सोमवार, 17 अक्तूबर 2016

निःशब्द

निःशब्द 

एल आर गाँधी 

स्वर्ग  की अप्सराएं या जन्नत की हूरें !!!!!!!!!

अनादि काल से हम स्वर्गाभिलाषी रहे हैं  ...... ऋषि -मुनियों ने वर्षों तपस्या की स्वर्ग की प्राप्ति के लिए।  वनों में भटके ,वट वृक्षों की छाओं में प्रभु भक्ति में लीन  ..... न खाने की सुध न सांसारिक जीवन का मोह  ..... पर्वत शिखिर , कंदराओं , गुफाओं , आकाश -पाताल एक कर दिया ! बस स्वर्ग मिल जाए ! महर्षि विश्वामित्र की घोर तपस्या से तो इंद्र भी घबरा गए  .... आखिर तपस्या भंग करने परम रूपसी अप्सरा मेनका को भेजा  ..... ऋषिवर धोका खा गए ! हमारे जैसे तुच्छ प्राणियों की तो भला औकात ही  क्या है !
 कहते हैं स्वर्ग के सिंहासन पर वर्षा के देवता इंद्र 'आरूढ़ 'हैं  ...सदैव मृगनयनी अप्सराओं से घिरे रहते हैं  .....  नयनो से छलकती मस्ती और सोम रस का सरूर ,मृदंग और वीणा के मधुर स्वरों पर थिरकती लावण्यमयी -मृगनयनी अप्सराएं  .... कौन नहीं चाहेगा ऐसे मादक सोम -सरोवर में डूब जाना। 
अपनी आँखों के समंदर में उतर जाने दो !
तेरा कातिल हूँ , मुझे डूब के मर जाने दो !!

हूरें तो जन्नत में भी हैं , मगर महज़ ७२ और साथ में २८ लौंडे भी  .... आबे हयात है जिसमें शराब बहती है  ..... मजे कितने ही लूटो , थकने का सवाल ही नहीं  .... कितना ही खाओ ! ग़ुस्ल की कोई हाज़त नहीं ! बस जेहाद करना होगा ! दारुल इस्लाम के लिए ! जेहाद में मारे जाओगे तो जन्नत का एयर टिकट पक्का ,नो बुकिंग ,नो वीज़ा 
हमको मालूम है ,जन्नत की हकीकत लेकिन !
दिल के बहलाने को ग़ालिब यह ख्याल अच्छा है !!

अरे भई ! कहाँ भटक रहे हो सदियों पुराने स्वर्ग और जन्नत के खावों ख्यालों में ! माडर्न ऋषि मुनि : आज के साइंसदानों ने आप की ख्वाब गाह बोले तो बैड -रूम में जन्नत और स्वर्ग मुहैया करवा दिया है  ...... गर्मी है तो ए सी चला लो  .... सर्दी तो ब्लोअर  .... स्काच विस्की  या फिर बीअर की बोतल खोलो ! टी वि ऑन करो  ...' मन पसंद ' चैंनल लगाएं।  इतनी सूंदर अप्सराएं कि हूरें उनके आगे पानी भरें !
जिसमें लाखों बरस की हूरें हों !
ऐसी जन्नत को क्या करे कोई !!

बुधवार, 5 अक्तूबर 2016

कज़री का सर्जिकल अप्रेसन

कज़री का सर्जिकल अप्रेसन

    एल आर गाँधी

नीम की दातुन से कड़वी हुई जीभ को राहत पहुंचाने के चक्कर में ,दातुन  दो फाड़ कर जीभ खुरच रहा था ,कि चोखी लामा की जानी पहचानी आवाज में 'राम -राम ' बाबू सुनाई दिया।
बाबू जीभ ही खुरचते रहोगे कि कभी आज की सुर्खी भी देखोगे ? हमने दातुन फेंक कर प्रश्नचिन्ह   ? नज़रों से चोखी को निहारा ! चोखी ने भी टीवी चेनल पर बतियाते 'मीम अफ़ज़ल ' की माफिक फ़रमाया   .... बाबू ! मेरे यार ने भी मोदी से पूछ ही लिया 'सर्जिकल ऑपरेशन ' का सबूत दो ! ..... आज तक मनमोहन जी ने भी तो हज़ारों सबूत दिए हैं  ...एक आप भी दे दो  .... हो   जाओ पाक -साफ़ !
कजरी को ' बाबू' हम बचपन से जानते हैं  ...... एक बार तो अपने 'अब्बू' से पूछ बैठे : अब्बू हमारा सर्जिकल फादर कौन है ? अब्बू भी ठहरे एक नंबर के मसखरे ! बोले बेटा ! .... इसका जवाब तो सिर्फ तुम्हारी 'अम्मी ' के पास है  .... तुम ही पूछ लो  .....  मेरी तो हिम्मत नहीं ! मैं तो सुहाग रात को  भी बाहर ही खड़ा  रहा ! सुई बालान के सभी लौंडे अंदर जा और आ रहे थे।  चांदनी दिवाली को तुम आ गए  .... तब भी मैं तो बाहर ही खड़ा था ,जब नर्स ने सर्जरी रूम से निकलते ही ऊंची आवाज़ में कहा  'मियां जी ' बधाई हो ! लफंगा हुआ है ! हमने नादान शौहर की मानिंद नर्स से शर्माते हुए पुछा  .... सिस्टर ! यह 'लफंगा '? नर्स ने तपाक से जवाब दिया ! मियां छमाही बच्चे को यहाँ यही कहते हैं  ..... न मालूम किसका है ?
और हाँ ! मेरी अंगूठी निगल गया  ... मूयां ! मैंने तो शहद चटाया ! इतनी लंबी ज़ुबान ? ...शहद के साथ 'अंगूठी ' भी निगल गया !नार्मल बच्चे तो पैदा होते ही रोते हैं और यह लफंगा 'खांस ' रहा था  ...लगता है पैदायशी 'राज यक्ष्मा ' का रोगी है और हाँ जीभ भी कुछ ज़्यादां ही लंबी है !