शत्रु मानते है जब की १० में से केवल मात्र १
ने उन्हें अपना साथी मानता .

अब हमारे मनमोहन प्यारे 'दुश्मन नंबर एक ' देश से क्या तवक्को रखते हैं .
बार बार पाक के आगे झुक कर हमने अपनी छवि एक ' बनाना स्टेट' की बना डाली
है. यह सिलसला पिछले ६३ साल से मुसलसल ज़ारी है. बंटवारा होते ही पाक फौज ने
कबाईलियों के वेश में कश्मीर पर हमला कर एक बड़ा भू भाग हथिया लिया. हमारी
फौजें उन्हें पीछे धकेल रहीं थीं कि हमारे चाचा नेहरु ने इकतरफा युद्ध
विराम कर यू.एन.ओ . का दरवाज़ा जा खटखटाया. १३ जनवरी १९४८ को पटेलजी की पहल
पर केंद्रीय केबिनट में फैसला किया गया की जब तक पाक कश्मीर ख़ाली नहीं
करता उसको दिए जाने वाली ५५ करोड़ की राशि रोक ली जाए. अब हमारे बापू जी
अड़ गए -पाक को ५५ करोड़ दो वर्ना मैं चला 'अनशन' पर . केंद्रीय केबिनेट को
अपना यह फैसला उसी शाम वापिस लेना पड़ा. पाक उस वक्त आर्थिक रूप से
'कंगाल ' था और ५५ करोड़ बहुत बड़ी रकम थी . भारत का रक्षा बज़ट उस वक्त ९३
करोड़ था. हमारे राष्ट्र पिता द्वारा अपने प्यारे पाक को दिलवाई गई यह
रकम आज ११४९५०००००० रूपए बनती है. इस से भारत पर 'बनाना स्टेट' का ठप्पा तो
लगा ही इस के साथ साथ सदैव के लिए पाक अधिकृत कश्मीर पर हमारा दावा भी
कमज़ोर हो गया. कश्मीर समस्या के नाम पर हुए खून खराबे और हजारों जवानो की
शहादत और कश्मीरिओन को खुश करने पर कर दाताओं का करोड़ों रूपया जो केंद्र
सरकार ने लुटाया वो अलग. फिर भी चाचा के कश्मीरी भतीजे पाक का झंडा उठाए
'भारत' से आजादी.... के पत्थर बरसा कर 'सेकुलर शैतानो' का धन्यवाद कर रहे
हैं.

जिन्ना ने देश का बंटवारा 'मुसलमानों के लिए अलग वतन' के आधार पर करवाया था
और इसी तथ्य को आधार मान कर 'मुस्लिम जनसँख्या 'के अनुपात से पाक को भारत
का भूखंड दिया गया . यथार्थ में सिर्फ आधे मुसलमान ही पाक गए और आधे
मुस्लिम भाई गाँधी-नेहरु के सेकुलर विचारों से प्रभावित हो कर यहीं के हो
कर रह गए. क्या नेहरु जी जब पाक अधिकृत कश्मीर वापिस लेने यू.एन.ओ. 'अर्जी'
देने गए क्या उन्हें कश्मीर के साथ साथ अपने मुस्लिम भाईओं के लिए पाक को
बक्शी गई आधी ज़मीन पर अपना दावा नहीं करना चाहिए था.... ज़ाहिर है हम चूक गए
.. और इन सेकुलर शैतानो के हाथों 'बनाना स्टेट' अब ''चितरी वाले केले' की
शक्ल अख्त्यार करता जा रहा है. कहते हैं बाढ़ में सभी सांप अपनी बिलों से
बाहर आ जाते हैं और उन्हें डसते हैं जो उनके लिए दूध के कटोरे लिए खड़े हैं
!!!!!

सोमवार, 23 अगस्त 2010

देसी आतंकी - विदेशी आतंकी ....

