गुरुवार, 29 अप्रैल 2010

सूखे टुकड़े और शराब

महंगाई पर नेताओं के घडियाली आंसू -गरीब महंगाई से त्रस्त है - बच्चे दो जून के निवाले के लिए तरस रहे हैं - माँओं की आँखों से खून के आंसू बरस रहे हैं और नेता लोग भी चिल्ला रहे हैं ...थक हार कर बिअर से नहा रहे हैं.
कुछ एसा ही नजारा था ; जब राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष दिल्ली में महंगाई पर अपने पुराने मित्रों के खिलाफ मोर्चा लगाए बैठे थे, तो बिहार में उनके एक विधायक भी भूख हड़ताल पर बैठ गए . महंगाई के विरुद्ध प्रदर्शन चल रहा था और किराए के वर्कर और समर्थक नेताजी की जय जय कार और मुई महंगाई की मार पर गले फाड़ फाड़ कर रोष व्यक्त कर रहे थे. मोर्च ख़त्म होते ही भाई लोग अपने असले पर आ गए और लगे नेताजी की बख्शी बिअर से गला तर करने -टुन्न होते ही नेताजी के सामने ही बिअर स्नान शुरू हो गया. चेनल वालों ने जब नेताजी से पूछा भई यह क्या है.. तो नेता जी खिसियानी बिल्ली की भांति खम्भा नोचते दीखे.
किस प्रकार ये गरीब लोग इन भ्रष्ट नेताओं के झांसे में आ कर चंद पलों की झूठी मौज मस्ती की खातिर इनके फेके टुकड़ों और शराब के नशे में अपनी ही गरीबी को मज़ाक बना देते हैं.
कुछ एसा ही हाल पंजाब कांग्रेस के सफेद पोशो का दिखाई दिया. एक अखबार ने भंडा फोड़ किया की लुधियाना में सरकारी गोदामों में शराब की पेटिय भरी पड़ीं हैं और गेहूं की बोरिया खुले आसमान के नीचे सड रहीं है. कान्ग्रेसिओं ने आव देखा न ताव झट से उच्सतरिया जांच की मांग कर डाली. अब राज खुला तो सचाई सामने आ गई. दरअसल साल २००६-०७ में लुधियाना के इन सरकारी गोदामों को कांग्रेस की कप्तान सरकार ने जम्मू और दिल्ली के शराब व्यापारिओं को ३ साल के लिए लीज़ पर दे दिया था. अब ३१ मार्च के बाद लीज़ की अवधि ख़त्म हुई और अकाली सरकार ने लीज़ समाप्त की है. पंजाब देश का धान का कटोरा है. यहाँ का किसान तपती धुप में अपना खून पसीना एक कर हर वर्ष अधिक से अधिक धान की पैदावार करता है. समुचित भण्डारण की व्यवस्था न होने के कारन लाखो टन अनाज सड-गल जाता है और हमारे नेताओं को 'शराब 'की फ़िक्र जियादा सता रही है. बिहार में महंगाई के नाम पर शराब से नहाया जा रहा है और पंजाब में अनाज के स्थान पर शराब को संजोया जा रहा है.
देश के ७७% गरीब २०/- प्रति दिन पर गुज़र करने को मजबूर हैं उनके पास दो जून की रोटी जुटाने को भई पैसे नहीं. दूसरी ओए लाखों टन अनाज खुले आसमान के नीचे सड रहा है. किसको परवाह है इस सब की.
गरीब लोग रोटी के सूखे टुकड़े खा रहे हैं और नेता लोग अपनी जय जय कर के लिए उन्हें बिअर से नहा रहे हैं.
बतौर ग़ालिब:
वाह रे ग़ालिब तेरी फाकामास्तियाँ
वो खाना सूखे टुकड़े भिगो कर शराब में ........

