मंगलवार, 25 अगस्त 2009

पुरबनी मर गई
पड़ोस की पुरबनीt एक वृद्धा -बचपन से उसे सामने वाले डेढ़ कमरे के मकान में अपने भरे पुरे परिवार के साथ देख रहा था -परिवार में उसके लगभग ६ लड़किया और एक लड़का काका । उसकी लड़किया सभी बियाही गई और काके की भी दो तीन शादियाँ हुई -एक तो उसके भांजे के साथ ही भाग गई और अबके वाली कई बार भागी , फिलहाल एक टिकी हुई है। पुरबानी ने सारा जीवन पास पड़ोस वालों की कृपा पर काट दिया -किसी ने उसके पति को नहीं देखा फिर भी उसने अपनी लड़किओं के हाथ पीले का जुगाड़ अपनों के दम पर किया ।
आज मुहल्ले वाले जब उसे शमशान घाट लेकर जा रहे थे तो अपनी आदत से मजबूर मने नेक सलाह दे डाली की शवदाह कम लकड़ी वाले चबूतरे पर किया जाए -लकड़ी भी कम लगेगी औरye पैसे भी बचेंगे -काके के काम आएंगे । कह कर मैंने मानों -मधुमाख्हियों के छत्ते में पत्थर दे मारा ।
पुरबनी के नाते रस्ते वालों की तो छोडो-मुहल्ले के महानुभाव भी मेरे पीछे हाथ धो कर पड़ गए । हम मर गए क्या ,यतीम समझ रखा है। बड़े जवाई राज ने २ मन लकड़ी की घोषणा क्या की ,एक होड़ सी लग गई २मन लकड़ी की । देखते देखते ३६ मन लकड़ी का जुगाड़ हो गया।
मैं मन ही मन ख़ुद को कोस रहा था । आम मुर्दा ६ मन लकड़ी में जलाया जाता है और यह खास पुरबानी ३६ मन लकड़ी मैं जल कर स्वर्ग्य पर्धान्मनतरी नरसिम्हाराव जी की श्रेणी मैं जा खड़ी हुई । अभी तक सबसे अधिक लकड़ी मैं दाहसंस्कार का रिकार्ड राव साहेब के नाम है। जाते जाते
पुरबनी को भी न मालूम होगा की वेह कितने जीवित प्राणियों की प्राण वायु लील गई -एक प्राणी को साँस लेने के लिए दो पेडो की प्राणवायु की जरुरत है । aअज वनों का घनत्व मात्र२% रह गया है जबकि समृद्ध पर्यावण के लिए ३३%भूमि पर वन होने चाहियें । तभी तो हमारे शास्त्रों में पेडो के महत्व को सर्वोपरि मानते हुए - एक हरे पेड़ को काटना युवा पुत्रे की हत्या के समान पाप माना गया है।जिस प्राणी ने अपने जीवन काल में एक भी पेड़ नहीं लगाया उसे भला जाते जाते पेडो की इतनी लकड़ी फूंकने का हक किसने दिया है। पेडो की पूजा करने वाले इनकी क़द्र करना कब सीखेगे।