देसी आतंकी विदेशी आतंकी- हमाम में सब नंगे...
एल.आर गाँधी

जहाँ तक जेहादी आतंकिओं का दूसरे देशों में निर्यात पर राजनीति का सम्बन्ध है तो अब ज़ग ज़ाहिर हो गया कि हमाम में भारत और पकिस्तान दोनों नंगे हैं.
पाक इस्लामिक जेहाद को एक हथियार के रूप में देखता है तो भारत अपने जेहादियों को भोले- बेचारे- गुमराह अल्प्संखियक जिनका इस देश के सरमाए पर पहला अधिकार है --मानता है. कल तक हमारे चिद्दी जी पाक को डोजियर दर डोजियर दे रहे थे और विश्व समुदाय को समझाने में लगे थे कि पाक जेहादी आतंकियों की फैक्ट्री भी है और निर्यातक भी. विश्व समुदाय भी जब से खुद शिकार हुआ है - इस तथ्य को मानने लगा है. वाशिंगटन टाईम्ज़ के एडिटर एट लार्ज आर्नौड़ दी बोर्क्ग्रेव ने जब खुलासा किया की पाक के ११००० मदरसों में ५ लाख तालीम याफ्ता तालिबान में से हर साल १० हजार जेहादी निकलते हैं. अब हमारे भारत महान में तो ऐसे ३.५ लाख मदरसे हैं , जहाँ तालिबान को मुल्लाओं द्वारा पढ़ाया जाता है कि ' कुरआन के मुहब्बत के पैगाम ' को सारे जहाँ में कैसे फैलाना है और इस पैगाम में 'जेहाद' का असली मतलब क्या है.
अफ़्रीकी देश सुमालिया की राजधानी मोगादिशु में एक घर में बम्ब ब्लास्ट से अल-शबाब नामक अंतरराष्ट्रया आतंकी संगठन के १० आतंकी मारे गए . इनमे ७ विदेशी जेहादी थे . इन विदेशी जेहादियों में भारत के २ आतंकी भी थे. इस के अतिरिक्त पाक के ३ अफगान का १ और अल्जीरिया का १ आतंकी भी था. अल शबाब सोमालिया का बहुत ही खतरनाक आतंकी संगठन है जो अपने जेहादियों को अफगानिस्तान और कश्मीर की आज़ादी के लिए जेहाद को उकसाता है. सोमालिया में इनका फरमान चलता है. मर्दों को दाहड़ी रखने और औरतों को बिना मर्द को साथ लिए घर से निकलने पर पाबन्दी नासिर है. यह संगठन विश्व में 'शरियत ' का निजाम कायम करने के लिए युवकों को तैयार करता है.
पाक और भारत के हुकमरान आतंकवाद का मिलकर मुकाबला करने की महज़ बात ही करते हैं जब कि दोनों देशों के आतंकी कब से मिलजुल कर 'जेहाद' को सारे विश्व में 'शरियत ' के पैगाम फ़ैलाने के औज़ार के रूप में उठाए एकजुट होते जा रहे है. बेचारे चिद्दी जी को तो यह भी नहीं मालूम होगा की हमारे ये सोमालियाई 'जेहादी' ३.५.लाख में से किस फैक्ट्री का माल हैं.

शुक्रवार, 20 अगस्त 2010

जिन्ना कि राजयक्ष्मा -पाक की राष्ट्रीय आपदा

जिन्ना की राजयक्ष्मा--पाक की राष्ट्रीय आपदा..
एल.आर.गाँधी.
कायद-ए-आज़म की दी हुई राजयक्ष्मा २००१ आते आते इतनी फ़ैल गई कि पाकिस्तान को टी.बी. रोग को राष्ट्रीय आपदा घोषित करना पड़ा. टयूब्रोक्लोसिस आक्रांत २२ देशों में आज पाक का छटा स्थान है, जबकि पांच में से चार टी.बी. केस यहाँ अजाने/ बिन-उप्चारे ही रह जाते हैं. इसका प्रमुख कारन लोगो में टी.बी. रोग की अज्ञानता और इस रोग के प्रति लोगो में व्याप्त डर और घृणा है. यही कारन है कि २००७ में २९७,१०८ युवा पाकिस्तानी इस संक्रामक बीमारी के शिकार हुए. हर वर्ष लगभग २.५ लाख मौतों का मुख्या कारण टी.बी. को माना जाता है. पाकिस्तान नॅशनल टीउब्र्क्लोसिस प्रोग्राम के अंतर्गत अमेरिका द्वारा ५ मिलियन डालर की सहायता के बावजूद टी.बी आक्रान्त देशो पर होने वाले कुल खर्चे का ४४% पाक पर खर्च होता है. क्योंकि अभी तक यहाँ की सरकार इस जान लेवा बीमारी का समुचित इलाज़ मुहैया करवाने में असफल रही है. टी.बी. के मरीज़ का अधुरा इलाज न-इलाज़ करवाने से जियादा खतरनाक है.
१९४६ में जब कायद-ए-आज़म के डाक्टर -मित्र जे.के.एल.पटेल ने बम्बई के अपने क्लिनिक में बुला कर उन्हें उनकी न थमने वाली खांसी का राज बताया और कहा कि उन्हें 'राजयक्ष्मा' अर्थात टी.बी. है. तो जिन्ना की पहली प्रतिक्रिया यह थी उनके इस रोग बारे किसी को पता नहीं चलना चाहिए -उस वक्त टी.बी. एक असाध्य रोग था. जिन्ना नहीं चाहते थे की उनके इस रोग का किसी को भी पता चले और उनका पाक सपना धरा का धरा रह जाये, क्योंकि मुस्लिम लीग में किसी अन्य मुस्लिम नेता में इतनी योग्यता नहीं थी की वह मुसलमानों के लिए अलग राष्ट्र पाकिस्तान के सपने को साकार कर सके. इतने सक्रामक और लाइलाज बिमारी को छुपा कर जहाँ एक ओर जिन्ना ने इस खतरनाक रोग को फ़ैलाने का काम किया वहीँ डाक्टर पटेल ने इस राज़ को छुपा कर एक ओर तो अपने पेशे के साथ धोका किया और दूसरी ओर देश के साथ द्रोह- भारितीय इतिहास में डाक्टर पटेल को दूसरा जयचंद के नाम से जाना जाएगा . यदि पटेल ने यह राज छुपाया न होता तो भारत वर्ष के तीन टुकड़े न हुए होते.
जिन्ना एक सामाजिक - राजनेता थे और प्रति दिन सैंकड़ों लोगों से मिलते और सब कुछ जानते हुए भी अपनी यह ला -इलाज छूत की बीमारी लोगो में फैलाते रहे. यह बात अलग है की वे अपनी कौम से जियादा मिलते थे और ज़ाहिर है उनका 'राज यक्ष्मा' आज भी उन्हें 'जिन्न' की भांति सता रहा है. मिलते तो वे हमारे कांग्रेसी भाइयों से भी खूब थे और कमों- बेश इनको भी अपना रोग दे गए .यही कारन है कि हमारे देश में प्रति वर्ष ३,२५००० लोग इस 'इस जिन्न' की भेंट चढ़ जाते हैं. आज भी समाज में 'राजयक्ष्मा' रोगी को घृणा की दृष्टि से देखा जाता है , जब की अब तो इस का अचूक इलाज़ संभव हो गया है. इस समाजिक त्रिस्कार के कारन ही लोग अपने इस रोग को 'जिन्ना' की भांति छिपाते है..... और फैलाते भी.......