मंगलवार, 27 अप्रैल 2010

आइ.पी.एल का अलीबाबा -बी.पी.एल.के चालीस चोर

जो काम ४० चोर ६३ साल में नहीं कर पाए ,वह कारनामा अलीबाबा ने महज़ ३ साल में कर दिखाया.
देश पर राज करने वाले चालीस चोर ६३ साल में बी.पी.एल. अर्थात गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे गरीब गुरबों की जीवन रेखा मापते रहे और जितना मापा यह रेखा उतनी और बढ़ती गई.गरीब और गरीब होता गया और दो जून के निवाले को तरसता रहा.
अली बाबा ने अपना काम महज़ तीन साल से संभाला और कमाल कर दिया. बाबा ने खेल खेल में बैट की लम्बाई , बाल की गोलाई और क्रिकट के मैदानों की ऐसी पैमाइश की कि ४० चोर मुंह बाएँ ताकते ही रह गए,और अली बाबा ने ४ बिलियन यू. एस डालर के जैकपाट कि भनक तक न होने दी किसी को भी. एक चोर ने मजाक मजाक में बाबा से ' ट्विट' अरे वोही ' ठिठोली' क्या की कि बेचारा केरल की गलिओं में अपना कद नापता फिर रहा है.
अली बाबा का तीन साल का ज़लवा चालीस चोरों के ६३ साल के तमाशे पर भारी ही नहीं बहुत भारी पड़ा. ४० चोरो के सताए बी.पी.एल. के गरीब गुरबे चंद दिनों के लिए ही सही अपनी बी.पी.एल को भुला कर आइ.पी. एल के चौके छाकों और चीअर लीडर के ठुमकों में अपनी मुफलिसी को बिसरा बैठे. प्रीती जिन्टा के गालों के गड्डों में उन्हें अपनी दाल/सब्जी की कटोरी और शाहरुख़ के उदास चेहरे में फफूंदी ग्रस्त ब्रेड का आभास होने लगा. आइ.पी.एल. की मारामारी में बी.पी.एल. की बेचारगी मानों पोलार्ड के छक्के से उडी बाल सी गायब हो गई.
एसा भी नहीं की हमारे इन ६३ वर्षीया चालीस चोरों ने बी.पी.एल की गरीबी रेखा मिटाने के 'भागीरथ प्रयत्न' न किये हों.१९७० में इंदिरा जी ने नारा दिया 'वे कहते हैं इंदिरा हटाओ , मैं कहती हूँ गरीबी हटाओ. देश के सारे के सारे गरीब साथ हो लिए. गरीब की बाकायदा पहचान की गई. ६ रोटी,१ दाल/सब्जी की कटोरी दो वक्त जिसे नसीब हो रही है, वह गरीब नहीं. २४०० कैलोरी का पौष्टिक भोज़न करने वाला शख्स भला गरीब कैसे हो सकता है-बजा फरमाया ! जीने के लिए 'काफी' है. फिर भी ३२ करोड़ गरीब कमबख्त न मालूम कहाँ से आ टपके. और हिसाब लगाया गया गाँव में इस पौष्टिक भोज़न के लिए ६२/- और शहर में ७१/- प्रति महीना बहुत हैं. अब महंगाई के साथ साथ यह कैलोरी और दाल की कटोरी का दाम भी बढ़ता गया . सन 2००० में यह 'काफी' गाँव में ३४८/- और शहर में ४५४/ प्रति माह हो गया. चार साल बाद फिर बढ़ कर ४५४/- और ५४०/- को जा पहुंचा . अब आप २०१० का पूछोगे. भई दाल १००/- किलो और सब्जी थैले में नहीं जेब में आने लगी है, और हमने हिसाब लगाना ही बंद कर दिया. अब इन चालीस चोरों को तो लोक सभा की केन्टीन में ५/- में दाल/सब्जी की प्लेट और ५० पैसे में रोटी मिलती है.यह तो ६ रोटी और दाल कटोरी में जीने वालों से पूछो की वे जीने के लिए दवाई , शिक्षा , यातायात, आपदा खर्च और सबसे बड़ा अंतिम संस्कार का खर्चा कहाँ से लाये. आइ.पी.एल.का खेला तो बी.पी.एल. वाले भी देखते हैं. अब टी.वि.,बिजली,पंखे और अंकल चिप्स के खर्चे न गिनने बैठ जाना , बी.पी.एल.के कोटे में यह सब नहीं है.
६३ साल से सार्वजानिक वितरण प्रणाली से इन गरीबों को सस्ते दाम पर राशन का जुगाड़ अली बाबा की यह सेना करती आ रही है. और सहायता राशी भी बढ़ते बढ़ते ५५५७८ करोड़ का आंकड़ा छूने लगी है यह बात अलग है की इस में से ५८% माल इन चोरो के भाई उचक्के रास्ते में सेंध मारी कर जाते हैं. गरीबों तक निवाला पहुंचे तो कैसे पहुंचे.
इंदिरा जी से यहीं पर गलती हो गई. वे गरीबी हटाने में लगी रहीं और गरीब बढ़ते ही चले गए. अब सोनिया जी वह गलती दोहराना नहीं चाहतीं .उन्होंने अपने आठ रत्नों को साफ़ कह दिया है पहले ढंग से गिनती करो और फिर एक क़ानून बना कर गरीबी को जड़ से ही मिटा डालो. गरीबो को कानूनन रोटी का हक़ अत्ता किया जाये. फिल हाल तो गिनती के झमेले से ही नहीं निकल पाए हमारे 'शरद' जी. अरे भाई ठीक से गिन के बताओ गे तभी तो मैं इन्हें भोजन सामग्री जारी करूँगा. अब योजना आयोग ६५.३ मिलियन बता रहा है और तेंदुलकर कमीशन ८३.७ मिलियन और लोगों पास राशन कार्ड हैं १०८.६९ मिलियन . एक और कमीशन है उसकी माने तो ७७% लोग २०/- प्रति दिन पर गुज़र बसर कर रहे है. और ४६% बच्चे कुपोषण के शिकार होते हैं जो की विश्व के सबसे निर्धन सब सहारा अफ्रीकन देशों से भी अधिक है.
अरे आइ.पी.एल के सफल अलीबाबा को ही बी.पी.एल. का खेल दे दो. आप के ६३ वर्ष के खेल से अलीबाबा का ३ वर्ष का खेला तो फिर भी रोमांचकारी रहा . यह बात अलग है की पैसों की गेंद लपकते लपकते खिलाडिओं के इंजर पिंज़र ढीले हो गए और सचिन भाई अपनी ऊंगली क्रिकेट में धोनी से क्लीन बोल्ड हो गए.

