रविवार, 14 सितंबर 2014

कीचड़ वृति

कीचड़ वृति 

एल आर गांधी  


पुरानी कहानी है   एक महात्मा नदी किनारे बैठा ,कीचड़ में लिप्त मरणप्राय बिच्छू को कीचड़ से बाहर निकलता और बिच्छू उसे काट लेता।   महात्मा फिर से बिच्छू को कीचड़ से निकलता और बिच्छू फिर काटता  … एक राह गीर ने महात्मा से पूछा  … महात्मन्  बार बार इसे बचाने का प्रयास कर रहे हो और यह दुष्ट जीव आप को बार बार दंश मार कर पीड़ा पहुंचा रहा है  … आप इसे मरने के लिए छोड़ क्यों नहीं देते  । 
महात्मा राहगीर को प्रत्युत्तर देते हुए कहते हैं  … जब यह जीव अपनी दुष्ट वृति को त्यागने को त्यार नहीं तो मैं अपनी साधुवृति को क्यों त्यागूँ !
पृथ्वी पर स्वर्ग कहे जाने वाले कश्मीर को प्राकृतिक आपदा बाढ़ ने घेर लिया तो हज़ारों सेना के जवान लाखों कश्मीरिओं की जान बचाने के लिए दिन-रात अपनी जान हथले पर रख कर बचाव कार्यों में जुट गए  .... बदले में कुछ अलगाववादी बिच्छू-वृति के देश द्रोही  तत्त्व सेना के जवानो पर हमले कर रहे हैं , एक जवान का तो हाथ ही काट दिया  … अब जवानो को बाढ़ में घिरे असहाय  लोगों के साथ -साथ अपनी गन का भार भी उठाना पड़ रहा है   … सेना को आपदा में अपने नागरिको की रक्षा के साथ साथ आत्मरक्षा की शिक्षा भी दी जाती है  … वे कितने ही मक्कार हो जाएं , मगर हम अपने संस्कार नहीं त्याग अकते  … यदि ऐसा किसी पश्चिमी या अरबी देश में होता तो बिच्छू-वृति के ऐसे देश द्रोहिओं को 'कीचड़ में मरने के लिए ' छोड़ दिया जाता  … 

बुधवार, 3 सितंबर 2014

वाक् गुदम

वाक् गुदम

एल आर गांधी

 अमृता प्रियतम , १०००००००८ जगतगुरु श्री श्री परमश्री सरस्वतानन्द जी 'शिष्य ' वाक गुदम दिग्गी मियां अर्फ शहज़ादा गुरु श्री दिग्विजय सिंह जी ने भी 'हांडी फोड़ 'डाली और वह भी बीच चौराहे .... पप्पू यदि चुप न रहता और उनकी भांति हर एक विषय पर 'वाक गुदमी  ' करता तो यह दुर्गति हरगिज़ न होती …
अब राजकुमार क्या बोलें .... पराए पुत्तर ने बोलती बंद कर दी है … टॉफी बोले तो कॉफी में घोल कर पिला दी .... गुबारा बोले तो बीच बाजार हवा निकाल दी … ४४ वां जन्म दिन मनाने विदेश भागना पड़ा … कहीं राहुल बाबा को ४४ मोर 'अवतार दिवस मुबारक' कहने न धमक जाएं !
कहते हैं बुरे वक्त में साया भी साथ छोड़ जाता है … गुरु देव भी दगा दे जाएंगे … घोर कलयुग !!!!!!

सोमवार, 1 सितंबर 2014

अच्छे दिन !

अच्छे दिन ! 

एल आर गांधी 

हाथ की दातुन से निपट कर आखिरी फोलक को   थू  .... कहने ही  वाले थे कि चोखी लामा बीच में आ धमके  … न दुआ न सलाम  सरहद पार की फायरिंग  की मानिंद सवाल दागा  … बाबू आज का अखबार देखा  …  अनजान बालक सा चोखी का मुखारविंद तकता रह गया  … बाबू  !   १०० दिन चूक गए और मैडम ने  पूछ लिया है 'फेंकू' से  … कहाँ हैं 'अच्छे दिन' . हमने भी फोलक को दांतो  बीच दबा कर जवाबी फायरिंग करते हुए सवाल दाग दिया  .... मियां सब्र करो ! ६० साल उर्फ़ २१९०० दिन राज किया है मैडम के परिवार ने  … उनसे तो किसी ने नहीं पूछा  … ये अच्छे  .... 
बगल के  तीन बस्ते  कंधे पर लटका कर चोखी लामा बिफर पड़े  … बाबू   !  आप लोग क्या  जानो गरीब की अच्छे दिन की  भूख को  … मैडम ने तो गरीब की भूख को जाना  भी और इंतजाम भी कर दिया था  … तभी से खाद्य सुरक्षा के ये तीन बस्ते हम बगल में दबाए भटक रहे हैं  … बेडा गर्क हो  मुए चुनाव आयोग का ऐन वक्त पर अड़ंगा डाल दिया  … 
लामा चपलियाँ चटकाते सरकारी राशन की दुकान 'आनंद लाल के डिपो 'की ओर चल दिए  .... शायद आज खुला हो ?