बुधवार, 18 अगस्त 2010

सम्मान जनक -आरामदेह मृत्यु - मौलिक अधिकार !!!!

सम्मान जनक -आराम देह मृत्यु - मौलिक अधिकार !!!

सन २०३० आते आते भारत वानप्रस्थियों की राजधानी बन जायेगा. हमारे यहाँ एक बिलियन वृष्ट नागरिक होंगे अर्थात विश्व के १/८ वृष्ट नागरिक देश के वानप्रस्थ आश्रमों की तलाश में भटक रहे होंगे. जीवन का यही एक एसा पडाव है जब ताउम्र जीने की तमन्ना करते करते एक दिन इंसान मरने का ईरादा कर बैठता है , तो बहुत बड़ी मुसीबत आन खड़ी होती है. इस मुसीबत का पूरे साहस और सलीके से सामना करने के लिए ही भारतीय समाज में अनादिकाल से मानव जीवन को चार आश्रमों में बाँट दिया गया. ब्रह्मचर्य ,गृहस्थ , वानप्रस्थ और संन्यास . ५०-७४ की आयु को वानप्रस्थ जीवन मार्ग माना गया जब मनुष्य अपने समस्त गृहस्थ दायित्वों से मुक्त हो कर सांसारिक कर्मों का त्याग कर ज्ञान मार्ग पर अग्रसर होता है. जीवन के मोह छोड़ छाड़ ज्ञानी पुरुषो से मोक्ष मार्ग और सहज मृत्यु की साधना सीखता है , ताकि अंतिम समय में सब सहज सा हो जाये .
विश्व को सहज मृतु का मन्त्र देने वाले आज आधुनिकता की दौड़ में मोह माया के प्रपंच में ऐसे उलझ कर रह गए की समय ने हमें आरामदेह मृत्यु दर में विश्व के ४० वे स्थान पर ला पटका. युगांडा जैसा गरीब देश जिसकी अर्थव्यवस्था हम से ९० गुना कम है ,भी हम से एक पायदान ऊपर है. आरामदेह मृत्यु उतमता दर का आकलन एक देश के वृष्ट नागरिकों को उपलब्ध स्वस्थ सुविधाओं और अन्य जीवन सुविधाओं को आधार बना कर किया जाता है. उत्तम मृत्यु दर में ब्रिटेन १० में से ७.९ अंक पा कर पहले स्थान पर है. अमेरीका में बढ़िया स्वस्थ सुविधाओं के चलते २०५० तक वृष्ट नागरिकों की संख्या ८० मिलियन को पार कर जाएगी . अभी से वहां की सरकार अपने उम्रदराज़ नागरिकों को सम्मान जनक जीवन और आरामदेह मृत्यु की सुख सुविधाएँ जुटाने के प्रति संजीदा है. हमारे यहाँ स्वस्थ्य सेवाओं के लिए सरकार बजट में मात्र एक प्रतिशत ही जुटा पाती है, सामान्य नागरिकों के लिए ही स्वस्थ्य सुविधाएं जुटाना दूर की कौड़ी लगता है, वहां वृष्ट नागरिकों की तो बात ही छोडो. वृष्ट नागरिको को तो कई गुना अधिक स्वस्थ्य सुविधाओं की दरकार है.ऐसे में निरंतर बढ़ रही वानप्रस्थ जनसँख्या के लिए सम्मान जनक जीवन और आराम देह मृत्यु की सुविधा के बारे में तो सोचना ही बेमानी सा लगता है. क्योंकि हमारी सरकार इस समस्या के प्रति संजीदा तो क्या ,अभी गहरी नींद से ही नहीं जाग पाई.
भारत में केवल केरल ही एक मात्र राज्य है जहाँ उत्तम मृत्यु दर अन्य राज्यों से कुछ बेहतर है. आरामदेह मृत्यु सुविधा के लिए यहाँ मार्फीन के प्रयोग पर से पाबंदी हटा दी गई है. हमारे यहाँ तो अंतिम साँसे गिन रहे या गंभीर रूप से बीमार मरीज़ को डाक्टर द्वारा उसकी स्वस्थ्य स्थिति बारे उसे अँधेरे में ही रखा जाता है. केवल मरीज़ के परिज़नो के रहमोकरम पर उसे छोड़ देते हैं. जबकि पश्चिमी देशो में डाक्टर के लिए मरीज़ को उसकी यथार्थ स्वस्थ्य स्थिति से अवगत करवाना अनिवार्य होता है. विकसित देशो में तो अब 'लिविंग विल ' का भी प्रावधान है. ताकि गंभीर हालत में जब मरीज बोल पाने या कुछ बता पाने में अक्षम हो जाये तो 'लिविंग विल' में नामित व्यक्ति से डाक्टर मरीज़ के इलाज़ बारे मशविरा ले सके.
जहाँ सम्मान पूर्वक जीने का मौलिक अधिकार भी मात्र चंद सुविधा संम्पन्न नागरिकों को ही प्राप्त है, वहां जीवनके अंतिम प्रहर में प्रवेश कर चुके 'वानप्रस्थी' भारतीय सम्मान जनक -आरामदेह जीवन विसर्जन की आस किस से करें.?????