शुक्रवार, 23 अप्रैल 2010

मुफ्त का पानी- मीटर का पानी

केंद्रीय महाराष्ट्र का जिला ओस्मनाबाद देश का शायद पहला क्षेत्र है जहाँ 'बूँद बूँद पानी ' के महत्तव को समझा और पहचाना गया है. २००८ में यहाँ के किसानों को इजराईल भेजा गया था जहा से ये सिंचाई की ड्रिप व् स्प्रिंकल तकनीक की जानकारी हांसिल कर के आए . सिंचाई विभाग की मदद से इस तकनीक को अब इस क्षेत्र में चालु किया गया है. तरना मीडियम प्रोजेक्ट द्वारा पानी की व्यवस्था मीटर द्वारा की गई है. ड्रिपिंग और स्प्रिन्क्लिंग पद्धति से अंगूर और गन्ने की खेती में कम से कम पानी का प्रयोग संभव हो पाया है. रंचना कंस्ट्रक्शन कंपनी द्वारा २३ करोड़ की लगत से १६ किलोमीटर पानी की पाईप लाईन डाली गई है. इजराईल से आयात किये मीटरों के ज़रिये किसानों को पानी की सप्लाई की जाती है. इस प्रकार देश में पहली बार बहुमूल्य पानी का 'लेखा जोखा ' रखने की कवायत अमल में लाई जाएगी.
दूसरी ओर है देश का 'धान का कटोरा' - पंजाब जहाँ आज भी मुफ्त बिजली पानी की सुविधा के चलते पानी की बेइंतिहा बर्बादी का चलन बदस्तूर जारी है. जो फसल २०० लिटर पानी से हो सकती है वहां हम १००० लिटर पानी जाया कर देते हैं. राज्य की अधिकाँश खेती भूजल पर निर्भर है और ११ लाख नलकूप रात दिन धरती के सीने से जल दोहन में व्यस्त है.यह चलन पिछले ५० साल से जारी है, जब से प्रदेश में हरित क्रांति का आगाज़ हुआ .परिणाम हमारे सामने हैं -पंजाब की आधी ज़मीं जल विहीन हुई जा रही है. हर वर्ष भूजल २ मीटर नीचे जा रहा है और वह दिन दूर नहीं जब यह रसातल में समा जायेगा. हमारे यहाँ पंजाबी में एक कहावत है ' जाट गुड की भेली तो दे दे पर गन्ने की पोरी नहीं देता.' यही तो हम पिछले आधे दशक से किये जा रहे हैं. गेहूं और चावल के रूप में न मालुम कितनी नहरों का पानी हम मुफ्त मुफ्त में निर्यात कर बैठे. क्योंकि बिजली और पानी की तो हमारी नज़रों में कोई कीमत ही नहीं. मुफ्त बिजली की प्रतिक्रिया में शहरी वोटरों ने भी मुफ्त मांग कर डाली . शहरी वोटों की खातिर कांग्रस की कप्तान सरकार ने शहरिओं को भी पानी मुफ्त कर दिया.मुफ्तखोरी की इस आदत के कारन हमने पानी के निरंतर गिरते हुए भूजल स्तर के भयंकर परिणामों के बारे में अभी तक नहीं सोचा. यह चलन अगर यूं ही बदस्तूर जारी रहा तो वह दिन दूर नहीं जब हम ' चुल्लू भर पानी' को तरसेंगे !

