स्वास्तिक प्रतीक कि अवमानना
सेकुलर शैतानों की कुष्ठ- मानसिकता...
एल.आर .गाँधी.
सेकुलर मिडिया की एक और शैतानियत - - -आउट लुक पत्रिका के १९ जुलाई २०१० के अंक के मुख्या पृष्ट पर हिन्दुओं के आस्था प्रतीक स्वास्तिक को विकृत रूप में छाप कर विनोद महता ने अपनी कुष्ठ-मानसिकता का ही परिचय दिया है. हिन्दू टेरर नामक अपने लेख पर स्वास्तिक के निशाँ को चार पिस्तौलों से बना कर हिन्दुओं के पवित्र आराधना चिन्ह की पवित्रता को जानबूझ कर दूषित करने का दुस्साहस किया है.
संस्कृत में स्वस्तिक का अर्थ है सु=अच्छा , अस्ति=हो , इक= जो अस्तित्व में है अर्थात उज्जवल भविष्य . या अच्छाई की विजय अर्थात समस्त मानवता के लिए आशीर्वाद. बौध साहित्यकार इसे बुध के चरण-कमल मानते हुए अपनी कृति से पूर्व स्वास्तिक का चिन्ह अंकित करना शुभ्यंकर मानते हैं. वैदिक दर्शन में इसे ४ वेदों रिग्वेदा, सामवेद, यजुर्वेद और अर्थव वेद का प्रतीक माना जाता है. भारतीय संस्कृति में स्वास्तिक को मानव के चार आश्रमों -ब्रह्मचर्य, गृहस्थ वानप्रस्थ और संन्यास का प्रतीक चिन्ह माना जाता है. हिन्दू इसे मानव के ४ जीवन लक्ष्यों -धरम, अर्थ, काम और मोक्ष का प्रतीक भी मानते हैं. उक्त साक्ष्यों से स्पष्ट है की स्वास्तिक हिन्दू धरम में पवित्र, शुभ्यंकर, भाग्यवर्धक और शान्ति का प्रतीक है.
स्वास्तिक को विकृत रूप में प्रदशित करना घोर पाप के साथ साथ अमंगल कारी भी माना जाता है. नाज़ियों ने स्वास्तिक को विकृत रूप में अपनाते हुए इसे ४५ डिग्री पर टेढ़ा कर लाल पृष्ट भूमि में अंकित किया. एसा करने से स्वास्तिक का प्रभाव विनाशकारी हो जाता है. इतिहास इस विशवास का साक्षी है - जो हश्र नाज़ीओं का हुआ वह सबके सामने है. आतंकियों का साथ देने वाले इन सेकुलर शैतानों का अंत भी अन्ततोगत्वा निश्चित ही है.
आपका विरोध जायज है। यह सब विकृत मानसिकता और सोच का नतीजा है । इसी राजनीति और सोच की वजह से आज राम को अपनी जन्मभूमि के लिए कोर्ट के फैसले का इंतजार करना पड़ रहा है। आपका स्वागत है मेरे ब्लॉग अपनापंचू पर.......
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बाबर कोई मसीहा नहीं अत्याचारी, अनाचारी, आक्रमणकारी और इस देश के निवासियों का हत्यारा है