शनिवार, 14 अगस्त 2010

आज की किलकारी- कल की चीत्कार !!!!

आज की किलकारी -कल की चीत्कार !!!!!

प्रसिद्ध वैज्ञानिक स्टीफन हाकिन ने बढ़ती आबादी के कारण बढ़ते प्रदूषण और सीमित होते संसाधनों के चलते विश्व वैज्ञानिकों को अब चाँद और मंगल ग्रहों पर मानव के लिए नए निवास स्थान बनाने की संभावनाएं तलाशने का आह्वान किया है. हाकिन के अनुसार पृथ्वी का अंत २०० साल में निर्धारित सा लगता है
चीन ने जहाँ एक परिवार और एक बच्चा की नीति अपनाते हुए अपनी आबादी को निर्धारित समय सीमा में नियोजित करने में सफलता हासिल कर ली है, हम लोग अभी भी 'परिवार नियोजन के नफे नुक्सान के गणित 'में उलझे हैं ,और इस खुश्फैह्मी में पड़े हैं की हम आबादी में चीन के बाद दुसरे नंबर पर हैं. बेचारे राजनेता तो इस विषय पर महज़ इस लिए चुप्पी साध लेते हैं कि कहीं उनका वोट बैंक न खिसक जाए. परिवार नियोजन पर संजय गाँधी ' योजना जैसी सख्ती तो बिलकुल नहीं -भाई लोग बिफर जायेंगे ! कुछ लोग तो जियादा आबादी के अब फायदे भी गिनाने लगे है और इसे भला सा नाम भी दे डाला है 'मैन पावर' . अब इस मैन पावर को निर्यात करने की योजनाएं बनाई जा रही हैं. यानिके हमारे बच्चे अब लोग पालेंगे- वाह ! चीन ने अपनी बढती आबादी को नियोजित करने के साथ साथ मौजूदा आबादी को काम में लगा कर 'सस्ती लेबर' के दम पर विश्व अर्थव्यवस्था पर बढ़त हासिल की है. वहीँ हम ऐसा करने में पूर्णतया नाकाम रहे है.
हमारा चीन के साथ आबादी की तुलना करना भी बेमानी है. चीन के पास १९.५२ % आबादी के लिए ६.४ % भू क्षेत्र है , जबकि हमारे पास १७.२६ % आबादी के लिए है मात्र २.१% क्षेत्र . अर्थात जितने भू खंड पर चीन के १०० लोग आबाद /पलते हैं , उतने ही भू खंड पर हमारे २३४ लोगो को गुज़र बसर करना पड़ता है. इस प्रकार उपलब्ध संसाधनों और भूमि के लिहाज़ से जहाँ हम चीन से अढाई गुना पीछे हैं वहीँ आबादी में भी चीन से अढाई गुना आगे. मौजूदा हालात में यदि हमारी आबादी इसी प्रकार बढती रही तो यह अनुपात और कई गुना बढ़ जायेगा. हमारे यहाँ तो एक प्रदेश के लोगों को दुसरे प्रदेश में 'प्रवासी' कह कर दुत्कारा जाता है और हम दुसरे देशों पर आस लगाए बैठे है कि वे हमारी 'मैन पावर' को अपने यहाँ काम देंगे ; गैर के बच्चो को भला कोई पालता है. ?