गुरुवार, 22 अप्रैल 2010

भारत का नया कीर्तिमान ..मधुमेह

नमक, चीनी, दूध----ज़हर. ! प्रसिद्ध आहार विशेषज्ञ डाक्टर गाँधी ने एक सेमिनार में यह शब्द कहे तो सभागार में एक सन्नाटा सा गूंज गया.बाद में उनकी सहायक ने उनके इस वक्तव्य पर स्पष्टीकर्ण दिया और विस्तार से बताया की किस प्रकार टेबल (अतिरिक्त) नमक-चीनी हानिकर है. दूध से अभिप्राय है फैट (वसा ) जिसके अधिक प्रयोग से क्लेस्त्रोल में वृद्धि होने का अंदेशा रहता है.
हम हिन्दोस्तानी सेहत के लिए कम, स्वाद के लिए अधिक खाते हैं. अब तो अमिताभ बच्चन जी भी अपने चाहने वालों को बुधू बक्से पर ' कुछ मीठा हो जाये' की पट्टी पढ़ाने में लगे हैं. आमिर खान ' ठंडा मतलब कोका कोला और सचिन 'पेप्सी से भारतियों की जन्म जन्मान्तर की प्यास बुझाने में मशगूल हैं. और तो और केटरीना कैफ के होंटों पर पर पड़ी 'एक बूँद माज़ा' तो मानों नई पीढ़ी को मीठे की चाशनी में डुबोए चली जा रही है.
अब तो हमारा भारत महान अपने नाम एक और कीर्तिमान लिखवाने जा रहा है. वह है - मधुमेह रोगीओं की विश्व राजधानी ! इस वर्ष के अंत तक हमारे यहाँ सबसे अधिक मधुमेह रोगी होंगे. हमारे स्वस्थ्य के सरकारी शुभचिंतक परम आदरनीय स्वस्थ्य मंत्री गुलाम नबी आज़ाद ने राज्य सभा को लिख कर दे दिया है कि ५०.७ मिलियन मधुमेह रोगियों के साथ हम विश्व के नंबर एक हो गए हैं. आजाद जी ने यह भी बताया कि हमारे पास कोई सर्वेक्षण आधारित पक्का आंकड़ा नहीं है. इस लिए ग्रामीण आबादी के ४० के पार की जनता की जाँच अनिवार्य कर दी गई है और इस काम पर आशा नामक संस्था को लगा दिया गया है. यह संस्था हृदय रोग, मधुमेह और स्ट्रोक के संभावितो की गिनती करेगी .इस काम के लिए सरकार ने अपना फ़र्ज़ निभाते हुए ४९९.३३ करोड़ की राशि मुहैया करवा दी है. सही सही गिनती आने पर मीठा मंत्री अरे वो ही अपने पंवार साहेब की अध्यक्षता में मंत्रिओं का एक पेनल बना दिया जायेगा ता कि अधिक मीठा खाने वालों का सही सही इलाज़ किया जा सके. फिर चीनी के दाम ज़मीं से आसमान पर पहुँचाने वाले भी तो यही मधुमेही ही हैं. गरीब को चीनी मुंह मीठा करने को नसीब नहीं हो रही और ये हैं कि खा खा के रोगी हुए जा रहे है. इन मीठे के शौकिनो ने ही चीनी कि जमा खोरी कर 'बेचारे पंवार जी को मुफ्त मुफ्त में बदनाम कर के रख दिया है.
अमेरिका कि सरकार भी अपने लोगों को समझा समझा कर हार गई कि भई ज़रुरत से अधिक नामक मीठा न खाओ - रक्तचाप,शुगर और क्लेस्त्रोल बढ़ जाएगा समझाने का असर होता न देख अब सरकार ने एक क़ानून बनाने कि सोची है. बर्गर, चिप्स और जंक फ़ूड कम्पनिओं को हिदायत दी गई है कि वे अपनी प्राडक्ट्स में नमक कि मात्रा घटाएं . पेप्सी ने तो २०१५ तक अपनी प्राडक्ट्स में नमक, चीनी और फैट कि मात्रा में २५% तक कि कमी लाने का भरोसा दिलाया है. अन्य कंपनिया भी ऐसा ही करने जा रही है. मीठी और कोल्ड ड्रिंक प्राडक्ट्स पर कर लगाने कि भी योजना है.
अब दुनिया का सबसे अमीर देश चीनी पर कर लगा कर उसे महँगी करने जा रहा है और वह भी अपने देश वासिओं कि सेहत कि खातिर. फिर हमारे पंवार जी भी तो यही करने जा रहे थे और ये मुए विरोधी दल और कम्बखत प्रेस वाले उनके पीछे हाथ-पैर-मुंह धो कर पड़ गए - किसी को देश कि सेहत का ख्याल ही नहीं ! राम देव जी कितना ही चिल्लाएं 'कोका कोला बोले तो टायलट कलीनर ' सुनता है कोई. !

