सोमवार, 1 सितंबर 2014

अच्छे दिन !

अच्छे दिन ! 

एल आर गांधी 

हाथ की दातुन से निपट कर आखिरी फोलक को   थू  .... कहने ही  वाले थे कि चोखी लामा बीच में आ धमके  … न दुआ न सलाम  सरहद पार की फायरिंग  की मानिंद सवाल दागा  … बाबू आज का अखबार देखा  …  अनजान बालक सा चोखी का मुखारविंद तकता रह गया  … बाबू  !   १०० दिन चूक गए और मैडम ने  पूछ लिया है 'फेंकू' से  … कहाँ हैं 'अच्छे दिन' . हमने भी फोलक को दांतो  बीच दबा कर जवाबी फायरिंग करते हुए सवाल दाग दिया  .... मियां सब्र करो ! ६० साल उर्फ़ २१९०० दिन राज किया है मैडम के परिवार ने  … उनसे तो किसी ने नहीं पूछा  … ये अच्छे  .... 
बगल के  तीन बस्ते  कंधे पर लटका कर चोखी लामा बिफर पड़े  … बाबू   !  आप लोग क्या  जानो गरीब की अच्छे दिन की  भूख को  … मैडम ने तो गरीब की भूख को जाना  भी और इंतजाम भी कर दिया था  … तभी से खाद्य सुरक्षा के ये तीन बस्ते हम बगल में दबाए भटक रहे हैं  … बेडा गर्क हो  मुए चुनाव आयोग का ऐन वक्त पर अड़ंगा डाल दिया  … 
लामा चपलियाँ चटकाते सरकारी राशन की दुकान 'आनंद लाल के डिपो 'की ओर चल दिए  .... शायद आज खुला हो ?