शनिवार, 30 जनवरी 2016

चरखागिरी

चरखागिरी

एल आर गांधी

 बचपन से हमें 'सुनियोजित ' ढंग से 'चरखा ' बनाया गया। नर्सरी से हमें पढ़ाया  गया कि  कैसे गांधी जी नें बिना शस्त्र  या शास्त्र के  मात्र ' चरखे ' की बदौलत हिंदुस्तान को गुलामी की जंजीरों से मुक्त करा दिया  ..... और हम भी अबोध बालक की भांति गुनगुनाते रहे   ..... ले दी हमें आज़ादी बिना खडग बिना ढाल ,साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल !    उधर बापू ने 'सारे ज़हाँ से अच्छा हिन्दुस्तां हमारा  ...... हिंदी हैं हम वतन है हिन्दुस्ताँ  हमारा ! हर स्टेज पर गा गा  कर इसे राष्ट्रिय गीत बना डाला। गीत के लेखक और पाकिस्तानी सोच के संस्थापक मौलाना इकबाल ने अपना गीत ही बदल दिया ' ..... मुस्लिम हैं हम वतन है सारा जहाँ हमारा !' फिर भी मुस्लिम तुष्टिकरण की 'कुष्ट -मानसिकता ' से पीड़ित  बापू  .... वही  राष्ट्र विरोधी गीत गवाते रहे।
जिन्ना ताउम्र बापू को चरखा बनाते रहे और वे बनते रहे  ... कभी उसे कायदेआज़म की उपाधि दी कि जिन्ना खुश हो जाए  ... फिर उसे मनाने के लिए उससे १४ बार मिले  ....आखिर में धमकी दी  .... पाकिस्तान मेरी डेड बॉडी पर बनेगा  .... न खुशामद काम आई और न धमकी  ... जिन्ना ने  पाक स्थापना भी १४ अगस्त ही मुकर्र की। तुष्टिकरण की पराकाष्ठा तो तब हो गई जब बापू कोप भवन में बैठ कर ' चरखा 'घुमाने  लगे ,ज़िद थी ! कि पाक को 'बकाया' ५५ करोड़ अदा किया जाए , जिसे केंद्रीय कैबिनेट ने कश्मीर पर पाक कब्ज़े के विरोध में रोक दिया गया था। परिणामत : गोडसे ने बापू  को  प्रतिज्ञा के  अंजाम तक पहुंचा दिया।

बापू की साँसे थम गई मगर  'चरखागिरी  ' बदस्तूर जारी रही  .... देश को चरखे की मानिंद घूमने की अबकी बारी थी 'चाचा ' नेहरू की  .... हमें समझाया गया कि देश को आज़ाद करवाया 'नेहरू-गांधी ' परिवार ने  ... बाकी देश पर अपने प्राण न्योछावर करने वाले तो विद्रोही -आतंकवादी थे  ... नेता जी सुभाष चन्द्र बॉस की जासूसी की गई  ... आज़ादहिंद फ़ौज़ के सैनिको को नेहरू ने मान्यता देने से साफ़ इंकार कर दिया।
वक्त के साथ साथ नेहरू -गांधी की पारिवारिक पार्टी ने चरखे को ही चलता कर दिया  ..... चुनाव चिन्ह और झंडे पर से चरखा नदारद हो गया  ... किसानों को लुभाने को 'दो बैल ' छाप दिए  .... फिर इनका स्थान ले लिया 'गाय -बछड़े  ने  ... पार्टी का नाम भी बदल कर 'इंदिरा कांग्रेस ' हो गया और निशान हो गया हाथ  ...... वक्त के साथ बापू  का चरखा भले ही किसी 'यादगाह ' में धूल फांक रहा हो  .... पर देश को चरखा गिरी बदस्तूर घुमा रही है  ......'हे ' राम





आड -इवन जश्न

एल आर गांधी

नेता जी ने अभी आड -इवन के जश्न का आगाज़ ही किया था कि किसी सुंदरी ने पिचकारी से रंग दिया  ..... झट से नेताजी झल्लाए 'होली कब है  ....कब है होली ! हम होली पर गीली होली खेलने के सख्त खिलाफ हैं  .....गीली होली से हमें  ठण्ड लग जाती है और महीनों खांसी नहीं जाती  ... हमें  पता होता कि आज होली मनाई जाएगी तो हम  यह आड -इवन   किसी और दिन मना लेता  .... भइ यह भी कोई बात हुई ये भाजपा वाले होली के नाम पर दिल्ली के पानी को बर्बाद करने पर तुले हैं  .... दिल्ली में पानी की किल्लत को ये क्या समझें ! यह सरा -सर साज़िश है  .... इतनी ठण्ड में गीला करके रख दिया  .....
तभी दूसरे  माइक से सन्सोधिया जी ने जब घोषणा की कि यह केजरी जी की हत्या का प्रयास है  .... काली सियाही की एक एक बूँद का हिसाब लिया जाएगा  .... तब जा के माज़रा समझ में आया कि यह तो किसी आपिये ने ही भंग में रंग दे मारा  ..... नेताजी ने शालीनता का पुराना चोला ओढ़ कर 'घोषणा 'की कि 'बेरंगी ' को जाने दिया जाए  .

आड - इवन की महान उपलब्धियों का बखान बिना व्यवधान पुण् शुरू किया गया  ... आड़ -इवन की अभूत पूर्व सफलता को भांपते हुए अब इसे बड़े पैमाने पर चलाया जाएगा  ..... लोगों की असुविधाओं के अध्ययन के उपरांत इस फार्मूले को 'लिंगोनुसार ' आज़माया जाएगा ! एक दिन पुरुष और एक दिन स्त्री  .... रेप कंट्रोल में व्यस्त पुलिस की मौजां ई मौजां  ... बच्चे मन के सच्चे कभी भी किसी के भी साथ  .... किन्नरों और राजनेताओं पर कोई पाबंदी नहीं !

बुधवार, 13 जनवरी 2016

पशु प्रेमी मेनका जी की  बिरादरी आज पोंगल -मकरसक्रांति 

मंगलवार, 5 जनवरी 2016

संथारा

एल आर गांधी


जब से तेरी ऊँगली पकड़ कर चलने की ठानी है  .... जिंदगी यकायक 'जो है सो है ' की माफिक कटी पतंग सी हुई जा रही है  ..... बिना डोर के आकाश की नित नई उचाइयां छूने को बेताब  .... बेपरवाह ! हवा का झोंका जिस ओर लेजाए  ..... वक्त के साथ ही 'बस' ऊपरी हवा में परवाज़ पर हो लिए हैं  .... भय मुक्त - शोक मुक्त -लालसा मुक्त , मुक्ति की बंदिशों से भी मुक्त  .... कहूँ तो मुक्ति से भी मुक्त   ..... अंत: करण में अनंत अमृत कलश लबालब भर कर छलक रहा है  .. सूखे झरने की  मानिंद बूँद बूँद धीरे धीरे अग्रसर है  .... अपनी ऊँगली को थामे हाथ में लुप्त हो जाने को  ...... मृत्यु की ऊँगली पकड़ कर चलना सीखो  ...... संथारा  है।