शनिवार, 10 अप्रैल 2010

हज सब्सिडी की राजनीती

केंद्र सरकार हज सब्सिडी को लेकर कुछ कुछ चिंतित सी नज़र आने लगी है.- २००८ में यह सब सिडी बढ़ते बढ़ते ८२६ करोड़ के आंकड़े को पार कर गई.अब विदेश मंत्रालय इसमें प्रति वर्ष १०% की कमी लाने की सोच रहा है. हमारे संविधान की यह सपष्ट अवधारणा है कि धरम और राज्य बिलकुल अलग हैं और इसी लिए हमारी सरकार धरम निरपेक्ष सरकार होने का दम भरते नहीं अघाती. एक धर्म निरपेक्ष सरकार द्वारा वोट कि राजनीती के चलते अल्पसंख्यकों को लुभाने के उद्देश्य से कर दाताओं कि खून पसीने कि कमाई को इस प्रकार लुटाना निहायत ही शर्मनाक बात है. क्या किसी इस्लामिक मुल्क में हज यात्रिओं को ऐसी और इस स्तर की आर्थिक सुविधाएं प्राप्त हैं.
निस्संदेह इस्लाम में हज यात्रा का अपना एक महत्त्व है. लेकिन कुरआन में यह भी स्पष्ट तौर पर दर्ज है कि हज यात्रा का खर्च हाजी या उसके रिश्तेदार द्वारा ही किया जाये. आर्कोट के प्रिंस नवाब मुह्हम्मद अब्दुल अली के अनुसार यह शरियत क़ानून के खिलाफ है और हाजी को किसी प्रकार कि आर्थिक सहायता नहीं लेनी चाहिए . हज विश्व कि सबसे बड़ी मज़हबी पवित्र यात्रा मानी जाती है, दूसरा स्थान केरल कि शब्रिमाल यात्रा का है और इसके लिए कोई सरकारी आर्थिक सहायता नहीं दी जाती. २००९ में सउदी अरब सरकार ने भारत से १,६०,४९१ यात्रिओं को हज कि अनुमति प्रदान की, जिसमें से मात्र ४५,४९१ यात्री ही शर्यत के नियमों के अनुसार अपने खर्चे पर हज को गए बाकी १,५०,००० यात्रिओं ने सरकारी आर्थिक सहायता पर ही यह यात्रा करना मुनासिब समझा. इन यात्रिओं ने हज यात्रा पर केवल १६०००/- खर्च किये बाकी के ४५०००/- सरकार ने मुहैया करवाए .
मलेशिया जहाँ मुसलामानों की जनसंख्या सब से अधिक है और आर्थिक स्थिति भी काफी बेहतर है, वहां भी हज यात्रिओं की किसी प्रकार की आर्थिक सहायता सरकार द्वारा मुहैया नहीं करवाई जाती. हज यात्रिओं के लिए एक किटी फंड की व्यवस्था है जो हज के लिए संभावित यात्रिओं द्वारा इक्कठा किया जाता है. हज यात्री अपने इस फंड में से पैसे निकलवा कर यात्रा पर चले जाते हैं. इस तर्ज़ पर ही विदेश मंत्रालय भातर में भी हज यात्रिओं के लिए इनके एक निजी फंड के जुगाड़ में है. लेकिन हज बोर्ड के मुस्लिम नेता जो इस फंड पर अपनी राजनितिक रोटियां सेकते आ रहे हैं और मुस्लिम वोटों के तलबगार दूसरे सेकुलर नेता सरकार के इस कदम के विरोध में भी उतर आए हैं.विरोध करें भी क्यों न - लोक सभा की ८० सीटें मुस्लिम वोट पर टिकी हैं. दिल्ली दरबार के दरवाज़े हज यात्रा की सब्सिडी की चाबी से ही खुलते हैं.मुस्लिम आबादी के साथ ही इस चाबी का महत्त्व भी बढ़ता ही जा रहा है.चाहे यह सब्सिडी ८२६ से बढ़ कर ८२६००० करोड़ क्यों न हो जाये.
