इंसानियत का मसीहा ' फ़राज़ '
एल आर गांधी
शैतानी किताब को मानने वालों ने बांग्ला देश के ढाका शहर में 'पवित्र रमदान ' महीने की विदाई २० काफिरों के सर कलम करके मनाई ...... काफिरों से 'पवित्र -कुरआन ' की आयते सुनाने को कहा गया .... जो नहीं सुना पाये उनके सर कलम कर दिए गए ..... सभी कातिल खूब पढ़े -लिखे और खाते -पीते घरों से थे। और 'कुरआन ' को भी खूब समझते थे .....'.हराम महीने के ख़त्म होते ही घात लगा कर बैठ जाओ और मौका मिलते ही 'काफिरों ' को मार डालो ! कुरआन के इस फरमान को महज़ पूरा किया इन खुदा के बन्दों ने .... मरने वाले विदेशी थे और उनमें भारत की हिन्दू कन्या ताऋषि जैन और बांग्ला देशी युवक फ़राज़ अयाज़ हुसैन था।
फ़राज़ को जेहादिओं ने भाग जाने को कहा , मगर उसने अपने साथी -मित्रों को मरने के लिए छोड़ जाने से साफ़ इंकार कर दिया .... ज़ाहिर है इस्लाम में काफिरों का साथ देना भी 'कुफ्र ' है और कुफ्र की सज़ा मौत ! फ़राज़ को भी मार दिया गया ..... फ़राज़ ने इंसानियत , विश्व-बन्धुत्व और मित्रता की बेमिसाल इबारत लिख दी जिसे विश्व इतिहास में अविस्मरणीय स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाइएगा !
इंसानियत के पैरोकारों ने फ़राज़ की कुर्बानी को भरपूर श्रद्धांजलि दी ..... मगर हमारे यहाँ वोट बैंक के भेड़िये सैकुलर शैतान मुंह में मज़हबी सुपारी दबाए मौन बैठे हैं ..... मुंह खोले तो ' सैकुलर सियासी लाल पीक से उनके अपने ही गिरेबां दागदार ' हो जाएंगे ! ताऋषि का अंतिम संस्कार दिल्ली की बगल -गुरुग्राम में किया गया , मगर अपनी दिल्ली का ' दल्ला' जो हर मौलवी को करोड़ -करोड़ बांटने में माहिर है ...... नदारद रहा ! फ़राज़ की कुर्बानी पर भी सांप सूंघ गया !
जिन देशों से शैतानी किताब को मानने वालों ने 'काफिरों ' का पूर्ण सफाया कर दिया , वहां अब 'अपनों के सफाये में मशगूल हैं .... यु ऐ ई में मुहम्मद की मज़ार पर बनी मसीत पर बम ब्लास्ट और वह भी कट्टर पंथी सुन्निओं द्वारा ..... तलवार के ज़ोर पर फैला मज़हब ...... ज़बर के ज़हर से ही निपट जाएगा !
एल आर गांधी
शैतानी किताब को मानने वालों ने बांग्ला देश के ढाका शहर में 'पवित्र रमदान ' महीने की विदाई २० काफिरों के सर कलम करके मनाई ...... काफिरों से 'पवित्र -कुरआन ' की आयते सुनाने को कहा गया .... जो नहीं सुना पाये उनके सर कलम कर दिए गए ..... सभी कातिल खूब पढ़े -लिखे और खाते -पीते घरों से थे। और 'कुरआन ' को भी खूब समझते थे .....'.हराम महीने के ख़त्म होते ही घात लगा कर बैठ जाओ और मौका मिलते ही 'काफिरों ' को मार डालो ! कुरआन के इस फरमान को महज़ पूरा किया इन खुदा के बन्दों ने .... मरने वाले विदेशी थे और उनमें भारत की हिन्दू कन्या ताऋषि जैन और बांग्ला देशी युवक फ़राज़ अयाज़ हुसैन था।
फ़राज़ को जेहादिओं ने भाग जाने को कहा , मगर उसने अपने साथी -मित्रों को मरने के लिए छोड़ जाने से साफ़ इंकार कर दिया .... ज़ाहिर है इस्लाम में काफिरों का साथ देना भी 'कुफ्र ' है और कुफ्र की सज़ा मौत ! फ़राज़ को भी मार दिया गया ..... फ़राज़ ने इंसानियत , विश्व-बन्धुत्व और मित्रता की बेमिसाल इबारत लिख दी जिसे विश्व इतिहास में अविस्मरणीय स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाइएगा !
इंसानियत के पैरोकारों ने फ़राज़ की कुर्बानी को भरपूर श्रद्धांजलि दी ..... मगर हमारे यहाँ वोट बैंक के भेड़िये सैकुलर शैतान मुंह में मज़हबी सुपारी दबाए मौन बैठे हैं ..... मुंह खोले तो ' सैकुलर सियासी लाल पीक से उनके अपने ही गिरेबां दागदार ' हो जाएंगे ! ताऋषि का अंतिम संस्कार दिल्ली की बगल -गुरुग्राम में किया गया , मगर अपनी दिल्ली का ' दल्ला' जो हर मौलवी को करोड़ -करोड़ बांटने में माहिर है ...... नदारद रहा ! फ़राज़ की कुर्बानी पर भी सांप सूंघ गया !
जिन देशों से शैतानी किताब को मानने वालों ने 'काफिरों ' का पूर्ण सफाया कर दिया , वहां अब 'अपनों के सफाये में मशगूल हैं .... यु ऐ ई में मुहम्मद की मज़ार पर बनी मसीत पर बम ब्लास्ट और वह भी कट्टर पंथी सुन्निओं द्वारा ..... तलवार के ज़ोर पर फैला मज़हब ...... ज़बर के ज़हर से ही निपट जाएगा !