अब 'गरीबी छुपाओ'
कलमाड़ी का कमाल ...
एल. आर. गाँधी.
कलमाड़ी का कमाल ; जी हाँ इसे हम कलमाड़ी जी का कमाल ही कहेंगे ! जिस दक्ष प्रशन का उत्तर पिछले ४० साल से 'राज परिवार ' नहीं ढूंढ पाया ,कलमाड़ी ने पलक झपकते
ही 'प्राब्लम साल्व' कर डाली !
दक्ष प्रशन था - कामन वेल्थ खेलों में विदेशी महमानों से 'दिल्ली की
बदनसीबी -झुग्गी झोपड़ बस्तियों ' को कैसे छुपाया जाए ? सोनिया जी से ले
कर शीला जी तक सभी हैरान परेशान थे ! शीला जी ने पहले तो अपनी खाकी वर्दी
का खौफ अजमाया और खेल मार्ग पर रहने वाले 'गरीब -गुरबों ' को पुलसिया
अंदाज़ में समझाया कि भई दिल्ली कि इज़त का सवाल है ,कम से कम ३ से १४
अक्तूबर तक कहीं चले जाओ और अपनी यह मनहूस शक्ल किसी विदेश मेहमान को मत
दिखाना . बहुत से बेचारे अपनी सारी जमा पूँजी समेट कर 'ममता की रेक का टिकट
कटा भाग खड़े हुए ! मगर जितने भागे थे उससे भी कई गुना ज्यादा 'यमुना की
मार ' से तरबतर और आ गए. शीला जी हैरान परेशान -सभी हथकंडे आजमाए 'मर्ज़
बढ़ता गया ज्यों ज्यों दवा की' . अब आधी दिल्ली तो झोपड़ पट्टिओं में पसरी
है ... इतने जन सैलाब को कोई कैसे भगाए ?
थक हार कर शीला जी 'अनुभवी और समझदार' कलमाड़ी जी की शरण में पहुंची . दक्ष
प्रश्न का हल पूछा ! कलमाड़ी जी ने अपनी अनुभवी दाढ़ी के काले-सफ़ेद बालों
में हाथ कंघी की और मुस्करा कर बोले . यह भी कोई समस्या है ? हमने इतने
बड़े खेल में किसी को कुछ पता नहीं चलने दिया . सात सौ करोड़ का खेल सत्तर
हज़ार तक पहुंचा दिया और किसी को भनक तक नहीं लगी. कलमाड़ी जी ने अपना बीजिंग
अनुभव सुनाया ! हवाई अड्डे से हम ओलम्पिक गाँव जा रहे थे तो रास्ते में
सड़क के दोनों ओर 'होर्डिंग्ज़ ही होर्डिंग्ज़ ' देख हमारा माथा ठनका ! हमने
अपनी गाडी रुकवाई तो 'मेज़बान मैडम' ने पूछा क्या हुआ कलमाड़ी जी . हमने
गाडी से उतरते उतरते बाएँ हाथ की तर्जनी उठाई और बोले ''सु-सु" और पलक
झपकते ही पहुँच गए होर्डिंग की ओट में. चमचमाते होर्डिंग्स के पीछे देखा
तो 'बीजिंग की बदनसीब झोपड़ पट्टी' अन्धकार में डूबी थी. कलमाड़ी जी का
अनुभव इस आड़े वक्त में काम आया.
बस फिर क्या था ' बाई ऐअर ' मिजोरम से बांबू' मंगवाए गए और कारीगिर भी. और
दिल्ली की मनहूसियत को 'बाम्बू होर्डिंग्स' के पीछे छुपा दिया गया. शीला जी
भी कलमाड़ी जी का लोहा मान गईं. अरे भई हम पिछले ४० साल से गरीबी मिटाने के
'भागीरथ ' कार्य में लगे हैं. पहले इंदिरा जी ने गरीबी हटाने का अहद किया
. गरीबी तो नहीं हटी मगर महंगाई डायन न मालूम कहाँ से आ टपकी. फिर राजीव
जी ने सोचा हटाने से तो यह फिर फिर आ जाती है . इस लिए गरीबी मिटाने की कसम
खाई. इस बार गरीबी के साथ उसका सौतेला भाई 'भ्रष्टाचार ' आ खड़ा हुआ . फिर
अब राज परिवार की बहु रानी ने मनमोहन जी के साथ सीरियस डिस्कशन के बाद
डिसाईड किया कि 'गरीबी को भगा' दिया जाए ! गरीबी तो नहीं भगा पाए- पर अपनी
गरीबी दूर कर 'चाचा कत्रोची ' को जरूर भगा दिया. चलो आधी अधूरी ही सही
'गरीबी भगाने ' की मुहीम में सफलता तो हाथ लगी. अब परिवार के राज कुमार जब
यू पी. के दलितों की झोंपड़ियों में जा कर इक्कीसवीं सदी का 'गाँधी' बनने
के जुगाड़ में लगे हैं - गरीबी छुपाने और देश को विश्व की दूसरी सबसे बड़ी
शक्ति दिखाने के 'पारिवारिक आन्दोलन' में कलमाड़ी जी के योगदान को स्वर्ण
अक्षरों में लिखा जायेगा. अंग्रेजी में कहावत भी है ' आउट आफ साईट इस आउट
विचारणीय लेख के लिए बधाई
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