बुधवार, 2 जून 2010

दुनिया लुटती है- लूटने वाला चाहिए.

दुनिया लुटती है, लूटने वाला चाहिए- जब से देश की सेहत के लुकमान हकीम जनाब गुलाम नबी आज़ाद जी को अपने विभाग के निरंतर फूल रहे भ्रष्ट गुबारों के फूटने की आवाजें सुनाई देने लगी हैं तब से गुलाम भाई सेहत महकमे को इन काली भेड़ों से आज़ाद करने के 'भागीरथ'संग्राम में कूद गए दीखते हैं।
अनायास ही आज़ाद भाई को ज्ञात हुआ की डाक्टर लोग जिन्हें मरीज़ भगवान् का रूप मानते हैं ,अपने ही भक्तों को लूटने में व्यस्त हैं। मरीज़ के आम और ख़ास इलाज़ के लिए डाक्टर बिरादरी ,दवाई लिखने से पहले ढेर सारे टेस्ट लिख देते हैं और वह भी अपनी मनपसंद लैब से ,ज़ाहिर है इन लैब्ज़ के साथ इनका मोटा कमिशन निर्धारित होता है।
चंद गरीब और गंभीर रोगी तो इलाज़ चालु होने से पूर्व ही इन बेहिसाब टेस्टों की ताब न सहते हुए अल्लाह को प्यारे हो जाते हैं। आज़ाद साहेब अब क्लिनिकल एस्टेब्लिश्मेंट बिल(रेगुलेशन व् रजिस्ट्रेशन ) २००७ अधिनियम को कानूनी जामा पहनने की सोच रहे हैं। इस कानून के पास होने से डाक्टरों की नाजायज़ लूट खसूट पर लगाम कसने में आसानी होगी। इससे डाक्टरों की जवाबदारी निश्चित होगी। कोई भी टेस्ट बिना कारन के नहीं लिखा जायेगा। आज़ाद साहेब ने खुलासा किया की डाक्टर लोग मरीज़ का गाल ब्लैडर निकालते निकालते ,किडनी पर भी हाथ साफ़ कर देते है। ऐसा भी देखने में आया है की बिना कारन ही मरीज़ के दिल में स्टंट्स लगा कर मोटी रकम झाड़ ली जाती है। निजी हस्पताल और क्लिनिक मन माफिक फीसे और चार्जिज़ मरीजों से एंठते हैं। एम्.आर.आई जो सरकारी हस्पताल में ५००/- में होती है वही निजी हस्पतालों में पांच से तेरह हजार रुपये में की जाती है। कोई भी हस्पताल इमरजेंसी में मरीज़ को इलाज़ से इनकार नहीं कर पायेगा। इसके इलावा स्वस्थ्य सुविधा को आर .टी.आई. क़ानून के अंतर्गत ला कर पारदशी बनाया जायेगा ताकि डाक्टरों द्वारा इलाज़ में किसी प्रकार की हेरा फेरी न की जा सके।
अब इस नए क़ानून से मरीजों को कितनी राहत मिल पायेगी वह तो आने वाला समय ही बतायेगा। अब मेडिकल शिक्षा के मंदिरों अर्थात मेडिकल कलेगों को भी सही ढंग से चलाने के लिए सरकार ने ढेर सारे नियम-क़ानून बना रखे हैं फिर भी इन मानव कल्याण के लिए बने मंदिरों को 'डाक्टर उत्पादन फैक्ट्रियां ' बनाने से कोई नहीं रोक पाया जहाँ लोग लाखों रूपए की कैपिटेशन फीस दे कर अपने कपूतों को 'भगवान्' बना लेते है और जिन्हें किसी की भी जान लेने का अधिकार है। अब जो लोग लाखों दे कर डाक्टर बनेंगे वे अपना निवेश किया पैसा मरीजों से ही उगाहेंगे .फिर इन नए बने कानूनों को अमली जामा पहनाने के लिए आज़ाद साहेब को अन गिनत 'केतन देसाईओं' की दरकार होगी ,जो मेडिकल कालेजों की तर्ज़ पर अब डाक्टरों को नीचोडेंगे और रिस्क के साथ साथ डाक्टरों की फीस भी उसी अनुपात से बढ़ जाएगी और मरीजों से वसूल की जाएगी।
लेखक का इन जालसाज़ डाक्टरों के बारे एक निजी अनुभव है। जुलाई २००३ में सर्वाइकल पेन के चलते मोहाली के 'फोर्टिस हस्पताल में एक डाक्टर परमजीत सिंग कपूर को दिखाया। डाक्टर साहेब ने आपरेशन की सलाह दीऔर विशवास दिलाया की ११०% ठीक हो जाओगे । कपूर साहेब ने सरवाईकल के स्थान पर लोअर बैक का ओप्रशन कर दिया। हालत बद से भी बदतर हो गई । हस्पताल अधिकारिओं को डाक्टर के विरुद्ध कार्रवाही के लिए लिखा भी गया लेकिन सब व्यर्थ? डाक्टर कपूर ने सिर्फ पैसे एंठने के लिए आपरेशन का छल मात्र किया जब की न तो इसकी ज़रुरत थी और न ही उसे इसका कोई अनुभव था। अब जहाँ केतन देसाई जैसे उचधिकारिओन के हाथ में ऐसे डाक्टरों की लगाम होगी तो क्या उम्मीद की जा सकती है।