सब सहारा अफ्रीका के बाद भारत विश्व का निर्धनतम देश है, जहाँ ४२% अर्थात ४५६ मिलियन लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवन बसर करने को मजबूर हैं. ४९% बच्चे कुपोषण के कारण अन्डर वेट हैं और २.२ मिलियन बच्चे प्रति वर्ष भूख से मर जाते हैं. कुछ वर्ष पूर्व तो इन बच्चो को कुपोषण से बचाने के लिए हमारी सेकुलर सरकार ने अपने वार्षिक बज़ट में ' २२ करोड़ की विपुल धनराशी ' रख छोड़ी थी और हज यात्रिओं के लिए उस वक्त ' मात्र १२२ करोड़ 'का प्रावधान था. बच्चों का क्या है! रोटी नहीं मिलेगी तो मिटटी से गुज़ारा कर लेंगे . एक राष्ट्रीय समाचार पत्र में गत दिनों उत्तर प्रदेश के एक गाँव में एक बच्ची की फोटो छपी जो मिटटी का ढेला खा रही थी .कुच्छ बच्चों के लीवर, किडनी,पेट और आँखों में मिटटी खाने के कारन सोजिश के दृश्य भी छापे गए.कियोंकि समाचार पत्र राष्ट्रीय था और उस पर सोनिअजी की भी नज़र पड़ती थी- फ़ौरन मंत्रिओं की एक बैठक खज़ाना मंत्री प्रणव दादा की रहनुमाई में बुलाई गई और उन्हें सोनिया जी की चिंता से अवगत करवाते हुए आदेश हुआ की फ़ौरन एक बिल का मसौदा तैयार किया जाये -गरीबों को सचमुच में रोटी का अधिकार दिया जाये. सोनिया जी ! पिछले ६३ वर्षों में बहुत से बिल और क़ानून पास हुए, लेकिन भूख से बिलखते बच्चों को रोटी का निवाला देने में कोई भी सफल नहीं हो पाया- होगा भी नहीं ! क्योंकि बच्चों की वोट नहीं होती.
मुस्लिम जनसँख्या के हिसाब से भारत विश्व का तीसरा देश है. इनकी आर्थिक स्थिति बहुत ही चिंता जनक है. शयद इनके पिछड़े पण का बहुत बड़ा कारन भी इनकी प्रगति विरोधी मज़हबी सोच है. आज की महंगाई के जमाने में जहाँ एक बच्चा पालना भी मुहाल है.-ये अभी तक अल्लाह की रहमत से चार चार बीविया और दर्ज़नों बच्चे मौला की देन मान कर जी रहे हैं एक सर्वे के अनुसार १० में से ३ मुसलमान गरीबी रेखा से नीचे है.
'घर से मस्जिद है बहुत दूर,
चलो यूं कर लें
किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए !!!!!!!!!!.