रविवार, 8 अगस्त 2010

...अब जस्टिस नाहिद आरा मूनिस

पहले शाह बानो -फिर सीरिन और अब जस्टिस नाहीद आरा मूनिस ....
दारुल-उलूम मदरसा देओ- बंद के मौलवी ने फतवा नासिर किया है कि कोई औरत मुंसिफ नहीं बन सकती। इस प्रकार अलाहाबाद हाईकोर्ट में जस्टिस नाहीद आरा मूनिस की बतौर जज नियुक्ति पर प्रशन चिन्ह लगा दिया गया है। देओबंद के मौलवी जी के अनुसार इस्लाम में किसी औरत को जज बनाया जाना कुरआन ई पाक के ऊसूलों के खिलाफ है।
अल्लाह के दूत मुहम्मद साहेब के अनुसार औरत के हकूत एक मर्द से आधे हैं (कु :२:२८२)। शरियत के क़ानून में दो औरतो की गवाही एक मरद के बराबर मानी जाती है क्योकि औरत की समझ मरद से कमतर होती है। इसी लिए औरत को माहवारी के दिनों में इबादत और व्रत की मनाही की गई है।
हमारे संविधानवेताओं ने संविधान में भारत के सभी नागरिकों के लिए एक सामान आचार संहिता लागू करने का वचन दिया था। गांधीजी का विचार था की जब तक देश का मुसलमान खुद ही अपने समाज को जागरूक कर कर समान अचार संहिता के लिए तैयार नहीं होता तब तक उन पर समान अचार संहिता लागू नहीं होनी चाहिए । गाँधी जी की इसी विचारधारा के परिणाम सवरूप आज देश की क़ानून व्यवस्था संकट में आन पड़ी है।
देश के क़ानून में औरतों के अधिकारों की रक्षा करते हुए -तलाक के बाद आदमी से गुज़ारा भत्ता लेने का अधिकार दिया गया है। एक शाह बानो को देश की सबसे बड़ी अदालत ने जब गुज़ारा भत्ता देने का फैसला सुनाया तो मौलवियों और कट्टरपंथी मुसलमानों ने इस फैसले का जम कर विरोध किया और इसे कुरान ई पाक के खिलाफ फैसला करार दिया। राजीव की कांग्रस सरकार इन कठमुल्लाओं के दवाब में आ गई और लोकसभा में सुप्रीम कोर्ट का फैसला बदल दिया। जाहिर है इस से जहा एक ओर मुस्लिम महिलाओं की समाजिक हालत बढ से भी बदतर हो गई वहीँ दूसरी ओर कट्टर पंथीओं के हौसले और भी बुल्लंद हो गए।
आज कट्टर पंथी देश भर में 'शरीयत ' के क़ानून लागु करवाने की फिराक में है। केरल में तो 'शरीयत अदालते भी लगने लगी है। एक प्रोफ़ेसर का हाथ इस लिए काट डाला गया की उसने मुहम्मद पर कोई सवाल पूछने की जुर्रत की थी। कलकत्ता में एक लेक्चरार पिछले ३-४ माह से अपनी क्लास में नहीं जा पा रही। उसका कसूर यह है की उसने मुस्लिम स्टुडेंट यूनियन के 'बुरका पहन कर क्लास रूम में आने ' के फतवे को मानने से इनकार कर दिया है। मजे की बात तो यह है की हमारे सेकुलर नेताओं की तो चलो मजबूरी है क्योंकि उन्हें तो बस मुस्लिम समाज की वोट से वास्ता है। मगर हमारे सेकुलर मिडिया को क्या सांप सूघ गया है जो 'मैं चुप रहूंगी ' की कसम खाए बैठे हैं.

