इस्लामिक आतंक का शिकार - नालंदा
 भारतीय शिक्षा विज्ञानं के प्राचीन  प्रकाश स्तम्भ ' नालंदा ' विश्व विद्यालय को पुनर्जीवित करने का बीड़ा अब  विदेशी संस्थाओं ने उठाया है. बिहार की इस बहुमूल्य दरोहर को फिर से उसके  पुराने गौरवशाली रूप में स्थापित करने का महती कार्य नोबल विभूति अमर्त्य  सेन व् सिंगापूर के विद्वान ऍफ़ एम् जोर्जेयो को सौंपा गया है. केंद्रीय  मंत्रिमंडल कि मंजूरी के बाद अब इस पर संसद कि मोहर  लगनी बाकी है. इके बाद  अक्तूबर में हैनोई में होने वाली ईस्ट एशिया सम्मलेन में स्वीकृति के बाद  इस पर काम शुरू हो जायेगा. दिल्ली विश्व विद्यालय के गोपा सभरवाल इस के  आयोजन उपकुलपति होंगे.
  पटना से ५५ मील दक्षिण-पूर्व में स्थित नालंदा बौध विद्या पीठ ४२७-११७९  ईसवी तक बौध मत का प्रमुख शिक्षा केंद्र रहा. सम्राट अशोक ने सबसे पहले  यहाँ एक मठ स्थापित किया था. ६३७ ईसवी में चीनी यात्री उएंचांग ने  विद्यापीठ में प्रज्ञा चंद्र नामक आचार्य से विद्याध्ययन किया था. विश्व के  लिखित इतिहास में यह महानतम विश्व विद्यालयों में से एक था, जिसकी सम्राट  कुमार गुप्त ने स्थापना की थी. लाल ईंट से बना १४ एकड़ में फैला यह 'ज्ञान  केंद्र' विदेशी विद्वानों के लिए ख़ास आकर्षण का केंद्र रहा, जहाँ चीन ,  यूनान, पर्शिया आदि  दूरस्थ देशों  से विद्वान ज्ञान अर्जन के प्रयोजन से  यहाँ आते थे.  यह विश्व कि प्रथम आवासीय विश्व विद्यालय थी जहाँ दस हजार  छात्र और दो हजार अध्य्यापक  ज्ञान-विज्ञान की विविध प्रणालियों का अध्ययन  करते. विद्यालय के आठ प्रांगन ,१० मंदिर, साधना हाल, कक्षा कक्ष, ताल और  उद्यान थे. नौं मंजिला पुस्तकालय और इसके  तीन भवन विशेष आकर्षण का केंद्र  थे. इनके नाम भी पुस्तकालय में रखे ज्ञान- ग्रंथों  के अनुरूप थे - जिन्हें  'धरमकुंज ' के रत्न सागर-रत्न दधी व् रत्न रंजक  के नाम से संबोधित किया  जाता था. 
  नालंदा विश्व विद्ययाल्या में उस समय के विश्व व्यापी ज्ञान की प्रत्येक   जानकारी उपलब्ध थी . नालंदा का अर्थ ही यह था कि जहाँ किसी भी प्रकार का  ज्ञान प्राप्त  करने की ईच्छा रखने वाले 'मुमुक्षु को '  न ' नहीं .
  ११९३ में एक शैतान ने  'ज्ञान के इस प्रकाश पुंज' को बुझा दिया.  यह शैतान  था बख्त्यार खिलज़ी , जो तलवार की धार पर भारत में इस्लाम फ़ैलाने कि नियत   से आया  था. खिलज़ी ने नालंदा विश्व विद्यालय के 'धर्मकुंज' पुस्तकालय  पहुँच कर सवाल किया . क्या यहाँ कुरान है ? जवाब नहीं में था ! यह सुनते ही  वह आग बबूला हो गया . विश्व विद्यालय को ज़मीं दोज़ कर दिया गया -हजारों  बौध भिक्षुओं को जिंदा जला दिया गया और हजारों को तलवार से काट  दिया गया-  मंदिर गिरा   दिए   गए   और विद्यापीठ की  इमारतों  को मिस्मार  कर दिया  गया. ..... प्रसिद्ध  पर्शियन  इतिहासकार  मिन्हाज - ई -सीरिज  ने अपनी   किताब  तब्क्नात - ई - नसीरी    में इस का ज़िक्र   किया    है 
  'धर्मकुंज' पुस्तकालय   को आग लगा दी गई -हजारो वर्षों से सहेजे गए ज्ञान  विज्ञानं के ग्रन्थ ख़ाक हो गए . कहते हैं पुस्तकालय की यह आग तीन माह तक  सुलगती रही. इतिहासकार अहीर के अनुसार नालंदा विश्व विद्यालय को मिटाने का  मकसद था प्राचीन भारत के ज्ञान विज्ञान को पूरंतः मिटटी में मिला देना.
९/११ के इस्लामिक आतंकी हमले को सबसे बड़ा आतंकी वाकया कहने वाले शायद यह  भूल गए कि भारत में 'नालंदा' विश्व विद्यालय पर खिलज़ी का यह हमला भारत की  अस्मिता पर होने वाला विश्व का सबसे बड़ा आतंकी हमला था. भारत ने न जाने  ऐसे कितने ही आतंकी वार झेले और फिर भी विश्व को बुध के सत्य और अहिंसा का  सन्देश निरंतर दिए चला जा रहा है.
शेख ने मस्जिद बना , मिस्मार बुतखाना किया.
पहले तो कुछ सूरत भी थी ,अब साफ़ विराना किया...
लोग तो हमें अनपढ़, गंवार कहते हैं। हमारे देश में अंग्रेजों के आने से पहले स्कूल या शिक्षा के कोई व्यवस्थित केंद्र ही नहीं थे। फिर नालंदा जैसा विश्वविद्यालय कहां से आया? इन तथाकथित प्रगतिशील लेखकों से और निष्पक्ष इतिहासकारों से पूछा जाना चाहिए। भारत सिरमौर था और कई मामलों में आज भी है। भारत ने बहुत आकम्रण झेले हैं साहब जी......
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