शुक्रवार, 9 अप्रैल 2010

खेल खर्चे के फूलते गुबारे.

कामन वेल्थ खेलों के आयोजक लगता है अब 'खर्चे पर लगाम कसने की कवायत ' शुरू करने वाले हैं। तभी तो अभी तक निशान्चिओं के लिए रायफलों के बंदोबस्त पर मीन मेख जारी है। खिलाडी उधार की राइफलों से अभ्यास कर रहे हैं। पहले १२ रायफलों की मांग की गई जिसे रद्द कर दिया गया ,फिर ६ की मांग हुई उसे भी नकार दिया और अब जा कर ४ पर सहमति बनी है। यह बात अलग है की चार पदकों की इस स्पर्धा के लिए २५ करोड़ की लागत से गुडगाँव में शूटीं रेंज बन कर तैयार है।
उधर खेल खेल में महा खेले का बजट कल्मादिजी के गुबारे की तरहं फूलता ही जा रहा है। २००६ में जब इस महा खेल की तैयारी का आगाज़ किया गया तो अनुमान था की २२००० करोड़ खर्च आयेगा ,जो अब ३० ००० करोड़ का आंकड़ा भी प़र कर गया है। खेल गाँव के निर्माण पर २००४ में अनुमान था ४६५ करोड़ का और खर्चा १४०० करोड़ को छू रहा है। ट्राफिक और जनसंपर्क के प्रबंधन पर खर्च ४० से बढ़ कर ८० करोड़ हो गया। ११ स्टेडियमों पर भी खर्च पांच गुना ,१२०० से ५००० करोड़ हो चूका। फ्लाई ओवरों पर १६५० करोड़ किसी गिनती में नहीं और बचाव प्रबंधन के ३७० करोड़ भी अतिरिक्त खर्चे में आते हैं। इवेंट प्लानिंग का खर्चा भी ९२० से बढ़ कर अब २३०७ करोड़ को छू रहा है।
आयोजकों का तर्क है की महंगाई के कारन यह खर्चा इतना बढ़ा है। और इसकी भरपाई खेल निर्माणों की बिक्री से कर ली जाएगी। मंदी के दौर में खर्चा बढ़ने का तर्क गले नहीं उतरता। रही बात बिक्री की , एशियन खेलों की इमारते २५ साल तक खरीद दारों की बाट जोहती रहीं और एशिआद गाँव भी २० साल तक अपने बिकने की उम्मीद में रख रखाव के नाम पर सरकारी खजाने को दीमक की तरहं चाटता रहा
स्वय सेवी संस्थाओं का आरोप है की खेल के नाम पर भ्रष्ट नेता-अफसर टीमें पहले ही अपना खेल खेल चुकीं ,इस लिए किसी बाहरी निष्पक्ष लेखा जांच एजेंसी से सारे गोरख धंधे की जांच करवाई जाये ताकि 'गुबारों' के खिलाड़ी निशाने पर आ सकें ।