गुरुवार, 5 अगस्त 2010

इस्लामिक आतंक का शिकार - नालंदा

इस्लामिक आतंक का शिकार - नालंदा
भारतीय शिक्षा विज्ञानं के प्राचीन प्रकाश स्तम्भ ' नालंदा ' विश्व विद्यालय को पुनर्जीवित करने का बीड़ा अब विदेशी संस्थाओं ने उठाया है. बिहार की इस बहुमूल्य दरोहर को फिर से उसके पुराने गौरवशाली रूप में स्थापित करने का महती कार्य नोबल विभूति अमर्त्य सेन व् सिंगापूर के विद्वान ऍफ़ एम् जोर्जेयो को सौंपा गया है. केंद्रीय मंत्रिमंडल कि मंजूरी के बाद अब इस पर संसद कि मोहर लगनी बाकी है. इके बाद अक्तूबर में हैनोई में होने वाली ईस्ट एशिया सम्मलेन में स्वीकृति के बाद इस पर काम शुरू हो जायेगा. दिल्ली विश्व विद्यालय के गोपा सभरवाल इस के आयोजन उपकुलपति होंगे.
पटना से ५५ मील दक्षिण-पूर्व में स्थित नालंदा बौध विद्या पीठ ४२७-११७९ ईसवी तक बौध मत का प्रमुख शिक्षा केंद्र रहा. सम्राट अशोक ने सबसे पहले यहाँ एक मठ स्थापित किया था. ६३७ ईसवी में चीनी यात्री उएंचांग ने विद्यापीठ में प्रज्ञा चंद्र नामक आचार्य से विद्याध्ययन किया था. विश्व के लिखित इतिहास में यह महानतम विश्व विद्यालयों में से एक था, जिसकी सम्राट कुमार गुप्त ने स्थापना की थी. लाल ईंट से बना १४ एकड़ में फैला यह 'ज्ञान केंद्र' विदेशी विद्वानों के लिए ख़ास आकर्षण का केंद्र रहा, जहाँ चीन , यूनान, पर्शिया आदि दूरस्थ देशों से विद्वान ज्ञान अर्जन के प्रयोजन से यहाँ आते थे. यह विश्व कि प्रथम आवासीय विश्व विद्यालय थी जहाँ दस हजार छात्र और दो हजार अध्य्यापक ज्ञान-विज्ञान की विविध प्रणालियों का अध्ययन करते. विद्यालय के आठ प्रांगन ,१० मंदिर, साधना हाल, कक्षा कक्ष, ताल और उद्यान थे. नौं मंजिला पुस्तकालय और इसके तीन भवन विशेष आकर्षण का केंद्र थे. इनके नाम भी पुस्तकालय में रखे ज्ञान- ग्रंथों के अनुरूप थे - जिन्हें 'धरमकुंज ' के रत्न सागर-रत्न दधी व् रत्न रंजक के नाम से संबोधित किया जाता था.
नालंदा विश्व विद्ययाल्या में उस समय के विश्व व्यापी ज्ञान की प्रत्येक जानकारी उपलब्ध थी . नालंदा का अर्थ ही यह था कि जहाँ किसी भी प्रकार का ज्ञान प्राप्त करने की ईच्छा रखने वाले 'मुमुक्षु को ' न ' नहीं .
११९३ में एक शैतान ने 'ज्ञान के इस प्रकाश पुंज' को बुझा दिया. यह शैतान था बख्त्यार खिलज़ी , जो तलवार की धार पर भारत में इस्लाम फ़ैलाने कि नियत से आया था. खिलज़ी ने नालंदा विश्व विद्यालय के 'धर्मकुंज' पुस्तकालय पहुँच कर सवाल किया . क्या यहाँ कुरान है ? जवाब नहीं में था ! यह सुनते ही वह आग बबूला हो गया . विश्व विद्यालय को ज़मीं दोज़ कर दिया गया -हजारों बौध भिक्षुओं को जिंदा जला दिया गया और हजारों को तलवार से काट दिया गया- मंदिर गिरा दिए गए और विद्यापीठ की इमारतों को मिस्मार कर दिया गया. ..... प्रसिद्ध पर्शियन इतिहासकार मिन्हाज - ई -सीरिज ने अपनी किताब तब्क्नात - ई - नसीरी में इस का ज़िक्र किया है
'धर्मकुंज' पुस्तकालय को आग लगा दी गई -हजारो वर्षों से सहेजे गए ज्ञान विज्ञानं के ग्रन्थ ख़ाक हो गए . कहते हैं पुस्तकालय की यह आग तीन माह तक सुलगती रही. इतिहासकार अहीर के अनुसार नालंदा विश्व विद्यालय को मिटाने का मकसद था प्राचीन भारत के ज्ञान विज्ञान को पूरंतः मिटटी में मिला देना.
९/११ के इस्लामिक आतंकी हमले को सबसे बड़ा आतंकी वाकया कहने वाले शायद यह भूल गए कि भारत में 'नालंदा' विश्व विद्यालय पर खिलज़ी का यह हमला भारत की अस्मिता पर होने वाला विश्व का सबसे बड़ा आतंकी हमला था. भारत ने न जाने ऐसे कितने ही आतंकी वार झेले और फिर भी विश्व को बुध के सत्य और अहिंसा का सन्देश निरंतर दिए चला जा रहा है.
शेख ने मस्जिद बना , मिस्मार बुतखाना किया.
पहले तो कुछ सूरत भी थी ,अब साफ़ विराना किया...

