शिव भक्त रावण
एल आर गांधी
मान्यता है कि लंका नरेश रावण के १० शीश थे .... तो यह भी प्रशन स्वाभाविक सा है कि दाईं और कितने और बाईं और कितने .... विद्द्वान इसे प्रतीकात्मक मानते है …क़ुछ की मान्यता है कि रावण बहुत विद्वान था और उसे ४ वेद और ६ शास्त्रों का ज्ञान था इस लिए उसे दशानन नाम से भी पुकारा जाता था। … किन्तु अनेक विद्वान रावण की मानसिकता के आधार पर उसे दशानन की उपमा देते है .... काम ,क्रोध ,मोह, लोभ ,मद ,मत्सर (ईर्षा), मानस , बुद्धि , चित्त और अहंकार … जिसका वर्णन रामायण में भी मिलता है। भगवान राम ने रावण की इन्हीें राक्षसी चित्त वृतियों को मार कर उसके अंतस में बैठे शैतान का अंत किया था।
हिन्दू देवता व् ऋषि मुनि मोक्ष प्राप्ति के लिए दैविक लिंग 'आत्म लिंग ' शिवात्मा की उपासना करते थे … रावण ने भी शिव को प्रसन्न लिए शिव की घोर उपासना की .... शिव प्रकट हुए और रावण से वरदान मांगने को कहा .... आदि काल के पत्रकार पितामाह नारद जी को संदेह हुआ तो विष्णुजी से कह कर रावण की मति भ्रष्ट करवा दी और मति भ्रष्ट रावण ने पार्वती जी को ही मांग लिया .... लेकिन वह जब वापिस लंका जा रहा था तो नारदजी ने उसे भ्रमित करते हुए समझाया कि शिवजी ने उसे नकली पार्वती थमा दी है …असली तो पथाला में है .... रावण वहां गया और स्त्री से विवाह कर घर लौट आया। रावण की माँ ने पूछा ' आत्म लिंग' कहाँ है ? रावण को तब जा कर ज्ञान हुआ।
रावण ने आत्म लिंग की प्राप्ति के लिए हिमालय की मुरुदेश्वर गुफा में पुनः तपस्या की .... यहाँ पर एक
प्रतिमा है जिसमें रावण अपने दसों शीशों को काट कर महादेव को अर्पित करता है
बारह ज्योतिर्लिंगों में प्रथम सोमनाथ मंदिर का निर्माण त्रेता युग में 'चांदी ' से रावण ने करवाया था
एल आर गांधी
मान्यता है कि लंका नरेश रावण के १० शीश थे .... तो यह भी प्रशन स्वाभाविक सा है कि दाईं और कितने और बाईं और कितने .... विद्द्वान इसे प्रतीकात्मक मानते है …क़ुछ की मान्यता है कि रावण बहुत विद्वान था और उसे ४ वेद और ६ शास्त्रों का ज्ञान था इस लिए उसे दशानन नाम से भी पुकारा जाता था। … किन्तु अनेक विद्वान रावण की मानसिकता के आधार पर उसे दशानन की उपमा देते है .... काम ,क्रोध ,मोह, लोभ ,मद ,मत्सर (ईर्षा), मानस , बुद्धि , चित्त और अहंकार … जिसका वर्णन रामायण में भी मिलता है। भगवान राम ने रावण की इन्हीें राक्षसी चित्त वृतियों को मार कर उसके अंतस में बैठे शैतान का अंत किया था।
हिन्दू देवता व् ऋषि मुनि मोक्ष प्राप्ति के लिए दैविक लिंग 'आत्म लिंग ' शिवात्मा की उपासना करते थे … रावण ने भी शिव को प्रसन्न लिए शिव की घोर उपासना की .... शिव प्रकट हुए और रावण से वरदान मांगने को कहा .... आदि काल के पत्रकार पितामाह नारद जी को संदेह हुआ तो विष्णुजी से कह कर रावण की मति भ्रष्ट करवा दी और मति भ्रष्ट रावण ने पार्वती जी को ही मांग लिया .... लेकिन वह जब वापिस लंका जा रहा था तो नारदजी ने उसे भ्रमित करते हुए समझाया कि शिवजी ने उसे नकली पार्वती थमा दी है …असली तो पथाला में है .... रावण वहां गया और स्त्री से विवाह कर घर लौट आया। रावण की माँ ने पूछा ' आत्म लिंग' कहाँ है ? रावण को तब जा कर ज्ञान हुआ।
रावण ने आत्म लिंग की प्राप्ति के लिए हिमालय की मुरुदेश्वर गुफा में पुनः तपस्या की .... यहाँ पर एक
प्रतिमा है जिसमें रावण अपने दसों शीशों को काट कर महादेव को अर्पित करता है
बारह ज्योतिर्लिंगों में प्रथम सोमनाथ मंदिर का निर्माण त्रेता युग में 'चांदी ' से रावण ने करवाया था