सोमवार, 5 अप्रैल 2010

अब 'भूख मिटाओ' योजना

सोनिया जी की सरकार की गरीबी रेखा मापने की भागीरथ योजना पिछले ९ सालों से निरंतर जारी है. गरीबी रेखा है कि हनुमान जी कि पूंछ जो नपने का नाम ही नहीं लेती ! जितना नापो उतनी ही और बढ़ जाती है.
अब सरकार के आला अफसरों ने नाप तोल कर बता दिया कि भई मात्र ३०० मिलियन गरीब गुरबे बचे हैं हमारे देश में . एक राष्ट्रीय समाचार पत्र को भनक लग गई कि गरीबी रेखा नप गई...निकल पड़ी पत्रकारों कि फौज अपने अपने गज-मीटर उठा कर.हर पत्रकार ने अपनी अलग मैपाइश से सरकारी लम्बाई कि हवा निकाल के रख दी. पत्रकार बिरादरी कि पैमाइश सरकारी माप तोल से मीलों आगे निकल गई. अल्लाहबाद के एक गाँव में एक बच्ची की मिटटी खाते अखबार में फोटो देख सोनिया जी सन्न रह गईं . फ़ौरन फरमान जारी कर दिया अपने खज़ाना मंत्री प्रणब बाबू को ' रोटी एक मौलिक अधिकार' का बिल बनाया जाये.
माया जी को न सही फुर्सत अपने सफ़ेद हाथिओं से. मगर सोनिया जी ने तो ठान रखी है अपनी सासू माँ जी के गरीबी हटाओ के ४० साल पुराने सपने को साकार करने की बैठा दिया अपने आठ रत्नों को एक गोल मेज़ पर और साफ़ साफ़ कह दिया ! अब की बार ऐसा बिल तैयार कर के उठाना जिस से 'गरीब को रोटी का मात्र अधिकार ही नहीं ,रोटी भी मिलनी चाहिए ! माया जी के सब से ' खुशहाल ' राज्य में भूखे बच्चे मिटटी खा कर पेट भर रहे हैं. और मात्र ५८% सरकारी अनाज गरीबी रेखा से नीचे जीवित लोगों तक पहुँचाया जा रहा है.फिर भी इसे २५ किलो से बढ़ा कर ३५ किलो करने की योजना पर विचार हो रहा है. मिटटी खा कर बच्चों की आँखें सूज गईं हैं और पेट, लीवर और किडनी बढ़ गए हैं और सरकारी स्वस्थ्य सेवाओं के अभाव में वे मृत्यु के आगोश में समाते जा रहे हैं.
अब बेचारी सरकार भी करे तो क्या करे ! चाचा नेहरु जी के बताये रस्ते पर चलते हुए ,एक से एक बढ़िया और विशाल योजनाएं बना तो रही है. ६ साल से छोटे मासूमों को पौष्टिक आहार खिला कर स्वस्थ भारत के निर्माण की महती योजना पर साल २०१०-११ के लिए ७८०७ करोड़ रुपये अलग से रख छोड़े हैं , तांकि १.४ मिलियन केंद्र खोल कर देश का भविष्य संवार दिया जाये . बचों को पढ़ते पढ़ते भूख लग जाती है.अब सरकार ने इसका भी ख़ास ख़याल रखते हुए मिड डे मील योजना के लिए ९४४० करोड़ की धन राशि दे दी है. बच्चों के लिए ही नहीं बड़ों के लिए भी योजनायें हैं. वृधो, विधवाओं और अप्पंगों की पेंशन के लिए इस वर्ष ५७१० करोड़ का प्रावधान है. देश के हर गरीब से गरीब के मुंह तक निवाला पहुँचाने की सबसे बड़ी योजना 'पी .डी .एस . 'सार्वजानिक वितरण प्रणाली के लिए ५५,५७८ करोड़ की विपुल राशि मंजूर है. अब इस निवाले को रस्ते में ही 'सरकारी गिद्ध और डिपो होल्डर चूहे गटक जाएँ तो बेचारी सरकार का क्या दोष है. इसके बाद सबसे बड़ी योजना है नरेगा जिसके लिए ४०,१०० करोड़ खर्च कर सरकार हर गरीब को कम से कम १०० दिन का काम काज मुहैया करवाने की गारंटी देने जा रही है.
सुबह के अखबार में सरकार की इन 'दुःख निवारण चाचा नेहरु योजनाओं ' को पढ़ कर मैं देश के पालन हार महां पुरुषों और महा मनीषियों की चिंताओं से चिंतित हो रहा था की श्रीमती जी ने आवाज़ लगाईं 'सुनते हो ..अब अखबार ही पढ़ते रहोगे की कोई और काम धंधा भी करोगे... अभी तक 'गुड्डू' नहीं आई ! मैं सफाई कर रही हूँ.. नाश्ता बना लो.. हमारे श्रीमती जी भी बस...यहाँ देश की सोच रहे हैं और इन्हें काम वाली की पड़ी है. थोड़ी देर बाद 'गुड्डू' आ गई -हाथ में घासलेट की ख़ाली बोतल लटकाए और देवी जी से बतिया रही.. बीबी जी आज घास लेट नाही मिला. घर पर सभी ९ के ९ मानस भूखे बैठे हैं. डीपु वाला बाबू बोले हैं...घासलेट की ब्लैक बढ़ गई ..पहले २५ में देता था अब ३० मांग रहा है और मेरे पास तो बस..... मैं पूछ बैठा ..अरे आप लोगों के पास राशन कार्ड नहीं? गुड्डू बोली ..वह कहाँ मिळत है बाबूजी ????????