मंगलवार, 3 अगस्त 2010

धंधा है पर गन्दा है...

गन्दा है पर धंधा है....
नीरुजी और नसरीन खुश है और डरी हुई भी ...खुश इस लिए कि अबकी दिवाली से पहले ही उनकी दिवाली आ रही है. तीन अक्तूबर से दिल्ली में कामन वेल्थ खेलों के साथ ही उनका 'जिस्म फरोशी' का धंधा भी खूब चमकेगा ,तैयारिया अपने यौवन पर है. जिस्म के सौदागर तो २ अक्तूबर से पहले ही दस्तक देने लगेंगे. ... डर भी अपनी जगहां वाजिब है. ये नई नई लौंडियाँ क्या जानें -वे जानती हैं जिन्होंने पिछला मेला - झेला है. १९८४ में एशियन गेम्ज़ के मेले में ,सैंकड़ों लड़कियां एच आई वी कि शिकार हुईं और उनका अंत देख कर तो उनकी रूह कांप जाती है. आज मंगल वार है- वे दोनों ९६ कोठों के सामने वाले हनुमानजी के मंदिर में 'संकट मोचन' के दरबार में अरदास करने जा रहीं हैं - प्रभु ! हमारी अभागिन कन्याओं के संकट दूर करना. पिछले शुक्रवार ऐसी ही कामना पिछवाड़े में स्थित दो मस्जिदों में भी कर आई हैं थीं. इसके साथ ही अल्लाह और ईश्वर से यह भी फ़रियाद कर आईं कि हमें पुलसिया कहर के साथ साथ उन मनचले ग्राहकों से भी बचाए रखना जो 'बिना निरोध के सम्भोग का अनुरोध करते हैं' . ऐसे मनचले ग्राहक खुद तो मरते ही हैं और हमें भी मुसीबत में डाल देते हैं.
भला हो कलमाडी जी का - वे सौ साल तक खेलते रहे.... अबकी उन्होंने हमारा ख़ास ख्याल रखा है. कामन वेल्थ गाँव में २०० कंडोम मशीने लगवा दी हैं, जहाँ खिलाडिओं के साथ साथ अधिकारिओं को भी मुफ्त में 'निरोध' मिलेगा. कलमाड़ी जी ने उन मनचलों का भी हल ढूंढ लिया है , जिन्हें ' निरोध से नफरत ' है.दिल्ली की सेक्स वर्कर्ज़ को अबकी एक लाख फीमेल कंडोम सस्ते दामों मुहय्या करवाए जाएंगे . एक फिमेल कंडोम जो २०/- से ऊपर पड़ता है वो सेक्स वर्कर्ज़ को महज़ ३.५० में मिलेगा. चलो मनचलों का हल तो तलाश लिया अब पुलसिया कहर का क्या किया जाए ! वह तो बदस्तूर जारी रहेगा.. क्योंकि शीला सरकार 'इस गंदे धंधे को धंधा ही नहीं मानती. उनकी नज़र में तो यह सब गैर कानूनी है. फिर शीला जी कि पुलिस भला इन्हें कब बख्शने वाली है. भई ५०० करोड़ के अवैध धंधे में पुलिस के भाई लोगो का भी तो 'हक़' बनता है. फिर वे बेचारे भी कोई अकेले थोड़े सारा माल गटक जायेंगे -ऊपर के अफसरों को जी बी रोड पर डियूटी अलाट करने के भी तो दे कर आएं हैं ...
कलमाड़ी जी के खेले में जहाँ ७० देशों के ७०० खिलाडी भाग लेने आ रहे हैं वहीँ उनके इस खेले को सफल बनाने के लिए देश विदेश से हजारों सेक्स वर्कर्ज़ भी पहुँच रहे हैं .. कलमाड़ी जी कि तरहां ही जी बी रोड के कोठे भी विश्व स्तर की सेवाएँ देने वाले है. कोठे वाली हसीनाएं अब अंग्रेज़ी सीख रही हैं , अबकी वे अपने चाहने वालों को 'वेलकम'-थैंक्यू -कम अगेन ! के संबोधन से मंत्रमुग्ध कर देंगीं . विदेशी खिलाडी और सैलानी कलमाड़ी जी के खेल से खुश होंगे कि नहीं यह कहना तो मुश्किल है , मगर हमारी इन आधुनिक 'मेनकाओं ' के ज़ल्वों को तो वे चिर काल तक याद रखेंगे ही...

रविवार, 1 अगस्त 2010

एक और शाह बानों ..चुप हैं सेकुलर शैतान ...

एक और शाह बानो ....चुप हैं सेकुलर शैतान...
सेकुलर भारत के सेकुलर शैतानो से एक और शाह बानों को इन्साफ की दरकार है !३२ साल पहले इंदौर मध्य प्रदेश की ६२ वर्षीय शाह बनो ने इन्साफ के लिए उच्चतम न्यायालय का दरवाज़ा खट खटाया और न्यायालय ने उसकी फरियाद को सुना भी मगर केंद्र की सेकुलर कांग्रस सरकार ने मुस्लिम कट्टर पंथियों के दवाब में ,क़ानून में बदलाव कर -'इन्साफ का गला काट दिया' और शाह बानों और उसके पांच बच्चों को उनके मौलिक अधिकार 'गुज़ारा भत्ता' से वंचित कर दिया.
अब एक और शाह बनो अपने मौलिक अधिकारों के लिए मैदान में आई है. यह है सीरिन मिडिया ... २४ वर्षीया सीरिन मिडिया कोलकता की अलिआह यूनिवर्सिटी में गेस्ट लेक्चरार है. इस यूनिवर्सिटी को हाल ही में बंगाल की बुध देव सेकुलर सरकार ने अल्पसंख्यक स्टेटस से नवाज़ा है. यहाँ की स्टुडेंट यूनियन ने फरमान जारी किया की कोई भी महिला लेक्चरार बिना 'डिसेंट' कपड़ों के पढ़ाने न आए -अर्थात कोई भी मुस्लिम महिला लेक्चरर बिना बुर्के के क्लास रूम में प्रवेश न करे ! ७ टीचरों ने तो फरमान का पालन किया और बुर्के में 'तालिबान' को पढ़ाना सवीकार लिया,मगर सीरिन ने इस तालिबानी फरमान को मानने से इनकार कर दिया. पिछले तीन माह से सीरिन कैम्पस से बाहर स्थित लाईब्ररी में बैठ कर चली जाती है . सीरिन ने इस तालिबानी फरमान के विरुद्ध शिक्षा मंत्री और अल्प्संखियक मामलों के मंत्री को लिखित शिकायत भी की है. मगर सेकुलर भारत के महान सेकुलर वामपंथी सरकार की 'अधोगति की सीमा' तो देखो -सभी चुप हैं . और तो और भारत के बडबोले सेकुलर मिडिया की 'बुर्कादत्त' और पर्सून वाजपाई भी मुस्लिम सुपारी मुंह में दबाए बैठे हैं.चलो कौम- नष्टों की तो राजनैतिक मजबूरी हो सकती है मगर इन सेकुलर मिडिया वालों की क्या मजबूरी है यह समझ के बाहर है. ज़ाहिर है इनकी चुप्पी तालिबानी सोच को बढ़ावा देने वाली मदरसा स्टुडेंट युनियन्ज़ के होसले बुलंद करने में घी का काम करेंगी.
बाकि वामपंथियों का सेकुलर मुखौटा तो 'तसलीमा नसरीन पहले ही उतार ले गई हैं.
इन सेकुलर शैतानों की 'गांधीवादी-दंडवत-दोनों गाल चांटे खाने को तैयार रखने ' की नीति और नियति का ही परिणाम है की आज केरल में सरे आम 'शरियत अदालतें लगने लगी हैं. एक अध्यापक का तो महज़ इस लिए 'हाथ ही काट डाला की उसने मुहम्मद पर कोई सवाल करने की जुर्रत कर डाली. फ़्रांस और बेल्जियम में बुर्के के प्रतिबन्ध पर हमारा सेकुलर प्रेस खूब टी आर पी चमका रहा है और मुस्लिम महिलाओं के मौलिक अधिकार का रोना रो रहा है. अब हमारे देश में हम अपने नागरिकों के मौलिक अधिकारों पर तो चुप्पी साधे बैठे हैं और विदेशों में इनके हनन पर गला फाड़ फाड़ कर चिल्लाने लगते हैं... यह दोगला आचरण कब तक चलेगा मेरे भाई....
अफगानिस्तान में हाल ही में भारतीय अधिकारियों और डाक्टरों की हत्या करने वाले आतंकी ' बुर्के' में ही आए थे.